क्या चीन से रिश्तों के तार तोड़ने के लिए तैयार है भारत?
७ जुलाई २०२०
भारत में चीनी सामान का खूब विरोध हो रहा है लेकिन जानकारों का मानना है कि चीन से व्यापार खत्म करना, भारतीय अर्थव्यवस्था को 1991 से पहले वाली स्थिति में पहुंचा सकता है.
विज्ञापन
चीन के साथ जारी सीमा विवाद के बीच भारत में चीनी सामान के बहिष्कार की भावना काफी बढ़ गई है. लोग चीन से आयात को पूरी तरह खत्म करने की मांग कर रहे हैं. चाहे सड़कों पर खड़े लोगों की बातचीत हो या न्यूज चैनलों के डिबेट, सब जगह चीन को सबक सिखाने की मांग उठ रही है. इस मांग के बीच भारत सरकार ने टिकटॉक समेत 59 चीनी ऐप बैन कर दिए हैं. साथ ही हाइवे परियोजनाओं से चीनी कंपनियों को अलग कर लिया गया है और छोटे और लघु उद्योग (एमएसएमई) में चीनी निवेश पर भी रोक लगा दी गई है.
ऐसी भी रिपोर्टें आ रही हैं कि भारतीय बंदरगाहों पर चीनी सामान को रोका जा रहा है और उन पर अतिरिक्त कर लगाने और क्वॉलिटी कंट्रोल पर सख्ती की बात चल रही है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसा ही भारत से चीन भेजे जा रहे सामान के साथ भी हो रहा है. जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर प्रवीण कृष्णा ने डॉयचे वेले से इस बारे में बताया, "व्यापार में किसी भी तरह का तनाव, फिर चाहे वह प्रतीकात्मक ही क्यों ना हो, अर्थव्यवस्था के लिए बुरा है."
प्रोफेसर कृष्णा का कहना है कि फिलहाल इस बारे में जानकारी नहीं है कि किस बंदरगाह पर क्या सामान रोका गया है और उसे छोड़ने में कितनी देर की जा रही है. वे कहते हैं, "व्यापार पर क्या असर हो रहा है इसका ठीक ठीक पता तब ही चल सकता है अगर सारी जानकारी सामने हो. हर क्षेत्र और हर कंपनी के लिए यह अलग होगा. मेरे ख्याल से ज्यादातर कंपनियां देरी बर्दाश्त करने की हालत में हैं लेकिन पूरी तरह रोक को झेलने की हालत में नहीं."
चीन से क्या क्या खरीदता है भारत
गलवान घाटी की घटना के बाद भारत में एक बार फिर चीन के उत्पादों के बहिष्कार की मांगें उठ रही हैं. क्या भारत चीन का आर्थिक बहिष्कार कर सकता है? इसका जवाब जानने के लिए दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों की तरफ देखना पड़ेगा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Dutta
निवेश
मांग उठ रही है कि भारत में चीनी कंपनियों द्वारा निवेश को रोका जाए. भारत सरकार के अनुसार, 2019 में भारत में चीनी निवेश का मूल्य मात्र 19 करोड़ डॉलर था. हालांकि 100 से भी ज्यादा चीनी कंपनियां भारत में अपने दफ्तर खोल चुकी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/A.Wong
टेक्नोलॉजी क्षेत्र
एक अनुमान के मुताबिक 2019-20 में चीनी तकनीकी कंपनियों ने दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में ही निवेश किया. भारत में एक अरब डॉलर के मूल्य वाली 'यूनिकॉर्न' कही जाने वाली स्टार्टअप कंपनियों में से दो-तिहाई में भारी चीनी निवेश है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Y. Aung Thu
व्यापार घाटा
जानकार कहते हैं कि निवेश से ज्यादा चीन भारत पर व्यापार के जरिए हावी है. चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापार पार्टनर है. भारत सरकार के अनुसार 2019 में दोनों देशों के बीच 84 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. लेकिन इस व्यापार का तराजू चीन के पक्ष में भारी रूप से झुका हुआ है. 2019 में भारत ने चीन से 68 अरब डॉलर का सामान खरीदा और चीन ने भारत से सिर्फ 16.32 अरब डॉलर का सामान खरीदा.
