पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल नेता ममता बनर्जी के लिए साल 2019 के लोकसभा चुनाव सबसे कठिन माने जा रहे हैं. हालांकि उनकी पार्टी को फिल्मी सितारों का भरपूर सहयोग मिल रहा है.
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क्या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राजनीतिक करियर के सबसे कठिन लोकसभा चुनावों का सामना कर रही हैं? क्या ममता अपनी तृणमूल कांग्रेस को बीजेपी और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभार कर चुनावों के बाद किंगमेकर की भूमिका निभाना चाहती हैं?
बंगाल में बीजेपी के साथ लगातार तेज होती जुबानी जंग को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक हलकों में यही सवाल पूछे जा रहे हैं. बीजेपी ने चुनाव आयोग से पूरे बंगाल को अति संवेदनशील राज्यों की श्रेणी में रखने और हर मतदान केंद्र पर केंद्रीय बल तैनात करने की मांग उठाई है.
बीजेपी की इस रणनीति का सामना करने के लिए ममता ने पिछली बार की तरह इस बार भी फिल्मी सितारों का सहारा लिया है. उन्होंने अपने आठ पुराने सांसदों का पत्ता साफ कर बांग्ला फिल्मों की दो टॉप अभिनेत्रियों समेत पांच फिल्मी हस्तियों को मैदान में उतारा है.
जिन दो अभिनेत्रियों को ममता ने टिकट दिया है उनमें से एक मिमी चक्रवर्ती तो कोलकाता की प्रतिष्ठित जादवपुर सीट से लड़ेगी. यह वही सीट है जहां से कभी पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी और खुद ममता भी चुनाव लड़ चुकी हैं. दोनों अभिनेत्रियों को राजनीति का कोई अनुभव नहीं है. इसके अलावा ममता ने इस बार 42 में 17 सीटों पर महिलाओं को टिकट दिए हैं.
बंगाल के पल-पल बदलते राजनीतिक हालात ने इस बार लोकसभा चुनावों को सबसे दिलचस्प बना दिया है. साल 2004 के बाद ममता को कभी लोकसभा चुनावों में इतनी कड़ी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा है. यह तो शीशे की तरह साफ है कि यहां अबकी तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है और एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए दोनों पार्टियां कोई भी कसर नहीं छोड़ रही हैं. ममता भी मानती हैं, "2019 के लोकसभा चुनाव एक बड़ी चुनौती हैं और बीजेपी उनकी मुख्य चुनौती है.”
बंगाल में राजनीतिक हाशिए पर पहुंची कांग्रेस और सीपीएम अपना वजूद बचाने के लिए जूझ रही हैं. ऐसे में मुख्य प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरी बीजेपी से निपटने के लिए ममता ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए कई जगह उम्मीदवार बदले हैं तो कई जगह उनकी सीटों में बदलाव किया है. खासकर उन बांकुड़ा, झाड़ग्राम, मेदिनीपुर और बोलपुर इलाकों में यह बदलाव साफ नजर आता है जहां पिछले पंचायत चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर रहा था.
सितारोंकासहारा
दक्षिणी राज्य तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में तो फिल्मी सितारों के चुनाव मैदान में उतरने का लंबा इतिहास रहा है. लेकिन पश्चिम बंगाल में अब तक लोकसभा चुनावों में ऐसे फिल्मी सितारों को टिकट देने का चलन नहीं था. लेफ्टफ्रंट के जमाने में मंझे हुए राजनीतिज्ञ ही चुनाव मैदान में उतरते थे. लेकिन ममता ने एक नई परंपरा शुरू करते हुए वर्ष 2009 के चुनावों में शताब्दी राय और तापस पाल जैसे उस समय के दो सबसे व्यस्त सितारों को मैदान में उतारा और वह दोनों अपने ग्लैमर और तृणमूल की लहर की वजह से आसानी से जीत गए.
भारतीय चुनाव: आखिर खर्चा कितना होता है?
भारत का जनमानस तय करेगा कि वह फिर पीएम नरेंद्र मोदी को बागडोर सौंपेगा या उसके मन में कुछ और है. जो भी हो, यहां पेश हैं भारतीय आम चुनाव के कुछ दिलचस्प आंकड़े.
