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क्या राजनीतिक हथियार बन गई हैं भारत की जांच एजेंसियां?

प्रभाकर मणि तिवारी
२७ जुलाई २०२२

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जिस तरह गैर-बीजेपी दलों के नेताओं और मंत्रियों के खिलाफ मुहिम छेड़ी है, उसने इन दोनों एजेंसियों के राजनीतिक इस्तेमाल के आरोपों को मजबूती दी है.

राहुल गांधी को भी कई बार पूछताछ के लिए बुलाया गया
राहुल गांधी को भी कई बार पूछताछ के लिए बुलाया गया तस्वीर: Naveen Sharma/ZUMAPRESS.com/picture alliance

भारत के विपक्षी दल साझा स्वर में केंद्र सरकार पर इन एजेंसियों के राजनीतिक दुरुपयोग के आरोप लगा रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला, कांग्रेस प्रमुख सोनिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी और उनके करीबी मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी जैसे मामलों ने विपक्ष को इन एजेंसियों के साथ केंद्र और बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने का मौका दे दिया है. विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को मंगलवार को भेजे एक पत्र में आरोप लगाया है कि मोदी सरकार जांच एजेंसियों का 'निरंतर और तीव्र दुरुपयोग' कर रही है.

गिरफ्तारी के बाद पार्थ चटर्जीतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

विपक्ष के खिलाफ मुहिम

विपक्षी दलों का सवाल है कि क्या यह महज संयोग है कि इन दोनों एजेंसियों की सबसे ज्यादा सक्रियता उन मामलों में ही देखने को मिल रही है जिसमें गैर-बीजेपी दलो के नेता या मंत्री शामिल हैं? क्या यह भी संयोग है कि पार्टी बदल कर बीजेपी का दामन थामने वाले दागी नेताओं के मामले में इन एजेंसियों की धार कुंद पड़ जाती है? 

हाल के कई मामलों को ध्यान में रखें तो विपक्ष के आरोपों में दम नजर आता है. तो फिर विपक्ष इन एजेंसियों के खिलाफ अदालत की शरण में क्यों नहीं जाता?  बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "इन एजेंसियों को विपक्ष के खिलाफ हथियार बनाने की केंद्र व बीजेपी की मंशा किसी से छिपी नहीं है. लेकिन इस मामले में अदालतें भी कुछ काम नहीं कर सकतीं. इसलिए उनकी शरण में जाना समय की बर्बादी है. इसका मुकाबला राजनीतिक तौर पर ही किया जा सकता है.”

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केंद्रीय एजेंसियों के रडार पर रहे नेताओं की सूची काफी लंबी है. फारुख अब्दुल्ला से मनी लांड्रिंग मामले में पूछताछ के बाद उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है. नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी से लंबी पूछताछ हो चुकी है. इसके खिलाफ बीते सप्ताह कांग्रेस और साझा विपक्ष ने बयान जारी कर केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया था. तीन साल पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार को भी ईडी ने समन भेजा था. हाल में शिवसेना सांसदों संजय राउत और अनिल परब से भी पूछताछ की गई है. आम आदमी पार्टी (आप) के सत्येंद्र जैन मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में ईडी की हिरासत में हैं.

नेशनल हेराल्ड मामले में पूछताछ के लिए ईडी के दफ्तर जातीं सोनिया गांधीतस्वीर: Raj K Raj/Hindustan Times/IMAGO

जहां तक बंगाल की बात है तो यहां लंबे अरसे से चिटफंड और कोयला खनन घोटाले की जांच के बावजूद सीबीआई या ईडी किसी विपक्षी नेता के खिलाफ अब तक कोई ठोस सबूत नहीं पेश कर सकी है. कथित कोयला खनन घोटाले में ईडी के बुलावे पर कई बार दिल्ली की दौड़ लगा चुके मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी कहते हैं, "ईडी और सीबीआई बीजेपी की सबसे बड़ी सहयोगी बन गई हैं. राजनीतिक रूप से हमारा मुकाबला करने में नाकाम रहने के कारण पार्टी राजनीतिक हथियार के तौर पर इन एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है.”

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तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष कहते हैं, "दिलचस्प बात यह है कि बंगाल के सारदा और रोज वैली चिटफंड घोटाले में शामिल बीजेपी के नेताओं को अब तक एक बार भी पूछताछ के लिए नहीं बुलाया गया है. यह अपने आप में केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का सबूत है.”

पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी इन आरोपों को निराधार बताते हैं. वह कहते हैं, "कानून अपना काम करेगा. वह किसी राजनीतिक रंग को नहीं देखता. जो दोषी है वह किसी भी दल में हो, उसके खिलाफ कार्रवाई तय है."

विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग पर पत्र लिखा हैतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

राष्ट्रपति को पत्र भेजा

दस प्रमुख विपक्षी दलों ने मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे पत्र में सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. उनका आरोप है कि असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए सरकार विपक्ष के खिलाफ एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है'

पत्र में कहा गया है, "कानून को बिना किसी डर या उत्साह के लागू किया जाना चाहिए. लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. मौजूदा समय में मनमाने ढंग से, चुनिंदा और बिना किसी औचित्य के कई विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. इस अभियान का एकमात्र उद्देश्य प्रतिष्ठा को नष्ट करना और भाजपा से वैचारिक व राजनीतिक रूप से लड़ने वाली ताकतों को कमजोर करना है. यह हमारे देश के लोगों का ध्यान आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, बढ़ती बेरोजगारी और आजीविका के नुकसान और जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की बढ़ती असुरक्षा की उनकी सबसे जरूरी दैनिक चिंताओं से ध्यान हटाने के लिए भी किया जा रहा है."

इस साझा पत्र पर दस्तखत करने वालों में आरजेडी, शिवसेना, डीएमके, एमडीएमके, टीआरएस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, सीपीआई, सीपीएम, आरएसपी समेत कई विपक्षी दलों के नेता शामिल हैं.

बीजेपी नेताओं पर कार्रवाई नहीं

बीजेपी के जिन नेताओं के दामन पर दाग और भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप लग चुके हैं उनमें कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के अलावा असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा कर्नाटक के ही रेड्डी बंधु शामिल हैं. रेड्डी बंधुओं पर तो 16 हजार करोड़ से ज्यादा के खनन घोटाले में शामिल होने का आरोप है.

हिमंता बिस्वा सरमा के कांग्रेस में रहते बीजेपी ने उन पर अमेरिकी कंपनी लुइस बर्गर को ठेके सौंपने के आरोप लगाए थे. उनके बीजेपी में शामिल होते ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

बहुचर्चित व्यापम घोटाले का अब कहीं जिक्र भी नहीं होता. सीबीआई इस मामले में शिवराज सिंह चौहान को क्लीन चिट दे चुकी है. इसी तरह उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और शिवसेना नेता नारायण राणे के खिलाफ भी कई मामले थे. लेकिन राणे के बीजेपी में शामिल होने के बाद अब उनके खिलाफ मामलों की चर्चा नहीं होती.

राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, "दोनों केंद्रीय एजेंसियों की हाल की कार्रवाइयों से साफ है कि बीजेपी और गैर-बीजेपी दलों के नेताओं के खिलाफ जांच के मामले में उनका रवैया अलग-अलग है. यही वजह है कि विपक्ष इन एजेंसियों के कामकाज को राजनीतिक बदले की कार्रवाई का आरोप लगा रहा है.”

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