चीन अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहा है जबकि रूस अपनी विदेश नीति को आक्रामक तरीके से लागू कर रहा है. आईआईएसएस के विशेषज्ञ बास्टियान गिगरीश कहते हैं कि दुनिया में तेजी से बदलाव आ रहा है.
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चीनी सेना कहां से कहां पहुंच गयी
चीन ने जो सैन्य ताकत हासिल की है, उससे किसी को भी रश्क हो सकता है. आइए एक नजर डालते हैं चीनी सेना के अतीत और वर्तमान पर.
तस्वीर: Reuters/Stringer
कब हुआ गठन?
चीन में 1 अगस्त 1927 को गृह युद्ध छिड़ा और यही दिन चीन की मौजूदा सेना का स्थापना दिवस माना जाता है. इस गृह युद्ध में एक तरफ चीन की राष्ट्रवादी ताकतें थीं तो दूसरी तरफ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी. गृह युद्ध में आखिरकार कम्युनिस्टों की जीत हुई और चीन पर उनका नियंत्रण हो गया. वहीं राष्ट्रवादियों को भागकर ताइवान जाना पड़ा.
तस्वीर: AP
1989, बीजिंग
1949 में आधुनिक चीन की स्थापना के बाद चीनी सेना कई ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह बनी जिनमें कोरियाई युद्ध, चीनी सांस्कृतिक क्रांति और चीन-वियतनाम युद्ध शामिल रहे. लेकिन 1989 में कुछ चीनी युवा अपनी ही व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़े हुए. चीन की सेना ने जिस बर्बरता से इस लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को कुचला, उसकी अब तक आलोचना होती है.
तस्वीर: AP
भारत-चीन युद्ध
अपनी आजादी के 15 साल बाद ही भारत को 1962 में चीन के साथ युद्ध लड़ना पड़ा. एक महीने तक चले इस युद्ध में भारत को हार का कड़वा घूंट पीना पड़ा. युद्ध का मुख्य कारण सीमा विवाद था लेकिन इसके लिए कई वजहें भी जिम्मेदार थीं. इनमें एक कारण तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को उनके अनुयायी के साथ भारत में शरण दिया जाना भी था.
तस्वीर: Diptendu Dutta/AFP/Getty Images
चीन और अमेरिका का टकराव
बीते 20 साल में चीन का किसी देश से कोई युद्ध तो नहीं हुआ है, लेकिन चीनी सेना लगातार सुर्खियों में रही है. 1 अप्रैल 2001 को चीन और अमेरिका के विमान एक दूसरे से टकरा गये. चीन ने इस घटना के लिए अमेरिका को जिम्मेदार करार दिया और इसे लेकर दोनों देशों के रिश्ते खासे तनावपूर्ण हो गये थे.
तस्वीर: AP
हादसा
अप्रैल 2003 में चीनी नौसेना को एक बड़ी दुर्घटना का सामना करना पड़ा जिसमें उसके 70 अफसर मारे गये थे. ये लोग चीनी पनडुब्बी 361 में सवार थे. पानी के नीचे उनकी ट्रेनिंग हो रही थी कि तभी पनडुब्बी का सिस्टम फेल गया. सरकारी मीडिया के मुताबिक पनडु्ब्बी के डीजल इंजन ने सारी ऑक्सीजन इस्तेमाल कर ली जिसके चलते यह हादसा हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/featurechina
सेना में भ्रष्टाचार
हाल के सालों में भ्रष्टाचार चीन की सेना के लिए एक बड़ी समस्या रही है. लेकिन जब से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सत्ता संभाली है, तब से देश में भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चल रही है. इसी तहत सेना में उच्च पदों पर रह चुके शु सायहोऊ और कुओ बॉक्सीओंग के खिलाफ कार्रवाई हुई.
तस्वीर: Getty Images
नो बिजनेस
चीन की सेना में 1990 के दशक में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार देखने को मिला. 1985 में खर्चों में कटौती के लिए चीनी सेना को आर्थिक गतिविधियां चलाने की अनुमति दे दी गयी. लेकिन कुछ समय बाद इस फैसले के चलते न सिर्फ सेना की क्षमता प्रभावित हुई बल्कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार भी हुआ. इसीलिए 1998 में चीन ने सेना की आर्थिक गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगा दी.
