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क्या महिलाओं के लिए ज्यादा बुरा होगा ब्रेक्जिट?

२८ जून २०१९

ब्रेक्जिट के आर्थिक पहलुओं पर खूब चर्चा हो चुकी है. लेकिन महिलाओं पर इसका क्या असर होगा, इस ओर बहुत लोगों का ध्यान अभी तक नहीं गया है.

Großbritannien London March for Europe
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Tallis

शुरुआत करने से पहले आपको यह बता दें कि इस वक्त ब्रेक्जिट को लेकर जितनी अनिश्चितता है, उसके मद्देनजर अभी ठीक तरह से यह कह पाना मुश्किल है कि बतौर मुलाजिम या ग्राहक महिलाओं की स्थिति क्या होगी. लेकिन इतना तो तय है कि जब व्यापार से जुड़े समझौते होते हैं, तो अलग अलग तरह के आर्थिक हालात में जी रहे लोगों पर अलग अलग तरह तरह का प्रभाव पड़ता है. इस बात से भी फर्क पड़ता है कि वे अर्थव्यवस्था में किस तरह की भूमिका निभा रहे हैं.

यूके वीमेंस बजट ग्रुप की अध्यक्ष मैरी-ऐन स्टीफेनसन का इस बारे में कहना है, "व्यापार में हो रहे बदलावों से महिलाओं पर खास कर असर पड़ता है, फिर चाहे बाजार ज्यादा खुलें या बंद हो जाएं क्योंकि नए मौकों का फायदा उठाना महिलाओं के लिए ज्यादा मुश्किल होता है और उन पर नकारात्मक असर पड़ने की संभावना भी अधिक होती है."  स्टीफेनसन ने "इकनॉमिक इम्पैक्ट ऑफ ब्रेक्जिट ऑन वीमेन" नाम की किताब भी लिखी है.

महिलाओं की सेवा का क्या?

एक शोध के अनुसार अगर ब्रेक्जिट का ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर होता है, तो बहुत से लोगों की नौकरियां जाएंगी, खास कर उन क्षेत्रों में जहां व्यापार मुख्य रूप से ईयू पर निर्भर करता है. मिसाल के तौर पर कपड़ा उद्योग, जहां ज्यादातर कामगार महिलाएं हैं. ऐसा ही स्वास्थ्य और सोशल केयर से जुड़े पेशों के साथ भी होगा. यहां भी मुख्य रूप से महिलाएं ही काम करती हैं. ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) में काम करने वाले कई ईयू नागरिक तो पहले ही ब्रेक्जिट के डर से नौकरियां छोड़ चुके हैं. रुझान बताते हैं कि भविष्य में भी यह चलन बरकरार रहेगा. पब्लिक सर्विस एक ऐसा महत्वपूर्ण क्षेत्र है जहां ब्रेक्जिट की मार महिलाओं पर सबसे ज्यादा पड़ सकती है.

ब्रेक्जिट के जितने भी विकल्प मुमकिन हैं, हर किसी में ये तो तय है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में भारी गिरावट आएगी. ऐसे में सरकारी खर्च में कटौती होगी, नौकरियां जाएंगी और इसका सीधा असर सबसे नाजुक और वंचित वर्ग पर होगा और इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं. स्टीफेनसन कहती हैं, "लोक सेवाओं के क्षेत्र में अधिकतम महिलाएं काम करती हैं और इन सेवाओं का इस्तेमाल भी महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा करती हैं, अपने लिए भी और अपने परिवार के लिए भी. अगर नौकरियों में कटौती होती है, तो सबसे अधिक संभावना इसी बात की है कि महिलाएं बिना वेतन ज्यादा काम करने पर मजबूर हो जाएंगी."

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महिला अधिकारों पर वार?

फिलहाल ब्रिटेन में महिलाओं से जुड़े जो अधिकार हैं उन्हें यूरोपीय संघ नियंत्रित करता है. ऐसा नहीं है कि ब्रिटेन के ईयू से निकल जाने के बाद रातोंरात ही ये कानून गायब हो जाएंगे लेकिन, "ईयू आपको ये सुरक्षा का अहसास देता है कि ब्रिटेन की सरकार आपसे आपके अधिकार छीन नहीं सकती." स्टीफेनसन के अनुसार ब्रेक्जिट के कट्टर विरोधी "रेड टेप" को पूरी तरह हटाना चाहते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि गर्भावस्था के दौरान और मां बनने के बाद या फिर पार्ट टाइम नौकरी में जो अधिकार महिलाओं को मिलते हैं, उन्हें हटाने की बात चल रही है, "ये वे सब चीजें हैं जिनका लाभ ब्रिटेन की महिलाओं ने पिछले कई सालों में ईयू की सदस्यता के चलते उठाया है."

इसके विपरीत ईयू संसद में ब्रेक्जिट पार्टी की सांसद और "लीवर्स ऑफ ब्रिटेन" संगठन की अध्यक्ष लूसी हैरिस इसे बकवास बताती हैं. उनके अनुसार ईयू को महिला अधिकारों का रखवाला घोषित कर देना ठीक नहीं है. वे कहती हैं कि ब्रेक्जिट देश की महिलाओं के लिए नए और बेहतर कानून लाने में मददगार साबित होगा.

थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "मैंने ब्रेक्जिट के हक में इसलिए वोट दिया क्योंकि मेरा मानना है कि कानून जिन्हें सीधे रूप से प्रभावित करते हैं उन्हीं को ध्यान में रख कर बनाए जाने चाहिए. जब हमारी संप्रभुता हमें वापस मिलेगी, तो इससे मुझ जैसी महिलाएं सशक्त हो सकेंगी, ऐसे फैसले ले सकेंगी जो हमारे अधिकारों की रक्षा करते हैं." लेकिन यह भी तो सच है कि ईयू के कानूनों ने कभी ब्रिटेन की महिलाओं को अपने अधिकारों की रक्षा करने से नहीं रोका.

ब्रेक्जिट समर्थकों द्वारा बनाए गए एक ग्रुप "ब्रीफिंग फॉर ब्रेक्जिट" की एक सदस्य जोआना विलियम्स का कहना है कि महिलाओं के नुकसान की बात सरासर गलत है. उनके अनुसार महिलाओं की आमदनी और नौकरियों में हिस्सेदारी बढ़ेगी, "आप कयामत की भविष्यवाणी कर सकते हैं लेकिन हकीकत हमें एक अलग ही कहानी बयान कर रही है."

इसके जवाब में स्टीफेनसन का कहना है, "आज तीन साल बाद यह बात साफ हो गई है कि जो लोग यूरोपीय संघ से अलग होना चाहते थे, उनके पास कोई योजना ही नहीं थी. उनमें से ज्यादातर को तो इस बात की समझ तक नहीं है कि किसी ट्रेड डील की मूल बातें क्या होती हैं और ये वाकई भयावह है."

रिपोर्ट: रॉबर्ट मज/आईबी

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