अभूतपूर्व शरणार्थी संकट झेल रहे कई यूरोपीय देश जल्द ही विकास कार्यों के लिए दी जाने वाली विदेशी सहायता राशि में कटौती करने जा रहे है. अबाध गति से यूरोप पहुंच रहे शरणार्थियों से निपटने के लिए नए रास्ते निकालने की कोशिशें.
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आने वाले संसद सत्र में फिनलैंड, नॉर्वे और स्वीडन जैसे उदार दानकर्ता यूरोपीय देश गरीब देशों के विकास के लिए दी जाने वाली अपनी दान राशि में कटौती कर अपने देशों में बड़ी संख्या में पहुंचे शरणार्थियों की देखभाल के लिए खर्च करना चाहते हैं. डेनमार्क में तो विदेशी सहायता में भारी कमी करने के प्रस्ताव को मंजूरी भी मिल गई है.
विकास के नाम पर यूरोपीय देशों की आर्थिक मदद में कटौती की सूचना से संयुक्त राष्ट्र में खलबली मच गई. बुधवार को इस पर प्रतिक्रिया देते हुए महासचिव बान की-मून ने कहा है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे गंभीर शरणार्थी संकट का सामना कर रहे यूरोपीय देशों को ऐसा "बेहद जरूरी आधिकारिक विकास सहायता की ओर उनकी प्रतिबद्धता को कम किए बिना करना चाहिए."
यूरोपीय संघ के नेता माल्टा की राजधानी वालेटा में ईयू-अफ्रीका सम्मेलन में अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों से मिलकर शरणार्थी संकट के निपटने के लिए एक समझौते पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. सीरियाई गृहयुद्ध के कारण अब तक लाखों लोग अपना घर छोड़कर यूरोप के कई देशों में पहुंच चुके हैं. युद्ध की स्थिति बरकरार रहने के कारण आप्रवासन लगातार जारी है और कई यूरोपीय देश इतनी बड़ी संख्या में पहुंच रहे आप्रवासियों को संभाल पाने में असमर्थता जता रहे हैं.
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल अपनी आप्रवासी नीति के चलते घरेलू मोर्चे पर पहले ही काफी दबाव में हैं. इस साल जर्मनी करीब 10 लाख शरणार्थियों के आने की अपेक्षा कर रहा है. बुधवार को आई कुछ खबरों में कहा गया कि जर्मन सरकार सभी शरणार्थियों को आने देने की अपनी नीति पर पुनर्विचार कर रही है और डबलिन संधि की ओर लौट सकती है.
समुद्र के रास्ते आप्रवासियों का आना पहले इटली और माल्टा जैसे देशों में बढ़ा. धीरे धीरे बढ़ते हुए तुर्की की ओर से ग्रीस पहुंचने वाले शरणार्थियों की भारी संख्या हंगरी, सर्बिया समेत जर्मनी के लिए बहुत बड़ी समस्या बन गई. सीरिया के अलावा यूरोप पहुंच रहे शरणार्थियों में बहुत से अफ्रीकी देशों के नागरिक भी हैं. ईयू-अफ्रीका सम्मेलन में अफ्रीका में ही नौकरियां पैदा करने जैसे दीर्घकालीन कदमों पर भी चर्चा हो रही है. इससे अफ्रीकी आप्रवासियों को यूरोप से वापस भेजने का रास्ता भी खुलेगा.
डबलिन समझौते के तहत शरण पाने के लिए यूरोप पहुंचने वाले शख्स के आवेदन पर वही देश कार्रवाई करता है जहां विस्थापित पहली बार पहुंचे. जर्मनी ने इस साल की शुरुआत में इस समझौते में ढील की घोषणा की थी, जिसके बाद से शरणार्थियों के लिए जर्मनी एक चुंबक बन गया है.
आरआर/एमजे (एएफपी,रॉयटर्स)
जाड़ों का डर
गिरते तापमानों के बावजूद शरणार्थियों का यूरोप आना रुका नहीं है. अब जल्दबाजी में शरणार्थियों को ठंड से बचाने के लिए रहने की जगह बनाई जा रही है. जल्द ही 100,000 अस्थायी जगहों का इंतजाम होना है.
