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कितना भरोसा है जर्मनी पर

३० अगस्त २०१३

सीरिया पर हमले के लिए पहले बढ़ चढ़ कर बोल रहा ब्रिटेन अब पीछे हट गया है, नेतृत्व अमेरिकी हाथों में हो सकता है और फ्रांस उसका साथ देने की बात कह रहा है लेकिन जर्मनी की इसमें क्या भूमिका होगी?

तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले ने कहा है कि सीरिया में रासायनिक हथियारों की पुष्टि होने के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय को कदम उठाना होगा. इसके साथ ही उन्होंने कहा, "तब जर्मनी उन देशों में होगा जो परिणामों का समर्थन करेंगे."

जर्मनी का सैनिक साजोसामान

अमेरिका और उसका साथ देने को "तैयार देशों का गठबंधन" सीरियाई सरकार के खिलाफ क्या कदम उठाएंगे, यह अब तक साफ नहीं है. जर्मन सरकार ने सैन्य कार्रवाई के लिए अपना निश्चय जाहिर नहीं किया है इसकी एक वजह यह भी है. जर्मन रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है, "हम विकल्पों के बारे में अटकलों पर प्रतिक्रिया नहीं दे सकते." इसके साथ ही प्रवक्ता ने यह भी कहा कि जर्मनी के पास सैनिक साजोसामान है जिसके कुछ संभावित विकल्प हो सकते हैं.

जर्मनी के सैनिक साजोसामान के बक्से को पिछले डेढ़ दशकों में कई बार खोला गया है. 1999 में कोसोवो की जंग के दौरान जर्मन टोरनाडो जेट विमानों ने नाटो के हमलों में सर्बियाई ठिकानों को निशाना बनाया. 1992 में जर्मन सैनिकों ने नाटो के एक और मिशन में हिस्सा लिया जब बोस्निया हैर्त्सेगोविना में नो फ्लाई जोन की निगरानी करनी थी. अफगानिस्तान में 2002 से ही जर्मन सैनिकों की तैनाती है. जर्मनी ने माली में फ्रांस के सैन्य अभियानों में भी साथ दिया. उस दौरान फ्रांसीसी विमानों को हवा में ही ईंधन भरने की सहूलियत दी गई.

जर्मन पैट्रियट मिसाइलतस्वीर: Reuters

प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष या असहयोग

सीरिया के खिलाफ अभियान में जर्मनी की सरकार अगर शामिल होने का फैसला करती है तो उसके पास इसके कई तरीके हो सकते हैं. इनमें से एक है हमला करने वाले जेट विमानों को हवा में ही ईँधन की सप्लाई देना. फ्रांस को यह सेवा मिली हुई है. विदेशी रिश्तों की जर्मन परिषद से जुड़े सेबास्टियान फेयोक का कहना है कि जर्मनी सीरिया के संभावित ठिकानों की पहचान करने में खुफिया जानकारियां भी दे सकता है.

जर्मन नौसेना के कई बेड़े हैं जो फिलहाल भूमध्यसागर में तैनात हैं. इनमें ओकर भी है जो खुफिया और टोही सेवा देने वाला जहाज है. इस पर लगे उपकरण रेडियो और टेलिफोन तरंगों की निगरानी करते हैं. ओकर के जरिए जुटाई गई जानकारियां जर्मनी के सहयोगियों को दी जा सकती हैं.

सतह से हवा में मार करने वाली जर्मन मिसाइलें भी इलाके में तैनात हैं. तुर्की की सरकार ने सीरिया से अपने सीमाओं की हिफाजत के लिए जर्मनी से आग्रह किया था. इसके बाद जर्मनी ने अपनी पैट्रियट एयर डिफेंस सिस्टम और 200 सैनिकों को दक्षिण पूर्व तुर्की में तैनात कर दिया. यह मिसाइलें तुर्की के काहरामानमारास शहर की संभावित रॉकेट हमलों से हिफाजत कर रही हैं. शहर सीरिया की सीमा से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है. अगर नो फ्लाई जोन लागू होता है तो यह मिसाइलें सीरिया के और करीब लाई जा सकती हैं. नाटो को अगर सीरिया में दखल देना पड़ता है तो जर्मन सैनिक सीरियाई वायुक्षेत्र की एवैक्स विमानों से भी निगरानी कर सकते हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

फेयोक का मानना है कि तरीका क्या होगा यह अभी तय नहीं लेकिन जर्मन सरकार यह दिखाना चाहेगी की वह अपने सहयोगियों के साथ है. फेयोक के मुताबिक, "सोच यह है कि वो बाहर आकर किसी एक तरफ नहीं दिखना चाहते जैसा कि लीबिया अभियान में हुआ." 2011 में जर्मनी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लीबिया पर हमले के दौरान वोटिंग से बाहर रह कर अपने सहयोगियों को नाराज कर दिया था.

हालांकि अभी यह भी साफ नहीं है कि सीरिया में सैन्य अभियान के लिए जर्मनी से मदद मांगी भी गई है या नहीं. ऐसा लगता है कि अमेरिकी नौसेना सीरिया में क्रूज मिसाइलों से हमला करने की सोच रही हैं. ऐसी स्थिति में सीधे जर्मन सहयोग की गुंजाइश नहीं रहेगी. कील यूनिवर्सिटी की इंस्टीट्यूट फॉर सिक्योरिटी पॉलिसी के सेबास्टियन बर्न्स का तो कहना है कि पश्चिमी सहयोगी तो जर्मनी से सीरिया अभियान में शामिल होने की उम्मीद भी नहीं कर रहे. उनका मानना है कि जर्मनी ने एक भरोसेमंद सहयोगी होने का दर्जा खो दिया है. बकौल सेबास्टियन, "मेरे ख्याल से दो साल पहले जो स्थिति थी उसमें ज्यादा बदलाव नहीं आया है."

रिपोर्टः स्वेन पोएले/एनआर

संपादनः महेश झा

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