भारत में कोरोना वायरस के तेजी के बढ़ते मामलों के बावजूद लॉकडाउन में ढील दी जा रही है. जर्मनी में ऐसी ढील के कुछ खतरनाक नतीजे सामने आए हैं. ऐसे में ढील पर कई सवाल खड़े होते हैं.
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भारत में कोरोना वायरस के अब तक लगभग 1.9 लाख मामले दर्ज किए जा चुके हैं. जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के आंकड़ों के मुताबिक बीते रविवार को भारत में एक दिन में सबसे ज्यादा 8,380 नए मामले सामने आए.
देश भर में संक्रमण के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार 8 जून से कुछ जगहों पर लॉकडाउन में ढील देने जा रही है. हालांकि गृह मंत्रालय का कहना है कि बहुत ज्यादा जोखिम वाले "कंटेनेटमेंट इलाकों" में लॉकडाउन 30 जून तक बढ़ा दिया है.
अगले हफ्ते से देश के बहुत से इलाकों में रेस्तरां, होटल, शॉपिंग सेंटर और धार्मिक स्थल को फिर से खोलने की अनुमति होगी. इसके बाद जुलाई में स्कूल और कॉलेज खोले जाएंगे. सिनेमा, जिम, स्वीमिंग पूल, पार्क, ऑडिटोरियम और इसी तरह के दूसरे स्थलों को अनिश्चितिकाल के लिए बंद रखा गया है.
जो महिलाएं पहले से ही मुश्किल हालात से गुजर रही थीं, लॉकडाउन उनके लिए कभी घरेलू हिंसा और प्रताड़ना तो कभी मौत तक लेकर आया. दुनिया भर की महिलाओं को इस दौरान पुरुषों के हाथों कुछ ज्यादा ही कीमत चुकानी पड़ी है.
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मारने पीटने वाले के साथ बंद
घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए कोरोना काल बहुत कष्ट लेकर आया. विश्व के लगभग सभी देशों से शुरू शुरू में घरेलू हिंसा के बहुत ज्यादा मामले सामने आने लगे तो वहीं बाद के हफ्तों में शिकायतों में अचानक आई गिरावट के कारण अनहोनी की आशंका और बढ़ गई.
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महिलाओं की हत्या के बढ़ते मामले
मेक्सिको में साल के पहले तीन महीनों में ही 1,000 से अधिक महिलाओं की हत्या हुई, जो पिछले साल से 8 फीसदी ज्यादा था. लैटिन अमेरिकी देशों के अलावा स्पेन, ब्रिटेन, इस्राएल और भारत जैसे देशों में लॉकडाउन के दौरान महिलाओं की हत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई है.
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घरेलू काम का और अधिक बोझ
घर के कामों को अब भी ज्यादातर जगहों पर मोटे तौर पर महिलाओं की जिम्मेदारी माना जाता है. लॉकडाउन के दौरान भारत से ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि काम वाली बाई के ना आने के कारण महिलाओं पर इसका बोझ बढ़ गया. वहीं यूरोप और अमेरिका में हुए सर्वे से पता चला है कि घर के कामों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को औसतन 30-35 फीसदी अधिक समय देना पड़ रहा है.
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नौकरीपेशा महिलाओं पर दोहरा भार
नौकरी करने वाली महिलाओं ने लॉकडाउन के दौरान घर और ऑफिस का दुगना बोझ उठाया है. दोनों जिम्मेदारियां निभाने वाली महिलाओं का पहले से भी ज्यादा मुश्किल रूटीन रहा. वहीं छोटे मोटे काम करने वाली कई महिलाओं की तो काम से छुट्टी ही हो गई.
नौकरी जाने और कमाई रुकने के कारण कई अकेली और गरीब महिलाएं किराया नहीं जुटा पा रही हैं. लॉकडाउन के दौरान कई मकानमालिक उन महिला किराएदारों से किराए के बदले सेक्स की मांग कर रहे हैं. अमेरिका और ब्रिटेन में हुए हाल के सर्वे में ‘सेक्स फॉर रेंट’ का चलन काफी बढ़ने का पता चला है.
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तलाक के मामलों में उछाल
लॉकडाउन के दौरान पति-पत्नी के बीच मनमुटाव बढ़ने, घर के कामों के बंटवारे और बच्चों की जिम्मेदारी पर विवाद के कारण चीन और रूस में तलाक की अर्जियां बढ़ गईं. इससे सीख लेते हुए जापान में कुछ कंपनियां पहले से ही कामकाजी पति पत्नी को ऐसी सुविधाएं दे रही हैं कि वे लॉकडाउन के दौरान अलग अलग अपार्टमेंट में रह सकें.