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कड़कड़ाती रातें
जर्मनी में अभी तक जाड़े आए नहीं हैं, लेकिन अच्छी खासी ठंड होने लगी है. बहुत से शरणार्थी बालकन के लंबे रास्ते से मौसम की मार झेल कर आए हैं. दिन में तापमान 10 डिग्री से ज्यादा रहता है लेकिन रात को तापमान गिरकर शून्य के करीब पहुंच जाता है.
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आपात सुरक्षा
पास के जंगल से चुनकर लाई गई लकड़ी के सहारे शरणार्थी ठंड का मुकाबला कर रहे हैं. ऑस्ट्रिया में शरण मांगने वाले 60,000 लोगों से अलग ये जर्मनी पहुंचना चाहते हैं. इस तरह की परिस्थितियों से बचने के लिए बालकन रूट पर 100,000 लोगों के लिए रहने की व्यवस्था की जा रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Weigel
सीमा पर शिविर
जर्मनी और ऑस्ट्रिया की सीमा पर शुक्रवार से हर घंटे सिर्फ 50 शरणार्थियों को आने दिया जा रहा है. मकसद है कि उनका सही तरीके से रजिस्ट्रेशन हो सके. इंतजार के दौरान ठंड से बचाने के लिए ऑस्ट्रिया के कोलरश्लाग में शरणार्थियों के लिए तंबू लगाया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Scharinger
सीमा पर इंतजार
इसमें संदेह है कि यह नियम लंबे समय तक जारी रखा जा सकेगा. सीमा पर लगाए गए सारे तंबू बुरी तरह भरे हैं. कुश्टाइन और कोलरश्लाग में 1000 से ज्यादा शरणार्थी इंतजार कर रहे हैं. उधर अधिकारी शिकायत कर रहे हैं कि बहुत से शरणार्थी रजिस्ट्रेशन कराए बिना ही चले जा रहे हैं.
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बालकन में मुश्किल मौसम
बालकन के रास्ते पर स्थित दूसरे देशों को सर्दियों के लायक रिहायशी जगह बनाने में और मुश्किल हो रही है. स्लोवेनिया के रिगोंसे में बहुत से शरणार्थियों को ठंड और बरसात में रात गुजारनी पड़ी. ज्यादातर जगहें सर्दियों के लायक नहीं हैं. दूसरे बालकन देशों में भी हालात बेहतर नहीं हैं.
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खतरनाक पलायन
ग्रीक द्वीप लेसबोस बहुत से शरणार्थियों के लिए पहला मुकाम होता है. वहां का तापमान ठंडा होकर 20 डिग्री सेल्सियस हो गया है. साल के अंत तक वह 17 डिग्री हो जाएगा. जब मौसम खराब हो जाता है तो मानव तस्कर अपनी कीमत गिरा देते हैं. फिर ज्यादा शरणार्थियों के आने की संभावना है.
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लोवर सेक्सनी में गर्म तंबू
जर्मनी ने तंबुओं में शरणार्थियों को ठहराने की व्यवस्था को अस्थायी समाधान बताया था. यह गर्मियों की बात है. लेकिन इस बीच साफ हो गया है कि बहुत से शरणार्थियों को जर्मनी की सर्दियां तंबुओं में ही बितानी होगी. यहां की तरह सभी तंबुओं को गर्म करना मुमकिन नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Steffen
जानलेवा सर्दी
सिर्फ यूरोप आए शरणार्थी ही सर्दियों की चिंता नहीं कर रहे हैं. लेबनान में करीब 200,000 लोग बेका पहाड़ों की तलचटी में प्लास्टिक के अस्थायी तंबुओं में रह रहे हैं. पिछले साल भी लोगों को बर्फबारी का सामना करना पड़ा था. यहां जमीन के मालिक नहीं चाहते कि शरणार्थी यहां स्थायी रूप से रहें.