जर्मन सीमा को शरणार्थियों के लिए खोले जाने के तीन हफ्ते बाद चांसलर अंगेला मैर्केल की लोकप्रियता गिरी और उन्हें अपनी पार्टी के अंदर भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. फेलिक्स श्टाइनर का कहना है कि मामला यहीं नहीं रुकेगा.
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क्या इतिहास फिर दोहराया जाएगा? अंगेला मैर्केल और उनके दो पूर्वगामी चांसलरों के बीच समानताएं हैं.
पहली समानता: वॉरसा के घेटो विद्रोह के स्मारक के सामने चांसलर विली ब्रांट का 1970 में घुटने टेकना. आज इसे ब्रांट सरकार की तनावशिथिलन की नीति का प्रतीक माना जाता है, लेकिन पहले से इसकी योजना नहीं बनाई गई थी. यह ब्रांट की अप्रत्याशित प्रतिक्रिया थी. बाद में उन्होंने कहा, "मुझे उस वक्त लगा कि सिर्फ सिर झुकाना काफी नहीं है."
ऐसी ही अप्रत्याशित प्रतिक्रिया में अंगेला मैर्केल ने तीन हफ्ते पहले हंगरी में बुरी हालत में रह रहे शरणार्थियों के लिए सीमा खोलने का फैसला लिया. और ब्रांट की तरह ही उन्होंने इसके बारे में पहले किसी से भी बात नहीं की. उन्होंने बस फैसला लिया क्योंकि उनकी भावना, उनकी अंतरात्मा ने कहा, ऐसा नहीं चल सकता.
आज बहुत कम लोगों को याद है कि विली ब्रांट की भी उनके कदम के लिए सिर्फ सराहना नहीं हुई थी. उस समय साप्ताहिक पत्रिका श्पीगेल ने पूछा था कि क्या ब्रांट को ऐसा करना चाहिए था? 41 प्रतिशत लोगों ने ब्रांट के फैसले को उचित बताया तो 48 प्रतिशत ने उसे बढ़ा चढ़ा बताया. इसका ऐतिहासिक कदम के रूप में सकारा्तमक मूल्यांकन बाद में हुआ. एक साल बाद विली ब्रांट को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया. इसे भी बहुत से जर्मनों ने उस समय की बहस के दौरान नहीं समझा, उसका स्वागत करने की तो बात ही छोड़ दें. क्या अंगेला मैर्केल भी ऑस्लो से फोन आने की उम्मीद कर सकती हैं?
कोई सरहद ना इन्हें रोके!
शरणार्थियों को देश में आने से रोकने के लिए हंगरी अपनी सीमा पर तार बाड़ लगा रहा है. पहले सर्बिया से लगी सीमा पर ऐसा किया गया और अब क्रोएशिया की सरहद को भी सील किया जा रहा है.
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हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने शुक्रवार को सरकारी रेडियो को दिए इंटरव्यू में कहा, "रात में ही सरहद बंद करने का काम शुरू कर दिया गया था. ऐसा लगता है कि हम किसी से मदद की उम्मीद नहीं कर सकते." ओरबान का इशारा यूरोपीय संघ की ओर था, जो शरणार्थियों के आने पर रोक लगाने के खिलाफ है.
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ओरबान ने बहुत साफ शब्दों में कहा, "हम अपनी सरहदों की रक्षा करेंगे." उन्होंने कहा कि रात में 600 सिपाहियों को सरहद पर तैनात कर दिया गया था, शुक्रवार को 500 अन्य सैनिक पहुंचेंगे और वीकेंड के अंत तक करीब 1800 सैनिक और 600 पुलिसकर्मी सरहद पर पहरा दे रहे होंगे.
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हंगरी और क्रोएशिया के बीच 330 किलोमीटर लंबी सरहद है. इसमें से 41 किलोमीटर में बाड़ लगाई जा रही है. बाकी के इलाके में द्रावा नदी बहती है, जिसे पार करना वैसे भी मुश्किल है. पिछले हफ्ते सर्बिया की सीमा को सील करने के बाद 13,000 शरणार्थी क्रोएशिया के रास्ते हंगरी में प्रवेश पाने की कोशिश कर रहे हैं. इन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है.
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बहुत से लोग जेब में इस तरह के पर्चे ले कर अपने घर से निकले हैं. वे नहीं जानते कि मंजिल तक कैसे पहुंचना है. जहां बाकी साथियों को जाते देखा, उनके साथ चल दिए. बस, ट्रेन, नाव, और पैदल, हर तरह से वे यूरोप तक का रास्ता तय कर रहे हैं.
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सर्बिया की सीमा पर जब कुछ लोगों ने बाड़ तोड़ कर देश में प्रवेश करने की कोशिश की तो पुलिस ने आंसू गैस और पानी की बौछार कर उन्हें रोका. पुलिस के बर्ताव से हंगरी की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी आलोचना हो रही है. कुछ दिन पहले हंगरी की ही एक पत्रकार का वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें उसे शरणार्थियों को मारते हुए देखा गया.