तस्वीर: Reuters/D. Sagolj
नए हथियार
तौर पर चीन के बड़ी ताकत बनने के साथ ही उसके रक्षा खर्च में भी बेतहाशा इजाफा हुआ. सेना का आधुनिकीकरण किया गया और उसे नये नये हथियारों से लैस किया गया. उसके जखीरे में अब तेज तर्रार लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत, टोही विमान, पनडुब्बियां और परमाणु मिसाइलों समेत हर तरह के हथियार हैं.
तस्वीर: Reuters/Stringer
गहराते मतभेद
चीन की ताकत बढ़ने के साथ ही पड़ोसी देशों से उसके विवाद भी गहराये हैं. जापान से जहां उसकी पारंपरिक प्रतिद्ंवद्विता है, वहीं जल सीमा को लेकर वियतनाम, फिलीफींस, इंडोनेशिया, मलेशिया, ताइवान और ब्रूनेई जैसे देशों उसके मतभेद गहरे हुए हैं. इसके अलावा भारत के साथ सैकड़ों किलोमीटर लंबी सीमा का विवाद भी अनसुलझा है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Xinhua/Liu Rui
ताइवान से तनातनी
छह विमानवर्षक शियान एच-6 विमानों को जुलाई में ताइवान के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन के पास उड़ता हुआ पाया गया. इससे ताइवान की सेना सतर्क हो गयी. चीन ताइवान को अपना एक अलग हुआ हिस्सा बताता है जिसे उसके मुताबिक एक दिन चीन में ही मिल जाना है. जबकि ताइवान खुद को एक अलग देश समझता है.
तस्वीर: Reuters/Ministry of National Defense
विदेश में सैन्य अड्डा
चीन की सेना अब देश की सीमाओं से परे भी अपने पांव पसार रही है. अफ्रीकी देश जिबूती में चीन ने अपना पहला विदेशी सैन्य बेस बनाया है. रणनीतिक रूप से बेहद अहम लोकेशन वाले जिबूती में अमेरिका, जापान और फ्रांस के भी सैन्य अड्डे मौजूद हैं. चीन अफ्रीका में भारी पैमाने पर निवेश भी कर रहा है.
चीन की सेना दुनिया की कई बड़ी सेनाओं के साथ सैन्य अभ्यास करती है और इस दौरान वह अपने दमखम का परिचय देती है. जुलाई 2017 में रूस के साथ बाल्टिक सागर में सैन्य अभ्यास के लिए उसने तीन पोत भेजे. पहली बार चीन ने अपने पोत यूरोप भेजे हैं. बहुत से नाटो देश इस पर नजदीक से नजर बनाये हुए थे.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Tass/S. Konkov
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बास्टियान गिगरीश इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटजिक स्टडीज (आईआईएसएस) में रक्षा और सैन्य विश्लेषण विभाग के निदेशक हैं. वह उस टीम का नेतृत्व भी करते हैं जो सालाना मिलिट्री बैलेंस रिपोर्ट प्रकाशित करती है. डीडब्ल्यू के साथ खास बातचीत में उन्होंने दुनिया भर में बदलते रणनैतिक समीकरणों की चर्चा की है. पेश हैं इसी इंटरव्यू के खास अंश:
आपने आईआईएसएस 2018 मिलिट्री बैलेंस रिपोर्ट में लिखा है कि चीन अपनी वायु सेना में भारी पैमाने पर निवेश कर रहा है. क्या अब चीन वायु सैन्य ताकत के मामले में अमेरिका के बराबर आ गया है?
चीनी सेना कहां से कहां पहुंच गयी
चीन ने जो सैन्य ताकत हासिल की है, उससे किसी को भी रश्क हो सकता है. आइए एक नजर डालते हैं चीनी सेना के अतीत और वर्तमान पर.
तस्वीर: Reuters/Stringer
कब हुआ गठन?