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कितनी सीटें
आम चुनाव में लोकसभा की कुल 545 सीटों में से 543 पर चुनाव होता है. दो सीटों पर राष्ट्रपति एंग्लो इंडियन समुदाय के लोगों को नामांकित करते हैं. ये ऐसे यूरोपीय लोगों का समुदाय है जिन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय लोगों से शादी की और यहीं रह गए.
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कितने वोटर
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भारत में 83 करोड़ से ज्यादा वोटर थे, जो अमेरिका की आबादी का तीन गुना हैं. लेकिन इनमें से 66 प्रतिशत यानी 55.3 करोड़ लोगों ने ही अपना वोट डाला था.
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कितनी पार्टियां
पिछले आम चुनाव में कुल 8,251 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे और कुल पार्टियों की संख्या थी 460. भारत में चुनाव का सारा काम केंद्रीय चुनाव आयोग देखता है. दिल्ली में उसके मुख्यालय में तीन सौ से ज्यादा अधिकारी काम करते हैं.
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कितने उम्मीदवार
पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के आधार पर देखें तो हर निर्वाचन क्षेत्र में औसतन 15 उम्मीदवार थे. चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं एक सीट पर सबसे ज्यादा 42 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे.
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कितने बूथ
चुनाव आयोग ने 2014 के चुनाव में कुल 9,27,553 मतदान केंद्र बनाए थे और हर केंद्र पर वोट डालने वालों की औसतन संख्या 900 थी. चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार किसी भी वोटर के लिए मतदान केंद्र दो किलोमीटर से दूर नहीं होना चाहिए.
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कितने कर्मचारी
पिछले आम चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि चुनावी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 50 लाख सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया था जो पैदल, सड़क मार्ग, ट्रेन, हेलीकॉप्टर, नौका या फिर कभी कभी हाथी पर चढ़ कर भी निर्वाचन क्षेत्रों तक पहुंचे थे.
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एक वोटर के लिए मतदान केंद्र
2009 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने गुजरात में गीर के जंगलों में सिर्फ एक वोटर के लिए मतदान केंद्र बनाया था. यह जंगल एशियाई शेरों का अहम ठिकाना है और इसके लिए यह दुनिया भर में मशहूर है. (फोटो सांकेतिक है)
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मतदान और मतगणना
भारत के आम चुनाव कई चरणों में होता है और आम तौर पर इसमें एक महीने से ज्यादा का समय लगता है. लेकिन सभी सीटों पर वोटों की गिनती एक ही दिन होती है. पहले मतपत्रों की वजह से नतीजा आने में कई दिन लगते थे, लेकिन ईवीएम आने के बाद एक दिन में ही परिणाम आ जाते हैं.
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चुनाव का खर्च
भारत जैसे विशाल देश में चुनाव पर खर्चा भी बहुत आता है. केंद्रीय चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2014 के आम चुनावों पर कुल 38.7 अरब रुपये यानी साढ़े पांच करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च हुए थे.
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ईवीएम
2014 के आम चुनाव में कुल 18 लाख ईवीएम मशीनें इस्तेमाल की गई थीं. ईवीएम से चुनाव प्रक्रिया आसान तो हुई है लेकिन कई विपक्षी पार्टियां यह कह कर इनकी आलोचना करती हैं कि ईवीएम से गड़बड़ी होती है. कई पार्टियां बैलेट के जरिए चुनाव की मांग करती हैं. लेकिन फिलहाल ऐसी संभावना नहीं दिखती है.
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उसके बाद वर्ष 2014 में उन्होंने पांच सितारों को टिकट दिए. इनमें शताब्दी व पाल भी शामिल थे. वह पांचों जीत गए. अबकी भी ममता ने पांच सितारों को ही मैदान में उतारा है. फर्क यह है कि पिछली बार जीती संध्या राय और तापस पाल की जगह अबकी बांग्ला फिल्मों की दो शीर्ष अभिनेत्रियों-—मिमी चक्रवर्ती और नुसरत जहां को चुनाव मैदान में उतारा गया है.
