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क्या मानव तस्करी के खिलाफ कानून पास होगा?

१६ जुलाई २०१८

मानव तस्करी के चंगुल से छूट कर आए पीड़ितों ने सांसदों से आग्रह किया है कि तस्करी रोकने के लिए प्रस्तावित कानून को समर्थन दें. विपक्ष का कहना है कि यह कानून देह व्यापार का काम करने वाले वयस्कों को निशाना बनाएगा.

Indien jügendliche Protituierte gerettet in Bombay
तस्वीर: imago/UIG

संसद का सत्र इसी हफ्ते शुरू होना है. कांग्रेस नेता शशि थरूर का कहना है कि मानव तस्करी के खिलाफ कानून को संसद में पेश करने से पहले अभी और चर्चा की जरूरत है. उन्होंने महिला और बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी के भेजी गई एक याचिका के जरिए अपनी चिंता जताई है. इस याचिका पर हजारों यौनकर्मियों के दस्तखत है इसके साथ ही कई सामाजिक कार्यकर्ता और 30 से ज्यादा सामाजिक संगठनों ने भी इस याचिका पर दस्तखत किए हैं.

उधर मानव तस्करी के शिकार लोगों ने इस चाचिका को खारिज किया है. उनका कहना है कि प्रस्तावित कानून में पीड़ितों पर ध्यान दिया गया है और यह कानून यौनकर्मियों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होगा बशर्ते कि वो दूसरों पर इस पेशे में आने के लिए दबाव ना बनाएं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

कानून की मांग कर रहे लोगों का कहना है कि कई सालों तक चर्चा करने के बाद यह कानून तैयार हुआ है. किशोरावस्था में ही तस्करी का शिकार बनी एक 23 साल की युवती ने कहा, "हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह इस कानून को पास करने से ना रोके. हमारी जिंदगी इस पर निर्भर है और हमें उन वयस्क यौनकर्मियों की मांग पर बंधक नहीं बनाया जाना चाहिए."

सरकार ने दो साल पहले इस कानून का पहला ड्राफ्ट जारी किया था इसके साथ ही विशेषज्ञों से बातचीत और सोशल मीडिया पर चर्चा शुरू हुई लोगों से उनकी राय मांगी गई. अब दो साल के बाद शशि थरूर ने याचिका पेश की है. इस बिल पर मार्च में ही चर्चा होनी थी लेकिन इसे पेश नहीं किया गया. इससे आशंका उठ रही है कि इसमें अभी और देर होगी क्योंकि सरकार का ध्यान अब 2019 के आम चुनावों की ओर मुड़ने लगा है.

थरूर की याचिका में कहा गया है कि यह बिल मानव तस्करी के पीड़ितों की कतार में ही सेक्स बाजार के उन वयस्कों को भी रखता है जो अपनी मर्जी से इस काम में जुटे हैं. थरूर को आशंका है कि कानून बन गया तो ऐसे लोगों को जबरन उनके काम से छुड़ाया जाएगा. मानव तस्करी के खिलाफ अभियान चलाने वाली सुनीता कृष्णन का कहना है कि ऐसी चिंताएं भ्रामक हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में उन्होंने कहा, "उनकी आशंकाएं वयस्क यौनकर्मियों के रोजगार को लेकर है कि उस पर असर होगा. अगर वो लोग वेश्यालय चला रहे हैं और उसमें तस्करी के पीड़ित हैं तो, उन पर असर होगा लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो फिर उन्हें क्यों नुकसान होगा."

याचिका में यह मांग भी रखी गई है कि प्रस्तावित कानून में ज्यादा जांच और तस्करों पर अभियोग चलाने के प्रावधान होने चाहिए. कानून का समर्थन करने वाले ध्यान दिलाते हैं कि तस्करों को 10 साल या फिर उम्र कैद की सजा हो सकती है. इसके साथ ही छापे के दौरान वेश्यालयों में पकड़ी जाने वाली औरतों और लड़कियों को जेल में डालने से रोकने का भी प्रावधान किया गया है.

तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay

यह बिल सुप्रीम कोर्ट में दायर कृष्णन की याचिका का ही परिणाम है, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था. कृष्णन ने बताया "यह पहली बार है कि भारत ने माव तस्करी को संगठित अपराध माना है. इसके साथ ही इसमें स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर लड़ने के लिेए एक बजट का भी प्रावधान किया गया है."

एनआर/ओएसजे(रॉयटर्स)

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