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क्या गंगा को साफ कर पाएंगे मोदी

१८ जुलाई २०१४

मालती देवी की शादी कानपुर के पास जाना गांव में हुई है. जबसे वे यहां आई हैं, पूरे बदन पर फफोले निकल गए हैं. डॉक्टरों का कहना है कि यह प्रदूषित पानी से हुआ है. गांव गंगा के किनारे बसा है.

तस्वीर: DW

पेट, पीठ, बाजू और कमर पर पड़े लाल रंग के फफोले दिखाते हुए 33 साल की मालती देवी कहती हैं, "यह बहुत खराब होता जा रहा है. मेरे पूरे बदन पर ऐसे फफोले उठ रहे हैं." उनके घर के बाहर दर्जन भर दूसरे लोग भी पानी से जुड़ी अपनी समस्या बताने को बेताब हैं. 40 साल के रमेश चंद निषाद कहते हैं, "जिनसे बन पड़ा, उन्होंने तो गांव ही छोड़ दिया." स्थानीय डॉक्टर उनकी बातों की पुष्टि करते हैं.

भारत के नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा से अपना रिश्ता जोड़ा है. उन्होंने वाराणसी से चुनाव जीता और उसके बाद गंगा "मां" के तट पर खड़े होकर वादा किया कि वह गंगा को साफ करेंगे. ऐसा वादा, जो आधी दर्जन सरकारें कर चुकी हैं लेकिन जो आज भी वादा ही है.

वाराणसी में गंगातस्वीर: DW

लहुलूहान गंगा

भारत की सबसे पवित्र समझी जाने वाली गंगा को हिन्दू संस्कृति में मां का दर्जा हासिल है. लेकिन यह वक्त के हिलोरे में बहते हुए सबसे गंदी नदियों में शामिल हो चुकी है. कानपुर के पास तो इसकी हालत और खराब है. पापों को धो देने वाली गंगा यहां के उद्योगों में खुद लहुलूहान हो जाती है. करीब 50 लाख की आबादी का कचरा गंगा नहीं संभाल पाती. बैक्टीरिया का स्तर स्वीकृत स्तर से 200 गुना ज्यादा है और शहर हर रोज केमिकल से सना लाखों लीटर पानी इसमें छोड़ देता है.

एक सदी पहले चमड़ा उद्योग का गढ़ बनने वाले शहर कानपुर के जाजमऊ इलाके से गुजरते वक्त ऐसा लगता है, जैसे हवा से सड़े हुए मांस की बदबू आ रही हो. नंगे पांव काम करने वाले मजदूर केमिकल से सन कर जानवरों की चमड़ी निकालते हैं और उन्हें ब्लीचिंग और कलरिंग के लिए भेज देते हैं. नदी किनारे की इन फैक्ट्रियों से निकलने वाला गाढ़ा नीले रंग का द्रव सीधे बिना ट्रीटमेंट के गंगा की भेंट चढ़ जाता है. कभी कभी इस द्रव का रंग काला या गहरा पीला भी दिखता है. गंगा नदी यहां एक गंदे नाले की तरह दिखती है.

कानपुर में पर्यावरण संस्था इको फ्रेंड्स ग्रुप के राकेश के जायसवाल का दावा है कि चमड़े के इन 400 कानूनी गैरकानूनी कारखानों से हर रोज पांच करोड़ लीटर कचरा निकलता है और सिर्फ 90 लाख लीटर का ट्रीटमेंट हो पाता है. भारी धातु और दूसरे प्रदूषक नदी के पानी में मिल जाते हैं और फिर सिंचाई और मछलियों के जरिए भोजन चक्र का हिस्सा बन जाते हैं.

कानपुर में गंगातस्वीर: DW

एक तिहाई भारतीयों की गंगा

हिमालय से निकल कर बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले गंगा 2500 किलोमीटर का सफर तय करती है. इस दौरान वह एक तिहाई भारतीयों के घरों या शहरों से होकर गुजरती है. कानपुर और वाराणसी दो बिन्दु हैं, जहां गंगा सबसे गंदी बताई जाती है. जायसवाल का दावा है कि कानपुर से हर रोज 50 करोड़ लीटर गंदा पानी निकलता है और शहर के पास सिर्फ 16 करोड़ लीटर को साफ करने की क्षमता है.

जायसवाल उम्मीद करते हैं कि नरेंद्र मोदी और उनकी गंगा पुनर्जीवन मंत्री उमा भारती गंगा का उद्धार कर सकें. वैसे गंगा को साफ करने की पहली योजना 1986 में गंगा एक्शन प्लान के नाम से शुरू हुई, जो 28 साल में भी काम पूरा नहीं कर पाई.

पर्यावरण एक्सपर्टों का दावा है कि अरबों रुपये झोंकने के बाद भी गंगा साफ नहीं हो पाई. मोदी सरकार ने एक बार फिर से 20 अरब रुपये "गंगा मिशन" के लिए रखे हैं. मंत्री महोदया उमा भारती का कहना है, "पहली बार हम देख रहे हैं कि इस मुद्दे पर लोग एकजुट हो रहे हैं. हर कोई इस मिशन के लिए एक साथ आकर काम कर रहा है."

उधर, मालती देवी जाना गांव में नरेंद्र मोदी की पहल का स्वागत तो करती हैं लेकिन उन्हें "शक है कि कुछ हो पाएगा."

एजेए/आईबी (एएफपी)

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