भारत में एटीएम मशीनें सूख रही हैं तो जर्मनी में जहां एटीएम मशीनें पहली बार 50 साल पहले लगाई गई थीं, उनकी संख्या लगातार गिर रही है. हालंकि ऐसा नहीं है कि लोगों ने नगदी का इस्तेमाल बंद कर दिया है.
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पिछले सालों में बैंकों ने जर्मनी में हर साल हजारों नई मशीनें लगाई हैं ताकि लोगों को आसानी से नगदी मिल सके, लेकिन अब उनकी तादाद कम हो रही है. जर्मन बैंकों के संगठन के अनुसार 2017 के अंत में देश भर में करीब 58,500 मशीनें लगी थीं जबकि 2015 में उनकी संख्या 61,000 से ज्यादा थी. एटीएम मशीनों में कमी की वजह एक तो डिजीटाइजेशन है तो दूसरी ओर बचत का बढ़ता दवाब, खासकर देहाती इलाकों में जहां प्रति एटीएम इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या कम है. दक्षिणी जर्मन प्रांत बवेरिया के सहकारी बैंकों के संघ के युर्गेन ग्रोस के अनुसार एक मशीन को चलाने का खर्च साल में 20,000 से 25,000 यूरो आता है. अगर इतनी कमाई न हो तो एटीएम रखना घाटे का सौदा हो जाएगा.
जर्मनी में पहली एटीएम मशीन 1968 में ट्युबिंगन शहर में लगाई गई थी. 1994 तक इनकी संख्या पूरे जर्मनी में बढ़कर करीब 30,000 हो गई. बीस साल बाद 2015 तक ये संख्या दोगुनी हो गई. अब भले पिछले दो सालों में इसमें करीब 3,000 की कमी आई है, लेकिन लोगों के लिए नगदी निकालने की संभावना कम नहीं हुई है. एक तो सारा घरेलू काम ऑनलाइन हो जाता है, या तो बैंक ट्रांसफर से या फिर मकान मालिक, बिजली और टेलिफोन कंपनियां बिल खुद ले लेती हैं. साथ ही पिछले दिनों में ऑनलाइन कारोबार तेजी से बढ़ा है और सुपर बाजारों और दुकानों ने कार्ड पेमेंट को बहुत आसान कर दिया है. बहुत सी दुकानों में अब क्रेडिट कार्ड से पेमेंट के अलावा 200 यूरो तक की रकम भी ली जा सकती है और इसके लिए कोई फीस भी नहीं देनी पड़ती.
ATM के 50 साल
50 साल, पहले दुनिया ने पहली एटीएम मशीन देखी. आज भी बैंकिंग के इतिहास में शायद इससे बड़ी खोज नहीं हुई. एक नजर इसके इतिहास और भविष्य पर.
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पहली मशीन
वैसे तो पहली बार नोट गिनने की मशीन 50 साल पहले स्कॉटलैंड के जॉन स्टीफर्ड-बैरन ने बनाई. लेकिन इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई. बैरन की मशीन के आधार पर 1968 में पहली बार गिनकर नोट देने वाली मशीन लॉन्च की गई. कैपिटल नेशनल बैंक ऑफ मायामी के निदेशक ने इस पहली एटीएम मशीन को बैंक की लॉबी में लगवाया.
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सीमा के पार
अमेरिका में लॉन्च हुई एटीएम मशीन ने दुनिया भर में तहलका मचा दिया. 1970 के दशक में यूरोप में भी पैसा निकालने वाली मशीनें बेहद लोकप्रिय हो गईं. 1970 के दशक में एटीएम ऐसा दिखाई पड़ता था.
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कैसे काम करती है मशीन
एटीएम मशीन एक सॉफ्टवेयर के जरिये ऑपरेट करती है. मशीन के भीतर लगे खांचों में नोट भरे जाते हैं. सॉफ्टवेयर मशीन को नोट निकालने का निर्देश देता है. हर मशीन इंट्रानेट कनेक्शन से जुड़ी होती है, जिसके चलते कैश निकालने के बाद सीधे बैंक खाता भी अपडेट हो जाता है.
