ताजा प्रेस स्वतंत्रता इंडेक्स के बाद फिर यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या दुनिया चीन की गलती की कीमत चुका रही है. कोरोना वायरस पर चीन ने सूचना छिपाई है और प्रेस को भी रोका है, जिसकी वजह से अब पूरी दुनिया में हाहाकार है.
विज्ञापन
मध्य और पूर्वी एशिया में प्रेस की स्वतंत्रता बुरे हालात का सामना कर रही है. अंतरराष्ट्रीय मीडिया पर नजर रखने वाली संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉडर्स (आरएसएफ) ने प्रेस स्वतंत्रता की स्थिति पर दुनिया का जो नक्शा जारी किया है, उसमें इस पूरे इलाके को लाल दिखाया गया है. इसका मतलब है कि इस इलाके के देशों में प्रेस स्वतंत्रता की हालत "खराब" हैं. लेकिन इस नक्शे में चीन को काले रंग में दिखाया गया है, जिसका मतलब है कि वहां हालात "बहुत खराब" हैं.
180 देशों वाले इस इंडेक्स में चीन को लगातार दूसरे साल 177वें यानी नीचे से चौथे पायदान पर रखा गया है. उसके बाद इंडेक्स में तीन देशों उत्तर कोरिया (180), तुर्कमेनिस्तान (179) और इरीट्रिया (178) को रखा गया है. चीन में सूचना के प्रवाह पर सरकार का कड़ा पहरा है. वहां हर तरह की जानकारी पर सेंसरशिप की तलवार लटकी रहती है और अगर आपकी बात सरकार को पसंद नहीं आई तो आपको जेल भी हो सकती है.
कोरोना संकट
आरएसएफ ने चीन की जो आलोचना की है, उसके केंद्र में कोरोना संकट है. इस संकट के महामारी बनने से पहले भी चीन इससे जुड़ी जानकारी को अपने देश के भीतर और विदेशों में जाने से रोक रहा था. लेकिन अब आरएसएफ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मीडिया सेंसरशिप नीति और इसकी वजह से लोगों की सेहत को हुए नुकसान के बीच सीधा संबंध देख रहा है.
आरएसएफ में पूर्वी एशिया के ब्यूरो चीफ सेड्रिक अल्वियानी कहते हैं, "चीन की सेंसरशिप से पूरी दुनिया को खतरा है और हमें इस बात पर जोर देने की जरूरत है." उनके मुताबिक, "निश्चित तौर पर सरकार और सेंसरशिप के बीच सीधा संबंध है. उन्होंने पहले महीने के दौरान सारी जानकारी को छिपाया और यह एक तथ्य है." अल्वियानी कहते हैं कि 11 मार्च को जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड 19 को महामारी घोषित किया था, उस दिन चीन ने वीचैट जैसे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और समाचार देने वाले एप्स पर इस वायरस से जुड़े बहुत सारे कीवर्ड्स को सेंसर कर दिया ताकि लोग इस बारे में ऑनलाइन बात ना कर सकें.
खामोश तमाशाई
इससे पहले भी इस तरह की बहुत सी मिसालें मिलती हैं. चीनी शहर वुहान में जहां से यह वायरस दुनिया भर में फैला, वहां कुछ डॉक्टरों ने 2019 के आखिरी दिनों में इस वायरस के बारे में लोगों को बताना शुरू किया था. उन्हें प्रशासन ने ना सिर्फ रोका बल्कि उन पर अफवाहें फैलाने का आरोप भी लगाया. इनमें डॉ ली वेनलियांग भी शामिल थे जिनकी बाद इसी वायरस से मौत हो गई.
फरवरी में वरिष्ठ चीनी पत्रकार छियान कांग ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी के आधिकारिक अखबार पीपुल्स डेली का विश्लेषण किया. उस वक्त वुहान में कोरोना वायरस कई हफ्तों से कोहराम मचाए हुए था, लेकिन चीनी अखबार कम्युनिस्ट पार्टी का प्रोपेगेंडा चलाते हुए लोगों को बता रहा था कि कैसे चीनी राष्ट्रपति आम लोगों के घर जाकर उनसे मिले. अखबार में कोविड-19 की कवरेज को अनदेखा किया गया.
बाद में छियान ने हांगकांग स्थित चीन मीडिया प्रोजेक्ट के लिए अपने लेख में कहा, "पिछले दो महीने से चीन एक बड़े स्वास्थ्य संकट से गुजर रहा है और बहस हो रही है कि क्या शुरुआती चरण में जानकारी को छिपाया जाना इसकी एक वजह है. वहीं पीपुल्स डेली को देखकर लगता है कि उसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा है."
