चुनावी साल में जर्मन अर्थव्यवस्था यूं तो बेहद ही ठोस नजर आ रही है लेकिन क्या वाकई यहां सबकुछ ठीक चल रहा है. डीडब्ल्यू के आंद्रियास बेकर ने इसकी विस्तार से समीक्षा की है.
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पहली झलक में सब कुछ ठीक ही नजर आता है. जर्मन अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ रही है, दशकों बाद बेरोजगारी भी अपने निचले स्तर पर है और कर राजस्व की बेहतर दर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वित्त मंत्रालय ने एक और साल बिना कोई नया कर्ज कर्ज लिये पूरा कर लिया. वहीं कंपनियां भी आशावान है, इनके कार से लेकर मशीन, दवा जैसे सभी उत्पाद दुनिया भर में बेस्टसेलर बने हुये हैं. अर्थव्यवस्था की इस रफ्तार को देखते हुये कइयों ने तो कर कटौती के सपने देखना भी शुरू कर दिया है लेकिन कुछ लोग शंकाएं भी जाहिर कर रहे हैं.
आधारभूत ढांचा
इस बेहतरीन समय में एक गंभीर समस्या भी नजर आ रही है और वो है देश का बुनियादी ढांचा. देश की सड़कें, पुल और स्कूल जर्जर हालत में है. साल 2014 से सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की स्थिति का परीक्षण कर रहे एक एक्सपर्ट कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में इसे देश की "बुनियादी कमजोरी" बताया है. जर्मन मोटर चालकों के क्लब एडीएसी के मुताबिक हर दिन सड़कों पर 1,900 से अधिक ट्रैफिक जाम लगते हैं, रेलव किसी भी दिन बिना देरी के नहीं चलती.
हर 10 में से एक बच्चे को डे-केयर में जगह पाने के लिये मशक्कत करनी होती है, कानूनी अधिकार होने के बावजूद माता-पिता बच्चे के लिये डे-केयर में जगह नही ढूंढ पाते. देश के 1041 सरकारी स्विमिंग पूल में से अधिकतर बंद हो चुके हैं और बचेखुचे बंद होने की कगार पर हैं. एक्सपर्ट कमीशन की रिपोर्ट में ट्रेड यूनियनों ने शिकायत दर्ज कराते हुये कहा था "सरकारी खर्च में कटौती की गई है, जिसके चलते कई सेवाएं बेकार हो गई हैं या उनका निजीकरण हो गया है. उप कर को बढ़ा दिया गया है और अब शुल्क भी वसूला जाने लगा है."
शिक्षा पर खर्च
ओईसीडी देशों के मुकाबले जर्मनी शिक्षा पर बेहद ही कम खर्च करता है. ओईसीडी दुनिया के 35 अमीर देशों का समूह है. ये अमीर देश अमूमन अपने कुल आर्थिक उत्पादन का 5.2 फीसदी हिस्सा शिक्षा पर खर्च करते हैं वहीं जर्मनी महज 4.3 फीसदी का निवेश करता है. डिजिटल इन्फ्रास्टक्चर में खासकर इंटरनेट की उपलब्धता और इसकी रफ्तार में भी यहां खासा अंतर नजर आता है. बेहतर कारोबारी माहौल मुहैया कराने वाले टॉप 10 देशों की सूची से जर्मनी अब बाहर हो चुका है. तो क्या अब भी माना जाये की सब कुछ ठीक है.
इन सब के बीच यह भी एक सच है कि मतदाता इन आर्थिक आंकड़ों के आधार पर वोट डालने नहीं जाते. उनकी अपनी निजी स्थिति किसी भी सरकारी आंकड़ें से ज्यादा अहम होती है. देश के तमाम मतदाता मजदूरी में इजाफे की उम्मीद कर रहे हैं जो फिछले तीन सालों में महज 2 फीसदी ही बढ़ी है और यह इन चुनावों का अहम मुद्दा भी है
सिकुड़ता मिडिल क्लास
मौजूदा हालातों से जर्मन मध्यम वर्ग भी चिंतित है. मध्यम वर्ग पिछले 30 सालों से सिकुड़ रहा है. ड्यूसबर्ग-एसेन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक रिपोर्ट मुताबिक जर्मनी में कम आय और ज्यादा आय वाले लोगों के औसत में फर्क बढ़ता जा रहा है. यूरोपीय संघ के अन्य देशों के मुकाबले जर्मनी के पास एक बड़ा सेक्टर ऐसा भी है जहां काम करने पर कम पैसे मिलते हैं. यहां के 23 फीसदी लोग कम पैसे पर काम करते हैं. इटली, फ्रांस, डेनमार्क और फिनलैंड में महज 10 फीसदी ही ऐसे सेक्टर हैं. बेल्जियम और स्वीडन में यह सेक्टर सिर्फ 5 फीसदी है.
