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क्या दर्द को दिमाग से घटाया बढ़ाया जा सकता है?

१६ अक्टूबर २०१९

दर्द की अवधारणा जीवन के लिए जरूरी है लेकिन दर्द के अहसास को क्या कभी बढ़ाया और घटाया जा सकता है. अब जंग में घायल सैनिकों को ही देखिए. वे अकसर बताते हैं कि कई बार उन्हें दर्द की कोई अनुभूति ही नहीं होती.

Deutschland Pharmawerk
तस्वीर: Imago/J. Heinrich

वैज्ञानिकों ने दिमाग की एक तंत्रिका को दर्द का अहसास कम या ज्यादा करने के लिए जिम्मेदार बताया है. वैज्ञानिकों ने इसकी तुलना ताप नियंत्रित करने वाली प्रणाली से की है जो तापमान को घटाती या बढ़ाती है. सेल रिपोर्ट्स ने इस बारे में एक रिसर्च रिपोर्ट छापी है.

रिपोर्ट की वरिष्ठ लेखक और अमेरिका के नेशनल सेंटर ऑफ कॉम्पलीमेंट्री एंड इंटीग्रेटिव हेल्थ की वैज्ञानिक यारिमार कारासकिलो ने बताया कि इसके लिए दिमाग में सेरेब्रम के अंदरूनी हिस्से में मौजूद केंद्रीय प्रमस्तिष्कखंड (एमिग्डाला) जिम्मेदार होता है. कारासकिलो के मुताबिक यह दोहरी भूमिका निभाता है.

चूहों पर अध्ययन के दौरान कारासकिलो और उनके सहयोगियों ने देखा कि न्यूरॉन्स में गतिविधियों की वजह से निकलने वाला प्रोटीन एंजाइम सी डेल्टा दर्द को बढ़ाता है जबकि सोमैटोस्टिन को निकालने वाली न्यूरॉन्स की गतिविधियां तंत्रिकाओं में ऐसी प्रक्रिया शुरू करती हैं जिनसे दर्द का संचार होता है.

तस्वीर: Colourbox

हालांकि ऐसा भी नहीं है कि केंद्रीय प्रमस्तिष्कखंड दर्द के लिए खुद ही पूरी तरह से जिम्मेदार है. ऐसा देखा गया कि अगर इसे पूरी तरह से निकाल दिया जाए तो भी रक्षात्मक दर्द मौजूद रहता है. कारासकिलो बताती हैं, "यह ऐसा है जैसे कि कहीं बैठ कर कुछ होने का इंतजार करना." उदाहरण के लिए तनाव या फिर चिंता के बारे में सोचने से दर्द बढ़ जाता है, या किसी ऐसे काम में लग जाना जिससे ध्यान बंट जाए, दर्द को कम कर देता है.

दर्द का अनुभव जरूरी है ताकि आप मदद मांग सकें, उदाहरण के लिए अगर किसी इंसान को अपेंडिसाइटिस या फिर हार्ट अटैक हो, तो दर्द का अहसास उसके लिए जीवन रक्षक बन जाता है. जिन लोगों में दर्द को लेकर संवेदनशीलता नहीं होती या फिर जिन्हें दर्द का अहसास नहीं होता वे जख्मों की गंभीरता का अनुभव नहीं कर पाते और अकसर कम उम्र में ही मर जाते हैं.

भारत में तो बुजुर्ग अकसर मजाक में कहते हैं कि एक उम्र के बाद कर्द का अहसास जीवन का स्थायी भाव बन जाता है, और सुबह उठकर दर्द होने का अहसास यह बताता है कि अभी जिंदा हैं.

हालांकि सारे दर्द उपयोगी नहीं होते हैं. 2012 के एक सर्वे के मुताबिक अमेरिका में 11 फीसदी वयस्कों को हर दिन किसी ना किसी तरह का दर्द होता है और 17 फीसदी से ज्यादा लोगों को गंभीर स्तर का दर्द होता है. इसके नतीजे में लोगों की दर्द निवारक दवाओं पर निर्भरता बढ़ जाती है या फिर कई बार लोग खुद ही दवा ढूंढने की कोशिश में नकली या अवैध दवाओं के चक्कर में फंस जाते हैं. इनमें कई बार नशीली दवाएं भी शामिल होती हैं.

दिमाग में दर्द के लिए जिम्मेदार तंत्र की बेहतर समझ के जरिए रिसर्चरों को बेहतर इलाज ढूंढने में सफल होने की उम्मीद है. खासतौर से उस दर्द के लिए जो उपयोगी नहीं है और खराब है. कारासकिलो ने कहा, "स्वस्थ प्रतिक्रिया यह है कि आपको दर्द हो, यह आपको बताता है कि कुछ गड़बड़ है, जैसे ही उसका उपचार होगा दर्द खत्म हो जाएगा. हालांकि पुराने दर्द में यह नहीं होता, सिस्टम कहीं फंस जाता है. अगर हम यह पता लगा सकें कि सिस्टम क्यों फंसा हुआ है तो हम उसे लौटा सकते हैं."

एनआर/आईबी (एएफपी)

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