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क्या भारत से निकल पाएंगी चीन की सिल्क रोड?

४ जून २०१८

चीन की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड परियोजना, इसे विश्व में आर्थिक महाशक्ति बना सकती है. लेकिन इसके पहले चीन को, भारत, बांग्लादेश, म्यांमार के बीच बनने वाले आर्थिक कॉरिडोर के लिए रास्ता साफ करना होगा, जो आसान नहीं है.

China Seidenstraßen-Gipfel Silk Road and Golden Bridge
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Z. Huansong

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को दुनिया के सबसे सशक्त राजनेताओं में से एक माना जाता है. यही वजह है कि शी जिनपिंग का हर कदम और हर योजना मीडिया में न सिर्फ सुर्खियां बटोरती है, बल्कि वैश्विक राजनीति पर पड़ने वाले प्रभावों के चलते भी चर्चा में बनी रहती है. अब कुछ ऐसा ही हो रहा है चीन की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड (बीआरआई) परियोजना के साथ. साल 2013 में चीन के राष्ट्रपति ने इस योजना की नींव रखी थी. इसे दुनिया 21वीं सदी की सबसे बड़ी परियोजना के रूप में देख रही है. वहीं चीन की योजना भी इसमें करीब 580 अरब डॉलर के निवेश की है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स पढ़कर तो ऐसा लगता है कि अब तक हजारों कार्गो चीन से यूरोप तक जाने लगे होंगे. इसी के साथ लाखों कंटेनर न्यू सिल्क रूट के तहत बंदरगाहों पर संभाले जाने लगे होंगे. लेकिन असलियत में बीआरआई को कुछ गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसकी कहानी बांग्लादेश, चीन, भारत और म्यांमार (बीसीआईएम) के बीच बनने वाले आर्थिक गलियारे की योजना बयां करती है.चीन के सिल्क रोड में गड्ढे ही गड्ढे

बीसीआईएम उन छह योजनाबद्ध आर्थिक गलियारों में से एक है जिसे चीन बीआरआई के लिए तैयार करना चाहता है. शुरुआत में बीसीआईएम चीन के दक्षिण पश्चिमी प्रांत यून्नान की अपनी एक पहल थी. साथ ही यह बीआरआई योजना का हिस्सा भी नहीं था लेकिन अब यह बीआरआई का हिस्सा है.

साल 1991 में यून्नान प्रांत में बीसीआईएम फोरम तैयार किया गया. फोरम में शामिल रिसर्चरों ने इस योजना के तहत तैयार किए जाने वाले मार्ग के संभावित अवसरों और जोखिमों पर विस्तार से बातचीत की. इसमें कोलकाता से कुनमिंग के बीच बनने वाला रास्ता शामिल था. इस प्रोजेक्ट को लेकर अथाह संभावनाएं भी व्यक्त की गई. माना गया की सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भर रहने वाले भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को भी इससे सुविधा होगी. साथ ही वैश्विक आबादी के बड़े हिस्से को समेटने वाले दो देशों के बीच बेहतर संपर्क स्थापति होगा और ये विश्व अर्थव्यस्था से सीधे तौर पर जुड़े सकेंगे.

थिंक टैंक इंडिया ऑब्जरवर रिसर्च फाउंडेशन से जुड़े राजनीतिक वैज्ञानिक क्रीजो योम ने उम्मीद जताई है की यह परियोजना भारत और चीन के बीच चलने वाली प्रतिस्पर्धा को भी कम करेगा. साथ ही इस क्षेत्र की शांति और स्थिरता में भी अहम साबित हो सकता है.

इस बीसीआईएम फोरम के साल 2013 में कुछ ठोस नतीजे भी दिखने लगे. भारत ने इस सम्मलेन को आधिकारिक रूप से अंतरसरकारी बैठक के रूप में पहचान देने से साफ इनकार कर दिया था. नतीजतन बीसीआईएम में शिक्षाविदों से लेकर विशेषज्ञ शामिल हुए.

