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मध्य प्रदेश में बनेगी गौ-कैबिनेट

चारु कार्तिकेय
१८ नवम्बर २०२०

मध्य प्रदेश में बनेगी देश की पहली गौ-कैबिनेट. इसे "लव जिहाद" के खिलाफ कानून की घोषणा के बाद राजनीतिक हिंदुत्व से प्रेरित बीजेपी द्वारा उठाए गए दूसरे कदम के रूप में भी देखा जा रहा है.

Indien | Bikaner | Kühe
तस्वीर: DW/S. Konniger

आम तौर पर अलग अलग विषयों के लिए मंत्रिमंडलों में समितियां बना दी जाती हैं, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े सात मंत्रालयों का अलग मंत्रिमंडल ही होगा. इसमें पशुपालन, वन, पंचायत और ग्रामीण विकास, राजस्व, गृह और किसान कल्याण विभाग शामिल होंगे.

पहली गौ-कैबिनेट की पहली बैठक 22 नवंबर को होगी. उस दिन गोपाष्टमी है, जिस दिन हिन्दू श्रद्धालु श्रीकृष्ण की गौपालक के रूप में पूजा करते हैं. उस दिन गायों की पूजा भी की जाती है. बैठक के स्थान के चुनाव में भी प्रतीकात्मकता में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है. बैठक आगर-मालवा जिले में स्थित एक गौ-अभयारण्य में की जाएगी.

एक तरह से इसके साथ चौहान अपने पिछले कार्यकाल के अजेंडे को ही आगे बढ़ा रहे हैं. इस अभ्यारण्य का उदघाटन भी उन्हीं के पहले कार्यकाल में सितंबर 2017 में हुआ था. उदघाटन राज्य के गौ संवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरी और आरएसएस के क्षेत्र संघचालक अशोक सोनी ने 11 गायों की पूजा के साथ किया था.

6,000 गायों के लिए 472 एकड़ में फैले इसे अभयारण्य को बनाने में राज्य सरकार ने 32 करोड़ रुपए खर्च किए थे. गौ-रक्षा और गौ-पालन लंबे समय से आरएसएस और बीजेपी के लिए एक वैचारिक प्राथमिकता का विषय रहा है. पिछले कुछ सालों में कई बीजेपी शासित राज्यों में गौ आयोग और गौ संवर्धन बोर्ड की स्थापना की गई है.

मांस या चमड़े के व्यापार के लिए गायों की हत्या को रोकना भी बीजेपी की प्राथमिकताओं में शामिल रहा है. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे कई बीजेपी-शासित राज्यों में तो अब गौ-हत्या के आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की धाराओं के तहत आरोप लगा दिए जाते हैं.

हिन्दू महासभा के सदस्य और समर्थक कोरोना वायरस को भगाने के लिए गाय के मूत्र और गोबर जैसे उत्पादों से बने हुए पंचगव्य का सेवन करते हुए.तस्वीर: AFP/J. Andrabi

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में यूं तो गौ हत्या रोकने के लिए कानून छह-सात दशकों से है लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ ही महीनों पहले संशोधन करके इसे और सख्त बना दिया था. अब उत्तर प्रदेश में गायों को यातना देने, चोट पहुंचाने और खाना-पानी ना देने के लिए भी एक साल से लेकर सात साल तक की जेल हो सकती है.

लेकिन संशोधन के बाद राज्य में पुलिस और प्रशासन पर इस कानून के दुरूपयोग के कई आरोप लगे. हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि राज्य में वाकई इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है और इसका इस्तेमाल मासूम लोगों के खिलाफ किया जा रहा है.

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