जिन चीजों को खोले जाने की अनुमति दी गई है, वहां पर सामाजिक दूरी बना कर रखनी होगी. भारत में अभी तक कोरोना से मरने वालों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम रही है, लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि भारत में इस बीमारी का उच्चतम स्तर आना अभी बाकी है.
भारत में मार्च के महीने से लॉकडाउन है. लेकिन अब देश के बहुत से हिस्सों में इस महीने से इसमें ढील दी जा रही है.
संकट टल चुका है?
विशेषज्ञों का मानना है कि लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद भारत सरकार के लिए संक्रमण को फैलने से रोकना चुनौती भरा होगा. भारत में अब तक कोरोना वायरस से 5,400 मौतें हुई हैं जबकि 90 हजार लोग ठीक हो गए हैं.
चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि शुरू में ही लॉकडाउन नहीं लगाया जाता तो मरने वालों की संख्या 37 हजार से 78 हजार के बीच हो सकती थी जबकि कुल मामले 14 लाख तक हो सकते थे.
भारत में कोविड-19 के खिलाफ बनी राष्ट्रव्यापी टास्क फोर्स के चेयरमैन वीके पॉल ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "हम वापस पुराने दिनों में नहीं जा सकते. हमने कोरोना के फैलाव और इससे होने वाली मौतों को काफी हद तक रोका है."
एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने डीडब्ल्यू को बताया, "भारत में कोरोना से मरने वालों की दर 2.8 प्रतिशत है जो वैश्विक दर 6 प्रतिशत से काफी कम है. उम्मीद है कि भारत में इसका फैलाव अन्य देशों के मुकाबले कम घातक है. इसकी वजह बहुत जल्दी लॉकडाउन लगाना ही है."
भारत समेत पूरी दुनिया इस वक्त कोरोना वायरस की चपेट में है. इस महामारी से जान ही नहीं आर्थिक नुकसान भी हो रहा है. आने वाले दिनों में आर्थिक दुष्प्रभाव ज्यादा देखने को मिलेंगे. 2020 में देश की कुछ बड़ी चुनौतियों पर एक नजर.
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स्वास्थ्य सेवा
1.3 अरब आबादी वाले देश में कोरोना महामारी के कारण अचानक से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक बोझ पड़ा है. अस्पतालों की कमी, मरीजों के लिए वार्ड और बिस्तर की कमी देश पहले ही झेल रहा है. स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच की दृष्टि से भारत को 195 देशों में 145वीं रैंकिंग हासिल है. हालांकि चिकित्सा शोध में देश के वैज्ञानिक कड़ी मेहनत कर रहे हैं.
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अर्थव्यवस्था
कोरना वायरस महामारी और लॉकडाउन की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी चोट पहुंची है. कुछ रेटिंग एजेंसियों का अनुमान है कि इस वित्त वर्ष विकास दर शून्य रह सकती है तो दो रेटिंग एजेंसियों का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर नकारात्मक हो जाएगी. तालाबंदी की वजह से मांग और खपत दोनों में बहुत गहरा असर दिखा है.
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कृषि क्षेत्र
लॉकडाउन का असर कृषि क्षेत्र में भी देखने को मिल सकता है. हालांकि देश के गोदामों में अनाज की कोई कमी नहीं है. आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सरकार ने किसानों के लिए 30 हजार करोड़ रुपए के अतिरिक्त लोन देने का ऐलान किया है. इसके साथ कृषि क्षेत्र के लिए लंबी अवधि के लिए नीति बनाने की जरूरत है ताकि संकट पैदा होने पर कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े.
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मजदूर संकट
बड़े शहरों और औद्योगिक केंद्रों से दिहाड़ी और प्रवासी मजदूरों का पलायन आने वाले समय में बड़ी चुनौती बनकर उभरने वाला है. लाखों मजदूर अलग-अलग शहरों से निकलकर अपने गांव लौट गए हैं. दिहाड़ी मजदूरों के नहीं होने से शहरों में श्रमशक्ति की कमी भविष्य में हो सकती है.
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कर्ज संकट
भारतीय बैंक छोटी कंपनियों को कर्ज देने में कतरा रहे हैं. अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 महामारी के नकारात्मक प्रभावों के बीच बैंक अपने पैसे की सुरक्षा पर अधिक जोर दे रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक वाणिज्यिक बैंकों ने रिकॉर्ड 62 अरब डॉलर की राशि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास जमा कर रखी है, जबकि इस पर बैंकों को बहुत कम ब्याज मिलता है. बैंक पहले से ही बैड लोन के दबाव झेल रहे हैं.
