सचिन पायलट और उनके साथी कांग्रेस विधायकों के विद्रोह खत्म कर देने से पार्टी में खुशी की लहर है, लेकिन क्या वाकई राजस्थान में पार्टी के लिए संकट खत्म हो चुका है?
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सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमों के बीच लड़ाई करीब एक महीने तक चली और इसकी वजह से दोनों खेमों का बहुत नुकसान हुआ. पायलट को उप-मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के महत्वपूर्ण पदों से हाथ धोना पड़ा और गहलोत की सरकार गिरने के कगार पर पहुंच गई थी.
यहां तक कि विधान सभा अध्यक्ष ने पायलट और बाकी विधायकों को अयोग्य तक घोषित करने का नोटिस जारी कर दिया, जिसके खिलाफ पायलट खेमे ने राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी. यही नहीं, हाई कोर्ट के इस नोटिस पर रोक लगाने पर अध्यक्ष ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी थी.
पायलट खेमे के विद्रोह के खत्म हो जाने से यह स्पष्ट हो गया है कि एक तरफ अदालती लड़ाई चल रही थी और दूसरी तरफ पूरे मामले को पार्टी के अंदर ही सुलझाने लेने की कोशिश चल रही थी. बताया जा रहा है कि जिस तरह मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ देने से पार्टी कमजोर हो गई, पार्टी हाई कमान राजस्थान में भी वैसी ही स्थिति बन जाने को लेकर चिंतित था.
फिर से मेल होने की शर्तें
इसीलिए गहलोत के पायलट को खरी-खोटी सुनाने के बावजूद गांधी परिवार ने पायलट के साथ संवाद के द्वार हमेशा खुले रखे. सही समय आने पर खुद पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी बहन और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाडरा पायलट से मिले और उनकी वापसी की शर्तें तय कीं.
सोमवार 10 अगस्त को पार्टी ने आधिकारिक बयान जारी कर बताया कि पायलट राहुल गांधी से मिले, उनके समक्ष अपनी शिकायतें रखीं और दोनों के बीच "स्पष्ट, खुली और निर्णायक" चर्चा हुई. बयान में यह भी बताया गया कि पायलट ने राजस्थान में पार्टी और पार्टी की सरकार के हित में काम करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई.
फिर से मेल होने की शर्तों के अनुसार अब पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी पायलट और उनके साथी विधायकों द्वारा उठाए गए मुद्दों के समाधान के लिए एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन करेंगी. पायलट और 18 विधायक जयपुर लौट कर पार्टी की बैठकों में भाग लेंगे और फिर 14 अगस्त से शुरू होने वाले विधान सभा के सत्र की बैठकों में भी शामिल होंगे.
गहरा वैमनस्य
इससे कांग्रेस को उम्मीद है कि अगर सदन में सरकार को विश्वास मत का सामना करना भी पड़ता है तो सत्ता पक्ष के पास पूर्ण बहुमत होगा. लेकिन पार्टी के राजस्थान में भविष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि गहलोत और पायलट के बीच की दूरियां कितनी कम हुई हैं.
बताया जा रहा है कि पायलट लंबे समय से गहलोत द्वारा नजरअंदाज किए जाने की शिकायत कर रहे थे और खुद अपने लिए मुख्यमंत्री पद की मांग कर रहे थे. स्पष्ट है कि उनकी यह मांग तो मानी नहीं गई है. दूसरी तरफ गहलोत ने तो सार्वजनिक रूप से पायलट को "निकम्मा" और "षडयंत्रकारी दिमाग वाला" तक कह दिया था. इतने वैमनस्य के बाद पार्टी इन दोनों नेताओं के बीच सामंजस्य कैसे बनाएगी?
माना जा रहा है कि पायलट को राज्य के बाहर पार्टी में कोई केंद्रीय जिम्मेदारी दी जाएगी ताकि दोनों नेता अलग अलग काम कर सकें और एक दूसरे के रास्ते में नहीं आएं. लेकिन यह व्यवस्था आखिर कब तक सुचारु रूप से चल पाएगी, यह तो भविष्य ही बताएगा.
राजस्थान में कांग्रेस विधायकों के विद्रोह के कारण एक संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है, जिसमें स्पीकर को हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा. हाल में और किन राज्यों में हुआ है सत्ता को लेकर संवैधानिक संकट?
