भारत अब दुनिया में सबसे ज्यादा कोरोना वायरस के संक्रमण के कुल मामलों में तीसरे से दूसरे स्थान पर पहुंच चुका है, लेकिन इसके बावजूद देश में स्कूलों को खोलने की तैयारी शुरू हो चुकी है.
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हालांकि इसमें भी नियमित रूप से कक्षाएं नहीं होंगी. अगर कोई छात्र पाठ्यक्रम संबंधी किसी समस्या का सामना कर रहा हो तो उन्हें अपने अध्यापकों से मिल कर मार्गदर्शन लेने का अवसर दिया जा रहा है. सरकार के दिशा निर्देशों के अनुसार यह तालाबंदी के बाद गतिविधियों को चरण बद्ध तरीके से फिर से खोलने के तहत किया जा रहा लेकिन यह पूरी तरह से स्वैच्छिक आधार पर होगा, यानी अभी किसी भी छात्र के लिए स्कूल जाना अनिवार्य नहीं किया जा रहा है.
इसके लिए अभिभावकों की अनुमति भी अनिवार्य होगी. स्कूलों को 50 प्रतिशत अध्यापकों और अन्य कर्मचारियों को काम पर बुलाने की भी अनुमति दी गई है. सार्वजनिक स्थलों पर लागू कोविड प्रबंधन के सभी निर्देशों का पालन करने के लिए भी कहा गया है, जैसे छह फीट की दूरी बनाए रखना, मास्क पहनना, हाथ धोते रहना इत्यादि. इसे सरकार की तरफ से स्कूल अब खुलने के लिए तैयार हैं या नहीं ये देखने के लिए एक प्रयोग के तौर पर उठाया गया कदम माना जा रहा है.
लेकिन क्या छात्र, अभिभावक, अध्यापक और अन्य कर्मचारी और स्कूल प्रबंधन इसके लिए तैयार हैं? कम से कम छोटे बच्चों के अभिभावक तो अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं ही हैं, लेकिन अभिभावकों के साथ साथ लगभग सभी में मौजूदा स्थिति को लेकर कई चिंताएं हैं. दिल्ली की नेहा श्रीवास्तव कहती हैं कि उन्हें संक्रमण की उतनी चिंता नहीं है लेकिन जब बात बच्चों की है तो थोड़ा-बहुत जोखिम भी क्यों लेना.
अभिभावकों में डर
लेकिन दिल्ली से सटे नोएडा में रहने वाली भावना आर्या बजाज कहती हैं कि दुनिया में कई विकसित देशों में स्कूल खोलने के बाद संक्रमण के मामले बढ़ गए. वो कहती हैं कि जब तक एक कारगर वैक्सीन आ नहीं जाती और सबके लिए उपलब्ध नहीं हो जाती तब तक वो किसी भी हाल में अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेजेंगी.
पुणे की यूपा हिरण्मय ने डीडब्ल्यू को बताया कि स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन बिल्कुल भी नहीं हो पाएगा और विशेष रूप से छोटे बच्चों को लेकर स्कूल यह कैसे सुनिश्चित कर पाएंगे कि वो थोड़ी-थोड़ी देर पर अपने हाथों को सैनिटाइज करते रहें.
वहीं बेंगलुरु में रहने वाले अमित डनायक का बेटा चौथी कक्षा में पढ़ता है लेकिन वो कहते हैं कि उनका बेटा मास्क और चीजों को ना छूने के बारे में पूरी तरह से सतर्क नहीं रह पाता है. अमित यह भी कहते हैं कि स्कूल के परिसर के अलावा बसों में भी संक्रमण होने का डर रहेगा और वो खुद रोजाना अपने बेटे को स्कूल छोड़ने और वापस लाने की स्थिति में नहीं हैं.
अध्यापक भी चिंतित
अध्यापक और दूसरे कर्मचारी यह महसूस करते हैं कि आदेश के रूप में अगर उनका स्कूल जाना अनिवार्य ही कर दिया जाएगा तब तो उन्हें मजबूरन जाना ही पड़ेगा, लेकिन वो यह मानते हैं कि अभी भी नियमित रूप से यात्रा करने और काम पर जाने में संक्रमण का काफी जोखिम है. नाम गुप्त रखने की शर्त पर दिल्ली के एक निजी स्कूल की अध्यापिका ने डीडब्ल्यू से कहा कि अगर टीचरों को कुछ हो गया तो बच्चों को पढ़ाएगा कौन?
