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क्या जर्मनी का हो सकता है इस्लाम

३० अप्रैल २०१३

"इस्लाम इस बीच जर्मनी का भी है," इस बयान के लिए पूर्व जर्मन राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ की तारीफ तो हुई, लेकिन कई लोगों ने उनकी आलोचना भी की. जर्मनी के आधे लोग मानते हैं कि इस्लाम पश्चिमी देशों में खपता नहीं है.

फ्रैंकफर्ट में मस्जिद का खुला दिनतस्वीर: picture-alliance/dpa

यह नतीजे निकलें हैं बेर्टेल्समान प्रकाशन के एक जनमत सर्वेक्षण से. इसके लिए जर्मनी में 14,000 लोगों से धर्म और समाज को लेकर सवाल पूछे गए. 85 प्रतिशत जर्मन या तो पूरी तरह या फिर कुछ हद तक मानते हैं कि सारे धर्मों के प्रति खुली सोच अपनाना जरूरी है. ज्यादातर धर्मों के बारे में लोगों का मानना है कि इससे उनके समाज को फायदा हो रहा है. ईसाई धर्म के अलावा बौद्ध धर्म और यहूदी धर्म को जर्मन अपने समाज के लिए अच्छा मानते हैं. इस्लाम को लेकर 51 फीसदी जर्मनों का मानना है कि यह खतरा पैदा कर सकता है.

मीडिया में इस्लाम

शोध के लेखक डेटलेफ पोलाक का मानना है कि मुसलमानों और ईसाइयों के बीच कम संपर्क इस तरह की सोच की वजह है. पूर्वी जर्मनी में लोग इस्लाम से पश्चिम के मुकाबले ज्यादा खतरा महसूस करते हैं जबकि पूर्व पूर्वी जर्मनी के राज्यों में केवल दो फीसदी मुसलमान रहते हैं.

कोलोन शहर में मस्जिदतस्वीर: DW/U. Hummel

देखा जाए तो बौद्ध, हिंदू, और यहूदी धर्म के बारे में लोगों की राय इस्लाम के मुकाबले सकारात्मक है लेकिन इन धर्मों के समुदायों से जर्मन जनता का संपर्क इस्लाम के मुकाबले और भी कम है. पोलाक का मानना है कि इसमें मीडिया का भी दोष है. "बौद्ध धर्म या हिंदुओं के बारे में मीडिया यह छवि देती है कि यह शांतिपूर्वक धर्म है जबकि इस्लाम को कट्टरपंथियों और बलप्रयोग से जोड़ा जाता है."

अपनी आलोचना करते मुसलमान

जर्मनी में मुसलमानों के केंद्रीय परिषद के वरिष्ठ अधिकारी आयमान माजयेक भी मीडिया को काफी हद तक जिम्मेदार ठहराते हैं, "मीडिया में हम अकसर इस्लाम का एक बिगड़ा चित्रण देखते हैं." टीवी या अखबारों में ज्यादातर चरमपंथी गुटों की बातचीत होती है. ज्यादातर मामलों में चरमपंथ और धर्म को अलग नहीं करने की कोशिश होती है. मिसाल के तौर पर बॉस्टन मैरेथन के पीछे इस्लामी नेट्वर्क का हाथ होने की बात हो रही थी. हालांकि माजयेक खुद भी मानते हैं, "मुसलमानों को तैयार हो जाना चाहिए कि वह समाज में और शामिल हों और यह साफ करना चाहिए कि वह इस देश के साथ हैं."

कई सालों से जर्मनी में राजनीतिक और धार्मिक प्रतिनिधी कोशिश कर रहे हैं कि धर्मों के बीच संपर्क बढ़े. जर्मनी में 1997 से इस्लामी संगठन "मस्जिद के खुले दरवाजे" का दिन मना रहे हैं जिसमें सारे धर्मों के लोग मस्जिद देख सकते हैं. यहूदी धर्म के प्रतिनिधि भी अलग अलग दिनों पर अपने सिनोगॉग में लोगों को बुलाते हैं.

छवि में दिक्कत

जर्मनी ही नहीं, बल्कि कई ऐसे देश हैं जहां इस्लाम को खतरा माना जाता है. जितने लोगों से सवाल पूछे गए, उनमें से इस्राएल में 76 प्रतिशत लोग, स्पेन में 60, स्विट्जरलैंड में 50 और अमेरिका में 42 प्रतिशत लोग इस्लाम को खतरा मानते हैं. दक्षिण कोरिया में केवल 16 प्रतिशत लोगों को इस्लाम खतरा लगता है जबकि भारत में यह आंकड़ा करीब 30 प्रतिशत है.

इस्लाम की छवि का जिम्मेदार मीडियातस्वीर: picture-alliance/dpa

हालांकि फ्रांस, ब्रिटेन और नीदरलैंड्स में इस्लाम को जर्मनी के मुकाबले ज्यादा सकारात्मक रूप से देखा जाता है. धार्मिक समाज शास्त्र पढ़ा रहे डेटलेफ पोलाक का मानना है कि इन देशों में मुस्लिम ज्यादा पढ़े लिखे हैं. "जर्मनी के प्रवासियों में से कम ही उच्च स्तर के शिक्षित हैं. इससे उनकी छवि पर असर पड़ता है, खास तौर पर मुसलमान प्रवासियों पर." जर्मनी के आसपास कई देशों में शिक्षा की संभावनाएं बेहतर हैं और उच्च स्तर की शिक्षा पाने वाले प्रवासियों की संख्या भी जर्मनी से ज्यादा है.

बेर्टेल्समान प्रकाशन का शोध निराशाजनक तो है लेकिन इसमें कुछ सकारात्मक बातें भी हैं. शोध का कहना है कि जर्मनी में ईसाई, मुसलमान और बिना धर्म वाले लोगों में से ज्यादातर का मानना है कि लोकतंत्र शासन का एक अच्छा तरीका है. केवल मुसलमान और बिना धर्म वालों के बीच यह आंकड़ा 80 प्रतिशत है. ईसाइयों में से 90 प्रतिशत लोकतंत्र को अहम मानते हैं और ज्यादातर लोग धर्म और राष्ट्र के प्रशासन को अलग रखने से सहमत हैं.

रिपोर्टः मार्कुस लुटिके/एमजी

संपादनः निखिल रंजन

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