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh
मध्य प्रदेश
नवंबर 2018 में हुए विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर कांग्रेस ने सरकार बनाई गई थी और कमल नाथ मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और उनके साथ कांग्रेस के 22 विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कमल नाथ सरकार को फ्लोर टेस्ट का सामना करने का आदेश दिया. इसके कमल नाथ ने इस्तीफा दे दिया और शिवराज नए मुख्यमंत्री बने.
तस्वीर: imago images/Hindustan Times
कर्नाटक
2018 में हुए विधान सभा चुनावों के बाद राज्यपाल ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए निमंत्रण दे दिया. कांग्रेस इस कदम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई और आधी रात को अदालत में सुनवाई हुई. बाद में अदालत ने राज्यपाल के फैसले को गलत ठहराते हुए फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया. येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जेडी (एस) के एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने.
तस्वीर: IANS
कर्नाटक (दोबारा)
जुलाई 2019 में जेडी (एस) और कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे से मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की सरकार अल्पमत में आ गई. विधायक जब मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए तब अदालत ने स्पीकर को विधायकों का इस्तीफा मंजूर करने का आदेश दिया और बाद में उन्हें अयोग्य घोषित किए जाने से सुरक्षा भी प्रदान की. विधान सभा में फ्लोर टेस्ट हुआ और कुमारस्वामी की सरकार गिर गई. बीजेपी के येदियुरप्पा फिर से मुख्यमंत्री बन गए.
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/S. Forster
महाराष्ट्र
नवंबर 2019 में महाराष्ट्र विधान सभा चुनावों के नतीजे आ जाने के दो सप्ताह तक रही अनिश्चितता के बीच एक दिन अचानक राज्यपाल ने बीजपी नेता देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. कांग्रेस और एनसीपी ने राज्यपाल के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. अदालत के फ्लोर टेस्ट के आदेश देने पर फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस, एनसीपी और शिव सेना ने मिलकर सरकार बनाई.
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जम्मू और कश्मीर
जून 2018 में जम्मू और कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी की गठबंधन सरकार से बीजेपी के अचानक समर्थन वापस ले लेने से राजनीतिक और संवैधानिक संकट खड़ा हो गया. मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को इस्तीफा देना पड़ा. राज्य में राज्यपाल का शासन लगा दिया गया. छह महीने बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और अगस्त 2019 में केंद्र ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा ही खत्म कर दिया और उसकी जगह दो केंद्र-शासित प्रदेश बना दिए.
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बिहार
जुलाई 2017 में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया और आरजेडी और कांग्रेस के साथ गठबंधन वाली अपनी ही सरकार गिरा दी. कुमार को बीजेपी के विधायकों का समर्थन मिल गया और राज्यपाल ने उन्हें फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का निमंत्रण दे दिया. आरजेडी ने पटना हाई कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर कर दी जो खारिज कर दी गई और कुमार फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित कर फिर से मुख्यमंत्री बन गए.
तस्वीर: IANS
गोवा
मार्च 2017 में गोवा विधान सभा चुनावों के बाद जब राज्यपाल ने बीजेपी नेता मनोहर परिकर को सरकार बनाने का निमंत्रण दे दिया, तब सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी कांग्रेस ने राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया, जिसमें मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण करने के बाद परिकर ने बहुमत साबित कर दिया.
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अरुणाचल प्रदेश
दिसंबर 2015 में सत्तारूढ़ कांग्रेस के कुछ विधायकों और डिप्टी स्पीकर ने विद्रोह के बाद स्पीकर पर महाभियोग लगाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया. स्पीकर ने हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. जनवरी 2016 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. फरवरी में कलिखो पुल ने सरकार बना ली. जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन को गैर-कानूनी करार दिया और कांग्रेस की सरकार को बहाल किया.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/A. Yadav
उत्तराखंड
मार्च 2016 में सत्तारूढ़ कांग्रेस के विद्रोही विधायकों ने विपक्ष के साथ मिलकर बजट पर वोटिंग की मांग की, लेकिन स्पीकर ने ध्वनि मत से बजट पारित करा दिया. विद्रोही विधायक राज्यपाल के पास चले गए और उनकी अनुशंसा पर केंद्र ने मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार बर्खास्त कर दी. राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. रावत की याचिका पर उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन हटा दिया और रावत सरकार को बहाल किया.