बदलाव का साल

2013 में होनी वाली केटूके कार रैली कोलकाता से कुनमिंग के बाद सब बदल गया. यह वही वक्त था जब चीन के प्रधानमंत्री ने मई 2013 में भारत की यात्रा की. इस दौरान दोनों देशों ने एक संयुक्त बयान जारी कर बीसीआईएम आर्थिक कॉरिडोर की पहल को आगे बढ़ाने पर प्रतिबद्धता जताई. नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज की समाजशास्त्री पेट्रीशिया उबेरॉय भी इस बीसीआईएम के साथ लंबे वक्त तक जुड़ी रहीं हैं. पेट्रीशिया ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया, "संयुक्त बयान जारी करने के बाद, बीसीआईएम परियोजना ने आधिकारिक रूप ले लिया. लेकिन भारत और चीन दोनों की ही इस प्रोजेक्ट को लेकर अलग-अलग उम्मीदें थीं. आर्थिक गलियारे का बनना शायद भारत के विकास लक्ष्यों में कोई खास भूमिका नहीं निभाता लेकिन चीन के लिए इसके मायने ही अलग थे."

पेट्रीशिया के मुताबिक, इस बैठक में आर्थिक गलियारे पर हर देश की अपनी एक रिपोर्ट के आधार पर एक संयुक्त रिपोर्ट तैयार करने को लेकर सहमति बनी थी. लेकिन साल 2013 में शुरू की गई प्रक्रिया अपने योजनाबद्ध कार्यक्रम से बहुत पीछे रही है. पेट्रीशिया के मुताबिक उस वक्त यह नहीं समझा गया कि संसाधनों की कमी के चलते म्यांमार इसमें पीछे रह सकता है. वहीं म्यांमार ने भी कहा कि उसे और वक्त चाहिए.

भारत दौरे की तैयारी में चीनी सेना

प्रतिस्पर्धा अधिक, सहयोग कम

अन्य देशों से इतर, भारत और चीन के बीच बढ़ता अविश्वास और प्रतिस्पर्धा इस योजना के सामने सबसे मुख्य रोड़ा है. साल 2017 में पैदा हुआ डोकलाम विवाद इसी का उदाहरण है. पेट्रीशिया के मुताबिक, भारत हमेशा से कहता रहा है कि बीसीआईएम परियोजना उसकी लुक ईस्ट पॉलिसी का हिस्सा है, जो भारत को दक्षिणपूर्व एशियाई देशों से जोड़ता. इससे चीन का प्रभाव घट सकता है.

दरअसल बीसीआईएम फोरम पहले एक प्रांतीय पहल थी लेकिन जल्द ही इसे बीजिंग ने अपने हाथों में ले लिया. पेट्रीशिया के मुताबिक फिर इसे ऐसे कमीशन के हवाले कर दिया गया जो वन बेल्ट वन रोड परियोजना को भी देखता है. साल 2015 में चीन के नेशनल डेवलपमेंट और रिफॉर्म कमीशन ने इस ओर काम शुरू किया और बीसीआईएम कॉरिडोर पर बातचीत शुरू की. लेकिन इस वक्त चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर पर भी सुगबुगाहट शुरू हो गई, जो भारत और चीन के बीच विवाद का मुद्दा रहा है. इस वक्त तक बीसीआईएम को चीन की विस्तृत वन बेल्ट वन रोड परियोजना में शामिल कर देखा जाने लगा. चीन का जो भी नजरिया हो लेकिन भारत के साथ यह ठीक नहीं बैठता. पेट्रीशिया के मुताबिक भारत को इससे कोई लाभ नजर नहीं आता लेकिन चीन अब इसे बीआरआई में शामिल कर चुका है.

पेट्रीशिया कहती हैं कि ये बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि चीन ने बीसीआईएम योजना को अपने हाथों में ले लिया. उन्होंने कहा कि चीन का यून्नान प्रांत, उत्तरी म्यांमार, उत्तरी बांग्लादेश और भारत के पूर्वोत्तर का हिस्सा सांस्कृति, क्षेत्रीय और सामाजिक समानताओं के चलते बेहद ही करीब है. ऐसे में इन्हें जोड़ने में कोई क्षेत्रीय पहल ज्यादा कारगर साबित होती, बजाय बीजिंग के किसी कार्यक्रम के. पेट्रीशिया के मुताबिक अगर स्थानीय प्रशासन शामिल होता, तो उसे कोई बड़ा खतरा नहीं माना जाता. उन्होंने कहा कि अब ये बेहतर होगा कि अगर कुछ परियोजनाएं चीन सरकार के नियंत्रण के बाहर भी चलती रहें. ऐसी परियोजनाओं से भारत अपमान भी नहीं महसूस करेगा. 

रोडियोन एगिगहाउसेन/एए

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