संक्रमण के जोखिम के अलावा भी स्कूलों को खोलने से संबंधित कई चिंताएं हैं. दूरी बनाए रखने की जरूरतों को पूरा करने में स्कूलों के आगे कई मुश्किलें आएंगी. छोटे स्कूल तो क्या, अधिकतर बड़े स्कूलों में भी कक्षाएं इतनी बड़ी नहीं होती हैं कि उनमें सभी बच्चों के बीच छह फीट की दूरी रखी जा सके. ऐसे में स्कूल कितनी अतिरिक्त कक्षाएं बना पाएंगे? अगर कक्षाएं बना भी दीं तो अतिरिक्त टीचरों को नौकरी पर रखना पड़ेगा. स्कूलों के प्रबंधक इस तरह के कई सवालों का सामना कर रहे हैं.
इसके अलावा स्कूलों के आंशिक रूप से खुलने में भी कई मुश्किलें हैं. दिल्ली के विकासपुरी में केआर मंगलम वर्ल्ड स्कूल की प्रिंसिपल प्रिया अरोड़ा ने डीडब्ल्यू को बताया कि ऐसा करने से टीचरों और स्कूल प्रबंधन पर बोझ बढ़ जाएगा. वो कहती हैं कि सिर्फ कुछ कक्षाओं के बच्चों को स्कूल बुलाने का मतलब है कि अध्यापकों को कुछ छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाना पड़ेगा और कुछ छात्रों को ऑफलाइन.
प्रिया कहती हैं ये दोनों तरीके एक साथ चलाना मुश्किल हो जाएगा और ऐसे में बेहतर यही होगा कि या तो स्कूल पूरी से खोल दिए जाएं या बिलकुल भी ना खोले जाएं. देखना होगा कि 21 सितंबर से कितने स्कूल खुलेंगे, कितने छात्र स्कूल जाएंगे और स्कूलों के खुलने से संक्रमण पर क्या असर पड़ेगा.
देखिए कोरोना के कारण स्कूलों में क्या क्या हो रहा है
कोरोना वायरस ने सब कुछ बदल दिया. भारत जैसे कई देश अब तक संक्रमण की पहली लहर से ही जूझ रहे हैं तो कई जगह दूसरी लहर दस्तक दे रही है. ऐसे में दुनिया भर के स्कूलों में बच्चों को कैसे पढ़ाया जा रहा है देखिए.
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थाईलैंड: बॉक्स में क्लास
थाई राजधानी बैंकॉक के वाट ख्लोंग टेयो स्कूल में आने वाले लगभग 250 बच्चे इस तरह क्लास में बनाए गए बॉक्स में बैठकर पढ़ रहे हैं. क्लास के बाहर सिंक और साबुन भी है. सुबह स्कूल आने पर बच्चों का टेम्परेचर चेक होता है. इसका असर भी हो रहा है. जुलाई से इस स्कूल में कोरोना का कोई मामला सामने नहीं आया है.
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न्यूजीलैंड: सबकी किस्मत कहां ऐसी
राजधानी वेलिंग्टन के ये स्टूडेंट खुश हैं कि फिर से स्कूल जा पा रहे हैं. लेकिन ऑकलैंड में रहने वाले स्कूली बच्चे इतने खुशकिस्मत नहीं हैं. तीन महीने से न्यूजीलैंड में कोरोना का कोई मामला नहीं देखा गया था. लेकिन 11 अगस्त को देश के सबसे बड़े शहर ऑकलैंड में चार नए मामले सामने आए. इसके बाद शहर प्रशासन ने स्कूल और अन्य गैर जरूरी प्रतिष्ठान बंद कर लोगों से घर पर ही रहने को कहा है.
