क्या खतरे में है चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर?
२६ अप्रैल २०१९चीन ने एक बार फिर अपने कई अरब डॉलर की महात्वाकांक्षी परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपेक) में भरोसा जताया है. यह चीन के वैश्विक बेल्ट एंड रोड अभियान का प्रमुख प्रोजेक्ट है. बीजिंग में 25 अप्रैल से तीन दिनों तक चलने वाले फोरम में हिस्सा लेने पहुंचे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का चीन ने स्वागत किया है. बाहरी आर्थिक मदद पर काफी हद तक निर्भर पाकिस्तान भी चीन के साथ अपने आर्थिक संबंध और बेहतर बनाना चाहता है.
2015 में चीन ने सीपेक की घोषणा की थी, जिसका मकसद पाकिस्तान और मध्य एवं दक्षियाई देशों में अपना प्रभुत्व बढ़ाना था. इसके माध्यम से चीन क्षेत्र में अमेरिका के बढ़ते असर का जवाब भी देना चाहता था. इस प्रोजेक्ट के तहत सड़कें, रेल और तेल के पाइपलाइन बिछाए जाने हैं जिससे चीन को सीधे मध्य पूर्व से जोड़ा जा सके. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार के आने के बाद से इस प्रोजेक्ट का क्रियान्वन बहुत धीमा पड़ गया है. पाकिस्तान के वाणिज्य मंत्री अब्दुल रजाक दाऊद ने बीते सितंबर में एक रिव्यू कराए जाने तक प्रोजेक्ट को स्थगित करने का प्रस्ताव दिया था. उन्होंने भ्रष्टाचार के मामलों में फंसे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर चीन के लिए "बहुत ज्यादा फायदेमंद" शर्तों पर सहमति देने का आरोप लगाया.
कराची में रहने वाले स्तंभकार, राजनीतिक टिप्पणीकार और कई किताबों के लेखक नदीम अख्तर ने इस पर डॉयचे वेले से खास बातचीत.
डॉयचे वेले: चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का मौजूदा हाल क्या है?
नदीम अख्तर: कुछ सीपेक योजनाओं को पीछे धकेल दिया गया है और जो चल रही हैं वे भी बहुत धीमी गति से. मेरी राय में इसका बड़ा कारण मौजूदा सरकार की इनमें दिलचस्पी ना होना है. सरकार बनाने से पहले प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस प्रोजेक्ट का विरोध किया था. सरकार बनाने के बाद इमरान खान सरकार के वाणिज्य मंत्री ने सितंबर 2018 में अपना रुख साफ करते हुए बयान दिया था कि आर्थिक कॉरिडोर के काम को कम से कम एक साल के लिए स्थगित कर दिया जाना चाहिए.
इमरान खान की सरकार को इसमें दिलचस्पी क्यों नहीं है? क्या पाकिस्तानी आर्मी को भी सीपेक प्रोजेक्ट पसंद नही है?
आर्थिक गलियारे को लेकर खाड़ी देश भी विरोध कर रहे हैं, जिन्हें डर है कि पाकिस्तान के पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत में बनने वाला ग्वादार पोर्ट (सीपेक का हिस्सा) इलाके में चीन का प्रभाव और बढ़ा देगा. इस इलाके में चीन के पहले से ही कई प्रमुख पोर्ट हैं.
जहां तक सेना की बात है तो उसके जनरल बीजिंग के साथ रक्षा संबंधों को बढ़ावा देने को वरीयता देते हैं. इसके अलावा उन्हें लगता है कि अगर सीपेक जैसे बड़े आर्थिक प्रोजेक्ट चीन के साथ आर्थिक संबंधों को मजबूत करते हैं तो पाकिस्तान का राजनीतिक प्रतिनिधित्व इसका श्रेय ले लेगा और मजबूत हो जाएगा. दूर की सोचें तो सीपेक के कारण पाकिस्तान, अपने चिर प्रतिद्वंद्वी भारत और दूसरे पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने को मजबूर हो जाएगा. यह सब पाकिस्तानी सेना के सुरक्षा सिद्धांतों के खिलाफ जाएगा, जिन्हें खतरा बने रहने के कारण देश में बहुत शक्तियां मिली हुई हैं.
चीन इस पर कैसी प्रतिक्रिया दे रहा है?
जाहिर है कि चीन इससे खुश नहीं है. सीपेक उसके महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड अभियान का हिस्सा है. बीजिंग को अमेरिका और साउथ चाइना सी के देशों से तो पहले ही विरोध झेलना पड़ा रहा था. एक दक्षिण एशियाई व्यापार मार्ग कई विकल्प खोल सकता है. मैं नहीं कह रहा कि चीन साउथ चाइना सी के इलाकों पर अपना दावा छोड़ रहा है, लेकिन जाहिरी तौर पर उसे अन्य मार्ग खोलने की जरूरत है. यह सब बेल्ट एंड रोड का हिस्सा है.
क्या चीन भारत और पाकिस्तान को करीब ला सकता है?
ला सकता है. शीतयुद्ध के समय भारत के मुकाबले चीन, पाकिस्तान के ज्यादा करीब था. अब उसके भारत के साथ भी संबंध सुधर गए हैं. ताजा आंकड़े देखें तो चीन-भारत का द्विपक्षीय कारोबार करीब 90 अरब डॉलर का है. इसे और बढ़ाने की खूब संभावना है.
मेरा मानना है कि रणनीतिक और रक्षा संबंधों में दिलचस्पी रखने वाले अमेरिका से उलट, चीन दरअसल दक्षिण एशियाई देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों को प्रगाढ़ करना चाहता है. जाहिर है कि ऐसा चीन अपने फायदे के लिए करना चाहता है और चाहेगा कि उसके सीपेक प्रोजेक्ट का भारत तक विस्तार हो, जो कि एक बड़ा बाजार है. लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा कि पाकिस्तानी सेना अपनी शक्तियां कम नहीं करना चाहेगी और भारत के साथ आर्थिक संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिशों का विरोध करती रहेगी.
नदीम अख्तर कराची में रहने वाले स्तंभकार, राजनीतिक टिप्पणीकार और कई किताबों के लेखक हैं.
इंटरव्यू: शामिल शम्स / आरपी