स्टैंड-अप कॉमेडी कलाकार कुणाल कामरा और कार्टूनिस्ट रचिता तनेजा को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना का नोटिस भेजा है. बहस इस बात पर छिड़ी है कि क्या आलोचना को अवमानना कहना सही है?
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कुणाल और रचिता दोनों ने ही रिपब्लिक टीवी के एंकर अर्नब गोस्वामी के खिलाफ लगे आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप के मामले में सुप्रीम कोर्ट के रवैये की आलोचना की थी. कामरा ने कोर्ट द्वारा गोस्वामी की जमानत की अर्जी को तुरंत सुनने की आलोचना की थी. उन्होंने अदालत पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए कई ट्वीट किए थे, जिन पर आपत्ति जताते हुए कुछ अधिवक्ताओं ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से अदालत की अवमानना की याचिका दायर करने की अनुमति मांगी थी.
वेणुगोपाल ने 12 नवम्बर को इसकी अनुमति दे दी थी जिसके बाद ये याचिकाएं अदालत में दायर कर दी गई थीं. कुणाल के ट्वीटों पर वेणुगोपाल ने कहा था कि वो भद्दे थे और "हास्य और अवमानना के बीच की रेखा को पार कर गए थे." कुणाल पहले ही कह चुके हैं कि ना तो वो माफी मांगेंगे, ना जुर्माना भरेंगे और ना किसी वकील से उनका केस लड़ने के लिए कहेंगे.
2018 में अन्वय नाइक नामक एक इंटीरियर डिजाइनर और उनकी मां मुंबई में अपने घर में मृत पाए गए थे, और नाइक द्वारा लिखे गए उनके आखिरी खत में लिखा था कि अर्नब गोस्वामी और दो और व्यक्तियों ने उनके भुगतान के बकाया पैसे उन्हें नहीं दिए थे. मुंबई पुलिस ने नवंबर 2020 में इस मामले में कार्रवाई करते हुए गोस्वामी नाइक आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था.
गिरफ्तार होते ही गोस्वामी ने सीधे सुप्रीम कोर्ट में जमानत की अर्जी दे दी और कोर्ट ने भी उन्हें तुरंत ही सुनवाई की तारीख और अगले ही दिन जमानत भी दे दी. वहीं उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा अचानक गिरफ्तार कर लिए गए केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन की जमानत याचिका को कई दिनों तक नहीं सुना और जब सुना भी तो उनके वकील को पहले हाई कोर्ट जाने को कहा.
रचिता ट्विट्टर पर सैनेटरी पैनल्स नाम के हैंडल से कार्टून ट्वीट करती हैं और उन्होंने भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा अर्नब गोस्वामी को तुरंत जमानत दे देने पर टिप्पणी करते हुए कार्टून ट्वीट किए थे. उनके खिलाफ अवमानना की याचिका दायर करने की अनुमति अटॉर्नी जनरल ने कुछ ही दिनों पहले दी थी. वेणुगोपाल ने कहा था कि रचिता के कार्टूनों ने देश की सर्वोच्च अदालत के खिलाफ "घोर आक्षेप" किया था.
इसी साल अगस्त में जाने माने अधिवक्ता और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण पर भी सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चला था. अदालत ने भूषण को दोषी तो ठहरा दिया था लेकिन उन्हें सिर्फ एक रूपया जुर्माने की सजा सुनाई थी. उस समय भी इस सवाल पर बहस छिड़ गई थी कि क्या एक परिपक्व लोकतंत्र में अदालत की अवमानना जैसे कानून की कोई जगह है भी? कुणाल और रचिता के खिलाफ नोटिस की वजह से वही बहस एक बार फिर छिड़ गई है.
बढ़ती जा रही है जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या
एनसीआरबी के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि देश की जेलों में ऐसे कैदियों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है जिनके खिलाफ आरोपों पर सुनवाई अभी चल ही रही है. जानिए और क्या बताते हैं ताजा आंकड़े.
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कितनी जेलें
2019 में देश में कुल 1,350 जेलें थीं, जिनमें सबसे ज्यादा (144) राजस्थान में थीं. दिल्ली में सबसे ज्यादा (14) केंद्रीय जेलें हैं. कम से कम छह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी केंद्रीय जेल नहीं है.
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जेलों में भीड़
इतनी जेलें भी बंदियों की बढ़ती संख्या के लिए काफी नहीं हैं. ऑक्यूपेंसी दर 2018 में 117.6 प्रतिशत से बढ़ कर 2019 में 118.5 प्रतिशत हो गई. सबसे ज्यादा ऊंची दर जिला जेलों (129.7 प्रतिशत) है. राज्यों में सबसे ऊंची दर दिल्ली में है (174.9 प्रतिशत).