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बाड़ तोड़ कर आए लोगों ने पुलिस के साथ मुठभेड़ में अपना बचाव करने के लिए पत्थरबाजी भी की. दक्षिणपंथी विचारधारा रखने वाले हंगरी के प्रधानमंत्री ओरबान कह चुके हैं, "जो देश अपनी सरहद की रक्षा करना नहीं जानता, वह देश नहीं है."
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दूसरी समानता: गेरहार्ड श्रोएडर की सुधार नीति. आज जो यह सवाल पूछता है कि वित्तीय संकट के बावजूद जर्मनी की हालत अच्छी क्यों है, उसे अर्थशास्त्री 2003 से 2005 के बीच श्रोएडर की सुधार नीति की ओर इशारा करते हैं. उस समय के बाद लाखों नए रोजगार पैदा हुए हैं, अर्थव्यवस्था उफन रही थी, सरकारी खजाने में फिर से टैक्स आ रहा था. एसपीडी और ग्रीन पार्टी की सरकार ने जर्मनी को यूरोप के बीमार आदमी से महाद्वीप का आर्थिक मोटर बना दिया. यहां तक कि सीडीयू और एफडीपी भी जो सुधारों की हिम्मत नहीं जुटा पाए थे, गेरहार्ड श्रोएडर की सराहना करते हैं.
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श्रोएडर की त्रासदी यह है कि सुधारों के चलते उनका पद गया और अब अंगेला मैर्केल उनके काम के फल का मजा ले रही हैं. मजेदार बात यह है कि श्रोएडर के सुधार कार्यक्रम "एजेंडा 2010" की तारीफ करने वालों ने न तो कभी उनकी एसपीडी पार्टी को चुना था और न ही कभी चुनेंगे. एसपीडी ने भी अपने तत्कालीन चांसलर के सुधारों को भुला दिया है और उसकी मार से अब तक उबर भी नहीं पाई है. अब जब चांसलर की पार्टी में उनकी शरणार्थी नीति पर असंतोष दिख रहा है तो हालात एसपीडी की याद दिलाते हैं. तारीफ उनके अपने मतदाताओं की ओर से नहीं हो रही है और वे स्टेशनों पर शरणार्थियों का स्वागत करने वालों में भी नहीं थे.
दुनिया की सबसे कड़ी सीमाएं
धरती के सीने पर खींची गई सरहदें कई बार देशों के साथ साथ दिलों को भी बांट देती हैं. दुनिया के कुछ ऐसे ही कठोर बॉर्डर...
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Sultan
पाकिस्तान-भारत: 'लाइन ऑफ कंट्रोल'
1947 में ब्रिटिश शासकों से मिली आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध 1949 तक चला था. तभी से कश्मीर इलाके को दोनों देशों के बीच एक लाइन ऑफ कंट्रोल से बांटा गया. मुस्लिम-बहुल आबादी वाला पाकिस्तान अधिशासित हिस्सा और हिन्दू, बौद्ध आबादी वाला भारत का कश्मीर. इस लाइन के दोनों ओर पूरे कश्मीर को हासिल करने का संघर्ष आज भी जारी है. 1993 से अब तक यहां हुई हिंसा में 43,000 लोग मारे जा चुके हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Singh
सर्बिया-हंगरी: बाल्कन रूट के केंद्र में
2015 के शरणार्थी संकट के प्रतीक बन चुके हैं ऐसे दृश्य. सर्बिया और हंगरी के बीच बिछी रेल की पटरियों पर चलकर यूरोप में आगे का सफर करते लोग. सितंबर में इस क्रासिंग को बंद कर दिया गया लेकिन यूरोप के भीतर खुली सीमा होने के कारण ऐसे और रूटों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
तस्वीर: DW/J. Stonington
कोरिया का अंधा पुल
पिछले 62 सालों से दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच की सीमा बंद है और उस पर कड़ा सैनिक पहरा रहता है. दक्षिण कोरिया की तरफ से जाते हुए अगर आपको ऐसा साइन बोर्ड दिखे तो वहां से आगे बढ़ने के बाद आप वापस इस तरफ नहीं आ सकेंगे. 1990 के दशक के अंत से करीब 28,000 उत्तर कोरियाई अपनी सीमा पार कर दक्षिण कोरिया में आ चुके हैं.
तस्वीर: Edward N. Johnson
अमेरिका-मैक्सिको का लंबा बॉर्डर
मैक्सिको से लगी इस सीमा को अमेरिकी "टॉर्टिया वॉल" कहते हैं. यहां दीवार और बाड़ खड़ी कर करीब 1126 किलोमीटर लंबा बॉर्डर खड़ा किया गया है. पूरी पृथ्वी में इतनी कड़ी निगरानी वाली कोई दूसरी सीमा नहीं है. यहां करीब 18,500 अधिकारी बॉर्डर सुरक्षा में तैनात हैं.
तस्वीर: Gordon Hyde
हर दिन 700 को देश निकाला
कड़ी सुक्षा व्यवस्था के बावजूद गैरकानूनी तरीके से मैक्सिको से अमेरिका जाने वाले प्रवासियों की संख्या काफी बड़ी है. केवल 2012 में ही लगभग 67 लाख लोगों ने सीमा पार की. हर दिन ऐसी कोशिश करने वाले करीब 700 लोग मैक्सिको वापस लौटाए जाते हैं.