खासकर मिमी चक्रवर्ती को कोलकाता की प्रतिष्ठित जादवपुर सीट से मैदान में उतारने का फैसला हैरत भरा रहा है. यह वही सीट है जहां वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में सीपीएम के वरिष्ठ नेता सोमनाथ चटर्जी को पटखनी देकर ममता बनर्जी राजनीति के राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभरी थीं.
इसी तरह बांग्लादेश की सीमा से लगी बशीरहाट सीट पर अभिनेत्री नुसरत जहां को उम्मीदवार बनाया गया है. उस इलाके में बीजेपी का असर हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ा है. ममता ने ग्लैमर के सहारे उसे बेअसर करने की रणनीति बनाई है. इन दोनों के अलावा बांग्ला फिल्मों के हीरो दीपक अधिकारी उर्फ देब, शताब्दी राय और मुनमुन सेन को भी टिकट दिया गया है. इनमें से मुनमुन सेन को बांकुड़ा की बजाय आसनसोल में बीजेपी के संभावित उम्मीदवार बाबुल सुप्रियो के खिलाफ मैदान में उतारा गया है.
तेजहोतीजुबानीजंग
लोकसभा सीटों के लिए चुनावी समर शुरू होने से पहले ही पश्चिम बंगाल में दो प्रमुख दावेदारों यानी सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच जुबानी जंग और आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला तेज होने लगा है. हाल में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के नेतृत्व में बीजेपी के एक शिष्टमंडल ने बुधवार को चुनाव आयोग से मुलाकात कर पश्चिम बंगाल में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश को ‘अति संवेदनशील राज्य' घोषित करने की मांग की. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "बंगाल में मुक्त और निष्पक्ष चुनावों का आयोजन ही सबसे बड़ी चुनौती है. यही वजह है कि पार्टी ने तमाम मतदान केंद्रों पर केंद्रीय बल के जवानों को तैनात करने की मांग उठाई है. राज्य पुलिस की मौजूदगी में चुनाव निष्पक्ष नहीं हो सकते.”
वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी की इस मांग को राज्य के लोगों का अपमान करार दिया है. वह कहती हैं, "राज्य में एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार है. इसके अलावा कानून व्यवस्था राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है. तमाम केंद्रीय एजंसियों के हाथ में होने के बावजूद आखिर बंगाल को लेकर बीजेपी नेतृत्व इतना डरा हुआ क्यों है?” ममता ने बीजेपी पर मानसिक रोगियों की तरह व्यवहार करने का भी आरोप लगाया है. ममता ने बीजेपी को चेतावनी दी है कि वह बंगाल के लोगों को कमतर आंकने की गलती ना करे. लोग उसका सूपड़ा साफ कर देंगे.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अबकी राज्य की तमाम सीटों पर जोरदार मुकाबले की संभावना है. राजनीतिक विश्लेषक सोमेन हालदार कहते हैं, "चुनाव से पहले ही लगातार तेज होने वाली जुबानी जंग की वजह से बीते साल के पंचायत चुनावों की तरह अबकी लोकसभा चुनावों पर भी हिंसा का साया मंडराने लगा है.”
2019 के चुनावों में ये सब पहली बार हो रहा है
भारतीय चुनाव आयोग अब तक 16 आम चुनाव करवा चुका है. लेकिन आयोग चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष रखने के लिए समय-समय पर कई चीजें आजमाता रहा है. लोकसभा चुनाव 2019 में आयोग ये नए कदम उठाने जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उम्मीदवारों की तस्वीरें
देश के कुल वोटरों में से 30 करोड़ निरक्षर हैं. आयोग ने इनका ध्यान रखते हुए अब राजनीतिक दल के चिन्हों के साथ वोटिंग मशीन में उम्मीदवारों की तस्वीर लगाने का फीचर भी जोड़ा है. साथ ही धांधली और वोटिंग मशीन में किसी भी गड़बड़ी से बचने के लिए मतदाता को वोट डालने के बाद एक चिट दी जाएगी. इसके अलावा वोटिंग मशीन ले जाने वाले वाहनों की निगरानी के लिए उन्हें जीपीएस से जोड़ा गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
आरोपों की स्वघोषणा
मौजूदा संसद के करीब 186 सांसदों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं. इसमें से 112 ऐसे हैं जिन पर हत्या और बलात्कार जैसे संगीन आरोप लगे हैं. इस बार कानूनी मामलों में फंसे उम्मीदवार को कम से कम तीन अखबार या टीवी विज्ञापनों के जरिए अपने ऊपर चल रहे मामलों के बारे में आम लोगों को बताना होगा. ये विवरण उस इलाके के लोगों को देना होगा, जहां से उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.