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आम जिंदगी का हिस्सा
एटीएम के चलते बैंकों और आम लोगों के बड़ी राहत मिली है. अब पैसा निकालने के लिए बैंक जाने की और पासबुक अपडेट कराने की जरूरत नहीं पड़ती. इन मशीनों के जरिये बैकिंग में कागज का इस्तेमाल 50 फीसदी कम हुआ है.
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यूनिवर्सल सिस्टम
एटीएम मशीन चाहे दुनिया के किसी हिस्से में हो, उनके कुछ बटन एक जैसे होते हैं. एंटर के लिए हरा और कैंसल के लिए लाल. इसी एकरूपता के चलते आपको भाषा भले ही समझ न आए लेकिन एटीएम इस्तेमाल किया जा सकता है.
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नकदी का जलवा
आज एटीएम मशीन का जलवा पूरी दुनिया में है. कड़े नियमों वाले इस्लामिक देशों में भी इस मशीन को खूब इस्तेमाल किया जाता है. इस्लाम में जमा पैसे पर ब्याज लेना हराम माना जाता हो, लेकिन एटीएम मशीन तो मुस्लिम देशों में घनघनाती है.
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एटीएम नहीं मिनी बैंक
समय के साथ ये मशीनें भी इंटेलिजेंट हुई हैं. अब इनमें पैसा जमा और ट्रांसफर भी किया जा सकता है. हल्की फुल्की इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा भी मिलने लगी है.
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अपराधियों की भी पसंदीदा मशीनें
भारत में बुल्डोजर से एटीएम मशीन उखाड़ने के मामले सामने आ चुके हैं. जर्मनी में धमाका कर मशीन क्रैक करने के मामले सामने आ चुके हैं. जर्मनी में करीब हर महीने ही कहीं न कहीं एटीएम को निशाना बनाया जाता है.
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भविष्य कितना लंबा
अब एटीएम मशीनों के दिन भी लदते दिख रहे हैं. कैश से प्लास्टिक मनी तक पहुंची दुनिया अब कैशलेस होने की ओर बढ़ रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक अगले 5-10 साल में परंपरागत एटीएम खत्म होने लगेंगे. इनकी जगह मोबाइल कनेक्टिविटी वाली कोडिंग मशीनें लेने लगेंगी.
रिपोर्ट: टीके/ओएसजे
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बाजार में पेमेंट के तरीके में बदलाव आ रहा है. इसकी वजह से एटीएम मशीनों की जरूरत और कम होगी. लेकिन ये सारा सिस्टम भी बहुत लंबा नहीं चलेगा. म्यूनिख की कंपनी वायरकार्ड का मानना है कि जल्द सारा पेमेंट मोबाइन फोन के जरिए होना शुरू हो जाएगा. ऐसा इसलिए है कि खुदरा व्यापारियों के लिए नकद लेने का मतलब खर्च होता है, उसे लेने, रखने और फिर बैंक में जमा करने का खर्च. ऐप की मदद से पेमेंट करना चीन में आम हो चुका है. वित्तीय संस्थानों में काम करने वाले बहुत से लोगों का मानना है कि भले ही अब ही 85 फीसदी कारोबार नकदी में होता हो, लेकिन जर्मनी में भी जल्द ही लोग नकदी की परवाह करना बंद कर देंगे.
एटीएम का महत्व घटने में अपराधियों की भी भूमिका है. जर्मनी में अपराध भले ही कम हों लेकिन एटीएम से पैसा लूटने या छोटी जगहों पर मशीनों के साथ तोड़फोड़ की घटनाएं यहां भी होती है. इसकी वजह से बैंकों का बीमा का खर्च को बढ़ता ही है, मशीनों को फिर से लगाने पर भी खर्च होता है. हालांकि बैंकों का संघ नहीं मानता कि जर्मनी में एटीएम जल्द खत्म होंगे, उनकी तादाद लगातार घटेगी, इसमें कोई संदेह नहीं.
किस देश में लोगों के पास है ज्यादा एटीएम
ऑटोमेटेड टेलर मशीन यानी एटीएम ने बैंकों का काम आसान कर दिया है. लोग भी इनसे खुश हैं. दुनिया हर दिन 250 से ज्यादा एटीएम लगाए जा रहे हैं. यहां देखिए प्रति दस लाख व्यस्कों पर किस देश में कितने एटीएम हैं?