तस्वीर: picture alliance/dpa
बिजली उपकरण
भारत चीन से सबसे ज्यादा बिजली की मशीनें और उपकरण खरीदता है. उद्योग संस्था पीएचडी चैम्बर्स के अनुसार 2016 में भारत ने चीन से 20.87 अरब डॉलर की कीमत के बिजली के उपकरण, मशीनें, पुर्जे, साउंड रिकॉर्डर, टेलीविजन इत्यादि खरीदे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Kakade
भारी मशीनें
2016 में ही भारत ने चीन से 10.73 अरब डॉलर मूल्य की भारी मशीनें, यंत्र, परमाणु रिएक्टर, बॉयलर और इनके पुर्जे खरीदे.
इसी अवधि में भारत ने चीन से 5.59 अरब डॉलर के ऑरगैनिक केमिकल खरीदे. इनमें बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक और दवाएं बनाने की केमिकल सामग्री शामिल हैं.
तस्वीर: imago/Science Photo Library
प्लास्टिक
2016 में भारत ने चीन से 1.84 अरब डॉलर का प्लास्टिक का सामान खरीदा. इसमें वो सब छोटे छोटे सामान आते हैं जो आप बड़े सुपरमार्केट से लेकर खुली सड़क पर लगने वाली हाटों से खरीद कर घर लाते हैं.
तस्वीर: AP
जहाज और नाव
भारत नाव, जहाज और अन्य तैरने वाले ढांचे भी बड़ी मात्रा में चीन से ही लेता है. 2016 में भारत ने चीन से 1.78 अरब डॉलर के नाव, जहाज इत्यादि खरीदे.
तस्वीर: Reuters
लोहा और स्टील
इस श्रेणी में भी भारत चीन से बहुत सामान खरीदता है. 2016 में 1.65 अरब डॉलर मूल्य का लोहे और स्टील का सामान खरीदा गया था.
भारत बड़े पैमाने पर खाद और खाद बनाने में उपयोग किए जाने वाले केमिकल भी चीन से खरीदता है. 2016 में भारत ने चीन से 1.54 अरब डॉलर की खाद खरीदी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Dutta
10 तस्वीरें1 | 10
चीन से आत्मनिर्भरता नामुमकिन
चीनी सामान पर पूर्ण रोक की जितनी भी मांग उठे लेकिन जानकार मानते हैं कि भारत और चीन दोनों के लिए ही यह मुमकिन नहीं है. 2018-19 के वित्त वर्ष में भारत और चीन ने 88 अरब डॉलर का व्यापार किया. भारत सबसे ज्यादा सामान चीन से ही आयात करता है. चीन तीन हजार से भी अधिक किस्म का सामान भारत को भेजता है. इसमें खिलौने, मेकअप, दवाएं, कारों के पुर्जे और स्टील शामिल है.
इसके अलावा चीनी निवेश के लिए भारत एक अहम जगह बन चुका है. भारत की डिलीवरी ऐप जोमैटो और पेमेंट ऐप पेटीएम में चीन ने लाखों डॉलर का निवेश किया है. अमेरिकी थिंक टैंक ब्रुकिंग्स के एक अनुमान के अनुसार भारत में चीन का मौजूदा निवेश 26 अरब डॉलर का है. भारत में उद्योग का बड़ा हिस्सा कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर है और ऐसे में चीन से रिश्ते तोड़ लेना भारतीय उद्योग के लिए बड़ा नुकसानदेह साबित हो सकता है.
अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी ब्लूमिंगटन के प्रोफेसर सुमित गांगुली का कहना है कि भारतीय बंदरगाहों पर चीनी सामान को रोकने से "भारतीय उद्योग पर काफी बुरा असर पड़ेगा क्योंकि सप्लाई चेन में ज्यादातर भारतीय उद्योग चीन में बने कच्चे माल पर निर्भर करते हैं." प्रोफेसर गांगुली बताते हैं, "भारत के पास इस वक्त चीन पर निर्भरता कम करने का कोई आसान और फौरन दिखने वाला रास्ता नहीं है, फिर भले ही टीवी चैनलों पर एंकर जितना भी चिल्ला लें." प्रोफेसर गांगुली के अनुसार चीन से दूरी धीरे धीरे ही बन पाएगी और इसके लिए बहुत धैर्य की जरूरत है.
भारत और चीन के बीच व्यापार संकट इस वक्त दोनों ही देशों को महंगा पड़ेगा, खास कर कोरोना काल में जब दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं और स्वास्थ्य प्रणालियों पर महामारी की बड़ी चोट लगी है. मार्च में भारत में पूर्ण लॉकडाउन लगने के बाद देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आईएमएफ के अनुसार 2020 में भारत का जीडीपी गिर कर 4.5% पर आ जाएगा, जो कि पिछले कुछ दशकों में भारत का सबसे बुरा आंकड़ा होगा. महामारी के शुरू होने से पहले ही भारत में मंदी दिखने लगी थी. पिछले 11 सालों में भारत की अर्थव्यवस्था फिलहाल सबसे बुरे हाल में है.
नरेंद्र मोदी ने दिए इतने सारे नारे
कोरोना महामारी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "आत्मनिर्भर भारत" का नारा दिया है. इससे पहले भी वे ऐसे कई नारे दे चुके हैं जो लोगों की जुबान पर चढ़ गए.
तस्वीर: IANS
दवाई भी कड़ाई भी
राजकोट में एम्स की आधारशिला रखने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2021 के लिए नया नारा दिया है. नया नारा कोरोना महामारी के संदर्भ में हैं और प्रधानमंत्री मानते हैं कि भारत इस महामारी से लड़ने में कामयाब हुआ है.
तस्वीर: IANS
आत्मनिर्भर भारत
कोरोना महामारी के मुश्किल दौर में नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का नारा दे कर देशवासियों को इस दिशा में सोचने को कहा कि जिन चीजों को भारत आयात करता है, उन्हें घरेलू बाजार में ही कैसे बनाया जाए.
तस्वीर: picture-alliance/A. Das
अच्छे दिन आएंगे
2014 के आम चुनावों से पहले मोदी ने नारा दिया "अच्छे दिन आने वाले हैं" और लोगों से अपील की कि अगर वे अच्छे दिन चाहते हैं तो उन्हें वोट दें और बड़ी संख्या में लोगों ने उनकी यह बात मानी भी.
तस्वीर: Reuters
अब की बार, मोदी सरकार
इन्हीं चुनावों में "अबकी बार मोदी सरकार" का नारा भी खूब चला. सिर्फ भारत में नहीं, अमेरिका में भी इसी तर्ज पर "अब की बार, ट्रंप सरकार" सुनाई दिया.
तस्वीर: Indranil Mukherjee/AFP/Getty Images
विकास का नारा
2014 का चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा गया. हर रैली में मोदी ने चुनाव जीतने के बाद देश में विकास और काला धन वापस लाने की बात कही.
तस्वीर: Reuters
मेक इन इंडिया
सत्ता में आने के बाद सितंबर 2014 में मोदी ने "मेक इन इंडिया" अभियान की शुरुआत की. आत्मनिर्भर भारत की तरह यहां भी नारे के केंद्र में उत्पादन भारत में कराना ही था.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
स्वच्छ भारत
इसी दौरान "स्वच्छ भारत अभियान" की भी शुरुआत हुई. इंटरनेट में चलने वाले तरह तरह के चैलेंज की तरह इस अभियान के तहत कई सिलेब्रिटी हाथ में झाड़ू लिए नजर आए.