चीन में 1 अगस्त 1927 को गृह युद्ध छिड़ा और यही दिन चीन की मौजूदा सेना का स्थापना दिवस माना जाता है. इस गृह युद्ध में एक तरफ चीन की राष्ट्रवादी ताकतें थीं तो दूसरी तरफ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी. गृह युद्ध में आखिरकार कम्युनिस्टों की जीत हुई और चीन पर उनका नियंत्रण हो गया. वहीं राष्ट्रवादियों को भागकर ताइवान जाना पड़ा.
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1989, बीजिंग
1949 में आधुनिक चीन की स्थापना के बाद चीनी सेना कई ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह बनी जिनमें कोरियाई युद्ध, चीनी सांस्कृतिक क्रांति और चीन-वियतनाम युद्ध शामिल रहे. लेकिन 1989 में कुछ चीनी युवा अपनी ही व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़े हुए. चीन की सेना ने जिस बर्बरता से इस लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को कुचला, उसकी अब तक आलोचना होती है.
तस्वीर: AP
भारत-चीन युद्ध
अपनी आजादी के 15 साल बाद ही भारत को 1962 में चीन के साथ युद्ध लड़ना पड़ा. एक महीने तक चले इस युद्ध में भारत को हार का कड़वा घूंट पीना पड़ा. युद्ध का मुख्य कारण सीमा विवाद था लेकिन इसके लिए कई वजहें भी जिम्मेदार थीं. इनमें एक कारण तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को उनके अनुयायी के साथ भारत में शरण दिया जाना भी था.
तस्वीर: Diptendu Dutta/AFP/Getty Images
चीन और अमेरिका का टकराव
बीते 20 साल में चीन का किसी देश से कोई युद्ध तो नहीं हुआ है, लेकिन चीनी सेना लगातार सुर्खियों में रही है. 1 अप्रैल 2001 को चीन और अमेरिका के विमान एक दूसरे से टकरा गये. चीन ने इस घटना के लिए अमेरिका को जिम्मेदार करार दिया और इसे लेकर दोनों देशों के रिश्ते खासे तनावपूर्ण हो गये थे.
तस्वीर: AP
हादसा
अप्रैल 2003 में चीनी नौसेना को एक बड़ी दुर्घटना का सामना करना पड़ा जिसमें उसके 70 अफसर मारे गये थे. ये लोग चीनी पनडुब्बी 361 में सवार थे. पानी के नीचे उनकी ट्रेनिंग हो रही थी कि तभी पनडुब्बी का सिस्टम फेल गया. सरकारी मीडिया के मुताबिक पनडु्ब्बी के डीजल इंजन ने सारी ऑक्सीजन इस्तेमाल कर ली जिसके चलते यह हादसा हुआ.
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सेना में भ्रष्टाचार
हाल के सालों में भ्रष्टाचार चीन की सेना के लिए एक बड़ी समस्या रही है. लेकिन जब से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सत्ता संभाली है, तब से देश में भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चल रही है. इसी तहत सेना में उच्च पदों पर रह चुके शु सायहोऊ और कुओ बॉक्सीओंग के खिलाफ कार्रवाई हुई.
तस्वीर: Getty Images
नो बिजनेस
चीन की सेना में 1990 के दशक में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार देखने को मिला. 1985 में खर्चों में कटौती के लिए चीनी सेना को आर्थिक गतिविधियां चलाने की अनुमति दे दी गयी. लेकिन कुछ समय बाद इस फैसले के चलते न सिर्फ सेना की क्षमता प्रभावित हुई बल्कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार भी हुआ. इसीलिए 1998 में चीन ने सेना की आर्थिक गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगा दी.
तस्वीर: Reuters/D. Sagolj
नए हथियार
तौर पर चीन के बड़ी ताकत बनने के साथ ही उसके रक्षा खर्च में भी बेतहाशा इजाफा हुआ. सेना का आधुनिकीकरण किया गया और उसे नये नये हथियारों से लैस किया गया. उसके जखीरे में अब तेज तर्रार लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत, टोही विमान, पनडुब्बियां और परमाणु मिसाइलों समेत हर तरह के हथियार हैं.
