क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप महाभियोग की तरफ बढ़ रहे हैं? अमेरिका के जिस प्रोफेसर ने बहुत पहले उनके राष्ट्रपति बनने की भविष्यवाणी की थी, वह कह रहे हैं कि उनका दूसरा दावा भी सच होने के करीब है.
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एलन लिष्टमैन ने 1984 से लेकर अब तक हर बार अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की सटीक भविष्यवाणी की है. 2016 के राष्ट्रपति चुनाव से काफी पहले लिष्टमैन कह चुके थे कि डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के अगले राष्ट्रपति होंगे. साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि ट्रंप अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे. उन पर महाभियोग चलेगा और उन्हें पद गंवाना पड़ेगा. जब ट्रंप जीत गए तो प्रोफेसर लिष्टमैन का जिक्र हुआ. लेकिन फिर भी यह किसी ने नहीं माना कि ट्रंप पर महाभियोग की बात सच होगी.
लेकिन अब धीरे धीरे तस्वीर बदल रही है. ट्रंप धीरे धीरे उलझते दिख रहे हैं. तमाम चेतावनियों के बावजूद ट्रंप ने माइकल फ्लिन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया, लेकिन कुछ ही महीने के भीतर फ्लिन की छुट्टी करनी पड़ी. रूस के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले फ्लिन ने ट्रंप के चुनाव अभियान में अहम भूमिका निभाई थी. अब यह बात भी सामने आ चुकी हैं कि राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने फ्लिन के खिलाफ एफबीआई की जांच बंद कराने की कोशिश भी की. अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने दावा किया है कि ट्रंप ने रूसी विदेश मंत्री और राजदूत को बेहद गोपनीय खुफिया सूचना दी. पहले ट्रंप प्रशासन ने इससे इनकार किया, लेकिन आखिर में यह बात कबूल कर ली. ये बातें बाहर आने के बाद ट्रंप ने एफबीआई के निदेशक को पद से हटा दिया.
कितना ताकतवर होता है अमेरिकी राष्ट्रपति
अमेरिका के राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स माना जाता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उसके पास अनंत अधिकार हैं. एक नजर इन पहलुओं पर.
तस्वीर: Klaus Aßmann
क्या कहता है संविधान
अमेरिका में चार साल बाद राष्ट्रपति चुना जाता है. कोई भी व्यक्ति अधिकतम दो बार राष्ट्रपति बन सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति सरकार और राज्यों का भी प्रमुख होता है. संसद द्वारा पास कानून लागू करना उसका दायित्व है. देश का सर्वोच्च कूटनीतिक अधिकारी होने के नाते भी वह नए देशों को भी मान्यता दे सकता है.
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नियंत्रण में रखने के तरीके
अमेरिका में तीन ताकतें एक दूसरे को नियंत्रण में रखती हैं. राष्ट्रपति लोगों माफ या नियुक्त कर सकता है लेकिन इसके लिए सीनेट की सहमति जरूरी है. लेकिन सीनेट की मंजूरी के बिना भी राष्ट्रपति अपने मंत्री और दूत नियुक्त कर सकता है. दूसरे शब्दों में कहें तो विधायिका एक्जीक्यूटिव्स पर नियंत्रण रखती है.
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संघों के समूह की ताकत
देश के भविष्य के बारे में राष्ट्रपति संसद को जानकारी देता है. वह देश को संबोधित भी करता है. लेकिन राष्ट्रपति अपनी तरफ से कोई विधेयक पेश नहीं कर सकता. भाषण से वह आम जनता का समर्थन हासिल कर सकता है और संसद को कानून बनाने के लिए दबाव बना सकता है.
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साफ इनकार करने की शक्ति
राष्ट्रपति किसी भी विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर सकता है. यह उसका वीटो अधिकार है. लेकिन संसद भी दो-तिहाई बहुमत के साथ राष्ट्रपति के वीटो को पलट सकती है.
