माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर के जरिए आम लोग अपनी बात या विचार सार्वजनिक करते आए हैं लेकिन इन दिनों भारत में ट्विटर के खिलाफ दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक मुसलमान समुदाय के कई लोग मुहिम छेड़े हुए हैं. आखिर क्यों?
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दलित समाज से जुड़े कई लोगों का आरोप है कि ट्विटर उनके साथ भेदभाव कर रहा है. उनका आरोप है कि ट्विटर हजारों की संख्या में फॉलोअर होने के बावजूद उन्हें ब्लू टिक देने या उनके अकाउंट को वेरिफाई करने में आना-कानी कर रहा है. हालांकि ट्विटर का कहना है कि अकाउंट वेरिफाई करने को लेकर उसके कुछ नियम और शर्तें हैं.
"एक खास वर्ग को बढ़ावा"
पिछले कुछ दिनों से ट्विटर के खिलाफ तरह तरह के हैशटैग चलाने वाले प्रोफेसर दिलीप सी मंडल कहते हैं, "ट्विटर ने संवाद के मंच को अलोकतांत्रिक, मनमाना और वर्गीकृत कर दिया है. सोशल मीडिया साइट में कुछ लोग नेतृत्व करने की क्षमता में रहते हैं और कुछ लोग सिर्फ बात सुनने या पढ़ने तक ही सीमित हैं या वह भी नहीं, जबकि ट्विटर तो संवाद का बड़ा मंच है. ट्विटर के माध्यम से विचार बनते हैं. ऐसे में, पिछड़े तबके के ऐसे वक्ता हैं जिनके लाखों फॉलोअर हैं, लेकिन ट्विटर उन्हें ब्लू टिक या वेरिफाई नहीं करता."
दिलीप मंडल सवाल करते हैं कि आखिर भारत में ट्विटर की वेरिफाई करने की नीति क्या है और क्या उस नीति को पारदर्शिता के साथ लागू किया जा रहा है. मंडल की मांग है कि या तो ट्विटर सभी को वेरिफाई कर ब्लू टिक दें फिर या भारत में सभी से ब्लू टिक वापस ले.
क्या आपने भी कई बार सोचा है कि हर वक्त मोबाइल या कंप्यूटर पर फेसबुक, ट्विटर वगैरह नहीं देखा करेंगे, लेकिन ऐसा कर नहीं सके हैं? सोशल मीडिया एक क्रांति है लेकिन ये भी तो जानें कि वो आपके दिमाग के साथ क्या कर रहा है. देखिए.
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खुद पर काबू नहीं?
विश्व की लगभग आधी से ज्यादा आबादी तक इंटरनेट पहुंच चुका है और इनमें से कम से कम दो-तिहाई लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. 5 से 10 फीसदी इंटरनेट यूजर्स ने माना है कि वे चाहकर भी सोशल मीडिया पर बिताया जाने वाला अपना समय कम नहीं कर पाते. इनके दिमाग के स्कैन से मस्तिष्क के उस हिस्से में गड़बड़ दिखती है, जहां ड्रग्स लेने वालों के दिमाग में दिखती है.
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लत लग गई?
हमारी भावनाओं, एकाग्रता और निर्णय को नियंत्रित करने वाले दिमाग के हिस्से पर काफी बुरा असर पड़ता है. सोशल मीडिया इस्तेमाल करते समय लोगों को एक छद्म खुशी का भी एहसास होता है क्योंकि उस समय दिमाग को बिना ज्यादा मेहनत किए "इनाम" जैसे सिग्नल मिल रहे होते हैं. यही कारण है कि दिमाग बार बार और ज्यादा ऐसे सिग्नल चाहता है जिसके चलते आप बार बार सोशल मीडिया पर पहुंचते हैं. यही लत है.
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मल्टी टास्किंग जैसा?