तस्वीर: Reuters/Stringer
गहराते मतभेद
चीन की ताकत बढ़ने के साथ ही पड़ोसी देशों से उसके विवाद भी गहराये हैं. जापान से जहां उसकी पारंपरिक प्रतिद्ंवद्विता है, वहीं जल सीमा को लेकर वियतनाम, फिलीफींस, इंडोनेशिया, मलेशिया, ताइवान और ब्रूनेई जैसे देशों उसके मतभेद गहरे हुए हैं. इसके अलावा भारत के साथ सैकड़ों किलोमीटर लंबी सीमा का विवाद भी अनसुलझा है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Xinhua/Liu Rui
ताइवान से तनातनी
छह विमानवर्षक शियान एच-6 विमानों को जुलाई में ताइवान के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन के पास उड़ता हुआ पाया गया. इससे ताइवान की सेना सतर्क हो गयी. चीन ताइवान को अपना एक अलग हुआ हिस्सा बताता है जिसे उसके मुताबिक एक दिन चीन में ही मिल जाना है. जबकि ताइवान खुद को एक अलग देश समझता है.
तस्वीर: Reuters/Ministry of National Defense
विदेश में सैन्य अड्डा
चीन की सेना अब देश की सीमाओं से परे भी अपने पांव पसार रही है. अफ्रीकी देश जिबूती में चीन ने अपना पहला विदेशी सैन्य बेस बनाया है. रणनीतिक रूप से बेहद अहम लोकेशन वाले जिबूती में अमेरिका, जापान और फ्रांस के भी सैन्य अड्डे मौजूद हैं. चीन अफ्रीका में भारी पैमाने पर निवेश भी कर रहा है.
चीन की सेना दुनिया की कई बड़ी सेनाओं के साथ सैन्य अभ्यास करती है और इस दौरान वह अपने दमखम का परिचय देती है. जुलाई 2017 में रूस के साथ बाल्टिक सागर में सैन्य अभ्यास के लिए उसने तीन पोत भेजे. पहली बार चीन ने अपने पोत यूरोप भेजे हैं. बहुत से नाटो देश इस पर नजदीक से नजर बनाये हुए थे.
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चीन अभी अमेरिका के बराबर नहीं आया है लेकिन वह इसी दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है. हमारे अनुमान के मुताबिक कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहां चीन आगे नहीं बढ़ रहा है बल्कि बेहतर कर रहा है. मिसाल के तौर पर हम समझते हैं कि चीन इस साल अपने अस्त्रागार में लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल को शामिल कर सकता है.
इसके अलावा उसके अत्याधुनिक जे-20 लड़ाकू विमान भी 2020 तक फ्रंटलाइन सर्विस का हिस्सा बन जाएंगे. ये वे अत्याधुनिक क्षमताएं हैं जो आकाश में अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देती हैं. मुझे लगता है कि वे दिन गए जब आकाश में अमेरिका और पश्चिमी सेनाओं के प्रभुत्व को चुनौती देने वाला कोई नहीं था.
आपकी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन अपनी नौसेना में भी भारी निवेश कर रहा है. इसका क्या मकसद है?
चीन ने पिछले चार साल में जो पोत बनाए हैं उनकी भार उठाने की क्षमता फ्रांस की नौसेना से भी ज्यादा है और इस मामले में वे लगभग ब्रिटिश रॉयल नेवी के बराबर आ गए हैं. इससे साफ है कि चीन समंदर में अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रहा है. साथ ही चीन ने जिबूती में अपना पहला विदेशी बेस खोला है. इसके जरिए चीन को लंबे समय तक सागर में अपने पोतों की तैनाती में मदद मिलेगी और चीन की ताकत में इजाफा होगा.
रूस के हालात थोड़े अलग हैं. बात जब सैन्य बलों को आधुनिक बनाने की आती है तो क्या रूस के सामने कुछ मुश्किलें हैं?
रूस ने आर्थिक मुश्किलों का सामना किया है, जिसके चलते वहां सेना को अत्याधुनिक बनाने की महत्वाकांक्षी योजना को सीमित किया गया है. हमारा अनुमान है कि वहां सेना के आधुनिकीकरण का काम थोड़ा धीमा हुआ है. लेकिन रूस अपने सशस्त्र बलों को सीरिया और पूर्वी यूक्रेन जैसे संकटग्रस्त क्षेत्रों में इस्तेमाल करता रहा है. इसलिए रूस के पास नए उपकरणों और नई तकनीक को इस्तेमाल करने का ज्यादा अनुभव है. वहीं चीन के पास अभी तक ऐसा कोई अनुभव नहीं है.
