कौन हैं ड्रोन हमलों में मारे जाने वाले
१४ अक्टूबर २०१३लंदन के ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेटिव जर्नलिज्म (बीआईजे) पाकिस्तान के ड्रोन हमलों में मारे गए लोगों का एक डेटाबेस तैयार कर रहा है ताकि दुनिया के सामने उनकी पहचान लाई जा सके. बीआईजे के जैक सरले ने 'नेमिंग द डेड' नाम के इस प्रोजेक्ट के बारे में डॉयचे वेले से बातचीत की.
डीडब्ल्यू: आपको मारे गए लोगों की पहचान करने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
जैक सरले: इसके दो कारण हैं: पहला तो यह कि पाकिस्तान के कबायली इलाकों में पिछले नौ साल से अमेरिका ने जो गुप्त युद्ध छेड़ा हुआ है, हम उसका पर्दाफाश करना चाहते हैं. हमें लगता है कि अगर हम मारे गए लोगों का नाम, उनकी तस्वीर और उनके बारे में कुछ जानकारी जमा कर लेते हैं तो हम इस बात पर बहस शुरू कर सकते हैं कि अमेरिका द्वारा किए जा रहे ये ड्रोन हमले कितने वैध हैं.
अमेरिका दावा करता आया है कि इन हमलों में जिन लोगों की जान जा रही है वे सब किसी तरह के आतंकवादी हैं. लेकिन वहां के लोगों का कहना है कि हमलों में आम नागरिकों की जान जा रही है. अगर हम इस तरह से सबूत जमा कर पाते हैं, तो बहस करने की बेहतर स्थिति में होंगे.
दूसरी वजह इंसानियत से जुड़ी है. आखिर ये लोग ही हैं. इन्हें नाम दे कर हम इन्हें इंसान होने की पहचान देना चाह रहे हैं, क्योंकि उनकी पहचान महज एक नंबर या फिर आंकड़े ही नहीं है.
डीडब्ल्यू: सीआईए और अमेरिकी सेना की आतंकवादियों की जो परिभाषा है, क्या आपकी परिभाषा उससे अलग है?
जैक सरले: हमें यह समझना होगा कि अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत 'मिलिटेंट' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है. यह वैसा नहीं है जैसा 'कॉमबेटैंट'. अमेरिका तो इन कबायली इलाकों में रह रहे 16 से 18 साल के सभी लोगों को आतंकवादी मानता है.
हम अपने डाटाबेस में सभी लोगों की जानकारी देंगे और हम यह नहीं कहेंगे कि फलाना व्यक्ति आतंकवादी था और फलाना नागरिक. बल्कि हम यह बताएंगे कि इस व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया गया और इसे नागरिक. यह ऑनलाइन रहेगा. इसलिए लोग इन्हें देख कर हमें उनके बारे में और जानकारी दे सकते हैं.
अगर कोई हमें बताता है कि जिस व्यक्ति को तालिबान का सदस्य घोषित किया गया है वह असल में एक सीधा सादा किसान है और इसके लिए वह ठोस सबूत भी दे सकता है, तो हम उसकी बात मानेंगे. या फिर इसका उल्टा भी हो सकता है.
डीडब्ल्यू: ऐसा क्यों है कि इस तरह के डाटाबेस बनाने का काम सीआईए नहीं, बल्कि बीआईजे जैसी निजी संस्था कर रही है?
जैक सरले: सीआईए एक खुफिया एजेंसी है. वह जो भी काम करती है, कानून के हिसाब से उसे गुप्त रखा जाता है. बस कुछ सांसदों को ही वह जानकारी मिल पाती है. हमें लगता है कि वह जो कर रहे हैं उसमें पारदर्शिता की बहुत जरूरत है. हमें लगता है कि पाकिस्तान में जो हो रहा है उस पर बहस की बहुत जरूरत है और कि ऐसा करने के लिए हमें पुख्ता सबूत की जरूरत है. हमने सबूत जमा करने की जिम्मेदारी खुद उठा ली है.
डीडब्ल्यू: आपकी छानबीन के बाद जिन लोगों के बारे में पता चला है, क्या आप उनके बारे में कुछ बता सकते हैं?
जैक सरले: अब तक 2,500 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. लेकिन हमारे पास फिलहाल 568 के बारे में ही जानकारी मौजूद है. ऐसे मामलों में लोग अक्सर जानना चाहते हैं कि मरने वाले कौन थे. मैं एक मिसाल दे सकता हूं. एक 45 साल के व्यक्ति की हत्या हुई. मलिक दाउद खान नाम का यह शख्स कबायली जिरगा का प्रमुख था. जिरगा का काम था स्थानीय लोगों के आपसी मतभेदों पर चर्चा करना, उन्हें सुलझाना.
कुछ पचास लोग मलिक दाउद खान के साथ ऐसी ही एक चर्चा के लिए जमा हुए. कबीले के और भी बड़े बूढ़े वहां मौजूद थे. ड्रोन हमला हुआ और वे मारे गए. उनके बेटे के अनुसार वह लोकतंत्र को बढ़ावा देने वाले लोगों में से थे जिन्हें कबीले के लोग भी बहुत चाहते थे. पर लोगों की जिंदगियां संवारते हुए उन्हीं की जिंदगी का अंत हो गया.
इंटरव्यू: केट लेकॉक/आईबी
संपादन: आभा मोंढे