तस्वीर: Press information department of India
दागी नेताओं के रिकॉर्ड
भारतीय थिंक टैंक 'द एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म' (एडीआर) ने 2014 की एक रिपोर्ट में कहा था कि ऐसे उम्मीदवार जिन पर संगीन आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं उनकी जीतने की संभावनाएं काफी प्रबल होती हैं. इस साल सभी उम्मीदवारों को अपने पिछले पांच साल के इनकम टैक्स रिटर्न का ब्यौरा भी सार्वजनिक करना होगा. साथ ही विदेश में अपनी संपत्ति और देनदारियों का ब्यौरा देना भी उम्मीदवारों के लिए अनिवार्य किया गया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Strdel
ऑनलाइन निगरानी
वेब कैमरों के जरिए इंटरनेट पर पांच हजार से अधिक मतदान और गिनती केंद्रों की लाइव स्ट्रीमिंग की जाएगी. इसके अलावा एक स्मार्टफोन ऐप के जरिए नागरिक मतदान केंद्र पर हुए किसी भी प्रकार के अभद्र व्यवहार, चुनावी गड़बड़ी, शराब या ड्रग्स जैसी बातों की शिकायत कर सकेंगे. गुमनाम शिकायतकर्ता किसी भी फोटो और वीडियो को इस ऐप कर अपलोड कर सकेंगे जिस पर अधिकारियों को 100 मिनट के भीतर कार्रवाई करनी होगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
फीडबैक और सोशल मीडिया
आयोग ने इस बार एक टोल-फ्री हेल्पलाइन भी शुरू की है. इस हेल्पलाइन के जरिए मतदाता कोई जानकारी और शिकायत दर्ज कराने के अलावा वोटिंग से जुड़ा अपना फीडबैक भी दे सकेंगे. इस बार उम्मीदवारों को अपने चुनावी दस्तावेज में सोशल मीडिया खातों की भी जानकारी देनी होगी. इस नए कदम का मकसद चुनावों में सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाना है.
तस्वीर: DW/S.Waheed
ऑनलाइन विज्ञापन
अब चुनाव आयोग सोशल मीडिया के विज्ञापनों पर भी नजर रखेगा. साथ ही राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों के चुनावी विज्ञापन को उनके चुनावी खर्च के साथ जोड़ा जाएगा. फेसबुक ने साफ किया है कि पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से वह राजनीतिक विज्ञापनों में उसे छपवाने वाले की जानकारी देगा. यह नई नीति फोटो शेयरिंग ऐप इंस्टाग्राम पर भी लागू होगी.
तस्वीर: Reuters
थर्ड जेंडर
यह पहला मौका है जब भारत के तकरीबन 39,000 नागरिकों ने स्वयं को बतौर "थर्ड जेंडर" रजिस्टर किया है. देश में ट्रांसजेंडर्स लोगों की आबादी करीब 50 हजार है, लेकिन अब से पहले उन्हें पुरुष या महिला के रूप में स्वयं को रजिस्टर करना होता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
महिलाओं का बूथ
इन चुनावों में पहली बार हर निर्वाचन क्षेत्र को एक मतदान केंद्र सिर्फ महिलाओं के लिए तैयार करना होगा. हालांकि कर्नाटक में यह संख्या कहीं ज्यादा है. राज्य में ऐसे तकरीबन 600 मतदान केंद्र होंगे, जहां स्टाफ से लेकर सुरक्षा तक की सारी जिम्मेदारी महिलाएं संभालेंगी. (एएफपी/एए)