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क्या जैविक कृषि से दुनिया का पेट भरना संभव है

२३ अक्टूबर २०१७

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैज्ञानिक और शोधकर्ता हर दिन नये तरीके खोजने की जुगत में लगे हुए हैं. ऐसा ही एक तरीका है जैविक कृषि, लेकिन इसकी व्यावहारिकता पर सवाल हैं?

Afrika Bauer Symbolbild German food partnership
तस्वीर: Imago

जर्मनी समेत तमाम विकसित और विकासशील देशों में इन दिनों जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या से जुड़े संकटों पर चर्चा चल रही है. इन संकटों के समाधान के रूप में दुनिया जैविक कृषि की ओर देख रही हैं. लेकिन सवाल है कि दुनिया की महज एक फीसदी कृषि योग्य भूमि पर की जाने वाली ये जैविक कृषि कितनी कारगर है. क्या दुनिया की इतनी बड़ी आबादी का पेट जैविक खाद्य पदार्थों से भरना संभव हो सकेगा. इस खेती के समर्थक कहते हैं कि यह पद्धति फिलहाल उत्तम श्रेणी की नहीं मानी जा सकती लेकिन अब दुनिया के ग्लोबल फूड सिस्टम में बदलाव की दरकार है. ऐसे में पहला कदम वह होना चाहिए जो संसाधनों के बेहतर उपयोग के साथ-साथ कचरे को कम कर सके. हालांकि विरोधी मानते हैं कि जैविक पदार्थों पर आधारित कृषि व्यवस्था का पर्यावरण पर उतना ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जितना कि पारंपरिक कृषि का. 

संसाधनों का बेहतर प्रयोग

ऑर्गेनिक कृषि के प्रोफेसर एंदेरियास गाटिंगर के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर जैविक और पारंपरिक कृषि के तौर-तरीकों में लगभग 25 फीसदी का अंतर है. चूंकि जैविक कृषि बड़े स्तर पर प्राकृतिक कारणों पर निर्भर करती है, ऐसे भी फसल उत्पादन कम होने के आसार बने रहते हैं. इन्हीं कारणों के चलते तमाम शोधकर्ता जैविक कृषि को लेकर थोड़ा असमंजस भी दिखाते हैं. स्पेन के कृषि विशेषज्ञ जोस मिग्युल म्यूलेट कहते हैं, "अगर पूरी दुनिया के लिए जैविक कृषि के आधार पर उत्पादन हो तो दुनिया में कोई भी पेड़ नहीं बचेगा." हालांकि गाटिंगर इस काल्पनिक मंजर से इत्तेफाक नहीं रखते. वे कहते हैं, "अगर हम दुनिया के प्राकृतिक और खाद्य संसाधनों को सर्कुलर तरीके से इस्तेमाल करेंगे तो दुनिया के करीब 12 अरब लोगों को भोजन मुहैया कराया जा सकेगा. मसलन, अगर हम खाना बर्बाद करना कम कर दें, कीटनाशकों के तौर पर प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करें तो यह संभव हो सकेगा." इसके अलावा गाटिंगर मानते हैं कि हमें जमीन बंटवारे की बजाय जमीन साझा करने की ओर कदम बढ़ाने चाहिए. उन्होंने बताया कि कैसे आप जमीन के एक टुकड़े का इस्तेमाल खेती के साथ-साथ वन्य जीव संरक्षण और जलवायु नियंत्रित करने के लिए कर सकते हैं. उदाहरण देते हुए गाटिनगर कहते हैं कि जैविक खेती एक ही वक्त में अनाज उपलब्ध कराते हुए मिट्टी की उर्वरता बढ़ा सकती है साथ ही जैव विविधता और अन्य लाभों के बीच पूरे तंत्र में लचीलापन ला सकती है. 

पर्यावरण के अनुकूल

जैविक कृषि में कृत्रिम कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता, जो उपभोक्ताओं को आकर्षित करता है. लेकिन म्यूलेट मानते हैं कि जैविक फसल के उत्पादन में इस्तेमाल की गयी तमाम प्राकृतिक वस्तुएं भी पर्यावरण को नुकसान पहु्ंचातीं हैं. इस तरह के उत्पाद बड़ा विरोधाभास पैदा करते हैं. मसलन तांबा, जो अत्यंत प्रदूषणकारी है और आसानी से विघटित भी नहीं होता. गाटिंगर इस तर्क पर अफसोस जताते हुए कहते हैं कि तांबा बेवजह एक मुद्दा बना हुआ है क्योंकि तांबे का इस्तेमाल किसी बीमारी की रोकथाम के लिए ही किया जाता है. विशेषज्ञ तर्क देते हैं कि जैविक कृषि से जैव विविधताओं में इजाफा होता है जिसके चलते खराब मौसमी परिस्थितियों से निपटा जा सकता है. इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चर डेवलपमेंट (आईएफएडी) में कृषि विज्ञान के एक वरिष्ठ तकनीकी विशेषज्ञ वफा एल-खुरी ने बताया कि जैविक कृषि छोटे किसानों को अपने उत्पादन में विविधता लाने में मदद करती है जो जोखिम को घटा सकते हैं. जैविक कृषि में कम कीटनाशक और फर्टिलाइजर्स की जरूरत होती है इसकी बजाय यहां प्राकृतिक संसाधनों के जरिये ही कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है. इसके साथ ही जैविक कृषि, खाद्य सुरक्षा को भी प्रोत्साहन देता है क्योंकि पारंपरिक कृषि व्यवस्था छोटे किसानों पर अधिक दबाव डालती है.

बदलती खाद्य व्यवस्था

एल खुरी मानती है कि अगर एक बार कृषि उत्पाद, खाद्य व्यवस्था के इंडस्ट्रियल सिस्टम में प्रवेश कर जायें तो उनके लाभ कम हो जाते हैं. उन्होंने कहा, "यह पूरा खाद्यतंत्र अब नियंत्रण के बाहर होता जा रहा है और इसका संबंध सारे भोजन से हैं न कि सिर्फ जैविक उत्पादन से. एल-खुरी के मुताबिक, "भोजन का बर्बाद होना, जैविक उत्पादों की कम जानकरी और बजाय यह सोचना कि क्या खा रहे हैं, आजकल जोर इस बात पर होता है कि उत्पाद जैविक है या नहीं. लोगों को पता ही नहीं है कि वे क्या खरीद रहे हैं, बस ध्यान इस बात पर है कि जैविक पदार्थ होगा तो बेहतर होगा और यह पर्यावरण के लिए उपयुक्त है." एल-खुरी मानती हैं कि उपभोक्ताओं की रुचि यह जानने में अधिक होनी चाहिए कि यह खाद्यतंत्र काम कैसे करता है. गाटिंगर इस पर सहमति व्यक्त करते हुए कहते हैं, "क्यों जैविक कृषि पर यह सवाल पूछा जाता है कि क्या ये दुनिया को सभी लोगों को भोजन उपलब्ध करा सकेगी या नहीं, जबकि मौजूदा पारंपरिक कृषि ढांचा भी तो लोगों की भूख मिटाने में असफल साबित हो रहा है." उन्होंने कहा, "कोई भी कृषि प्रणाली या पद्धति दुनिया भर का पेट भरने में सक्षम नहीं है ऐसे में हमें यह विचार करना होगा कि वो प्रणाली अपनायें जो पर्यावरण पर कम नुकसान डालती है."

इरने बानोस रुइज/एए

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