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क्या कहता है पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण क्षेत्र

३ अप्रैल २००९

पृथ्वी पर की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से हम सभी परिचित हैं. वही हर चीज़ को ज़मीन पर ला पटकती है. लेकिन, यह गुरूत्वाकर्षण शक्ति हर जगह एक समान नहीं होती. उसके सूक्ष्मतम अंतरों से वैज्ञानिक बहुत कुछ मालूम कर सकते हैं.

जीओसीई इसी तरह रॉकेट से अलग हुआ होगातस्वीर: picture-alliance/ dpa

गत 17 मार्च से यूरोपीय अंतरिक्ष अधिकरण ESA का एक विशेष उपग्रह इन्हीं अंतरों को मापने के लिए पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है. नाम है Gravity Field and Steady-Ocean Circulation Explorer, संक्षेप में GOCE. पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र और निरंतर सागर मंथन की तह में जाने वाला यह उपग्रह 260 किमीटर की ऊँचाई पर से अगले तीन वर्षों तक पृथ्वी के हर दिन 16 चक्कर लगायेगा. अपनी अपेक्षाकृत नीची कक्षा के कारण वह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में हर छोटे-बड़े उतार-चढ़ाव के साथ स्वयं ऊपर-नीचे होता चलेगा.

आइज़क न्यूटन ने, तीन सदी पूर्व, सेव को निचे गिरा कर गुरुत्वाकर्षण बल की खोज की थी. म्यूनिक तकनीकी विश्वविद्यालय के राइनर रुमेल बताते हैं कि जीओसीई के भीतर यही काम प्लैटिनम-मिश्रित धातु के बने गोले करेंगेः

"ये परीक्षण-भार उपग्रह में एक-दूसरे से क़रीब आधे मीटर की दूरी पर रहेंगे. पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल में अंतरों के कारण उपग्रह के भीतर वे अलग-अलग गति से हरकतें करेंगे. इसी अंतर का हम लाभ उठायेंगे."

जीओसीई पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में घटबढ़ का अचूक मापन करेगातस्वीर: Quelle ESA

बहुत न्यूनतम अंतर भी बड़े काम के

यह अंतर हालांकि बहुत न्यूनतम ही होंगे, तब भी उन्हें मापा जा सकता है. किसी स्थान के ऊपर से गुज़रते समय उपग्रह में रखे जो गोले आगे होंगे, वे वहां के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को, पीछे रखे गोलों की अपेक्षा, किंचित पहले महसूस करेंगेः

"पृथ्वी पर की द्रव्यराशि में हर घटबढ़ को गुरुत्वाकर्षण बल के रूप में मापा जा सकता है. बिल्कुल सटीक मापन द्वारा कहा जा सकता है कि कहां पहाड़ है और कहां घाटी, कहां महासागर है, सागरतल में क्या बदलाव आया है, ध्रुवीय बर्फ कितनी पिघली है, यहां तक कि पेड़ों पर के कितने पत्ते झड़े हैं, यह भी बताया जा सकता है."

अयन इंजन चालित उपग्रह

सात मीटर लंबे और दो मीटर चौड़े जीओसीई उपग्रह में रखे परीक्षणभारों की हरकतों के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि वह कब किसी पहाड़ के ऊपर से गुज़र रहा था और कब कच्चे तेल के भंडार पर से, कब ऊंची-ऊंची इमारतों वाला कोई शहर उसके नीचे था और कब कोई जंगल. जर्मनी में बना यह उपग्रह ऐसे कार्बन फ़ाइबर का बना है, जो सूर्य की तेज़ धूप में उसके होने पर न तो फैलता है और न अंधेरा होने पर सिकुड़ता है. उस में कोई ऐसा इंजन भी नहीं लगा है, जिसके कल-पुर्ज़े हिलते-डुलते हों, क्योंकि हर कंपन उसके अचूक मापनों को असंभव बना देता. उस में नये प्रकार के अयन-इंजन लगे हैं.

जीओसीई को रूस के एक ऐसे रॉकेट के द्वारा अंतरिक्ष में पहुँचाया गया, जो पहले कभी रूस का SS-19 नामक परमाणु प्रक्षेपास्त्र हुआ करता था और सारे यूरोप की नींद हराम किये हुए था.

रिपोरट- डिर्क लोरेंत्सन / राम यादव

संपादन- प्रिया एसेलबॉर्न

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