तस्वीर: UNI
जहां सोच, वहां शौचालय
स्वच्छता की बात करते हुए मोदी टॉयलेट के मुद्दे पर भी आए और शौचालय का यह नारा दिया. वैसे चुनावों से पहले भी वे टॉयलेट के मुद्दे को छेड़ चुके थे. तब उन्होंने कहा था, "पहले शौचालय, फिर देवालय."
तस्वीर: Murali Krishnan
बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ
इसके बाद जनवरी 2015 में उन्होंने "बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ" का नारा दिया जिसका मकसद देशवासियों को जागरूक करना और महिलाओं और लड़कियों की स्थिति सुधारना था.
तस्वीर: AP
डिजिटल इंडिया
इसी साल जुलाई में "डिजिटल इंडिया" अभियान की शुरुआत हुई. लक्ष्य सरकारी स्कीमों को इंटरनेट के माध्यम से नागरिकों तक पहुंचाने का था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
कैशलेस इकोनॉमी
2016 में नोटबंदी का ऐलान करते हुए मोदी ने "कैशलेस इकॉनॉमी" का नारा दिया. हर नागरिक के पास बैंक अकाउंट होने की बात कही गई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
फिर एक बार
2019 के आम चुनाव में नारा आया, "फिर एक बार मोदी सरकार". नारा सच भी हुआ. देश में एक बार फिर मोदी की ही सरकार आई.
तस्वीर: picture alliance/dpa/S. Kumar
हर हर मोदी, घर घर मोदी
इन चुनावों में यह फर्क था कि ना अच्छे दिनों की बात हो रही थी और ना ही विकास की. अखबार "हर हर मोदी, घर घर मोदी" वाले नए नारे से भरे रहे.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
मैं भी चौकीदार
मोदी ने "चौकीदार" का नारा दिया तो विपक्ष ने "चौकीदार चोर है" का. मोदी समर्थक "मैं भी चौकीदार" के नारे के साथ सोशल मीडिया पर उतर आए. लोग अपने नाम के आगे चौकीदार लगाने लगे.
2014 में दिए गए इस नारे का अपनी दूसरी पारी में मोदी ने थोड़ा विस्तार कर दिया और इसे.. "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" बना दिया.
तस्वीर: IANS/Twitter/@narendramodi
अंग्रेजी में भी
सिर्फ हिंदी में ही नहीं, नरेंद्र मोदी ने अंग्रेजी में भी कई नारे दिए हैं जैसे स्टार्ट अप इंडिया स्टैंड अप इंडिया, मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस, जीरो डिफेक्ट जीरो इफेक्ट.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Das
16 तस्वीरें1 | 16
आत्मनिर्भर भारत या जुमलेबाजी?
अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "आत्मनिर्भर भारत" अभियान शुरू किया है. इस अभियान के तहत कच्चा माल विदेशों से आयात कराने की जगह, उसे देश में ही बनाने के लिए, स्वदेशी माल इस्तेमाल करने के लिए कंपनियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. 2014 में नरेंद्र मोदी ने कुछ इसी तरह के संकल्प के साथ "मेक इन इंडिया" अभियान की शुरुआत की थी. प्रोफेसर गांगुली का मानना है कि यह नया अभियान नारेबाजी से ज्यादा कुछ भी नहीं है, "सच कहूं तो, मेरे ख्याल से यह बेवकूफी भरी और बेतुकी नारेबाजी है, बस. यह लोकलुभावन जुमलेबाजी है, जिसका शायद ही कोई असर है या शायद बिलकुल कोई असर ना हो."
