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"क्या आपने आज का 'मंथन' देखा?"

१४ फ़रवरी २०१३

इस हफ्ते के मंथन को दो दिन बचे हैं. आपने हमें पिछले हफ्ते के मंथन पर कुछ प्रक्रियाएं भेजीं. आईए डालें इनपर एक नजर.

epa02670575 Fish are seen on display at the Tsukiji fish market in central Tokyo on 05 April 2011. Tokyo Electric Power Co, the operator of the earthquake and tsunami stricken nuclear-power plant in Fukushima, began dumping 11,500 tons of low-level radioactive water into the Pacific Ocean in an effort to ward off the release of even-more-dangerous material. EPA/STEPHEN MORRISON +++(c) dpa - Bildfunk+++
तस्वीर: picture alliance / dpa

क्या आपने आज का 'मंथन' देखा? मैंने देखा. जहां एक ओर टोक्यो का मछली बाजार और मुर्गी व अंडे के रंग से सम्बंधित रिसर्च की जानकारी दिलचस्प लगी, तो दूसरी ओर भविष्य के वायुयान, 'चक्कर का चक्कर' और पाओलो द्वारा लोगों को समुद्र के बारे में जागरुक करने के प्रयास की जानकारी तथ्यात्मक एवं ज्ञानवर्धक लगी. डॉयचे वेले का साप्ताहिक शो 'मंथन' का समय कब खत्म हो गया, पता ही नहीं चला.

चुन्नीलाल कैवर्त, बिलासपुर, छत्तीसगढ

तस्वीर: picture-alliance/Photoshot

भारत और दक्षिण एशिया के कई देशों में महिलाओं का शोषण हर जगह,हर रूप में और हर स्तर पर हो रहा है,चाहे वह घर की चार दीवारी हो या घर से बाहर की दुनियां. भारत में छात्रों एवं सरकारी प्रतिष्ठानों में बच्चों के साथ यौन हिंसाऐं समाज का अस्तित्व बनती जा रही हैं. आए दिन कोई शिक्षक मासूम बच्चों को अपनी हवस का शिकार बनाता है तो कोई रक्षक ही भक्षक बन जाता है. जापानी स्कूलों में गुरुजनों की हिंसा का शिकार बच्चों की कहानी भारत की भी एक वास्तविकता है,ज्यों ज्यों दुनिया विकास की ओर बढ़ी है त्यों त्यों समाज में हिंसाऐं भी तेजी से बढ़ी हैं. बड़े ही दुख की बात है कि आज ज्ञान के मंदिर में भगवान रूपी बच्चों को हिंसा का शिकार बनाकर उनके भविष्य से खिलवाड़ किया जाता है."जापानी स्कूलों में सिसकते बच्चे" एवं "बच्चों की हिफाजत में नाकाम भारत" शीर्षक के अलावा डीडब्ल्यू हिंदी के ढेरों आर्टिकल समाज की वास्तविकता को दर्शाते हैं.
आबिद अली मंसूरी, देश प्रेमी रेडियो लिस्नर्स क्लब, बरेली,उत्तर प्रदेश

इस बार की फोटो गैलरी में "वायरस से खतरा" शीर्षक से दी गयी जानकारी सच में हैरान कर देने वाली है. फ्लू कितना खतरनाक है हमें यह तो आज ही पता चला, डीडब्ल्यू हिंदी की वेबसाइट पर ढेरों जानकारी हमें मिलती रहती हैं जो हमारे बहुत काम की हैं.
उमामा खान,अलीगढ़, उत्तर प्रदेश

"जैविक पिता का नाम जानने का हक" विषयक समाचार समीक्षा ने बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया. यद्यपि जर्मनी के अदालत के इस फैसले से मैं निजी तौर पर बिल्कुल सहमत नहीं हूं. वीर्यदान के वक्त बच्चा पैदा नहीं होता इसलिए उससे भावनात्मक लगाव भी नहीं होता है किंतु बच्चा पैदा होने के बाद यदि किसी वीर्यदाता या उसके वीर्य से पैदा औलाद को उसके बच्चे या पिता के बारे में पता चलता है तो स्थिति संभाव्य रूप से अलग हो सकती है. मसलन बच्चे का वीर्यदाता यानि पिता के प्रति लगाव बढ़ सकता है या फिर पिता का ही उसके प्रति भावनात्मक लगाव पनप सकता है इससे उस व्यक्ति को मानसिक कष्ट हो सकता है जिसने वीर्य मजबूरी में दान में लिया था और दिलोजान से बच्चे का पालन-पोषण किया था. जर्मनी की अदालत ने बच्चे की भावनाओं को तो तरजीह दी लेकिन उससे पनपने वाली चोटों पर ध्यान नहीं दिया जिसकी खास जरूरत थी, लेकिन फिर भी अदालत का फैसला शिरोधार्य है.
रवि श्रीवास्तव,इंटरनेशनल फ्रेंडस क्लब,इलाहाबाद

संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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