इतना ही नहीं, देश के बेरोजगारी आंकड़ें भी अलग ही कहानी कहते हैं. साल 2017 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में महज 25 लाख लोग ही बेरोजगार हैं, जो साल 1991 के बाद से अब तक का सबसे निचला स्तर है. लेकिन सरकारी मदद पर देश के तकरीबन 62 लाख लोग निर्भर करते हैं. साल 2005 में "एजेंडा 2010" के तहत श्रम और कल्याण सुधार लागू किये गये थे लेकिन इससे सामाजिक लाभ लेने वाले लोगों की संख्या उतनी कम नहीं हुई जितनी कि बेरोजगारों की संख्या घटी है. ऐसे में सरकार पर दबाव बना हुआ है.
इस चुनावी साल में आर्थिक सवाल बेहद ही अहम है. क्या अब सरकार को बुनियादी क्षेत्र और शिक्षा पर और अधिक निवेश करना चाहिये? या अगली मंदी का इंतजार करना चाहिये? या सरकार को कर में कटौती करनी चाहिये? इनके अलावा ऐसे कई सवाल हैं जो जर्मनी की बेहतर दिखने वाली अर्थव्यवस्था पर सवाल उठाते हैं.
ये मुद्दे करेंगे जर्मन चुनाव का फैसला...
जर्मन चुनावों की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. चुनाव में एक महीने से कम का समय बचा है, एक नजर यहां के प्रमुख राजनीतिक दलों और इनके मुद्दों पर..
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सीडीयू-सीएसयू
इस पार्टी की संसदीय दल की नेता चांसलर अंगेला मैर्केल है. वह क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी सीडीयू (सीडीयू) की अध्यक्ष भी हैं. रूढ़िवादी नीतियों वाली दोनों पार्टियां जर्मनी के सबसे अहम राजनीतिक दलों में शामिल है. इसका रंग काला है. पिछले चुनावों में इसे 41.5 फीसदी वोट मिले थे.
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सीएसयू
एक समझौते के तरह चांसलर मैर्केल की क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीडीयू) बवेरिया प्रांत के अलावा पूरी जर्मनी में सक्रिय है. बवेरिया में उसकी सहोदर पार्टी सीएसयू है जो वहां दशकों से सत्ता में है. बवेरिया के मुख्यमंत्री हॉर्स्ट जेहोफर पार्टी के अध्यक्ष हैं.
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सीडीयू के बड़े नेता
सीडीयू के बड़े नेताओं में पूर्व चांसलर कोनराड आडेनावर सबसे प्रमुख हैं. इसके बाद नाम आता है लुडविष एरहार्ड का और पूर्व चांसलर हेल्मुट कोल का. कोल के कार्यकाल में जर्मनी का एकीकरण हुआ था.
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चुनावी वादे
अपने चुनावी घोषणापत्र में सीडीयू-सीएसयू ने बेरोजगारी घटाने, कर कटौती, एकजुटता कर खत्म करने, बच्चों के लिए दिये जाने वाले भत्ते में बढ़ोतरी करने और पहली बार संपत्ति खरीदने वालों को अनुदान देने की बात कही है.
इस पार्टी के नेता मार्टिन शुल्त्स हैं. कामगारों और ट्रेड यूनियनों के बीच लोकप्रिय यह पार्टी जर्मनी की सबसे पुरानी पार्टी है. मूल रूप से वामपंथी होने के कारण इसके लिए लाल रंग का प्रयोग होता है. पिछले चुनावों में इसे 25.7 फीसदी वोट मिले थे.
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एसपीडी के बड़े नेता
विली ब्रांट एसपीडी की ओर से पहले चांसलर थे. इसके बाद उनके उत्तराधिकारी बने हेल्मुट श्मिट. इन दोनों नेताओं को जर्मन राजनीति में आज भी बेहद सम्मान से देखा जाता है. पार्टी के गेरहार्ड श्रोएडर भी देश के चांसलर रहे हैं.
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चुनावी वादे
एसपीडी के चुनावी अभियान का केंद्र बिंदु सामाजिक न्याय है. यह मजबूत सामाजिक ढांचे की वकालत करती है. पार्टी ज्यादा आय पर अधिक कर लगाकर सामाजिक समरसता लाने की पक्षधर है. इसके अतिरिक्त पार्टी का जोर आधारभूत सुविधाओं समेत शिक्षा की बेहतरी में निवेश करने पर है.