तस्वीर: DW/G. Ketels
मोरक्को-स्पेन: गरीबी और गोल्फ कोर्स
मोरक्को से लगे स्पेन के दो एन्क्लेव मेलिया और सिउटा को लोग यूरोप पहुंचने का रास्ता मानते हैं. अफ्रीका के कई देशों से लोग अच्छे जीवन की तलाश में इसी तरफ से यूरोप पहुंच कर शरण मांगने की योजना बनाते हैं. कई लोग सीमा पर बड़ी बाड़ों को चढ़ कर पार करने की कोशिश करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ब्राजील-बोलीविया: हरियाली किधर?
उपग्रह से मिले चित्र दिखाते हैं कि वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण ब्राजील के अमेजन के जंगल काफी कम हो गए हैं. पिछले पचास सालों में जंगलों के क्षेत्रफल में करीब 20 फीसदी कमी आई है. हालांकि अब बोलीविया में भी वनों की कटाई एक बड़ी समस्या बन कर उभर रही है.
तस्वीर: Nasa
हैती-डोमिनिक गणराज्य: एक द्वीप, दो विश्व
देखिए एक ही द्वीप पर स्थित दो देश इतने अलग भी हो सकते हैं. डोमिनिक गणराज्य पर्यटकों की पसंद रहा है जबकि हैती दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल है. बेहतर जीवन की तलाश में हैती से कई लोग डोमिनिक गणराज्य जाना चाहते हैं. बढ़ती मांग को देखते हुए 2015 में डोमिनिक गणराज्य ने आप्रवास के नियम सख्त किए हैं. तबसे करीब 40,000 हैतीवासी अपने देश वापस लौटे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Bueno
मिस्र-इस्राएल: एक तनावपूर्ण शांति
एक ओर रेगिस्तान तो दूसरी ओर घनी आबादी - यह सीमा मिस्र की मुस्लिम-बहुल और इस्राएल की यहूदी-बहुल आबादी के बीच खिंची है. करीब 30 सालों से चली आ रही शांति के बाद हाल के समय में सीमा पर कुछ हिंसक वारदातों और कड़ी सैनिक निगरानी की खबर आई है. 2013 के अंत तक इस्राएल ने इस सीमा पर बाड़ लगाने का काम पूरा कर लिया था.
तस्वीर: NASA/Chris Hadfield
तीन देश, एक सीमा
दुनिया के कुछ हिस्सों में सीमाओं पर कोई दीवार, बाड़ या सैनिक निगरानी नहीं होती. जर्मनी, ऑस्ट्रिया और चेक गणराज्य की इस सीमा पर एक तीन-तरफा पत्थर इसका सूचक है. शेंगेन क्षेत्र के इन तीनों देशों के बीच खुली सीमाएं हैं. फिलहाल शरणार्थी संकट के चलते यहां अस्थाई बॉर्डर कंट्रोल लगाना पड़ा है.
तस्वीर: Wualex
इस्राएल-वेस्ट बैंक: पत्थर की दीवार
साल 2002 से इस 759 किलोमीटर लंबी सीमा पर विवादित दीवारें और बाड़ें बनाई गई हैं. येरुशलम के इस घनी आबादी वाले क्षेत्र (तस्वीर) में दोनों के बीच कंक्रीट की नौ मीटर ऊंची दीवार बनाई गई है. 2004 में अंतरराष्ट्रीय अदालत ने फलिस्तीनी क्षेत्र में दीवार खड़ी करने को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Sultan
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एक समानता यह भी है कि बहुत ही जल्द ब्रांट और श्रोएडर का कार्यकाल भी संकट में घिर गया. संकट जो अंदरूनी विवादों, रूखी टिप्पणियों और उकसावों में दिखा और इस बार भी दिख रहा है. सीएसयू के प्रमुख हॉर्स्ट जेहोफर द्वारा हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर उरबान को बुलाना वैसा ही था जैसा ब्रांट के खिलाफ उनकी पार्टी के संसदीय दल के नेता की मॉस्को में की गई टिप्पणी. श्रोएडर को बास्ता चांसलर कहा जाता था और अब मैर्केल की भी एक टिप्पणी सामने आई है जिसमें उन्होंने कहा है, "मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि शरणार्थियों के मामले में मैं दोषी हूं, अब वे यहां आ गए हैं."
कुछ हफ्ते पहले एसपीडी पार्टी के अंदर इस बात पर बहस हो रही थी कि चांसलर मैर्केल के खिलाफ पार्टी का हारने वाला उम्मीदवार कौन हो, लेकिन अब शरणार्थी संकट की रोशनी में लगता है कि दुनिया की सबसे ताकतवर महिला का अवसान शुरू हो चुका है. सवाल सिर्फ यह है कि वे ब्रांट की तरह इस्तीफा देंगी या श्रोएडर की तरह दो साल बाद चुनाव हारेंगी.