1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब भी आयात घटाने और स्वदेशी सामान के इस्तेमाल पर जोर दिया गया था. 1947 से 1991 तक सत्ता में आई हर सरकार इसी मॉडल पर चलती रही. लेकिन निजी क्षेत्र की कंपनियों को इससे सिर्फ नुकसान ही हुआ और यह मॉडल भारत को वैश्विक स्तर पर आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में नाकाम रहा. 1991 में जब भारत दिवालिया होने की कगार पर खड़ा था, तब भारत सरकार को बाजार खोलने पर मजबूर होना पड़ा. प्रोफेसर कृष्णा का कहना है, "अगर आत्मनिर्भरता का मतलब कंपनियों को अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करना है, तो ठीक है. लेकिन अगर इसे आयात की जगह लेने को कहा जा रहा है, तो यह चिंता का विषय है. अतीत में भारत का तजुर्बा दिखाता है कि यह विनाशकारी साबित होगा." प्रोफेसर कृष्णा कहते हैं कि सिर्फ उम्मीद ही की जा सकती है कि चीन का बहाना बना कर देश को एक बार फिर अतीत की ओर धकेल नहीं दिया जाएगा.
भारत-चीन सीमा पर कई दशक बाद हुई हिंसा के चलते पूरी दुनिया की नजर अब लद्दाख पर है. आइए जानते हैं कि इसके दुर्गम पहाड़ों पर जमीन को लेकर कितना संघर्ष है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
बर्फ ही बर्फ
दिल्ली से लेह की उड़ान के 15 मिनट के भीतर ही हिमालय पर्वत श्रृंखला दिखनी शुरू हो जाती है.अपने अनछुए पहाड़ी सौंदर्य, खास संस्कृति और भौगोलिक स्थिति के कारण रणनीतिक महत्व वाले लद्दाख को 31 अक्टूबर 2019 को भारत के एक केंद्र शासित क्षेत्र का दर्जा मिला.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
शिवालिक और पीरपंजाल
सबसे पहले दिखाई देते हैं शिवालिक और पीरपंजाल पर्वत. इस तस्वीर में आप जहां तक देख सकते हैं, यह सब भारतीय हिमालय का हिस्सा है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
हिमालय का दृश्य
यहां विमान दुनिया के कुछ सबसे ऊंचे पहाड़ों के ऊपर से उड़ता है. जहां तक दिखता है एक के बाद एक कई ज्ञात और अज्ञात चोटियां दिखती हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
जितना दुर्गम, उतना ही संवेदनशील
हिमालय के इस सुदूर क्षेत्र को लेकर पड़ोसी देशों के बीच संघर्ष रहा है. इस घाटी के तमाम हिस्सों में भारत, चीन और पाकिस्तान की सीमाएं हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
युद्ध वहीं है, जहां लोग नहीं हैं
यहां दिख रहे काराकोरम रेंज में स्थित है सियाचिन ग्लेशियर. यहीं से नुब्रा नदी निकलती है जो आगे चलकर सिंधु नदी से मिलती है. चीन और पाकिस्तान दोनों तरफ से कश्मीर में सियाचिन के रास्ते घुसा जा सकता है.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
नीली झील
करीब 15,000 फीट पर खारे पानी की झील, जिसे लद्दाखी में मुरारी कहते हैं. इसके आगे पैंगोंग सो झील दिखती है, जो 1962 के भारत-चीन युद्ध की धुरी बनी थी.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
लद्दाख-तिब्बत का पठार
लद्दाख-तिब्बत के ठंडे रेगिस्तान में प्रवेश करते हुए ऐसा नजारा दिखता है. चारों ओर स्लेटी रंग है. कहीं-कहीं थोड़ा हरा भी दिख जाता है. इन्हीं हिस्सों में लोग रहते हैं.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
केवल सेना है
इस निर्जन इलाके में कोई पेड़ नहीं हैं, बहुत कम ऑक्सीजन है. लेकिन इलाके की अहमियत इतनी है कि यहां जिस देश की जितनी अधिक सेना होगी, युद्ध की स्थिति में उसे उतना ही फायदा होगा.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
लद्दाख का अर्थ है शांति
विमान लेह के आकाश में प्रवेश कर चुका है. तनाव के समय में यहां के आकाश में लड़ाकू विमान घंटों उड़ान भर रहे हैं. लेकिन यह लेह की आम तस्वीर नहीं है. लेह का अर्थ है शांति और सभी धर्मों का सह-अस्तित्व.