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स्वीडन: कोई विशेष उपाय नहीं
स्वीडन में स्कूली बच्चों की अभी गर्मी की छुट्टियां ही चल रही हैं. लेकिन यह तस्वीर छुट्टियों से पहले की है, जो कोरोना महामारी को लेकर स्वीडन के अलग नजरिए को दिखाती है. पूरी दुनिया से उलट स्वीडन में सरकार ने कभी लोगों से मास्क पहनने को नहीं कहा. वहां व्यापारिक प्रतिष्ठान, बार, रेस्तरां और स्कूल, सभी खुले रहे.
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जर्मनी: फिर से स्कूल, लेकिन पर्याप्त दूरी
ये बच्चे जर्मनी में सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के डॉर्टमुंड शहर के एक स्कूल के हैं. राज्य के सभी स्कूलों में बच्चों को मास्क पहनना जरूरी है. उन्हें क्लास में भी मास्क पहने रहना है. हालांकि देश के बाकी 15 राज्यों में क्लास में मास्क पहनना जरूरी नहीं है. यह कहना जल्दबाजी होगा कि इसका कितना असर हो रहा है. नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में 12 अगस्त से स्कूल खुल गए.
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वेस्ट बैंक: पांच महीने बाद खुले स्कूल
येरुशलम से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित हेब्रोन में भी स्कूल खुल गए हैं. यहां भी बच्चों के लिए क्लास में मास्क पहनना जरूरी है, कुछ स्कूल तो बच्चों से ग्लव्स पहनने को भी कह रहे हैं. मास्क के बावजूद टीचर का उत्साह साफ दिख रहा है. फिलीस्तीनी इलाकों में मार्च में स्कूल बंद किए गए थे. सबसे ज्यादा कोरोना के मामले हेब्रोन में ही सामने आए थे.
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ट्यूनीशिया: मई से मास्क में
ट्यूनिशिया की राजधानी ट्यूनिस के स्कूलों में मई से ही बच्चों ने मास्क पहनना शुरू कर दिया गया था. आने वाले हफ्तों में वहां फिर स्कूल खुलेंगे. मार्च में कोरोना के कारण ट्यूनिशिया में स्कूलों को कई हफ्तों तक बंद रखा गया. तब माता-पिता को ही अपने बच्चों को घर पर पढ़ाना पड़ा. स्कूल खुलने तक उन्हें ऑनलाइन क्लासों का ही सहारा था.
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भारत: लाउडस्पीकर से पढ़ाई
यह फोटो भारत के पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र के शहर डंडवा के एक स्कूल की है. जिन बच्चों के पास इंटरने की सुविधा नहीं है, यहां उनके लिए खास प्रबंध किया गया है. उन्हें यहां क्लास की रिकॉर्डिंग लाउडस्पीकर पर सुनाई जा रही है ताकि वे अपना स्कूल का छूटा हुआ काम पूरा कर सकें. महाराष्ट्र भारत में सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्यों में शामिल है.
तस्वीर: Reuters/P. Waydande
कांगो: टेम्परेचर टेस्ट जरूरी
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो की राजधानी किंगशासा के पास लिंगवाला इलाके के इस स्कूल में कोरोना के खतरे को बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है. स्कूल आने वाले हर छात्र का टेम्परेचर टेस्ट करने के बाद ही उसे अंदर आने दिया जाता है. स्कूल में मास्क पहनना भी जरूरी है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Mpiana
अमेरिका: कोरोना के बीच पढ़ाई
अमेरिका के स्कूलों में भी बच्चों का रोज टेम्परेचर चेक किया जाता है ताकि कोरोना के संभावित मामलों का पता लगाया जा सके. यह बहुत जरूरी है क्योंकि अमेरिका में कोरोना वायरस के मामले अब भी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार देश में कोरोना के मामले 54 लाख से ज्यादा हो गए हैं जबकि अब तक लगभग 1.70 लाख लोग मारे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Newscom/P. C. James
ब्राजील: ग्लव्स और गले मिलना
मौरा सिल्वा (बाएं) पश्चिमी रियो दे जेनेरो में एक बड़ी झुग्गी बस्ती के स्कूल में टीचर हैं. वह अपने छात्रों के घर जा रही हैं और अपने साथ "हग किट" लेकर जाती हैं. अपने छात्रों को गले लगाने से पहले सिल्वा और उनके छात्र मास्क पहनते हैं और वह उन्हें ग्लव्स पहनने में भी मदद करती हैं.