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कहीं कहीं पर धुंधले नियम
अमेरिकी संविधान और सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति की ताकत का साफ जिक्र नहीं करते. यही वजह है कि एक और वीटो ट्रिक का विकल्प मिलता है. इसे पॉकेट वीटो कहा जाता है. खास परिस्थितियों में राष्ट्रपति विधेयक को "अपनी पॉकेट" में डाल सकता है. संसद इस वीटो को पलट नहीं सकती. अमेरिका में यह ट्रिक अब तक 1,000 से ज्यादा बार इस्तेमाल की जा चुकी है.
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काम के निर्देश
राष्ट्रपति सरकारी कर्मचारियों को अपना काम करने के निर्देश दे सकता है. इस ताकत को "एक्जीक्यूटिव ऑडर्स" कहा जाता है. यह कानूनी रूप से बाध्य है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रपति निरंकुश हो जाए. अदालत और कॉन्ग्रेस ऐसे आदेश को खिलाफ कानून बना सकती है.
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सीनेट की मंजूरी
अमेरिकी राष्ट्रपति भले ही किसी भी देश के साथ संधि कर ले, लेकिन उसे कानूनी मंजूरी सीनेट की दो तिहाई सहमति के बाद ही मिलती है. इसे "एक्जीक्यूटिव एग्रीमेंट्स" कहा जाता है.
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सेना की कमान
अमेरिकी राष्ट्रपति अमेरिका सेना का कमांडर इन चीफ भी होता है, लेकिन युद्ध का घोषणा संसद ही कर सकती है. राष्ट्रपति कैसे संसद की मंजूरी लिये बिना हिंसाग्रस्त इलाकों में सेना भेज सकता है, इस बारे में बहुत साफ संवैधानिक निर्देश नहीं हैं. वियतनाम युद्ध के समय ऐसी ही संवैधानिक चुनौती सामने आई.
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बेहद कड़ा कंट्रोल
अगर राष्ट्रपति पद का दुरुपयोग करता है या कोई अपराध करता है, तो हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स पूछताछ की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं. अब एक ऐसा दो बार हुआ है और दोनों ही बार नाकाम रहा. लेकिन राष्ट्रपति को नियंत्रित करने के लिए कुछ इससे भी कड़े तरीके हैं. संसद के पास बजट अधिकार है. उसकी सहमति के बाद ही राष्ट्रपति के पास खर्च करने के लिए पैसा होगा.
रिपोर्ट: ऊटा श्टाइवेयर/ओएसजे
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अब एफबीआई के एक और पूर्व निदेशक रॉबर्ट मुलर को एक गंभीर संघीय जांच का प्रमुख नियुक्त कर दिया गया है. मुलर अमेरिकी चुनाव में रूसी दखल के आरोपों की जांच करेंगे. मुलर के पद पर ट्रंप का कोई प्रभाव नहीं होगा. उनकी नियुक्ति अमेरिका के डिप्टी एटॉर्नी जनरल रॉड रोजेनश्टाइन ने की है. रोजेनश्टाइन के मुताबिक, "जनहित को ध्यान में रखते हुए मेरे लिए यह जरूरी है कि जांच को ऐसे व्यक्ति के अधिकार में रखा जाए जो पद की सामान्य कड़ी से आजाद होकर अपना काम करे."
अब सवाल उठता है कि क्या रोजेनश्टाइन की नियुक्ति ट्रंप के राजनीतिक करियर में फुल स्टॉप लगाएगी. प्रोफेसर लिष्टमैन कहते हैं कि एफबीआई के निदेशक जेम्स कोमी की छुट्टी करके ट्रंप ने बहुत ही बड़ी गलती कर दी है. यह सीधे सीधे न्याय में बाधा डालने वाली हरकत है. कोमी को हटाते समय ट्रंप प्रशासन ने जिस तरह के बहाने बनाए वो भी बता रहे हैं कि कुछ न कुछ छुपाने की कोशिश की जा रही है. अमेरिकी पत्रिका न्यूजवीक से बात करते हुए लिष्टमैन ने कहा, "एक तरह से कहा जाए तो उन्होंने (ट्रंप) पहले ही न्याय का रास्ता रोक दिया है और वह इमॉल्यूमेंट प्रावधान का उल्लंघन कर चुके हैं. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हमें उन पर अभी महाभियोग चलाना चाहिए, मैं महाभियोग की जांच के लिए कह रहा हूं."
