पालतु कुत्ते रखने का जमाना हुआ पुराना, आज कल घर में रोबोटिक कुत्ते भी रखे जा रहे हैं. गूगल के बॉस्टन डायनेमिक्स ग्रुप का बनाया ये चौपाया असली कुत्ते को चुनौती देता दिख रहा है.
ये है बॉस्टन डायनेमिक्स ग्रुप का बिगडॉग.तस्वीर: picture-alliance/dpa/Boston Dynamics
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अति नवीन यानि लेटेस्ट तकनीक का नमूना है स्पॉट नाम का यह चौपाया. दिखने में कुत्ते जैसा लगने वाला यह रोबोट असली कुत्ते के साथ खेलता दिखाया गया है. इसके असली लगने वाले हावभाव से असली कुत्ते का ध्यान उसकी ओर खिंचता है और फिर दोनों के बीच शुरु होता है एक मजेदार खेल. स्पॉट को बनाया है गूगल के बॉस्टन डायनेमिक्स ग्रुप ने. इस ग्रुप ने पहले भी कुछ ऐसे रोबोट बनाए लेकिन यह एकलौता है जो आम लोगों के हाथ में है, सेना के नहीं.
गूगल ने कुछ साल पहले ही दुनिया की सबसे एडवांस रोबोटिक कंपनी बॉस्टन डायनेमिक्स ग्रुप का अधिग्रहण किया था. कृत्रिम बुद्धिमत्ता और सिमुलेशन सिस्टम के क्षेत्र में काम करने वाली यह कंपनी अमेरिकी सेना के लिए रोबोटों का निर्माण करती रही है.
मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया में सन 2000 में हुई रोबोटों की फुटबॉल विश्वकप प्रतियोगिता का नजारा.तस्वीर: Getty Images
इसे 1992 में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर मार्क रायबर्ट ने एक तकनीकी समूह के रूप में शुरु किया था. 'लेग लैब' की स्थापना कर उन्होंने ही अपने पैरों पर चल सकने वाले रोबोट बनाने की शुरुआत की.
फ्यूचर ह्यूमन - मशीन और इंसान का मेल
कभी स्वास्थ्य कारणों से तो कभी सेना में जरूरत के लिए रोबोटिक कंकालों पर शोध होता है. बीते दशक में इंसान के शरीर की ही तरह हरकतें करने में सक्षम रोबोटिक हाथ, पैर और कई तरह के बाहरी कंकाल विकसित किए जा चुके हैं.
तस्वीर: Fotolia/Jim
पूरी तरह रोबोटिक
आइला नाम की यह मादा रोबोट दिखाती है कि एक्सो-स्केलेटन यानि बाहरी कंकाल को कैसे काम करना चाहिए. जब किसी व्यक्ति ने इसे पहना होता है तो आइला उसे दूर से ही नियंत्रित कर सकती है. आइला को केवल उद्योग-धंधों में ही नहीं अंतरिक्ष में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
तस्वीर: DFKI / Jan Albiez
हाथों से शुरु
जर्मनी में एक्सो-स्केलेटन पर काम करने वाला डीएफकेआई नाम का आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस रिसर्च सेंटर 2007 में शुरू हुआ. शुरुआत में यहां वैज्ञानिक रोबोटिक हाथ और उसका रिमोट कंट्रोल सिस्टम बनाने की ओर काम कर रहे थे. तस्वीर में है उसका पहला आधुनिक प्रोटोटाइप.
तस्वीर: DFKI / Studio Banck
बेहद सटीक
डीएफकेआई ने 2011 से दो हाथों वाले एक्सो-स्केलेटन पर काम शुरू किया. दो साल तक चले इस प्रोजेक्ट में रिसर्चरों ने इंसानी शरीर के ऊपरी हिस्से की कई बारीक हरकतों की अच्छी नकल कर पाने में कामयाबी पाई और इसे एक्सो-स्केलेटन में भी डाल सके.
तस्वीर: DFKI / Annemarie Hirth
रूस का रिमोट कंट्रोल
केवल जर्मन ही नहीं, रूसी रिसर्चर भी रिमोट कंट्रोल सिस्टम वाले एक्सो-स्केलेटन बना चुके हैं. डीएफकेआई ब्रेमन के रिसर्चरों को 2013 में रूसी रोबोट को देखने का अवसर मिला. इसके अलावा रूसी साइंटिस्ट भी आइला रोबोट पर अपना हाथ आजमा चुके हैं.
दुनिया की दूसरी जगहों पर विकसित किए गए सिस्टम्स के मुकाबले डीएफकेआई के कृत्रिम एक्सो-स्केलेटन के सेंसर ना केवल हथेली पर लगे हैं बल्कि बाजू के ऊपरी और निचले हिस्सों पर भी. नतीजतन रोबोटिक हाथ का संचालन बेहद सटीक और असली सा लगता है. इसमें काफी जटिल इलेक्ट्रॉनिक्स इस्तेमाल होता है.
तस्वीर: DFKI/David Schikora
भार ढोएंगे रोबोटिक पैर
डीएफकेआई 2017 से रोबोटिक हाथों के साथ साथ पैरों का एक्सो-स्केलेटन भी पेश करेगा. यह इंसान की लगभग सभी शारीरिक हरकतों की नकल कर सकेगा. अब तक एक्सो-स्केलेटन को पीठ पर लादना पड़ता था, लेकिन भविष्य में रोबोट के पैर पूरा बोझ उठा सकेंगे.
तस्वीर: DW/Tatiana Ivanova
लकवे के मरीजों की मदद
इन एक्सो-स्केलेटनों का इस्तेमाल लकवे के मरीजों की सहायता के लिए हो रहा है. ब्राजील में हुए 2014 फुटबॉल विश्व कप के उद्घाटन समारोह में वैज्ञानिकों ने इस तकनीकी उपलब्धि को पेश किया था. आगे चलकर इन एक्सो-स्केलेटन में बैटरियां लगी होंगी और इन्हें काफी हल्के पदार्थ से बनाया जाएगा.
तस्वीर: cotesys.org
अंतरिक्ष में रोबोट
फिलहाल इन एक्सो-स्केलेटन की अंतरिक्ष में काम करने की क्षमता का परीक्षण त्रिआयामी सिमुलेशन के द्वारा किया जा रहा है. इन्हें लेकर एक महात्वाकांक्षी सपना ये है कि ऐसे रोबोटों को दूर दूर के ग्रहों पर रखा जाए और उनका नियंत्रण धरती के रिमोट से किया जा सके. भविष्य में खतरनाक मिशनों पर अंतरिक्षयात्रियों की जगह रोबोटों को भेजा जा सकता है.