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क्या भारत, चीन ने सीमा गतिरोध का समाधान ढूंढ लिया है?

चारु कार्तिकेय
१२ नवम्बर २०२०

दावा किया जा रहा है कि भारत और चीन के बीच लद्दाख में सेनाओं को पीछे हटाने की शर्तों पर सहमति हो गई है. यह सहमति पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग सो-चुशुल इलाके तक सीमित है. क्या अब एलसी पर गतिरोध समाप्ति की ओर बढ़ रहा है?

Grenzkonflikt China Indien
तस्वीर: Mukhtar Khan/AP/picture alliance

मीडिया में आई खबरों में दावा किया जा रहा है कि इलाके से सैनिकों, टैंकों, तोपों और बख्तरबंद वाहनों को हटाने के लिए मोटे तौर पर सहमति हो गई है. इस योजना पर दोनों देशों के बीच हाल ही में हुई आठवें दौर की सैन्य वार्ता में सहमति हुई थी. उसी के आधार पर योजना को विस्तार से रूप देने के लिए एक एक कदम पर अभी दोनों पक्षों में चर्चा चल रही है.

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पीछे हटने की प्रक्रिया पैंगोंग झील के उत्तरी तट से शुरू होगी जहां चीनी सेना ने मई से फिंगर चार से लेकर फिंगर आठ तक के इलाके पर कब्जा कर किलेबंदी की हुई है. सहमति इस बात पर हुई है कि चीनी सेना अपने पूर्व स्थान यानी फिंगर आठ के पूर्व की ओर वापस लौट जाएगी और भारतीय सेना पश्चिम की तरफ फिंगर दो और तीन के बीच धन सिंह थापा चौकी पर वापस आ जाएगी.

यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होगी और हर चरण में एक-तिहाई सैनिक पीछे हटेंगे. इसके बाद फिंगर चार और आठ के बीच के इलाके को एक ऐसा इलाका घोषित कर दिया जाएगा जहां किसी भी पक्ष को गश्त लगाने की अनुमति नहीं होगी. हालांकि जानकारों के अनुसार यह इलाका एलएसी के अंदर है और भारत की तरफ ही पड़ता है.

जून 2020 के इस तस्वीर में लद्दाख की राजधानी लेह के इर्द-गिर्द फैली पहाड़ियों के ऊपर भारतीय वायु सेना के एक विमान को देखा जा सकता है.तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa

इसके अलावा इस बात पर भी सहमति हुई है कि चुशुल सेक्टर में पांगोंग झील के दक्षिणी तट पर दोनों सेनाएं अपने टैंकों और अन्य भारी हथियारों को अग्रणी मोर्चों से पीछे कर देंगी. अंतिम चरण में दोनों सेनाएं चुशुल इलाके में अपने अपने कब्जे में ले चुकी चोटियों को खाली करेंगी.

वहीं डेपसांग इलाके में दोनों सेनाओं के बीच जो गतिरोध है उसका कोई समाधान अभी तक नहीं निकल पाया है. लिहाजा, उस पर बाद में चर्चा होगी. दावा किया जा रहा है कि स्थिति अगर योजना के अनुरूप ही रही तो इस प्रक्रिया की शुरुआत इसी महीने हो सकती है.

लेकिन कई जानकार इस योजना के असरदार साबित होने पर संदेह जता रहे हैं और इसे भारत के लिए नुकसानदेह मान रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार सुशांत सिंह का कहना है कि जून में गलवान घाटी में जो बफर इलाका बनाया गया था यह प्रस्ताव भी उसी के जैसा है.

भारतीय सेना में अधिकारी भी रह चुके सिंह ने ट्विट्टर पर लिखा कि इससे कुल मिला कर होगा यह कि चीनी सेना तो कब्जा किए इलाकों से पीछे हट जाएगी लेकिन भारत को पहले से जिन इलाकों में गश्त लगाने का अधिकार था वो भारतीय सेना गंवा बैठेगी. 

फिलहाल प्रस्ताव की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. देखना होगा कि यह प्रक्रिया आगे बढ़ती है या नहीं.

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