अमेरिका के राजनीतिक इतिहास में अब तक सिर्फ दो राष्ट्रपति महाभियोग के करीब पहुंचे हैं. उनमें से एक रिचर्ड निक्सन थे और दूसरे बिल क्लिंटन. निक्सन और बिल क्लिंटन पर भी न्याय को बाधित करने का आरोप लगा था. निक्सन ने वॉटरगेट कांड के बाद इस्तीफा दिया तो बिल क्लिंटन ने मोनिका लेवेंस्की कांड के लिए देश से माफी मांगी और अपना कार्यकाल पूरा किया. प्रोफेसर लिष्टमैन ट्रंप की कार्रवाई को दोनों पूर्व राष्ट्रपतियों से ज्यादा गंभीर करार देते हैं, "ट्रंप जिस चीज में शामिल हो चुके हैं वह बहुत ज्यादा गंभीर है क्योंकि यह विदेशी ताकत और देश की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला है."
सफल उद्योगपति रह चुके ट्रंप अब तक कई विवादों से किसी न किसी तरह बच निकले हैं. लेकिन राजनीति का भंवर कारोबारी विवादों से अलग होता है. उनकी अपनी रिपब्लिकन पार्टी में अब धीरे धीरे ट्रंप का विरोध बढ़ता जा रहा है. विपक्षी डेमोक्रैट तो पहले से ही तैयार बैठे हैं. ट्वीटर पर बेहद सक्रिय राष्ट्रपति अब खुद जांच वाली कागजी फाइलों में समा चुके हैं. ऐसी फाइलें जिन्हें ट्वीट की तरह डिलीट नहीं किया जा सकता.
(राष्ट्रपति बनते ही क्या बोले ट्रंप)
राष्ट्रपति बनते ही क्या बोले ट्रंप
शपथ लेने के बाद अमेरिका के नये राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक भावुक भाषण दिया. हालांकि उन्होंने ज्यादातर वही बातें कहीं जो वह अब तक कहते आ रहे हैं. जानिए, उन्होंने क्या कहा...
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आज का दिन ऐसे दिन के रूप में याद रखा जाएगा जब अमेरिका का शासन फिर से जनता के हाथ में गया.
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आप लाखों की संख्या में ऐसे समारोह को देखने आए जैसा आज तक दुनिया ने कभी नहीं देखा है.
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अमेरिकी अपने बच्चों के लिए अच्छे स्कूल, परिवार के लिए सुरक्षा और अपने लिए अच्छी नौकरियां चाहते हैं. यह बहुत जायज मांग हैं.
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हम एक देश हैं. लोगों की सफलता ही हमारी सफलता है. उनका दिल हमारा दिल है.
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दशकों तक हमने विदेशी उद्योगों को अपने उद्यमों की कीमत पर आगे बढ़ाया है. लेकिन यह बीता हुआ समय है. अब हम सिर्फ भविष्य की ओर देखेंगे.
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कट्टरवादी इस्लामिक आतंकवाद का धरती से समूल नाश कर देंगे.
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कोई डर नहीं होना चाहिए. हम पूरी तरह सुरक्षित हैं और हमेशा रहेंगे.
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हमें बड़ा सोचना है और ज्यादा बड़े सपने देखने हैं.
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हम दुनिया की दिशा तय करेंगे.
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ऐसे नेताओं को खारिज करना है जो बोलते हैं पर करते कुछ नहीं.