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समाज

क्या अब भारत में स्कूल खोले जा सकते हैं?

चारु कार्तिकेय
९ सितम्बर २०२०

भारत अब दुनिया में सबसे ज्यादा कोरोना वायरस के संक्रमण के कुल मामलों में तीसरे से दूसरे स्थान पर पहुंच चुका है, लेकिन इसके बावजूद देश में स्कूलों को खोलने की तैयारी शुरू हो चुकी है.

Coronavirus Indien Kannauj Schulkinder tragen Schutzmasken
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R.K. Singh

हालांकि इसमें भी नियमित रूप से कक्षाएं नहीं होंगी. अगर कोई छात्र पाठ्यक्रम संबंधी किसी समस्या का सामना कर रहा हो तो उन्हें अपने अध्यापकों से मिल कर मार्गदर्शन लेने का अवसर दिया जा रहा है. सरकार के दिशा निर्देशों के अनुसार यह तालाबंदी के बाद गतिविधियों को चरण बद्ध तरीके से फिर से खोलने के तहत किया जा रहा लेकिन यह पूरी तरह से स्वैच्छिक आधार पर होगा, यानी अभी किसी भी छात्र के लिए स्कूल जाना अनिवार्य नहीं किया जा रहा है.

इसके लिए अभिभावकों की अनुमति भी अनिवार्य होगी. स्कूलों को 50 प्रतिशत अध्यापकों और अन्य कर्मचारियों को काम पर बुलाने की भी अनुमति दी गई है. सार्वजनिक स्थलों पर लागू कोविड प्रबंधन के सभी निर्देशों का पालन करने के लिए भी कहा गया है, जैसे छह फीट की दूरी बनाए रखना, मास्क पहनना, हाथ धोते रहना इत्यादि. इसे सरकार की तरफ से स्कूल अब खुलने के लिए तैयार हैं या नहीं ये देखने के लिए एक प्रयोग के तौर पर उठाया गया कदम माना जा रहा है.

लेकिन क्या छात्र, अभिभावक, अध्यापक और अन्य कर्मचारी और स्कूल प्रबंधन इसके लिए तैयार हैं? कम से कम छोटे बच्चों के अभिभावक तो अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं ही हैं, लेकिन अभिभावकों के साथ साथ लगभग सभी में मौजूदा स्थिति को लेकर कई चिंताएं हैं. दिल्ली की नेहा श्रीवास्तव कहती हैं कि उन्हें संक्रमण की उतनी चिंता नहीं है लेकिन जब बात बच्चों की है तो थोड़ा-बहुत जोखिम भी क्यों लेना.

अभिभावकों में डर

लेकिन दिल्ली से सटे नोएडा में रहने वाली भावना आर्या बजाज कहती हैं कि दुनिया में कई विकसित देशों में स्कूल खोलने के बाद संक्रमण के मामले बढ़ गए. वो कहती हैं कि जब तक एक कारगर वैक्सीन आ नहीं जाती और सबके लिए उपलब्ध नहीं हो जाती तब तक वो किसी भी हाल में अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेजेंगी.

पुणे की यूपा हिरण्मय ने डीडब्ल्यू को बताया कि स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन बिल्कुल भी नहीं हो पाएगा और विशेष रूप से छोटे बच्चों को लेकर स्कूल यह कैसे सुनिश्चित कर पाएंगे कि वो थोड़ी-थोड़ी देर पर अपने हाथों को सैनिटाइज करते रहें.

अभिभावक कहते हैं कि स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन बिल्कुल भी नहीं हो पाएगा और विशेष रूप से छोटे बच्चे थोड़ी-थोड़ी देर पर अपने हाथों को सैनिटाइज नहीं कर पाएंगे.तस्वीर: DW/Prabhakar

वहीं बेंगलुरु में रहने वाले अमित डनायक का बेटा चौथी कक्षा में पढ़ता है लेकिन वो कहते हैं कि उनका बेटा मास्क और चीजों को ना छूने के बारे में पूरी तरह से सतर्क  नहीं रह पाता है. अमित यह भी कहते हैं कि स्कूल के परिसर के अलावा बसों में भी संक्रमण होने का डर रहेगा और वो खुद रोजाना अपने बेटे को स्कूल छोड़ने और वापस लाने की स्थिति में नहीं हैं.

अध्यापक भी चिंतित

अध्यापक और दूसरे कर्मचारी यह महसूस करते हैं कि आदेश के रूप में अगर उनका स्कूल जाना अनिवार्य ही कर दिया जाएगा तब तो उन्हें मजबूरन जाना ही पड़ेगा, लेकिन वो यह मानते हैं कि अभी भी नियमित रूप से यात्रा करने और काम पर जाने में संक्रमण का काफी जोखिम है. नाम गुप्त रखने की शर्त पर दिल्ली के एक निजी स्कूल की अध्यापिका ने डीडब्ल्यू से कहा कि अगर टीचरों को कुछ हो गया तो बच्चों को पढ़ाएगा कौन?

संक्रमण के जोखिम के अलावा भी स्कूलों को खोलने से संबंधित कई चिंताएं हैं. दूरी बनाए रखने की जरूरतों को पूरा करने में स्कूलों के आगे कई मुश्किलें आएंगी. छोटे स्कूल तो क्या, अधिकतर बड़े स्कूलों में भी कक्षाएं इतनी बड़ी नहीं होती हैं कि उनमें सभी बच्चों के बीच छह फीट की दूरी रखी जा सके. ऐसे में स्कूल कितनी अतिरिक्त कक्षाएं बना पाएंगे? अगर कक्षाएं बना भी दीं तो अतिरिक्त टीचरों को नौकरी पर रखना पड़ेगा. स्कूलों के प्रबंधक इस तरह के कई सवालों का सामना कर रहे हैं. 

छोटे स्कूल तो क्या, अधिकतर बड़े स्कूलों में भी कक्षाएं इतनी बड़ी नहीं होती हैं कि उनमें सभी बच्चों के बीच छह फीट की दूरी रखी जा सके.तस्वीर: DW/P. Samanta

इसके अलावा स्कूलों के आंशिक रूप से खुलने में भी कई मुश्किलें हैं. दिल्ली के विकासपुरी में केआर मंगलम वर्ल्ड स्कूल की प्रिंसिपल प्रिया अरोड़ा ने डीडब्ल्यू को बताया कि ऐसा करने से टीचरों और स्कूल प्रबंधन पर बोझ बढ़ जाएगा. वो कहती हैं कि सिर्फ कुछ कक्षाओं के बच्चों को स्कूल बुलाने का मतलब है कि अध्यापकों को कुछ छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाना पड़ेगा और कुछ छात्रों को ऑफलाइन.

प्रिया कहती हैं ये दोनों तरीके एक साथ चलाना मुश्किल हो जाएगा और ऐसे में बेहतर यही होगा कि या तो स्कूल पूरी से खोल दिए जाएं या बिलकुल भी ना खोले जाएं. देखना होगा कि 21 सितंबर से कितने स्कूल खुलेंगे, कितने छात्र स्कूल जाएंगे और स्कूलों के खुलने से संक्रमण पर क्या असर पड़ेगा.

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