डिफेंस बजट: रूस से आगे भारत
रक्षा कार्यक्रमों का विश्लेषण करने वाले संस्थान आईएचएस जेन के मुताबिक 2016 में भारत रक्षा खर्च के मामले में रूस और सऊदी अरब को पछाड़कर नंबर 4 पर आ गया है. 2018 में सबसे ज्यादा रक्षा बजट किन देशों का होगा, एक अनुमान:
तस्वीर: Reuters/KCNA
अमेरिका, 625.1 अरब डॉलर
तस्वीर: picture-alliance/(AP Photo/A. Keplicz
चीन, 201.5 अरब डॉलर
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
भारत, 56.5 अरब डॉलर
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu
ब्रिटेन, 54.4 अरब डॉलर
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Malla
सऊदी अरब, 47.6 अरब डॉलर
तस्वीर: Imago/teutopress
फ्रांस, 45.1 अरब डॉलर
तस्वीर: Reuters/P. Wojazer
रूस, 41.1 अरब डॉलर
तस्वीर: picture alliance/dpa/Y. Smityuk
जापान, 41 अरब डॉलर
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Mayama
जर्मनी, 37.9 अरब डॉलर
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Stache
दक्षिण कोरिया, 35.6 अरब डॉलर
तस्वीर: Hong Jin-Hwan/Donga Daily/Getty Images
10 तस्वीरें1 | 10
राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका यूरोपीय देशों से सेना में ज्यादा निवेश करने को कह रहा है. और इस साल की रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोपीय सेनाओं ने 2017 में अपना सैन्य खर्च बढ़ाया है. क्या आपको लगता है कि ऐसा अमेरिकी दबाव के कारण हो रहा है?
दरअसल यूरोप में लोग मानने लगे हैं कि दुनिया एक खतरनाक जगह है और यहां खतरे को लेकर धारणा भी बदली है. मुझे लगता है कि जिस तरह रूस अपनी विदेश नीति को आक्रामक तरीके से लागू कर रहा है, उसके कारण यूरोपीय देशों ने सेना पर खर्च बढ़ाया है. यूक्रेन का संकट भी इसकी वजह है. इसमें अमेरिकी दबाव का योगदान भी रहा है. लेकिन यह कहना गलत होगा कि सिर्फ ट्रंप के दबाव के कारण ही यूरोपीय देशों ने सैन्य खर्चा बढ़ाया है. इसकी शुरुआत ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले ही होने लगी थी.
रूस, चीन और अमेरिका अपने परमाणु अस्त्रागार को आधुनिक बना रहे हैं. क्या हम फिर से 1980 के दशक की तरफ लौट रहे हैं?
मुझे नहीं लगता कि यह कहना सही होगा. लेकिन मैं समझता हूं कि हम जो देख रहे हैं वहां अपना दबदबा कायम करने के लिए कोई बड़ा संघर्ष होने की संभावना अब से 20 साल पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा है. इसका यह मतलब कतई नहीं है कि यह संघर्ष होगा ही, लेकिन इसकी बहुत संभावना है. इसी के तहत हम देख रहे हैं कि चीन और रूस अमेरिका के वैश्विक प्रभुत्व को चुनौती दे रहे हैं और वे व्यवस्थित तरीके से एक संघर्ष के लिए तैयार हो रहे हैं. परमाणु हथियार आखिरकार संकट को रोकने में भूमिका निभाएंगे. तीनों ताकतें यानि चीन, रूस और अमेरिका अपने परमाणु हथियारों को आधुनिक बनाने की प्रक्रिया में हैं.
बास्टियान गिगरीश के साथ यह इंटरव्यू पेटर हिले ने किया.