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महिला जेलों का अभाव
'पूरे देश में सिर्फ 31 महिला जेलें हैं और वो भी सिर्फ 15 राज्यों/केंद्रीय शासित प्रदेशों में हैं. देश की सभी जेलों में कुल 4,78,600 कैदी हैं, जिनमें 19,913 महिलाएं हैं.
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कर्मचारियों का भी अभाव
2019 में जेल स्टाफ की स्वीकृत संख्या थी 87,599 लेकिन वास्तविक संख्या थी सिर्फ 60,787. सबसे बड़ा अभाव प्रोबेशन अधिकारी, कल्याण अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक आदि जैसे सुधार कर्मियों का था.
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कैदियों पर खर्च
2019 में देश में कैदियों पर कुल 2060.96 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जो कि जेलों के कुल खर्च का 34.59 प्रतिशत था. इसमें से 47.9 प्रतिशत (986.18 करोड़ रुपए) भोजन पर खर्च किए गए, 4.3 प्रतिशत (89.48 करोड़ रुपए) चिकित्सा संबंधी खर्च पर, 1.0 प्रतिशत (20.27 करोड़ रुपए) कल्याणकारी गतिविधियों पर, 1.1 प्रतिशत (22.56 करोड़ रुपए) कपड़ों पर और 1.2 प्रतिशत (24.20 करोड़ रुपए) शिक्षा और ट्रेनिंग पर किया गया.
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70 प्रतिशत कैदियों के मामले विचाराधीन
2019 में देश की सभी जेलों में अपराधी साबित हो चुके कैदियों की संख्या (1,44,125) ऐसे कैदियों की संख्या से ज्यादा थी जिनके खिलाफ मामले अभी अदालतों में विचाराधीन ही हैं (3,30,487). एक साल में विचाराधीन कैदियों की संख्या में 2.15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इनमें से लगभग आधे कैदी जिला जेलों में हैं और 36.7 प्रतिशत केंद्रीय जेलों में.
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न्याय के इंतजार में
विचाराधीन कैदियों में 74.08 प्रतिशत कैदी (2,44,841) एक साल तक की अवधि तक, 13.35 प्रतिशत कैदी (44,135) एक से दो साल की अवधि तक, 6.79 प्रतिशत (22,451) दो से तीन सालों तक, 4.25 प्रतिशत (14,049) तीन से पांच सालों तक और 1.52 प्रतिशत कैदी (5,011) पांच साल से भी ज्यादा अवधि से जेल में बंद थे.
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शिक्षा का स्तर
सभी कैदियों में 27.7 प्रतिशत (1,32,729) अशिक्षित थे, 41.6 प्रतिशत (1,98,872) दसवीं कक्षा तक भी नहीं पढ़े थे, 21.5 प्रतिशत (1,03,036) स्नातक के नीचे तक पढ़े थे, 6.3 प्रतिशत (30,201) स्नातक थे, 1.7 प्रतिशत 8,085 स्नातकोत्तर थे और 1.2% प्रतिशत (5,677) कैदियों के पास टेक्निकल डिप्लोमा/डिग्री थी.
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मृत्युदंड वाले कैदी
सभी कैदियों में कुल 400 कैदी ऐसे थे जिन्हें मौत की सजा सुना दी गई थी. इनमें से 121 कैदियों को 2019 में मृत्युदंड सुनाया गया था. 77,158 कैदियों (53.54 प्रतिशत) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
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जेल में मृत्यु
2018 में 1,845 कैदियों के मुकाबले 2019 में 1,775 कैदियों की जेल में मृत्यु हुई. इनमें से 1,544 कैदियों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई. अप्राकृतिक कारणों से मरने वाले कैदियों की संख्या 10.74 प्रतिशत बढ़ कर 165 हो गई. इनमें से 116 कैदियों की मौत आत्महत्या की वजह से हुई, 20 की मौत हादसों की वजह से हुई और 10 की दूसरे कैदियों द्वारा हत्या कर दी गई. कुल 66 मामलों में मृत्यु का कारण पता नहीं चल पाया.
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पुनर्वास
2019 में कुल 1,827 कैदियों का पुनर्वास कराया गया और 2,008 कैदियों को रिहाई के बाद वित्तीय सहायता दी गई. कैदियों द्वारा कुल 846.04 करोड़ रुपए मूल्य के उत्पाद भी बनाए गए.