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क्या यूपी में एनकाउंटर सच में इतना आसान हो गया है?

समीरात्मज मिश्र
१ अक्टूबर २०१८

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पॉश इलाके में रात के करीब डेढ़ बजे दो पुलिस वाले कार सवार एक व्यक्ति को सिर्फ इसलिए गोली मार देते हैं क्योंकि वह एक महिला के साथ जा रहा था, इसलिए पुलिस वालों को वो संदिग्ध लगा.

Lucknow
तस्वीर: DW/S. Mishra

दो पुलिस वालों ने गाड़ी को रोका, चालक द्वारा गाड़ी नहीं रोकने पर बाइक से गाड़ी वालों का पीछा किया, दोनों के बीच कुछ झड़प हुई और फिर पुलिस कांस्टेबल प्रशांत चौधरी ने कार चालक विवेक तिवारी को सामने से गोली मार दी. उनकी कुछ देर बाद अस्पताल में मौत हो गई. एप्पल कंपनी में काम करने वाले विवेक तिवारी पर गोली चलाने वाले पुलिस कांस्टेबल प्रशांत चौधरी और उनके एक सहकर्मी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करते हुए दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया है. गिरफ्तार पुलिस कांस्टेबल का कहना है कि उसने आत्म रक्षा में गोली चलाई.

लेकिन जानकारों का कहना है कि घटनास्थल को देखते हुए और घटना की परिस्थितियों का आकलन करते हुए ये कहीं नहीं दिखता कि स्थिति यहां तक बिगड़ गई होगी कि आत्मरक्षा में गोली चलाने की नौबत आई होगी. खुद राज्य के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने एक दिन बाद इस बात को स्वीकार किया कि ये हत्या का मामला है और इसमें आत्मरक्षा जैसी कोई बात नहीं है. वहीं विवेक तिवारी की पत्नी कल्पना तिवारी ने कांस्टेबल के आरोप को गलत बताते हुए पुलिस पर अपने पति के चारित्रिक हनन का भी आरोप लगाया है. कल्पना का कहना था, "यदि पुलिस वालों को कुछ गलत लग रहा था तो गाड़ी रोक सकते थे, उन्हें पकड़कर पूछताछ कर सकते थे, गोली ही मारनी थी तो पैर में या हाथ में भी मार सकते थे लेकिन वो तो उन्हें जान से ही मारना चाहते थे.”

व्यवस्था पर सवाल

ये घटना शुक्रवार रात तब हुई जब विवेक तिवारी दफ्तर के एक कार्यक्रम से देर रात अपनी एक सहकर्मी के साथ घर लौट रहे थे. गोली चलाने वाले कांस्टेबल प्रशांत चौधरी ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि उसने कार को संदिग्ध स्थिति में खड़ी देखकर विवेक तिवारी को उतरने को कहा लेकिन वो कार चलाकर आगे बढ़ गए. घटना की चारों ओर जिस तरह से निंदा हुई, पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठे, राज्य में कानून व्वयस्था को लेकर सरकार को चौतरफा हमले झेलने पड़े, उसके दबाव में दोनों पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करके जेल भेज दिया गया. पीड़ित परिवार को मुआवजा और विवेक की पत्नी को सरकारी नौकरी की घोषणा भी हो चुकी है लेकिन व्यवस्था पर सवाल अभी भी बरकरार हैं.

तस्वीर: DW/S. Mishra

इस पूरे प्रकरण में अब तक कई सवाल सामने आए, कुछ के जवाब मिले, कुछ के अभी भी अनुत्तरित हैं और कुछ पर लीपापोती भी की जा रही है लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि एक कॉन्सेटबल किस आत्मविश्वास के तहत मामूली झड़प में किसी व्यक्ति को सीधे गोली मार देता है? और दूसरा सवाल यह भी कि इतनी बड़ी वारदात को अंजाम देने के बावजूद पुलिस वालों को न सिर्फ कथित तौर पर बचाने की कोशिश हो रही है बल्कि पुलिस और सरकार की ओर से घोषित गिरफ्तारी के बावजूद प्रशांत चौधरी मीडिया के सामने अपने अधिकारियों को कठघरे में खड़ा कर रहा था.

विवादों में एनकाउंटर नीति

जहां तक किसी को भी मार देने संबंधी पुलिस के आत्मविश्वास का सवाल है तो इसके पीछे सरकार, खासकर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की उस एनकाउंटर नीति को जिम्मेदार बताया जा रहा है जिसमें वो बार-बार कहते हैं कि प्रदेश में अपराधी या तो जेल में होंगे या फिर ऊपर होंगे. उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के एक साल के भीतर करीब 1600 एनकाउंटर हो चुके हैं जिनमें 67 लोग मारे जा चुके हैं. कई एनकाउंटर के फर्जी होने पर भी सवाल उठे हैं और इनके खिलाफ मानवाधिकार आयोग तक नोटिस जारी कर चुका है लेकिन सरकार बार-बार अपनी इस एनकाउंटर नीति को सही ठहराती रहती है.

