क्या और चुनाव नहीं लड़ेंगी शेख हसीना?
१४ फ़रवरी २०१९![Bangladesch - DW Chefredakteurin Ines Pohl, Leiterin DW-Asien Debarati Guha treffen Premierminister Sheikh Hasina in Dhaka](https://static.dw.com/image/47474576_800.webp)
एक महीना पहले शेख हसीना ने चौथी बार प्रधानमंत्री का पद संभाला है. वे तीसरी बार लगातार प्रधानमंत्री चुनी गई हैं. उनकी अवामी लीग पार्टी और सहयोगियों को संसद में 96 फीसदी सीटें मिली हैं. चौथी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार किसी अंतरराष्ट्रीय मीडिया से बातचीत में उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि वे अगली बार इस पद के लिए नहीं लड़ेंगी. डॉयचे वेले की मुख्य संपादिका इनेस पोल और एशिया प्रमुख देबारति गुहा के साथ इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "मैं और ज्यादा समय पद पर नहीं रहना चाहती. मैं समझती हूं कि हर किसी को ब्रेक लेना चाहिए ताकि हम युवा पीढ़ी को शामिल कर सकें."
विकास का दशक
शेख हसीना के शासन के पिछले एक दशक में बांग्लादेश ने तेज प्रगति की है और वह मध्य आय वाले देश के रूप में दर्ज किया जाने लगा है. अर्थव्यवस्था साल में 6-7 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है, व्यापार बढ़ा है और विदेशी निवेश में भी तेजी आया है.
लेकिन बढ़ती समृद्धि के बावजूद विश्व बैंक के अनुसार एक चौथाई बांग्लादेशी गरीब हैं. शेख हसीना अपने इस कार्यकाल में गरीबी के खिलाफ संघर्ष को अपनी पहली प्राथमिकता मानती हैं, "खाद्य सुरक्षा, रहने की जगह, शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी, ये बुनियादी जरूरतें हैं." उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "निश्चित तौर पर हर इंसान बेहतर जिंदगी चाहता है, हमें इसे सुनिश्चित करना होगा."
विकास बनाम आजादी
बढ़ती आर्थिक प्रगति और विकास के बावजूद शेख हसीना के खिलाफ आलोचना की आवाजें नहीं दबी हैं. उनका कहना है कि प्रधानमंत्री ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगे अंकुशों को कम करने और उदारवादी विचारकों पर हमलों को रोकने के लिए पर्याप्त काम नहीं किया है. लेकिन हसीना ने इंटरव्यू में कहा कि वे देश में स्वतंत्र विचारों का समर्थन करती हैं और आलोचना स्वाभाविक है. उनकी दलील थी, "यदि आप ज्यादा काम करती हैं तो आप ज्यादा आलोचना भी सुनेंगी."
हसीना और उनकी अवामी पार्टी पर राजनीतिक बहस को दबाने और एकदलीय व्यवस्था लागू करने के आरोप लगाए जाते रहे हैं. प्रधानमंत्री ने इसका खंडन करते हुए कहा, "इस बार अवामी लीग के उम्मीदवार 260 क्षेत्रों में (संसद की 300 सीटों में से) चुने गए. दूसरी पार्टियां भी संसद में हैं. ये एक पार्टी का शासन कैसे हो सकता है." शेख हसीना का कहना है कि विपक्षी पार्टियां कमजोर हैं इसलिए वे संसद में नहीं पहुंची हैं.
इस्लामी कट्टरपंथ और महिला अधिकार
बांग्लादेश के उदारवादी भी शेख हसीना की इस बात के लिए आलोचना करते हैं कि वे कट्टरपंथी हिफाजते इस्लाम संगठन के करीब हैं और धार्मिक कट्टरपंथियों को शह देती हैं. उनकी सरकार कौमी मदरसा की डिग्री को भी मान्यता देती है. आलोचकों का कहना है कि कौमी मदरसा को समर्थन देने वाले गुट कट्टरपंथी हैं और महिलाओं के अधिकार का विरोध करते हैं. कौमी मदरसा बोर्ड के प्रमुख शाह अहमद शफी ने लड़कियों को स्कूल न भेजने की बात कही है.
प्रधानमंत्री शेख हसीना ऐसे बयानों की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं, "मैंने आपसे कहा, इस देश में हर किसी को बोलने का अधिकार है. इसलिए उन्हें ये भी कहने का अधिकार है कि वे क्या चाहते हैं." शेख हसीना ने ये भी कहा कि वे लड़कियों को शिक्षा उपलब्ध कराने का कोई प्रयास नहीं छोड़ेंगी. प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी नीतियों से लड़कियों को पढ़ाने के बारे में लोगों के विचार बदले हैं, "पहले माता पिता सोचते थे कि लड़की को क्यों पढ़ाएं, वह शादी कर ससुराल चली जाएंगी. अब वे ऐसा नहीं सोचते."
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