कौन हैं नोबेल जीतने वाले लिऊ शियाओपो
८ अक्टूबर २०१०दशकों से लिऊ शियाओपो चीन की कम्युनिस्ट सत्ता के सबसे ख्याति प्राप्त आलोचक हैं. लगभग दो साल से वह जेल में हैं. जेल की दीवारें कठोर इच्छाशक्ति वाले 54 साल के नागरिक संघर्षकर्ता के लिए नई नहीं हैं. 2007 में जर्मन टेलिविजन के साथ इंटरव्यू में उन्होंने अपनी पहली गिरफ्तारी की याद करते हुए कहा था, "मैं साइकल पर घर जा रहा था. मध्य रात्रि थी. मेरे पीछे एक कार आ रही थी, जिसने मुझे रुकने को मजबूर किया. कार से कुछ लोग निकले. उन्होंने मेरी आंखों पर पट्टी डाल दी, मुझे बांध दिया और कार में डाल दिया. सारा माहौल बहुत डरावना था. मुझे सचमुच डर हो रहा था.मुझे पता नहीं था कि वे मुझे कहां ले जाएंगे. मुझे लग रहा था कि वे मुझे कहीं ले जाएंगे और गोली मार देंगे."
चीनी साहित्य के प्रोफेसर लिऊ 1989 में लोकतांत्रिक आंदोलन कर रहे छात्रों का पक्ष लिया था. दो साल की कैद उन्हें तोड़ नहीं पाई. तियानानमेन चौक पर मारे गए छात्रों के लिए वे लोकतांत्रिक सुधारों के लिए संघर्ष करते रहे. 1995 और 96 में उन्हें फिर गिरफ्तार किया गया. उन्होंने बताया, "4 जून को बहुत सारे निर्दोष लोग मारे गए. मुझे लगता है कि जीवित बचने की वजह से मुझे मारे गए लोगों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करना चाहिए. मैं मृतकों के प्रति कर्तव्यबोध महसूस करता हूं जिससे छुटकारा नहीं पा सकता."
2008 के अंत में उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया. वह मानवाधिकारों की घोषणा की 60वीं वर्षगांठ पर जारी चार्टर 08 की पहल करने वाले मुख्य लोगों में शामिल थे. चार्टर में देश में सत्ता के बंटवारे, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था की मांग है. इस बीच करीब दस हजार चीनियों ने चार्टर पर हस्ताक्षर किए. 2009 में उन्हें विध्वंस के आरोप में 11 साल की कैद की सजा दी गई. उन्हें बीजिंग से 500 किलोमीटर दूर एक जेल में रखा जा रहा है. महीने में एक बार वे मुलाकाती से मिल सकते हैं. 2007 में उन्होंने कहा था, "आजादी खोना और निगरानी में रहना सरकार का विरोध करने वालों का व्यावसायिक जोखिम होता है. दूसरों की आंखों में तुम हीरो हो सकते हो लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि यह तुम्हारा चुनाव है, तुम कुछ और भी कर सकते थे. लेकिन जैसे ही तुमने फैसला ले लिया, जोखिम और जबाव का मुकाबला उम्मीद, आत्मविश्वास और शांति के साथ करना चाहिए."
लिऊ शियाओपो के इस उम्मीद और आत्मविश्वास के लिए नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है.
रिपोर्टः महेश झा
संपादनः वी कुमार