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क्या जरदारी बेटे बिलावल की राह में रोड़ा हैं?

८ जून २०१८

जिस तरह भारत में अगले आम चुनावों को लेकर नजरें गांधी परिवार के वारिस राहुल गांधी पर टिकी हैं, ठीक उसी तरह पाकिस्तान में भुट्टो खानदान के चश्मो चिराग बिलावल भुट्टो की किस्मत दांव पर है जहां इस साल चुनाव होने हैं.

Pakistan ehemaliger Staatsoberhaupt Asif Ali Zardaris Rückkehr
तस्वीर: DW/R. Saeed

29 साल के बिलावल भुट्टो जरदारी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के मुखिया हैं. उनकी अगुवाई में पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में उतर रही है. वह जनता के बीच उसी तरह का समर्थन और जनाधार पाने की जद्दोजहद कर रहे हैं जो उनकी मां और दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं बेनजीर भुट्टो को 2007 में निर्वासन से वतन वापसी पर मिला था.

पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के नेताओं को उम्मीद है कि बिलावल को लोगों का समर्थन मिलेगा. पाकिस्तानी सीनेट में विपक्ष की नेता शेरी रहमान कहती हैं, "हमें उम्मीद है कि बिलावल के नेतृत्व में हमारी चुनावी मुहिम से देश की बड़ी युवा आबादी जुड़ेगी और देश में बढ़ते चरमपंथ, कुशासन और लोकतंत्र विरोधी कदम को पटलने के लिए अपना समर्थन देगी."

ये हैं सत्ता की दौड़ में शामिल 

सिमटता जनाधार

पाकिस्तान में यह बहस भी हो रही है कि बिलावल की चुनावी मुहिम में उनके पिता और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी फायदेमंद साबित होंगे या फिर एक बाधा. कुछ विश्लेषकों और पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि भ्रष्टाचार के बड़े आरोपों के कारण जरदारी की दागदार छवि से पार्टी को चुनावों में नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वी और विपक्ष के नेता इमरान खान भ्रष्टाचार के मुद्दे को जोर शोर से उठा रहे हैं.

पाकिस्तान पीपल्स पार्टी कभी देश की सबसे लोकप्रिय पार्टी हुआ करती थी. लेकिन अब वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रासंगिकता खो रही है. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि चुनावों के बाद क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी में गठबंधन हो सकता है.

ऐसी गठबंधन वार्ताओं में पूर्व राष्ट्रपति जरदारी अहम भूमिका निभा सकते हैं. हालांकि दोनों ही पार्टियां संभावित गठबंधन के बारे में अभी ज्यादा खुल कर बात नहीं करतीं, लेकिन इसकी संभावना से वे इनकार भी नहीं करती हैं. राजनीतिक विश्लेषक आमिर अहमद खान कहते हैं, "जरदारी चुनावी मुहिम से ज्यादा अपनी भूमिका चुनावों के बाद उभरने वाले परिदृश्य में देखते हैं."

दुनिया की नाक में दम करने वाला फाटा 

जरदारी हत्या और भ्रष्टाचार के आरोपों में कुल 11 साल जेल में रहे हैं. हालांकि उन्हें कभी किसी आरोप में दोषी करार नहीं दिया गया और वह खुद को निर्दोष बताते हैं. लगातार आठ साल जेल में रहने के बाद उन्हें 2004 में रिहा किया गया.

तीन साल निर्वासन में रहने के बाद वह 2007 में अपनी पत्नी बेनजीर भुट्टो के साथ पाकिस्तान लौटे. लेकिन इसके तीन महीने बाद एक चुनावी रैली में बेनजीर की हत्या कर दी गई. इसके बाद पार्टी को चुनावों में सहानुभूति लहर का फायदा हुआ और पार्टी सत्ता में आई. जरदारी पाकिस्तान के राष्ट्रपति चुने गए और उनके खिलाफ सभी आरोप खत्म हो गए.

जरदारी पांच साल तक राष्ट्रपति रहे, लेकिन अपनी छवि को नहीं बदल पाए. भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण आज भी उन्हें अकसर 'मिस्टर टेन पर्सेंट' कहा जाता है. पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के पूर्व सीनेटर फरतुल्लाह बाबर कहते हैं, "मुझे लगता है कि आसिफ जरदारी के खिलाफ एक बड़ी प्रोपेगैंडा मुहिम चलाई गई है जिसका वह शिकार रहे हैं. अगर उन पर लगा एक भी इल्जाम सही होता तो उन्हें कसूरवार ठहराए बिना 11 साल जेल में नहीं गुजारने पड़ते."

सेना रिश्ते

राष्ट्रीय स्तर पर पीपीपी के जनाधार में पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ ने सेंध लगाई है लेकिन सिंध प्रांत में वह अपना जनाधार बनाए हुए है. इस साल मार्च में हुए गैलप के एक सर्वे में 17 फीसदी रेटिंग के साथ पाकिस्तान पीपल्स पार्टी को तीसरे नंबर की पार्टी बताया गया है जबकि इस सर्वे में तहरीक ए इंसाफ को 24 फीसदी और सत्ताधारी पीएमएल (एन) को 36 फीसदी रेटिंग दी गई है. ऐसे में, पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और तहरीक ए इंसाफ के बीच गठबंधन की संभावना पैदा होती है.

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पाकिस्तान में कुछ लोग यह भी मानते हैं कि जरदारी चुपचाप सेना के साथ अपने रिश्ते बेहतर कर रहे हैं. यह संदेह मार्च में उस वक्त और बढ़ गया जब पीपीपी ने सीनेट का नेतृत्व करने का मौका छोड़ दिया और सेना से जुड़े एक निर्दलीय सीनेटर को संसद के ऊपरी सदन का चेयरमैन चुना गया.

राजनीतिक विश्लेषक आमिर अहमद खान कहते हैं, "जरदारी सोचते हैं कि जब सरकार बनाने की बारी आएगी तो उनके जैसे व्यक्ति की जरूरत पड़ेगी. और वह किंग मेकर बन जाएंगे."

इमरान को लाने की तैयारी?

हाल के दिनों में पाकिस्तान ने काफी सियासी उथल पुथल देखी है. भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा. अदालत ने उन्हें चुनाव लड़ने और अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद पर रहने से भी रोक दिया है.

सेना पर आरोप लग रहे हैं कि वह नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) को अस्थिर करना चाहती है और इमरान खान को सत्ता में लाने का रास्ता तैयार कर रही है.

फरतुल्लाह बाबर कहते हैं, "हम चुनाव से पहले होने वाली तिकड़मों को देख रहे हैं जहां सभी पार्टियों के लोग एक ही पार्टी में जा रहे हैं." हाल में नवाज शरीफ ने कहा कि फौज उनकी पार्टी के नेताओं पर इमरान खान की पार्टी में शामिल होने का दबाव डाल रही है.

वहीं, पाकिस्तान में दशकों तक राज करने वाली पाकिस्तानी सेना राजनीति में किसी भी तरह के दखल से इनकार करती है. इमरान खान भी सेना के साथ किसी तरह की साठगांठ से इनकार करते हैं.

एके/ओएसजे (रॉयटर्स)

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