क्या बीजेपी की रथयात्राएं उसे 2019 के आम चुनावों में पश्चिम बंगाल की कम से कम 22 सीटें जीतने के लक्ष्य की ओर ले जाएंगी?
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बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की प्रदेश शाखा के सामने 42 लोकसभा सीटों में से आधी सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. हाल में हुए विधानसभा चुनावों में छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में हार कर सत्ता से बाहर होने के बाद बीजेपी के लिए पश्चिम बंगाल की अहमियत काफी बढ़ गई है. वह उत्तर भारत के राज्यों में होने वाले नुकसान की भरपाई पूर्वी भारत से करना चाहती है.
रथयात्रा
आम चुनाव के लिए वोटरों की नब्ज पकड़ने के मकसद से बीजेपी ने राज्य के 42 लोकसभा क्षेत्रों में रथयात्रा निकालने की जो महात्वाकांक्षी योजना बनाई थी वह प्रशासनिक और कानूनी दाव-पेंच में फंस गई. तीन अलग-अलग इलाकों से निकलने वाली इन रथयात्राओं के दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को मौजूद रहना था. यही नहीं, सात दिसंबर को कूचबिहार से शुरू होने वाली पहली रथयात्रा के दौरान ही 16 दिसंबर को सिलीगुड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली भी होनी थी. लेकिन अदालती गतिरोध में रथ के पहिए फंसने की वजह से यात्रा तो अधर में लटकी ही, मोदी का दौरा भी रद्द हो गया.
अब पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने बीजेपी को और जोरदार झटका दिया है. उसके बाद पार्टी को बंगाल में अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करना पड़ रहा है. अमित शाह ने बंगाल में पार्टी नेतृत्व को कम से कम 22 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया है. वैसे, प्रदेश नेताओं ने अति उत्साह में यह लक्ष्य बढ़ा कर 25-26 कर दिया था. लेकिन अब सब कुछ खटाई में पड़ता नजर आ रहा है. पार्टी के एक नेता निजी बातचीत में मानते हैं कि पहले रथयात्रा रद्द होने और उसके बाद विधानसभा चुनावों के नतीजों ने पूरी रणनीति पर दोबारा विचार करने पर मजबूर कर दिया है.
कानूनी गतिरोध
बीजेपी की रथयात्रा सात दिसंबर को कूचबिहार से शुरू होनी थी. दूसरी व तीसरी रथयात्रा क्रमशः काकद्वीप व बीरभूम से नौ और 14 दिसंबर को होनी थी. लेकिन कूचबिहार के पुलिस अधीक्षक ने सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ने का अंदेशा जताते हुए इसकी अनुमति देने से इंकार कर दिया था. उसके बाद बीजेपी ने अदालत की शरण ली थी. लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ ने भी बीजेपी को पश्चिम बंगाल में रथयात्रा की अनुमति नहीं दी और इस पर नौ जनवरी तक रोक लगा दी थी.
बाद में इस फैसले के खिलाफ पार्टी ने खंडपीठ का दरवाजा खटखटाया था. अदालत ने इस मामले में कथित लापरवाही के लिए सरकार की जम कर खिंचाई करते हुए और उसे 12 दिसंबर तक इस मुद्दे पर बीजेपी के नेताओं के साथ बैठक कर गतिरोध दूर करने की सलाह दी थी. खंडपीठ ने एकल पीठ की ओर से रथयात्रा पर नौ जनवरी तक लगी रोक को खारिज कर दिया था. खंडपीठ ने कहा था कि 12 दिसंबर तक राज्य के मुख्य सचिव, गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक बीजेपी के तीन-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक कर इस मुद्दे पर सहमति बनाने का प्रयास करें.
बीजेपी से भी रथयात्रा की नई तारीखों पर प्रशासन के साथ बातचीत करने को कहा गया था. लेकिन सरकार ने एक खुफिया रिपोर्ट के हवाले सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ने का अंदेशा जताते हुए एक बार फिर इसकी अनुमति से देने से इंकार कर दिया. आखिर में कलकत्ता हाईकोर्ट की एक एकल पीठ ने इस यात्रा की सशर्त अनुमति तो दे दी है. लेकिन ममता बनर्जी सरकार इस फैसले को भी चुनौती देने का मन बना रही है.
प्रदेश बीजेपी के उपाध्यक्ष जय प्रकाश मजुमदार बताते हैं, "लोकतंत्र बचाओ रैली के तहत कूचबिहार से 22, दक्षिण 24-परगना जिले के काकद्वीप से 24 और बीरभूम जिले के तारापीठ मंदिर से 26 दिसंबर को लोकतंत्र बचाओ रैली निकाली जाएगी.”
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी की प्रस्तावित रथयात्रा के लिए उसकी खिंचाई करते हुए इसे एक राजनीतिक नौटंकी करार दिया है. तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता कहती हैं, "यह रथ यात्रा नहीं बल्कि रावण यात्रा है. यह एक पंचसितारा होटल है.” दूसरी ओर, विश्व हिंदू परिषद ने ममता की टिप्पणी के लिए उनकी खिंचाई करते हुए कहा है कि दोहरे रवैए वाली मुख्यमंत्री से किसी बात की उम्मीद नहीं की जा सकती है. संगठन के एक प्रवक्ता जिष्णु बसु कहते हैं, "ममता हिंदू भावनाओं को कुचलने पर आमादा हैं. उन्होंने अल्पसंख्यकों के साथ नमाज पढ़ी है और मुस्लिम त्योहारों के शांतिपूर्ण आयोजन के लिए दुर्गा पूजा पर बंदिशें लगाने का प्रयास कर चुकी हैं.”
राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि बीजेपी की इन रथयात्राओं का मकसद बंगाल के विभिन्न इलाकों में खासकर हिंदुओं को अपने पाले में करना है. इसके तहत असम व झारखंड की सीमा से लगे उन इलाकों पर खास ध्यान दिया जाना है जहां बीते साल हुए पंचायत चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा था. लेकिन तृणमूल कांग्रेस किसी भी कीमत पर बीजेपी को आगे नहीं बढ़ने देना चाहती. एक पर्यवेक्षक सोमेन मंडल कहते हैं, "बीजेपी रथयात्रा पर सवार होकर यहां 22 सीटें जीतने के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहती है. लेकिन राज्य सरकार के रवैए की वजह से फिलहाल इस यात्रा की राह पथरीली ही नजर आ रही है.”
कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद देश में भारतीय जनता पार्टी का दायरा लगातार बढ़ा है. डालते हैं एक नजर अभी कहां कहां बीजेपी और उसके सहयोगी सत्ता में हैं.
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उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 325 सीटें जीतीं. इसके बाद फायरब्रांड हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी मिली.
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त्रिपुरा
2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहाते हुए बीजेपी गठबंधन को 43 सीटें मिली. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) ने 16 सीटें जीतीं. 20 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद मणिक सरकार की सत्ता से विदाई हुई और बिप्लव कुमार देब ने राज्य की कमान संभाली.
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मध्य प्रदेश
शिवराज सिंह चौहान को प्रशासन का लंबा अनुभव है. उन्हीं के हाथ में अभी मध्य प्रदेश की कमान है. इससे पहले वह 2005 से 2018 तक राज्य के मख्यमंत्री रहे. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सत्ता में आई. लेकिन दो साल के भीतर राजनीतिक दावपेंचों के दम पर शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता में वापसी की.
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उत्तराखंड
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी बीजेपी का झंडा लहर रहा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता में पांच साल बाद वापसी की. त्रिवेंद्र रावत को बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान मिली. लेकिन आपसी खींचतान के बीच उन्हें 09 मार्च 2021 को इस्तीफा देना पड़ा.
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बिहार
बिहार में नीतीश कुमार एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. हालिया चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा. इससे पिछले चुनाव में वह आरजेडी के साथ थे. 2020 के चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन 74 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही बीजेपी ने नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ मिलकर सरकार बनाई, जिसे 43 सीटें मिलीं.
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गोवा
गोवा में प्रमोद सावंत बीजेपी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने मनोहर पर्रिकर (फोटो में) के निधन के बाद 2019 में यह पद संभाला. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पर्रिकर ने केंद्र में रक्षा मंत्री का पद छोड़ मुख्यमंत्री पद संभाला था.
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 2017 में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है जिसका नेतृत्व पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह कर रहे हैं. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री हैं. इस राज्य में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई.
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हिमाचल प्रदेश
नवंबर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी की. हालांकि पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए. इसके बाद जयराम ठाकुर राज्य सरकार का नेतृत्व संभाला.
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कर्नाटक
2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. 2018 में वो बहुमत साबित नहीं कर पाए. 2019 में कांग्रेस-जेडीएस के 15 विधायकों के इस्तीफे होने के कारण बीेजेपी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच गई. येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं.
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हरियाणा
बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर हरियाणा में मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने 2014 के चुनावों में पार्टी को मिले स्पष्ट बहुमत के बाद सरकार बनाई थी. 2019 में बीजेपी को हरियाणा में बहुमत नहीं मिला लेकिन जेजेपी के साथ गठबंधन कर उन्होंने सरकार बनाई. संघ से जुड़े रहे खट्टर प्रधानमंत्री मोदी के करीबी समझे जाते हैं.
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गुजरात
गुजरात में 1998 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. फिलहाल राज्य सरकार की कमान बीजेपी के विजय रुपाणी के हाथों में है.
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असम
असम में बीजेपी के सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं. 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 86 सीटें जीतकर राज्य में एक दशक से चले आ रहे कांग्रेस के शासन का अंत किया. अब राज्य में फिर विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है.
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अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं जो दिसंबर 2016 में भाजपा में शामिल हुए. सियासी उठापटक के बीच पहले पेमा खांडू कांग्रेस छोड़ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हुए और फिर बीजेपी में चले गए.
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नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
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मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
तस्वीर: IANS
सिक्किम
सिक्किम की विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी का एक भी विधायक नहीं है. लेकिन राज्य में सत्ताधारी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है. इस तरह सिक्किम भी उन राज्यों की सूची में आ जाता है जहां बीजेपी और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं.
तस्वीर: DW/Zeljka Telisman
मिजोरम
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है. वहां जोरामथंगा मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी की वहां एक सीट है लेकिन वो जोरामथंगा की सरकार का समर्थन करती है.
तस्वीर: IANS
2019 की टक्कर
इस तरह भारत के कुल 28 राज्यों में से 16 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं. हाल के सालों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्य उसके हाथ से फिसले हैं. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के आगे कोई नहीं टिकता.