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क्या जर्मनी में भी स्लम हैं?

फोल्कर वागेनर
१९ दिसम्बर २०१७

जर्मनी में ब्राजील की तरह फावेलास यानी झुग्गी बस्तियां नहीं हैं. यहां गरीबी भी है और बेघर लोग भी हैं, लेकिन वे पहली नजर में नहीं दिखते. उन्हें ध्यान से खोजना पड़ता है.

Obdachlosigkeit in Köln
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Berg

जर्मनी में कल्याणकारी राज्य है. जो लोग खुद अपनी देखभाल नहीं कर सकते उनकी देखभाल करने के लिए सरकारी, स्थानीय और चर्च का अधिकांश धनी देशों के मुकाबले घना नेटवर्क है. अर्थव्यवस्था अच्छी हालत में है, बेरोजगारी सिर्फ छह प्रतिशत है और ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर है, बिजली और खाने-पीने की चीजों की कीमत इतनी कम है जितनी शायद ही किसी दूसरे यूरोपीय देश में हो. इसके बावजबूद जर्मनी में भी गरीबी है. भले ही यहां स्लम न हों, क्योंकि 24 घंटे पानी की सप्लाई, बिजली, गंदे पानी की निकासी और कचरा उठाने की सर्विस हर घर में है, चाहे वह महंगे घर हों या किफायती मकान.

गरीबी की वजह

  • बेघर लोगों की मदद करने वाली संस्था के अनुसार इस समय जर्मनी में करीब 860,000 लोगों के पास घर नहीं है. कुछ लोग सड़कों पर रात गुजारते हैं जबकि करीब 800,000 लोग या तो दोस्तों के यहां रहते हैं या आपात ठिकानों पर.
  • छत के बिना खुले आसमान के नीचे रात गुजारने वाले 52,000 लोग हैं. ये उन लोगों का छह प्रतिशत है जिन्हें बेघर माना जाता है.
  • 440,000 शरणार्थियों को मकान पाने का हक है, लेकिन मकान की कमी के कारण फिलहाल शिविरों में रह रहे हैं.
  • खास तौर पर महिलाएं, परिवार और आप्रवासी प्रभावित हैं. उनके लिए किराया नहीं चुका पाने के कारण घर खोने का खतरा बना रहता है.
तस्वीर: Markus Seidel
  • इसकी वजह सामाजिक मकान निर्माण के क्षेत्र से सरकार का बाहर निकल जाना भी है. 30 साल पहले पुराने पश्चिम जर्मनी में 40 लाख सरकार मकान हुआ करते थे. इस बीच एकीकरण के बाद बड़े हो गए जर्मनी में सिर्फ 13 लाख मकान हैं. किफायती मकान पाना मुश्किल हो गया है. बाजार किराया तय करता है.
  • खासकर छोटे मकान बहुत ही महंगे हैं. उनकी बहुत मांग है. छात्रों के अलावा इस बीच पौने दो करोड़ लोग अकले रहते हैं. और जर्मनी में एक या दो कमरों की मकानों की संख्या सिर्फ 52 लाख है. नतीजा है किराये में भारी वृद्धि.
  • हालांकि यूरोप में मुक्त आवाजाही है लेकिन पूर्वी यूरोप के जिन लोगों के पास जर्मनी में काम नहीं है, उन्हें सामाजिक भत्ता भी नहीं मिल सकता. अगर वे जर्मनी में पांच साल रहे हों एक साल सामाजिक सुरक्षा बीमा के सदस्य रहे हों फिर बात अलग है. अगर ऐसा नहीं है तो उन्हें कोई सुरक्षा नहीं.
  • जिसके पास घर नहीं होता या जो बेघर हो जाते हैं वे आम तौर पर बड़े शहरों का रुख करते हैं. राजधानी बर्लिन में ही हिकारत से पेनर कहे जाने वाले इन लोगों की संख्या 10,000 से ज्यादा है. सदी की शुरुआत में ये संख्या 2000 थी. शहरों में नौकरी पाने के अवसर भी ज्यादा हैं और भीख मांग कर गुजारा करने वालों के लिए पर्यटक भी जो आसानी से दान देते हैं. 60 फीसदी भिखारी रुमानिया, बुल्गारिया या पोलैंड के हैं.

लेकिन यदि तापमान माइनस के नीचे चला जाए तो ये समय बेघर लोगों के लिए सबसे बुरा समय होता है. गर्म कमरों और अतिरिक्त रिहायशी इंतजामों के बावजूद 1990 में करीब 300 लोगों की ठंड से मौत हो गई थी, वह भी धनी जर्मनी में.

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