केरल सरकार एक अध्यादेश ला रही है जिसके तहत मानहानिकारक सामग्री छापने वालों को पांच साल की जेल हो सकती है. विपक्ष और एक्टिविस्टों का आरोप है कि इस अध्यादेश से मीडिया की और आम लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी का हनन होगा.
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अध्यादेश का उद्देश्य केरल पुलिस अधिनियम में संशोधन करना है. सरकार अधिनियम में अनुच्छेद 118 (ए) जोड़ना चाहती है, जिसके तहत "यदि कोई किसी भी व्यक्ति को धमकाने, उसका अपमान करने या उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से किसी सामग्री की रचना करेगा, छापेगा या उसे किसी भी माध्यम से आगे फैलाएगा उसे पांच साल जेल या 10,000 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है."
केरल के मंत्रिमंडल ने बुधवार को फैसला लिया कि इस अध्यादेश को लागू करने के लिए राज्यपाल को अनुशंसा भेजी जाएगी. एक्टिविस्टों का कहना है कि आईपीसी की 499 और 500 धाराओं के तहत मानहानि का मामला दर्ज करने के लिए एक निवेदक की जरूरत होती है, लेकिन केरल के इस नए अध्यादेश के लागू होने के बाद पुलिस खुद ही किसी के भी खिलाफ मामला दर्ज कर सकती है.
केरल सरकार के अनुसार यह अध्यादेश सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाली सामग्री और इंटरनेट के जरिए लोगों पर हमलों से लड़ने के लिए लाया जा रहा है. लेकिन अध्यादेश के आलोचकों का कहना है कि इसकी शब्दावली ऐसी रखी गई है कि इसकी परिधि में सिर्फ सोशल मीडिया नहीं, बल्कि प्रिंट और विज़ुअल मीडिया और यहां तक कि पोस्टर और होर्डिंग भी आ जाएंगे.
मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने कहा है कि "संशोधन का उद्देश्य रचनात्मक आजादी पर अंकुश लगाना या अभिव्यक्ति की आजादी में हस्तक्षेप करना नहीं है, बल्कि मानहानि करने की कोशिश करने वालों को डराना है." लेकिन एक्टिविस्टों का कहना है कि यह संशोधन आईटी अधिनियम के अनुच्छेद 66ए से भी ज्यादा क्रूर है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में निरस्त कर दिया था.
मीडिया में आई खबरों के अनुसार, कांग्रेस नेता और केरल विधान सभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने कहा है कि चिंता यह है कि पुलिस इस संशोधन का इस्तेमाल उन पत्रकारों को गिरफ्तार करने के लिए ना करने लगे जो सरकार की खामियां उजागर करते हैं.
आईटी कानूनों के कई जानकारों ने भी कहा है कि इंटरनेट पर अभद्र या आपराधिक व्यवहार के लिए सजा देने के लिए मौजूदा कानून पर्याप्त हैं और इसके लिए ऐसे कठोर कानून लाने की कोई आवश्यकता नहीं है जिनसे पुलिस को लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी का हनन करने का मौका मिले.
कोरोना महामारी से जुड़ी खबरों को दुनिया के सामने रखने वाले पत्रकारों को कई देशों में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. कई देशों में अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए सरकारें पत्रकारों की कलम पर पाबंदियां लगा रही हैं.
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चीन
कोरोना से जुड़ी खबरों पर चीन की पैनी नजर है. मीडिया में उनकी कवरेज पर कई तरह की सेंसरशिप के आरोप लग रहे हैं. सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन में कोरोना वायरस के जुड़ी किसी भी अकादमिक रिसर्च के प्रकाशन पर पाबंदी लगा दी गई है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
तुर्की
राष्ट्रपति रैचेप तैयप एर्दोवान अपनी आलोचना करने वाले मीडिया को दबाने के लिए कोरोना वायरस की आड़ ले रहे हैं. खबर है कि कुछ दिन पहले एर्दोवान ने कैबिनेट की बैठक में कहा था, "देश को सिर्फ कोरोना वायरस से ही नहीं, बल्कि सभी मीडिया राजनीतिक वायरसों से भी बचाना है."
तस्वीर: picture-alliance/abaca/Depo Photos
ईरान
कोरोना वायरस से जुड़ी खबरों की ईमानदारी से रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को ईरान में भी परेशान किया जा रहा है. इस सिलसिले में ना सिर्फ कई पत्रकारों को हिरासत में लिया गया है, बल्कि सोशल मीडिया यूजर्स पर भी कार्रवाई की गई है.
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इराक
इराक की सरकार ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स का लाइसेंस तीन महीने के लिए निलंबित रखा. इसकी वजह थी एक रिपोर्ट जिसमें इराक में कोविड19 के आधिकारिक आंकड़ों को लेकर सवाल उठाए गए थे.
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मिस्र
मिस्र में कोरोना वायरस की कवरेज के लिए ब्रिटिश अखबार गार्डियन के लिए काम करने वाले एक रिपोर्टर का लाइंसेंस रद्द किए जाने की खबर है जबकि न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार को भी इसी तरह की धमकी दी गई.
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हंगरी
हाल में ही प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान की सरकार ने कोरोना वायरस कानून पारित किया. इसके तहत गलत सूचना देने पर पांच साल तक की जेल हो सकती है. हंगरी में प्रेस की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर यूरोपीय संघ लगातार चिंता जताता रहा है.
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कैद में पत्रकार
वेनेजुएला में कोविड-19 के बारे में रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार डार्विन्संस रोजस को जेल में डाला गया. दूसरी ओर, कंबोडिया में सरकार के 17 आलोचकों को जेल की सजा हुई. इसी तरह थाईलैंड में एक व्हिसल-ब्लोअर को जेल में डाला गया.