माना जा रहा कि लद्दाख के गलवान और हॉट स्प्रिंग इलाकों में भारत और चीन की सेनाओं ने धीरे धीरे अपने अपने स्थानों से पीछे हटना शुरू कर दिया है. क्या ये गतिरोध की तीव्रता में कमी आने की शुरुआत है?
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लद्दाख में भारत और चीन की सेनाओं के बीच महीने भर से भी ज्यादा से बने गतिरोध के समाधान के संकेत आने शुरू हो गए हैं. खबर है कि लद्दाख के गलवान और हॉट स्प्रिंग इलाकों में दोनों देशों की सेनाओं ने धीरे-धीरे अपने अपने स्थानों से पीछे हटना शुरू कर दिया है. इसे एक अच्छा संकेत माना जा रहा है और अनुमान लगाया जा रहा है कि जल्द ही दोनों सेनाएं अपने पुराने स्थानों पर लौट जाएंगी.
हालांकि इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि पैंगोंग झील पर जहां दोनों सेनाओं के बीच सबसे बड़ा गतिरोध था वहां अभी भी स्थिति में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आए हैं. मीडिया में आई खबरों में सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि ये गतिरोध की तीव्रता में कमी आने की शुरुआत भर है और गतिरोध को पूरी तरह से समाप्त होने में समय लगेगा. सेनाओं के पीछे हटने पर अभी तक सरकार का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.
जानकार मान रहे हैं कि छह जून को दोनों सेनाओं की शीर्ष कमांडरों के बीच जो बातचीत हुई थी, ये उसी का नतीजा है. ये भी कहा जा रहा है कि गतिरोध की तीव्रता को और शांत करने के लिए आने वाले दिनों में दोनों सेनाओं के और भी अधिकारियों के बीच बातचीत होगी. उम्मीद है कि पैंगोंग पर कायम गतिरोध के समाधान के लिए एक बार फिर शीर्ष कमांडरों को बातचीत करनी होगी.
जानकारों का कहना है कि दोनों तरफ इस बात की सहमति बनी है कि कम से कम पांच स्थानों पर दोनों सेनाओं के बीच तनातनी हुई थी और इनमें से पैंगोंग के "फिंगर्स" इलाकों को छोड़कर बाकी सभी स्थानों पर सेनाएं पीछे हट रही हैं. झील के उत्तरी किनारे पर पहाड़ियों की चोटियां कहीं कहीं बाहर की तरफ निकली हुई हैं, जिन्हें "फिंगर्स" या उंगलियां कहा जाता है.
कुल आठ "फिंगर्स" में से चौथी फिंगर तक का इलाका भारत के नियंत्रण में है और चौथी और आठवीं फिंगर के बीच के इलाका विवादित है. इस इलाके में दोनों सेनाएं गश्त लगाती हैं और आमने सामने आ जाती हैं. कई जानकारों का मानना है कि इस बार इसी विवादित इलाके में चीनी सेना के सिपाही काफी आगे तक आ गए हैं, और भारत के इलाके पर कब्जा कर लिया है. हालांकि, सरकार ने इसे मानने से इनकार कर दिया है.
कई समीक्षक ये भी पूछ रहे हैं कि अगर वाकई चीन की सेना पीछे हटी है तो इस पर भारत सरकार ने कोई वक्तव्य क्यों नहीं दिया है. सुरक्षा मामलों के जानकार अजय शुक्ला ने ट्वीट कर चीनी सेना के पीछे हटने की खबरों पर संदेह जताया. वहीं एक और समीक्षक नितिन गोखले ने कहा कि दोनों सेनाएं निश्चित रूप से गतिरोध के समाधान की तरफ बढ़ रही हैं.
भारत और चीन का सीमा विवाद दशकों पुराना है. तिब्बत को चीन में मिलाये जाने के बाद यह विवाद भारत और चीन का विवाद बन गया. एक नजर विवाद के अहम बिंदुओं पर.
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लंबा विवाद
तकरीबन 3500 किलोमीटर की साझी सीमा को लेकर दोनों देशों ने 1962 में जंग भी लड़ी लेकिन विवादों का निपटारा ना हो सका. दुर्गम इलाका, कच्चा पक्का सर्वेक्षण और ब्रिटिश साम्राज्यवादी नक्शे ने इस विवाद को और बढ़ा दिया. दुनिया की दो आर्थिक महाशक्तियों के बीच सीमा पर तनाव उनके पड़ोसियों और दुनिया के लिए भी चिंता का कारण है.