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वामपंथी पार्टी (डी लिंके)
डी लिंके पार्टी का गठन पार्टी ऑफ डेमोक्रेटिक सोशलिज्म (पीडीएस) और लेबर एंड सोशल जस्टिस संगठन (डब्ल्यूएसएसजी) के विलय के बाद हुआ. पार्टी उन उम्रदराज लोगों में बेहद लोकप्रिय है जो कभी जीडीआर का समर्थन करते थे. इसे दर्शाने के लिए मजेंटा रंग का इस्तेमाल किया जाता है.
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वामपंथी पार्टी के बड़े नेता
एसपीडी के पूर्व अध्यक्ष ऑस्कर लाफोन्टेन ने डी लिंके का नेतृत्व किया और आज भी पार्टी में अहम नेता हैं. कात्या किपिंग और बैर्न्ड रिक्सिंगर इस समय पार्टी के नेता हैं, लेकिन पार्टी सारा वागेनक्नेष्ट और डीटमार बार्च के नेतृत्व में संसद का चुनाव लड़ रही है.
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चुनावी वादे
अपने घोषणापत्र में डी लिंके पार्टी ने न्यूनतम वेतन को बढ़ाकर 12 यूरो प्रति घंटा करने, मिनीजॉब्स को खत्म करने, पेंशन को बढ़ाने, बुनियादी सेवाओं के लिये विशेष कर, किफायती आवास उपलब्ध कराने जैसे मुद्दों को शामिल किया है. इस पार्टी का देश के पूर्वी हिस्से में बड़ा जनाधार है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Steffen
ग्रीन पार्टी
ग्रीन पार्टी को उसके नाम के अनुरूप हरे रंग से दर्शाया जाता है. इसका मुख्य जनाधार पढ़े-लिखे और शहरी लोगों के बीच है. कुल मिलाकर इसका जनाधार बड़े शहरों में है. पिछले चुनावों में उसे 8.4 फीसदी वोट मिले थे. पार्टी का गठन पर्यावरण समर्थन आंदोलनों के चरम पर 1980 में हुआ था.
तस्वीर: gruene-nrw.de
ग्रीन पार्टी के बड़े नेता
जर्मन ग्रीन पार्टी अपनी करिश्माई नेता पेत्रा केली के कारण सुर्खियों में आयी. बाद में योश्का फिशर देश के लोकप्रिय विदेश मंत्री रहे.
तस्वीर: picture-alliance/Sven Simon
पार्टी का नेतृत्व
इस समय चेम ओएज्देमीर और जिमोने पेटर पार्टी के अध्यक्ष हैं. तस्वीर में ओएज्देमीर और कातरीन ग्योरिंग-एकार्ट नजर आ रहे हैं इनके नेतृत्व में पार्टी इस बार चुनाव मैदान में उतरी है. पार्टी पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समता से जुड़े मुद्दों को अपना वैचारिक आधार मानती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld
अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी)
हल्के नीले रंग से दिखाई जाने वाली यह पार्टी कम शिक्षित और कम आय वाले लोगों के बीच लोकप्रिय है. पिछले चुनावों में इसे 4.7 फीसदी वोट मिले थे. साझा मुद्रा यूरो को लेकर एक अकादमिक आलोचक समूह ने इसका गठन किया था.
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एएफडी के नेता और मुद्दे
पार्टी के नेता फ्राउके पेट्री और योर्ग म्यूथेन हैं. पार्टी को शरणार्थियों के मुद्दे पर सबसे अधिक लाभ हुआ है. पार्टी देश की ऊर्जा नीतियों में बदलाव की बड़ी पैरोकार है. हालांकि उग्र दक्षिणपंथी समझी जाने वाली पार्टी सख्त कानून व्यवस्था की पक्षधर है लेकिन आतंकवाद सरीखे बड़े मसले पर कोई टिप्पणी नहीं करती.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Karmann
फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी)
एफडीपी को कारोबारियों की पार्टी माना जाता है. अपनी उदारवादी नीतियों के कारण यह छोटे बड़े उद्यमियों के बीच अधिक लोकप्रिय है. पिछले चुनावों में पांच प्रतिशत न्यूनतम वोट नहीं पाने के कारण पार्टी बुंडेसटाग में दाखिल नहीं हो सकी थी लेकिन इस बार माहौल इसके पक्ष में नजर आ रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Meissner
एफडीपी के नेता और मुद्दे
पीले रंग में दर्शायी जाने वाली इस पार्टी के अध्यक्ष किस्टियान लिंडनर हैं. इसका गठन साल 1948 में हुआ था. यह पार्टी नागरिक अधिकारों और कर कटौती की पक्षधर है और साथ ही कारोबार में अत्यधिक सरकारी नियमन के खिलाफ है.