दुनिया भर की सेनाओं के पास सोवियत संघ के हथियार
सोवियत संघ भले ही सालों पहले खत्म हो गया, लेकिन उसके इंजीनियरों के बनाये और युद्धों में इस्तेमाल किये गए हथियार आज भी दुनियाभर की सेनाएं इस्तेमाल कर रही हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Kovalev
मिखाईल कलाश्निकोव की राइफल
30 राउंड वाली एके 47 दुनिया की सबसे ज्यादा पहचानी जाने वाली राइफल है. सोवियत इंजीनियर मिखाईल कलाश्निकोव ने यह ऑटोमैटिक राइफल दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बनाई थी. सस्ती और भरोसे लायक होने की वजह से यह राइफल कई सेनाओं में बहुत जल्दी लोकप्रिय हुई. आज की तारीख में कई गुरिल्ला समूह और आपराधिक गिरोहों समेत दुनिया भर की कई सेनाएं इस बंदूक को इस्तेमाल कर रही हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/S.Thomas
बंदूक जो पहुंची अंतरिक्ष
9 एमएम की मार्कोव पिस्तौल का इस्तेमाल 1951 में हुआ. यह पिस्तौल सोवियत सेना, पुलिस और विशेष बल में प्रयोग की जाती थी. यहां तक कि सोवयत के अंतरिक्ष यात्री इसे अपनी खास किट में रख कर स्पेस की यात्रा पर गए. ये पिस्तौल उन्हें इसलिए दी गयी थी कि अगर वे किसी मुसीबत में फंस जायें तो इसका इस्तेमाल कर सकें
तस्वीर: Imageo
अब भी उड़ रहा है मिग-29
मिग-29 1980 के शुरुआती सालों में बनना शुरू हुआ और इसकी गतिशीलता और चुस्ती की वजह से इसे खूब तारीफें मिलीं. हालांकि नाटो फाईटर्स और सुखोई ने अब इसे पीछे कर दिया है, लेकिन इसके कई विमान अब भी युद्धों में इस्तेमाल हो रहे हैं. रूसी वायुसेना सीरिया में इस्लामिक स्टेट को निशाना बनाने के लिए मिग-29 का इस्तेमाल कर रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/L. Marina
द्वितीय विश्व युद्ध से अब तक
रेड आर्मी ने द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मन सैनिकों के खिलाफ विनाशकारी प्रभाव के लिए कत्युशास ट्रक का इस्तेमाल किया था. इन आर्मी ट्रकों में कई रॉकेट लॉन्चर जुड़े हुए थे. ये ट्रक काफी सस्ते थे और इन्हें आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता था. इन ट्रकों को आज भी इस्तेमाल में लाया जा रहा है. ईरान-इराक युद्ध, लेबनान युद्ध, सीरियाई गृह युद्ध समेत कई लडाइयों में अब भी कई सेनाएं इसका इस्तेमाल कर रही हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H.Brix
विशालकाय एस-300 वायु रक्षा तंत्र
साल 2016 में रूस ने ईरान को उन्नत हवाई रक्षा प्रणाली बेची थी. शीत युद्ध-युग संस्करण के एस-300 150 किलोमीटर दूर तक वार कर सकते थे. इसके नए संस्करणों को और सक्षम बनाया गया है, जो 400 किलोमीटर दूर तक वार कर सकते हैं. भारत और चीन दोनों एडवांस एस-300 को खरीदने का विचार कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Rogulin
ड्रैगुनोव स्नाईपर राइफल
ड्रैगुनोव स्नाईपर राइफल सोवियत आर्मी में पहली बार 1963 में इस्तेमाल होना शुरू हुई थीं. तब से अब तक ये दुनिया भर के कई देशों में जा चुकी हैं. इन राइफलों का कथित तौर पर वियतनाम में अमेरिकी सैनिकों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था. 2015 में कुछ तस्वीरें सामने आई थीं, जिसमें इस्लामिक स्टेट की सेना के पास ड्रैगुनोव स्नाईपर राइफल दिख रही थीं.
तस्वीर: Imago
टी -34, एक युग का प्रतीक
रेड आर्मी की जर्मनी पर जीत के श्रेय का एक बड़ा हिस्सा टी-34 के नाम जाता है. टी-34 का लड़ाईयों में पहली बार 1941 में इस्तेमाल किया गया था. युद्ध में आजमाई गयी टी-34 तोपें बाद में दुनियाभर में सबसे ज्यादा बनाए जाने वाले टैंक साबित हुए. रूसी सेना अब भी इस तोप को विजय दिवस परेड में सबसे आगे खड़ा कर इसे सम्मान देती है.