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अक्साई चीन
काराकाश नदी पर समुद्र तल से 14000-22000 फीट ऊंचाई पर मौजूद अक्साई चीन का ज्यादातर हिस्सा वीरान है. 32000 वर्ग मीटर में फैला ये इलाका पहले कारोबार का रास्ता था और इस वजह से इसकी काफी अहमियत है. भारत का कहना है कि चीन ने जम्मू कश्मीर के अक्साई चीन में उसकी 38000 किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर रखा है.
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अरुणाचल प्रदेश
चीन दावा करता है कि मैकमोहन रेखा के जरिए भारत ने अरुणाचल प्रदेश में उसकी 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन दबा ली है. भारत इसे अपना हिस्सा बताता है. हिमालयी क्षेत्र में सीमा विवाद को निपटाने के लिए 1914 में भारत तिब्बत शिमला सम्मेलन बुलाया गया.
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किसने खींची लाइन
ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने मैकमोहन रेखा खींची जिसने ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच सीमा का बंटवारा कर दिया. चीन के प्रतिनिधि शिमला सम्मेलन में मौजूद थे लेकिन उन्होंने इस समझौते पर दस्तखत करने या उसे मान्यता देने से मना कर दिया. उनका कहना था कि तिब्बत चीनी प्रशासन के अंतर्गत है इसलिए उसे दूसरे देश के साथ समझौता करने का हक नहीं है.
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अंतरराष्ट्रीय सीमा
1947 में आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन रेखा को आधिकारिक सीमा रेखा का दर्जा दे दिया. हालांकि 1950 में तिब्बत पर चीनी नियंत्रण के बाद भारत और चीन के बीच ऐसी साझी सीमा बन गयी जिस पर कोई समझौता नहीं हुआ था. चीन मैकमोहन रेखा को गैरकानूनी, औपनिवेशिक और पारंपरिक मानता है जबकि भारत इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा का दर्जा देता है.
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समझौता
भारत की आजादी के बाद 1954 में भारत और चीन के बीच तिब्बत के इलाके में व्यापार और आवाजाही के लिए समझौता हुआ. इस समझौते के बाद भारत ने समझा कि अब सीमा विवाद की कोई अहमियत नहीं है और चीन ने ऐतिहासिक स्थिति को स्वीकार कर लिया है.
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चीन का रुख
उधर चीन का कहना है कि सीमा को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ और भारत तिब्बत में चीन की सत्ता को मान्यता दे. इसके अलावा चीन का ये भी कहना था कि मैकमोहन रेखा को लेकर चीन की असहमति अब भी कायम है.
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सिक्किम
1962 में दोनों देशों के बीच लड़ाई हुई. महीने भर चली जंग में चीन की सेना भारत के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में घुस आयी. बाद में चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वापस लौटी. यहां भूटान की भी सीमा लगती है. सिक्किम वो आखिरी इलाका है जहां तक भारत की पहुंच है. इसके अलावा यहां के कुछ इलाकों पर भूटान का भी दावा है और भारत इस दावे का समर्थन करता है.
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मानसरोवर
मानसरोवर हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ है जिसकी यात्रा पर हर साल कुछ लोग जाते हैं. भारत चीन के रिश्तों का असर इस तीर्थयात्रा पर भी है. मौजूदा विवाद उठने के बाद चीन ने श्रद्धालुओं को वहां पूर्वी रास्ते से होकर जाने से रोक दिया था.
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बातचीत से हल की कोशिश
भारत और चीन की ओर से बीते 40 सालों में इस विवाद को बातचीत के जरिए हल करने की कई कोशिशें हुईं. हालांकि इन कोशिशों से अब तक कुछ ख़ास हासिल नहीं हुआ. चीन कई बार ये कह चुका है कि उसने अपने 12-14 पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद बातचीत से हल कर लिए हैं और भारत के साथ भी ये मामला निबट जाएगा लेकिन 19 दौर की बातचीत के बाद भी सिर्फ उम्मीदें ही जताई जा रही हैं.