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समाज

क्या भविष्य में कंपोस्ट होंगी लाशें?

महेश झा
१७ फ़रवरी २०२०

जैसे जैसे समय बदल रहा है, लोगों की अंतिम क्रिया का तरीका भी बदल रहा है. मिट्टी, आग और पानी वाली अंतिम क्रिया के बाद अब जर्मनी में दफन करने के इको फ्रेंडली तरीकों पर भी चर्चा हो रही है.

Öko-Bestattung
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Kaiser

जर्मनी में हर तीन में से दो लोगों की मौत के बाद उनका दाह संस्कार होता है. दाहकर्म के बाद अस्थिकलश को दफनाने या शव को जमीन में दफनाने के बीच ही अब पर्यावरण सम्मत तरीके से दफनाने पर भी चर्चा होने लगी है. अमेरिका में लाश को कंपोस्ट करने का भी विकल्प सामने आया है. फोरेंसिक एक्सपर्ट मार्क बेनेके इसे शरीर के पोषक तत्त्वों को फिर से जमीन में डालने का सबसे अच्छा तरीका मानते हैं. बेनेके ने जर्मन रेडियो डॉयचलंड फुंक को बताया कि शव को जलाए जाने से उसके पोषक तत्त्व जल कर खत्म हो जाते हैं, सिर्फ कार्बन डायऑक्साइड वायुमंडल में जा मिलता है. लेकिन शरीर को कंपोस्ट कर देने से बाद में बचे अवशेष को जमीन में मिलाया जा सकता है.

अमेरिका में वाशिंगटन शहर ने 2019 में शवों को कंपोस्ट करने या नैचुरल ऑर्गेनिक रिडक्शन की अनुमति दे दी थी. विज्ञान पत्रिका साइंस न्यूज के अनुसार, अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ एडवांसमेंट और साइंस की एक बैठक में पिछले वीकएंड छह लाशों के साथ हुए एक प्रयोग के नतीजे पेश किए गए. सिएटेल की कंपनी रिकंपोज जल्द ही कंपोस्ट करवाने के लिए शवों को लेना शुरू करेगी. विश्लेषकों का कहना है कि कंपोस्ट से पैदा होने वाली मिट्टी अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मानकों का पालन करती है.

अंतिम शांति जंगल मेंतस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Stratenschulte

अंतिम संस्कार के नियम

यूरोप के देश ईसाई प्रभाव में रहे हैं. इसलिए यहां आम तौर पर लोगों को मरने के बाद कब्रगाहों में दफनाने का चलन रहा है. जर्मनी में इसका निर्धारण कानूनों के तहत होता है. इसमें दफनाने के कानून, मृत देह के साथ पेश आने के नियम और कब्रगाह कानून शामिल हैं. जर्मनी में मृतकों को दफनाना अनिवार्य है. इन कानूनों की वजह से देश में अंतिम क्रिया करवाने वाले संस्थान हैं जिनकी जिम्मेदारी लाश को निजी घरों या अस्पतालों से लाकर मोर्ग में संभाल कर रखने और तय तारीख को उसे नहा धुलाकर तैयार कर ताबूत में रखकर कब्रगाहों में लाने की होती है. ये संस्थान ही अंतिम यात्रा से पहले शोक सभा का भी बंदोबस्त करते हैं.

कब्रगाह आम तौर पर सरकारी मिल्कियत वाले हैं जहां दफनाने की जगह पाने के लिए परिजनों को किराया भी देना पड़ता है. अंतिम क्रिया के बढ़ते दामों, मरने के बाद दफन की खुद की इच्छाओं और एकल परिवारों के बढ़ने के कारण यूरोपीय देशों में मरने के बाद अंतिम यात्रा का स्वरूप भी बदल रहा है. परिवार के मृत लोगों को अंतिम शांति देने के लिए लोगों की प्रतिबद्धता के कारण जर्मनी के कब्रगाह किसी पार्क जैसे होते हैं. बड़े बड़े पुराने पेड़, पत्थर की कलात्मक और खूबसूरत कब्रें, और उसके आसपास लगे फूल.

कार्ल्सरूहे का कब्रिस्तानतस्वीर: U. Deck/dpa/picture alliance

बदलती संस्कृति

लेकिन पुराने जमाने की तरह ज्यादा बड़े परिवार अब नहीं रहे. परिवार नहीं रहे तो कब्रगाह में परिवारों की विशेष जगहों की जरूरत नहीं रही. इसलिए लोग अब भव्य कब्र की जगह सामान्य सीधी सादी कब्र को प्राथमिकता देने लगे हैं. कई लोग दफनाने के लिए बड़ी जगह लेने के बदले लाश को जलाकर अस्थिकलश को छोटी जगह पर दफनाने का विकल्प चुनने लगे हैं. बिखरते और छोटे होते परिवारों के चलन के बीच बहुत से लोग यह भी सोचने लगे हैं कि उनके मरने पर उन्हें याद करने कौन उनकी कब्र पर आएगा. ऐसे कई लोग मौत के बाद लाश को जलाए जाने और राख को जंगल में बिखेरे जाने का विकल्प चुन रहे हैं. कब्रगाहों के संगठन के विल्हेल्म ब्रांट कहते हैं, "कब्र को बोझ समझा जाने लगा है."

ओलिवर विर्थमन आलबाख अंतिम क्रिया संस्थान के प्रमुख हैं और जर्मन अंतिम क्रिया संस्कृति संगठन के जनरल मैनेजर रह चुके हैं. वे कहते हैं कि अंतिम क्रिया की संस्कृति समाज की संस्कृति का आईना होती है. जर्मनी में अंतिम क्रिया करवाने वाले 3250 संस्थान हैं. इस बीच 60 से 70 प्रतिशत लोग शव की दाह क्रिया करवाते हैं. अंतिम क्रिया पर 2500 से लेकर 4000 यूरो तक का खर्च आता है. विर्थमन के पास बहुत से लोग ऐसे भी आते हैं जिन्होंने अपने माता पिता के साथ मृत्यु के बारे में कभी कोई बात नहीं की थी, ऐसे लोगों को सलाह की जरूरत होती है.

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