क्या आपको भी ऐसा लगता है कि दफ्तर में काम के साथ साथ जब आप किसी दोस्त से चैटिंग कर लेते हैं या कोई वीडियो देख कर खुश हो लेते हैं, तो आप कोई जबर्दस्त काम करते हैं. शायद आप इसे मल्टीटास्किंग समझते हों लेकिन असल में ऐसा करते रहने से दिमाग "ध्यान भटकाने वाली" चीजों को अलग से पहचानने की क्षमता खोने लगता है और लगातार मिल रही सूचना को दिमाग की स्मृति में ठीक से बैठा नहीं पाता.
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क्या फोन वाइब्रेट हुआ?
मोबाइल फोन बैग में या जेब में रखा हो और आपको बार बार लग रहा हो कि शायद फोन बजा या वाइब्रेट हुआ. अगर आपके साथ भी अक्सर ऐसा होता है तो जान लें कि इसे "फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम" कहते हैं और यह वाकई एक समस्या है. जब दिमाग में एक तरह खुजली होती है तो वह उसे शरीर को महसूस होने वाली वाइब्रेशन समझता है. ऐसा लगता है कि तकनीक हमारे तंत्रिका तंत्र से खेलने लगी है.
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मैं ही हूं सृष्टि का केंद्र?
सोशल मीडिया पर अपनी सबसे शानदार, घूमने की या मशहूर लोगों के साथ ली गई तस्वीरें लगाना. जो मन में आया उसे शेयर कर देना और एक दिन में कई कई बार स्टेटस अपडेट करना इस बात का सबूत है कि आपको अपने जीवन को सार्थक समझने के लिए सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया की दरकार है. इसका मतलब है कि आपके दिमाग में खुशी वाले हॉर्मोन डोपामीन का स्राव दूसरों पर निर्भर है वरना आपको अवसाद हो जाए.
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सारे जहान की खुशी?
दिमाग के वे हिस्से जो प्रेरित होने, प्यार महसूस करने या चरम सुख पाने पर उद्दीपित होते हैं, उनके लिए अकेला सोशल मीडिया ही काफी है. अगर आपको लगे कि आपके पोस्ट को देखने और पढ़ने वाले कई लोग हैं तो यह अनुभूति और बढ़ जाती है. इसका पता दिमाग फेसबुक पोस्ट को मिलने वाली "लाइक्स" और ट्विटर पर "फॉलोअर्स" की बड़ी संख्या से लगाता है.
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डेटिंग में ज्यादा सफल?
इसका एक हैरान करने वाला फायदा भी है. डेटिंग पर की गई कुछ स्टडीज दिखाती है कि पहले सोशल मी़डिया पर मिलने वाले युगल जोड़ों का रोमांस ज्यादा सफल रहता है. वे एक दूसरे को कहीं अधिक खास समझते हैं और ज्यादा पसंद करते हैं. इसका कारण शायद ये हो कि सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में अपने पार्टनर के बारे में कल्पना की असीम संभावनाएं होती हैं.
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ब्लू टिक की मांग कितनी जायज?
दरअसल ट्विटर ने कुछ दिन पहले दिलीप सी मंडल के अकाउंट को सस्पेंड कर दिया. ट्विटर का कहना था कि उन्होंने एक लेखक से जुड़े संपर्क विवरण को ट्वीट करके प्राइवेसी नियमों का उल्लंघन किया, लेकिन कुछ दिनों बाद उनके अकाउंट को बहाल कर दिया गया और उसे वेरिफाई भी किया. इसी के बाद से भारत में ट्विटर के खिलाफ तरह-तरह के हैशटैग चलाए गए जैसे #cancelallBlueTicksinIndia, #TwitterHatesSCSTOBCMuslims, #CasteistTwitter या फिर #JaiBhimTwitter.
हालांकि जब मंडल का अकाउंट बहाल हुआ और उसे वेरिफाई किया गया तो उसके खिलाफ भी ट्विटर पर एक हैशटैग ट्रेंड कराया गया.
वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष कहते हैं कि ट्विटर को अकाउंट वेरिफेकशन नीति को सामने लेकर आना चाहिए और उसे बताना चाहिए कि आखिर किस वजह से दलित और पिछड़े वर्ग से जुड़े लोगों का अकाउंट वेरिफाई नहीं हो रहा है. आशुतोष के मुताबिक, "सवाल ब्लू टिक का नहीं है बल्कि सवाल तो भागीदारी का है. पिछड़ा तबका ट्विटर पर भी अपनी भागीदारी चाहता है. पिछड़े समाज के लोगों की यह मांग वैध है और ट्विटर को सामने आकर वेरिफिकेशन प्रक्रिया के बारे में बताना चाहिए. "
ट्विटर का जवाब
जातिवादी संबंधी विवाद के बीच ट्विटर ने एक बयान जारी कहा है, "चाहे नीति की बात हो, प्रोडक्ट से जुड़े फीचर या नियमों का लागू करने की बात हो ट्विटर ने कभी पक्षपात नहीं किया. हम कभी किसी एक विचारधारा या फिर राजनीतिक दृष्टिकोण के आधार पर फैसले नहीं लेते."
आदिवासी समाज के लिए काम करने वाले हंसराज मीणा ट्विटर पर खुद सक्रिय रहते हैं और उनके करीब 27 हजार फॉलोअर हैं. मीणा कहते हैं, "लंबे समय से मैं खुद ट्विटर से जुड़ा हूं. आदिवासी और दलित समाज से जुड़े लोगों के ट्विटर अकाउंट का आंकलन करने पर मैंने पाया कि गिनती भर के यूजरों के ही अकाउंट वेरिफाइड हैं. सामाजिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले लोगों के अकाउंट वेरिफाई होने से आवाज ज्यादा दूर तक पहुंचती हैं. हमारा अकाउंट वेरिफाई होने से इसका असर जमीनी स्तर तक पहुंचेगा."
हैशटैग से बड़ा आंदोलन
दिलीप मंडल कहते हैं, "सोशल मीडिया में जो भी हो रहा है उसके जरिए समाज में विचारधारा बनती हैं, देश ही नहीं विदेश में भी इस पर बहस छिड़ी हुई है. सोशल मीडिया में जिस तरह से विचार साझा किए जा रहे हैं उससे हर कोई चिंतित हैं. "
दिलचस्प बात ये है कि सोशल मीडिया साइट पर चलाए गए आंदोलन की वजह से कई बड़े पदों पर बैठे लोगों को इस्तीफा भी देना पड़ा. ट्विटर पर #Metoo अभियान के तहत दुनिया की हजारों महिलाओं ने यौन शोषण पर आवाज उठाई और कई मामलों में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई भी हुई.
फेसबुक ऐसी चीज हो गई है कि उसके बिना अब काम भी नहीं चलता और कभी-कभी परेशान भी इतना कर देती है कि खीज होने लगती है. पांच टिप्स, जो आपकी इस खीज को कम कर सकते हैं.
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अनफॉलो
ऐसे लोगों को अनफॉलो कर दीजिए जो सिर्फ बकवास करते हैं. ये लोग या तो अपनी सेल्फी डालते हैं या फिर फॉरवर्ड किए मेसेज को शेयर करते हैं. इन्हें अनफ्रेंड करने की जरूरत नहीं, बस अनफॉलो कर लीजिए.
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परेशानपंथी पेज
आपके दोस्त कुछ फेसबुक पेज फॉलो करते हैं और उनका कॉन्टेंट शेयर करते हैं. आपको यह पसंद नहीं आप तो इसे ब्लॉक कर सकते हैं. ऐसी पोस्ट देखें तो राइट कॉर्नर पर ड्रॉपडाउन पर क्लिक करें और Hide All पर क्लिक कर दें.
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फेसबुक को बताएं
आप फेसबुक को बता सकते हैं कि क्या आपको नापसंद हैं. वहीं राइट कॉर्नर पर ड्रॉपडाउन में जाएं और I don’t to wanna see this पर क्लिक कर दें.
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फेसबुक सर्वे
वहीं राइट कॉर्नर में ड्रॉपडाउन में जाएं और Take A Survey पर क्लिक करें. इस सर्वे के जवाब पढ़कर फेसबुक आपको समझ जाएगा.
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