अंतरराष्ट्रीय प्रभाव
जानकारी को सेंसर किए जाने की चीन की कोशिशों से सिर्फ उसी के नागरिक प्रभावित नहीं हुए. जानकारी को छिपाए जाने का असर यह हुआ कि दुनिया इस संकट की गंभीरता को देर से समझ पाई, जिसकी वजह से लाखों लोग इस संक्रमण की चपेट में आ गए. अल्वियानी कहते हैं, "चीन के मामले में, कोरोना वायरस के फैलाव ने एक बहुत ही अहम सबक दिया है. वह यह कि चीन में सेंसरशिप का असर सिर्फ वहां के लोगों के लिए ही चिंता की बात नहीं है. इससे धरती पर रहने वाले सभी लोगों को खतरा है."
अमेरिकी संस्थान फ्रीडम हाउस में चीन और हांगकांग मामलों की विश्लेषक सारा कुक की राय भी कुछ ऐसी है. वह कहती हैं, "जब वे जानकारी फैलाने वाले स्रोतों को रोकने के काबिल हो जाते हैं, तो वे तय कर सकते हैं कि क्या चीन से बाहर जाएगा क्या नहीं. फिर वे कोशिश करते हैं कि अफ्रीका में टीवी पर क्या दिखाया जाएगा क्या नहीं. लोग क्या शेयर कर पाएंगे, क्या नहीं." कुक कहती हैं कि खासकर उन देशों में यह एक समस्या है जहां चीन अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. इसी साल उन्होंने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें बताया गया है कि चीन कैसे दुनिया भर में अपना मीडिया प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.
चीन पूरी कोशिश में जुटा है कि विदेशी समाचार संस्थानों पर अपने सरकारी मीडिया की सामग्री को प्रसारित कराया जाए, चीन के सोशल मीडिया चैनलों को नियंत्रित किया जाए, फेक न्यूज फैलाई जाए, दुनिया भर के न्यूज मीडिया में हिस्सेदारी खरीदी जाए और यहां तक कि पत्रकारों और मीडिया से जुड़े अधिकारियों को राजनयिकों के जरिए परेशान किया जाए. आरएसएफ को चीन में प्रेस स्वतंत्रता की स्थिति में जल्द किसी बड़े बदलाव की आशा नहीं है. वहां लगभग 100 पत्रकार और ब्लॉगर अब भी जेल में हैं. अल्वियानी कहते हैं, "चीन में हालात वापस सामान्य हो गए हैं. अधिकारियों के पास फिर प्रेस स्वतंत्रता पर बंदिशें लगाने का अवसर है."
नए प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में चार स्कैंडेनेवियाई देशों को पत्रकारों के लिए सबसे अच्छा माना गया है. भारत, पाकिस्तान और अमेरिका में पत्रकारों का काम मुश्किल है. जानिए रिपोर्टस विदाउट बॉर्डर्स के इंडेक्स में कौन कहां है.
तस्वीर: Getty Images/C. McGrath
1. नॉर्वे
दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में नॉर्वे पहले स्थान पर कायम है. वैसे दुनिया में जब भी बात लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आती है तो नॉर्वे बरसों से सबसे ऊंचे पायदानों पर रहा है. हाल में नॉर्वे की सरकार ने एक आयोग बनाया है जो देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परिस्थितियों की व्यापक समीक्षा करेगा.
तस्वीर: Fotolia/Alexander Reitter
2. फिनलैंड
नॉर्वे का पड़ोसी फिनलैंड पिछले साल की तरह इस बार भी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में दूसरे स्थान पर है. जब 2018 में हेलसिंकी में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात हुई तो एयरपोर्ट से लेकर शहर तक पूरे रास्ते पर अंग्रेजी और रूसी भाषा में बोर्ड लगे थे, जिन पर लिखा था, "श्रीमान राष्ट्रपति, प्रेस स्वतंत्रता वाले देश में आपका स्वागत है."
डेनमार्क प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में एक साल पहले के मुकाबले दो पायदान की छलांग के साथ पांचवें से तीसरे स्थान पर पहुंचा है. 2015 के इंडेक्स में भी उसे तीसरे स्थान पर रखा गया था. लेकिन राजधानी कोपेनहागेन के करीब 2017 में स्वीडिश पत्रकार किम वाल की हत्या के बाद उसने अपना स्थान खो दिया था.
तस्वीर: AP
4. स्वीडन
1776 में दुनिया का पहला प्रेस स्वतंत्रता कानून बनाने वाला स्वीडन इस इंडेक्स में चौथे स्थान पर है. पिछले साल वह तीसरे स्थान पर था. वहां कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि बड़ी मीडिया कंपनियां छोटे अखबारों को खरीद रही हैं. स्थानीय मीडिया के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर सिर्फ पांच मीडिया कंपनियों का कब्जा है.
तस्वीर: Reuters
5. नीदरलैंड्स
अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से नीदरलैंड्स में मीडिया स्वतंत्र है. हालांकि स्थापित मीडिया पर चरमपंथी पॉपुलिस्ट राजनेताओं के हमले बढ़े हैं. इसके अलावा जब डच पत्रकार दूसरे देशों के बारे में नकारात्मक रिपोर्टिंग करते हैं तो वहां की सरकारें डच राजनेताओं पर दबाव डालकर मीडिया के काम में दखलंदाजी की कोशिश करती हैं.