कुछ महीनों पहले ही नोएडा में एक नए पुलिस अधिकारी ने कथित तौर पर अपनी निजी दुश्मनी निकालने के लिए एक जिम संचालक को गोली मार दी थी और उसे एनकाउंटर दिखा दिया था. लेकिन जिम संचालक और उनका परिवार जब इस मामले को लेकर मीडिया में आया उच्चाधिकारियों के यहां गुहार लगाई तब खुद पुलिस विभाग ने इसे फर्जी करार दिया और पुलिस अधिकारी को निलंबित किया गया.

पुनर्विचार की मांग

राज्य भर में एनकाउंटर को लेकर ऐसी तमाम घटनाएं हो चुकी हैं जहां मारे गए लोगों के परिवार उनके निर्दोष होने के इंतजार में अभी भी अधिकारियों और अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं. बावजूद इसके पुलिस अपनी एनकाउंटर लिस्ट को बड़ी करती जा रही है. पिछले महीने अलीगढ़ में हुए एक एनकाउंटर की घटना को तो पुलिस के आला आधिकारियों ने बाकायदा कवर करने के लिए मीडिया को आमंत्रण तक भेज दिया था जिसकी काफी आलोचना भी हुई और हंसी भी उड़ाई गई.

तस्वीर: UP Government

विपक्ष तो सरकार की एनकाउंटर नीति पर शुरू से ही हमलावर रहा है लेकिन लगातार सामने आ रहे ऐसे मामलों के बाद अब सभी ये पूछने लगे हैं कि क्या मुख्यमंत्री अपनी इस एनकाउंटर नीति पर पुनर्विचार करेंगे? यहां तक कि सरकार और भारतीय जनता पार्टी के भीतर से भी ऐसी आवाजें उठने लगी हैं. हालांकि बीजेपी के कुछ नेता ये भी मानते हैं कि एनकाउंटर नीति के चलते सरकार अपराध के खिलाफ अपनी सख्त छवि का संदेश देना चाहती है लेकिन लगातार हो रही आपराधिक घटनाएं उसके इस मंसूबे पर पानी फेर रही हैं.

अपराधों पर रोक

उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी रहे वीएन राय कहते हैं, "जघन्य अपराध पहले की तरह ही हो रहे हैं और बलात्कार के आंकड़े बढ़ रहे हैं. इन सबके बावजूद लगता यही है कि मुख्यमंत्री की प्राथमिकता लव जिहाद रोकना, एंटी रोमियो स्कवॉयड बनाना और गो हत्या रोकना ही है, मनुष्य का जीवन उनकी प्राथमिकता में नहीं दिखता.” वहीं विवेक तिवारी हत्याकांड के बाद सरकार और पुलिस की तमाम संवेदनाओं के बावजूद जिस तरह से अभियुक्तों को बचाने के कथित प्रयास हो रहे हैं उसे देखते हुए पुलिस की कार्यप्रणाली पर अभी से सवाल उठने लगे हैं. पुलिस ने विवेक तिवारी की सहकर्मी से जो एफआईआर लिखवाई, बताया जा रहा है कि वो अपने मनमाफिक लिखवाई और उसमें अभियुक्त के तौर पर किसी का नाम नहीं था.

बाद में जब ये मामला मीडिया में आया तब विवेक की पत्नी कल्पना तिवारी से दोबारा एफआईआर दर्ज करवाई गई जिसमें उन्होंने दोनों पुलिसकर्मियों को नामजद किया है. वहीं दूसरी ओर, विवेक की हत्या के मुख्य अभियुक्त प्रशांत चौधरी के पक्ष में उनकी कांस्टेबल पत्नी और कुछ अन्य पुलिस वाले क्राउड फंडिंग के जरिए पैसा जुटा रहे हैं और उनके पक्ष में अभियान चला रहे हैं. उसे भी पुलिस की लापरवाही और कथित साजिश के हिस्से के रूप में ही देखा जा रहा है. जानकारों का कहना है कि सर्विस मैन्युएल के हिसाब से कोई पुलिसकर्मी ऐसा नहीं कर सकता है, बावजूद इसके लोग ऐसा कर रहे हैं और दो दिन बीत जाने के बाद भी उन पर कार्रवाई नहीं हो रही है, तो इसे क्या समझा जाए?

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