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क्या बच पाएंगी व्हेल मछलियां

१७ सितम्बर २०१०

दुनिया भर में व्हेल मछलियों की संख्या दिन पर दिन कम होती जा रही है. जहां एक तरफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने व्हेल के शिकार पर रोक लगाई हुई है वहीं कुछ ऐसे भी देश है जो खुद को इस रोक का हिस्सा नहीं मानते हैं.

तस्वीर: AP

इन देशों में आज भी व्हेल मछलियों के शिकार को संस्कृति का हिस्सा माना जाता है. आइसलैंड में तो ऐसा रेस्त्रां भी है जो ख़ास तौर से व्हेल मछली से बने व्यंजनों के लिए जाना जाता है. आइसलैंड की राजधानी रेक्याविक. यहां के त्रिर फ्राक्कर रेस्त्रां में हमेशा भीड़ लगी रहती है. यह रेस्त्रां इतना भरा रहता है कि अगर आप को यहां आ कर खाना खाना हो तो पहले से ही टेबल रिज़र्व करनी होगी. अहम कारोबारी मीटिंग्स हों या दोस्तों के साथ कोई जश्न मनाना हो, आइसलैंड के लोग यहां आना बेहद पसंद करते हैं.

और इसकी वजह है एक खास व्यंजन. लोग खास तौर से यहां व्हेल मछली से वने व्यंजन खाने आते हैं. डेनमार्क से काम के सिलसिले में इस रेस्त्रां में पहुंचे पीटर लेओंग्रेन बताते हैं, "मैं जब भी यहां आता हूं, तो मेरी कोशिश होती है की यहां के स्थानीय व्यंजन चख सकूं और व्हेल मछली तो इनमें सबसे ख़ास है.

व्हेल मछली का मांस एक तो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा होता है. साथ है यह बाकी चीज़ों के मुकाबले बहुत ही स्वादिष्ट भी होता है. मैं तो सब को इसे खाने की सलाह दूंगा. अफसोस की बात यह है कि डेनमार्क में यह नहीं मिलता. आइसलैंड और ग्रीनलैंड में लोग पिछले हज़ारों सालों से व्हेल खाते आए हैं और मुझे भी इससे कोई हर्ज़ नहीं है."

तस्वीर: OKAPIA

व्हेल मछली का शिकार पिछले सात हजार साल से होता आया है. इसके तेल से साबुन, इत्र, मोमबत्तियां और साज सिंगार की चीजें बनाई जाती रही हैं. लेकिन जब व्हेल का शिकार बहुत ज्यादा होने लगा तो इन सब चीजों पर पाबंदी लगा दी गई और इसे केवल खाने तक सीमित कर दिया गया. पीटर को यहां लाए हैं उनके साथी गुड्यों हराल्डसन. पीटर की ही तरह उन्हें भी इसमें कुछ गलत नहीं लगता:

"हमारे यहां व्हेल मछली पकड़ने का रिवाज़ बहुत ही पुराना है. हम यह इतने समय से करते आए हैं और इसे रोकने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं हैं. यह होता आया है और आगे भी होता रहेगा."

बीसवीं सदी में पूरी दुनिया में करीब तीस लाख व्हेल मछलियों का शिकार हुआ. और यह आंकडे तब हैं जब 1948 में अंतरराष्ट्रीय व्हेल कमीशन ने 1990 तक व्हेल के शिकार पर पाबंदी लगा दी थी. जब इस पाबंदी के बाद भी व्हेल की संख्या नहीं बढ़ी तो इस पाबंदी को और आगे बढ़ा दिया गया. इस साल अंतरराष्ट्रीय व्हेल कमीशन की बैठक में यह चर्चा एक बार फिर हुई की क्या यह पाबंदी अब हटा देनी चाहिए.

जापान, नोर्वे और आइसलैंड ने इस पाबंदी को पूरी तरह से हटाने की मांग की है. इन तीनों ही देशों को साल में एक निर्धारित संख्या में व्हेल के शिकार की छूट है. विशेषज्ञों का मानना है की यह छूट गलत है. पर दुनिया भर में भले ही लोग विरोध कर रहे हों, यहां के लोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

हेओर्डूर एर्लिंग्सन समाजशास्त्री हैं और वो भी त्रिर फ्राक्कर रेस्त्रां में शौक से आते हैं. "हमें ग्रीन पीस जैसी संस्थाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता. ग्रीन पीस वाले कहते हैं व्हेल खतरे में है, हम उनसे पूछते हैं - कौन से व्हेल खतरे में हैं? क्योंकि वो जानते ही नहीं हैं कि यहां इस पानी में पंद्रह किस्म की व्हेल मछलियां हैं."

ऐसी ही दलीलें व्हेल पकड़ने वालों की भी हैं. 66 वर्ष के क्रिस्टियान लौफ्टसन ने अपना पूरा जीवन व्हेल मछलियों के शिकार में बिता दिया. वह बताते हैं की यह उनका शौक है. एक जर्मन अखबार ने एक बार उन्हें आइसलैंड में रहने वाला ऐसा शख्स बताया था जिस से दुनिया सब से ज्यादा नफरत करती है.

"आइसलैंड में रह कर तो यहां की प्राकृतिक चीज़ों को फायदेमंद बना ही होगा. हम यहां व्हेल वैसे ही पकड़ते हैं जैसे लोग आम तौर पर मछलियां पकड़ते हैं. यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा. यह काम करते हुए मेरी पूरे ज़िंदगी बीत गई और मैं यह बहुत अच्छी तरह से जानता हूं कि व्हेल के अस्तित्व को हम से कोई खतरा नहीं है. इसीलिए हम आगे भी ऐसे ही व्हेल मछलियां पकड़ते रहेंगे."

अब जब ना ही पकड़ने वालों को यह गलत लगता है और ना ही खाने वालों को, तो क्या हम उम्मीद कर सकते हैं की कभी इन व्हेल मछलियों को बचा पाएंगे? कहीं ऐसा न हो की आने वाली पीढ़ियां केवल किताबों में ही व्हेल मछलियों को देख पाएं.

रिपोर्ट: ईशा भाटिया

संपादन: एस गौड़

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