तस्वीर: Reuters/F. Lenoir
6. जमैका
कैरेबियन इलाके का छोटा सा देश जमैका प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में छठे स्थान पर है. वहां 2009 से प्रेस की स्वतंत्रता को कोई खतरा और फिर पत्रकारों के खिलाफ हिंसा का कोई गंभीर मामला देखने को नहीं मिला है. हालांकि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स कुछ कानूनों को लेकर चिंतित है जिन्हें पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है.
तस्वीर: imago/Ralph Peters
7. कोस्टा रिका
पूरे लैटिन अमेरिका में मानवाधिकारों और प्रेस स्वतंत्रता का सम्मान करने में कोस्टा रिका का रिकॉर्ड सबसे अच्छा है. यह बात इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरा इलाका भ्रष्टाचार, हिंसक अपराधों और मीडिया के खिलाफ हिंसा के लिए बदनाम है. लेकिन कोस्टा रिका में पत्रकार आजादी से काम कर सकते हैं और सूचना की आजादी की सुरक्षा के लिए वहां कानून हैं.
तस्वीर: picture alliance/maxppp/F. Launette
8. स्विट्जरलैंड
मोटे तौर पर स्विटजरलैंड में राजनीतिक और कानूनी परिदृश्य को पत्रकारों के लिए बहुत सुरक्षित माना जा सकता है, लेकिन 2019 में जिनेवा और लुजान में कई राजनेताओं ने पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे किए. इससे मीडिया को लेकर लोगों में अविश्वास पैदा हो सकता है. पहले वहां मीडिया की आलोचना तो होती थी लेकिन शायद ही कभी मुकदमे होते थे.
तस्वीर: dapd
9. न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में प्रेस स्वतंत्र है लेकिन कई बार मीडिया ग्रुप मुनाफे के चक्कर में अपनी स्वतंत्रता और बहुलतावाद का ध्यान नहीं रखते हैं जिससे पत्रकारों के लिए खुलकर काम कर पाना संभव नहीं होता. जब मुनाफा अच्छी पत्रकारिता की राह में रोड़ा बनने लगे तो प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होने लगती है. फिर भी, न्यूजीलैंड का मीडिया बहुत से देशों से बेहतर है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Melville
10. पुर्तगाल
180 देशों वाले इस इंडेक्स में पुर्तगाल दसवें पायदान पर है. हालांकि वहां पत्रकारों को बहुत कम वेतन मिलता है और नौकरी को लेकर भी अनिश्चित्तता बनी रहती है, लेकिन रिपोर्टिंग का माहौल तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छा है. हालांकि कई समस्या बनी हुई हैं. यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के आदेशों के बावजूद पुर्तगाल में अपमान और मानहानि को अपराध के दायरे में रखा गया है.
तस्वीर: picture alliance/Global Travel Images
11. जर्मनी
प्रेस की आजादी को जर्मनी में संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है लेकिन दक्षिणपंथी लगातार जर्मन मीडिया को निशाना बना रहे हैं. हाल के समय में पत्रकारों पर ज्यादातर हमले धुर दक्षिणपंथियों के खाते में जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अति वामपंथियों ने भी पत्रकारों पर हिंसक हमले किए हैं. दूसरी तरफ डाटा सुरक्षा और सर्विलांस को लेकर भी लगातार बहस हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
भारत और दक्षिण एशिया
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को बहुत पीछे यानी 142वें स्थान पर रखा गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक 2019 में बीजेपी की दोबारा जीत के बाद मीडिया पर हिंदू राष्ट्रवादियों का दबाव बढ़ा है. अन्य दक्षिण एशियाई देशों में नेपाल को 112वें, श्रीलंका को 127वें, पाकिस्तान को 145वें और बांग्लादेश को 151वें स्थान पर रखा गया है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo
अमेरिका, चीन और रूस
इंडेक्स के मुताबिक अमेरिका 42वें स्थान पर है. वहां प्रेस की आजादी को राष्ट्रपति ट्रंप के कारण लगातार नुकसान हो रहा है. लेकिन दो अन्य ताकतवर देशों चीन और रूस में स्थिति और भी खतरनाक है. रूस की स्थिति में पिछले साल के मुकाबले कोई बदलाव नहीं हुआ और वह 149 वें स्थान पर है जबकि चीन नीचे से चौथे पायदान यानी 177वें स्थान पर है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Irungu
पत्रकारों के लिए सबसे खराब देश
इंडेक्स में उत्तर कोरिया (180), तुर्कमेनिस्तान (179) और इरीट्रिया सबसे नीचे है. किम जोंग उन के शासन वाले उत्तर कोरिया में पूरी तरह से निरंकुश शासन है. वहां सिर्फ सरकारी मीडिया है. जो सरकार कहती है, वही वह कहता है. इरीट्रिया और तुर्कमेनिस्तान में भी मीडिया वहां की सरकारों के नियंत्रण में ही है.