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क्या मौत के बाद भी जिंदा रहता है दिमाग

१८ अप्रैल २०१९

वैज्ञानिकों ने एक सूअर के दिमाग की कोशिकीय गतिविधियों को उसकी मौत के कई घंटों बाद चलाए रखने में सफलता पाई है. इस कामयाबी के बाद अब एक सवाल उठा है कि वो क्या है जो जानवर या फिर इंसान को जिंदा बनाए रखता है?

USA Forschung Yale School of Medicine | Gehirne von Schweinen
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Stefano G. Daniele, Zvonimir Vrselja/Sestan Laboratory/Yale School of Medicine

रिसर्च करने वाले अमेरिका के वैज्ञानिकों का कहना है कि एक दिन इस नई खोज का उपयोग दिल का दौरा झेलने वाले मरीजों के इलाज और मानसिक आघात के रहस्यों को समझने में किया जा सकेगा.

इंसान और बड़े स्तनधारियों के दिमाग की नसों की गतिविधि के लिए जरूरी कोशिकाओं की सक्रियता रक्त का प्रवाह बंद होने के साथ ही रुकने लगती हैं. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे लौटाया नहीं जा सकता. नेचर जर्नल में छपी एक नई स्टडी के नतीजे बता रहे हैं कि सूअरों के दिमाग में रक्त के प्रवाह और कोशिकाओं की गतिविधि को मौत के कई घंटों बाद भी बहाल किया जा सकता है.

अमेरिकी रिसर्च प्रोग्राम के तहत चल रहे एनआईएच ब्रेन इनिशिएटिव के वैज्ञानिकों की टीम ने 32 सूअरों के दिमाग का इस्तेमाल किया. इन सूअरों को खाने के लिए मार दिया गया था और इनके दिमाग को चार घंटे तक बगैर ग्लूकोज या खून के प्रवाह के रखा गया था. इसके बाद एक टिश्यू सपोर्ट सिस्टम का इस्तेमाल कर खून जैसे एक तरल को इनके अंगों से बहाया गया. इसके बाद इनके दिमाग में अगले छह घंटे तक तरल का बहाव बना रहा. 

इसके नतीजे हैरान करने वाले रहे. जिन दिमागों को कृत्रिम रक्त मिला उनकी कोशिकाओं की बुनियादी सक्रियता फिर से चालू हो गई. उनके रक्त वाहिनियों का संरचना फिर से जीवित हो उठी वैज्ञानिकों ने कुछ स्थानीय प्रक्रियाओं को भी देखा. इनमें प्रतिरक्षा तंत्र की प्रतिक्रिया भी शामिल है.

इस रिसर्च रिपोर्ट के प्रमुख लेखकों में शामिल नेनाद सेस्तान येल यूनिवर्सिटी के रिसर्चर हैं. उनका कहना है, "हम लोग हैरान रह गए कि कितनी अच्छी तरह से यह संरचना संरक्षित हुई. हमने देखा कि कोशिकाओं की मौत में कमी आई जो बहुत उत्साह और उम्मीद जगाने वाला है. असल खोज यह रही कि दिमाग में कोशिकाओं की मौत जितना हमने हमने पहले सोचा था उससे कहीं ज्यादा समय के बाद होती है."

वैज्ञानिकों ने जोर दे कर कहा है कि उन्होंने "उच्च स्तर की व्यवहारिक सक्रियता" देखी है जैसे कि विद्युतीय संकेत जो पुनर्जीवित मस्तिष्क में चेतना से जुड़ी है. सेस्तान का कहना है, "यह संकेत है कि दिमाग जिंदा है और हमने ऐसा पहले कभी नहीं देखा. यह जीवित दिमाग नहीं है बल्कि कोशिकीय सक्रिय दिमाग है."

इस रिसर्च से पता चलता है कि वैज्ञानिकों ने किसी मरीज को दिमागी रूप से मरा हुआ घोषित करने के बाद उसके दिमाग की खुद से पुनर्जीवित होने की क्षमता को बहुत महत्व नहीं दिया. हालांकि इस रिसर्च पर प्रतिक्रिया देने के लिए बुलाए गए विशेषज्ञों ने सैद्धांतिक और नैतिक सवाल भी उठाए हैं. ड्यूक यूनिवर्सिटी में कानून और दर्शन की प्रोफेसर नीता फाराहानी ने लिखा है कि इस रिसर्च ने "लंबे समय से जीवन को लेकर चली आ रही समझ पर यह सवाल उठाया है कि किसी जानवर या इंसान को जिंदा कौन बनाता है." उनका कहना है कि रिसर्चरों ने अनजाने में नैतिक रूप से एक दुविधा की स्थिति बना दी है जहां प्रयोग में इस्तेमाल किए गए सूअर "जीवित नहीं थे लेकिन पूरी तरह से मरे भी नहीं थे."

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में मेडिकल एथिक्स के प्रोफेसर डोमिनिक विल्किंसन का कहना है कि इस रिसर्च का भविष्य में दिमाग पर होने वाले रिसर्च पर काफी प्रभाव होगा. उन्होंने कहा "यह रिसर्च हमें बताता है कि "मृत्यु" किसी एक घटना से ज्यादा एक प्रक्रिया है जो समय के साथ होती है. मानव अंगों के अंदर की कोशिकाएं भी शायद इंसान के मौत के बाद कुछ समय तक जीवित रहती होंगी."

एनआर/ओएसजे (एएफपी)

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