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बेरोजगारी
लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियां ठप्प हो गई थी और हालांकि अब कुछ ढील दी जा रही है लेकिन इसके बावजूद बेरोजगारी दर बहुत अधिक है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के मुताबिक 17 मई को समाप्त सप्ताह में देश में बेरोजगारी दर 24 फीसदी थी जो कि अभी बहुत ऊपर है.
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सामाजिक दूरी
घनी आबादी वाले देश में संक्रमण को आगे भी फैलने से रोकने के लिए दीर्घकालिक नीतियां बनानी होंगी, जैसे सार्वजनिक स्थलों पर भीड़ कम करने के लिए नीतियां सख्ती से लागू करनी होगी. बस, मेट्रो, ट्रेन और बाजारों में कोरोना संकट के दौरान और उसके कुछ समय बाद तक सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए स्वच्छता पर कड़ाई से जोर देना होगा.
तस्वीर: DW/P. Tewari
काम का तरीका
कोराना के पहले बहुत से क्षेत्रों की कंपनियों ने कभी घर से काम कराने के बारे में सोचा भी नहीं था, लेकिन वही कंपनियां अपने लोगों से घर से काम करा रही हैं. भविष्य में भी घर से काम कराने पर जोर दिया जाएगा. लेकिन दफ्तर में कर्मचारी कम होने से अन्य लोगों की जरूरत घट जाएगी. अगर बड़ी संख्या में कर्मचारी घर से काम करेंगे तो व्यावसायिक संपत्तियों का बाजार खत्म भी हो सकता है.
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ढील के नुकसान
जर्मनी में कुछ जगहों पर पाबंदियों में ढील का परिणाम संक्रमण के नए मामलों के रूप में सामने आ रहा है. अधिकारियों का कहना है कि गोएटिंगन शहर में वीकेंड पर कई निजी कार्यक्रमों में शामिल हुए लोगों में से 68 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. अधिकारी और ज्यादा लोगों के टेस्ट करने की योजना बना रहे हैं.
शहर प्रशासन का कहना है कि उन सभी लोगों को तलाशने का प्रयास हो रहा है जो कार्यक्रमों में शामिल लोगों के संपर्क में आए, भले ही उनमें कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं या नहीं. अभी तक ऐसे 203 लोगों का पता चला है. इन लोगों को या तो सेल्फ क्वारंटीन में रहने को कहा गया या फिर उनके टेस्ट हो रहे हैं.
संक्रमण के इन नए मामलों से ठीक पहले जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा था कि उनके देश ने अभी तक कोरोना टेस्ट को "पास किया है", लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अभी आगे कुछ और मुश्किल काम बचा है. जर्मनी में भी बड़ी संख्या में कोरोना के मामले सामने आए, लेकिन इससे होने वाली मौतों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम रही. बर्लिन रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट का कहना है कि सोमवार को नॉवेल कोरोना वायरस के 333 नए मामलों के साथ देश भर में कुल मामले 181,815 हो गए हैं.
उधर, राजधानी बर्लिन में पुलिस को वीकेंड पर उस वक्त कार्रवाई करनी पड़ी जब श्प्री नदी में सैकड़ों लोग अपनी नौकाएं लेकर उतर गए. लगभग डेढ़ हजार लोगों की मौजूदगी में सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखना मुश्किल हो गया. बर्लिन के बंद क्लबों को खोलने के समर्थन में किया गया विरोध प्रदर्शन आखिरकार एक "बोट पार्टी" में तब्दील हो गया. नदी के किनारों पर जमा लोगों ने भी उनका भरपूर साथ दिया. इस तरह के आयोजन संक्रमण के नए मामलों को दावत देते हैं.
भारत की चुनौती
भारत में ज्यादातर मामले पांच राज्यों महाराष्ट्र, तमिलनाडु, दिल्ली, गुजरात और मध्य प्रदेश में हैं. मुंबई और अहमदाबाद जैसे शहर इस संक्रमण से बुरी तरह प्रभावित हैं.
देश की सर्वोच्च चिकित्सा संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) का मानना है कि भारत में कोरोना वायरस की स्थिति गंभीर नहीं है. संस्था के निदेशक बलराम भार्गव कहते हैं, "हम कोरोना वायरस से होने वाली मौतों को लेकर चिंतित हैं. हम इस संख्या कम रखने में सफल हुए हैं. अब हम टेस्टों की संख्या बढ़ाएंगे."
दूसरी तरफ, शहरों से गांवों और कस्बों में लौट रहे प्रवासी मजदूरों के कारण देहाती इलाकों में संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं भी अच्छी नहीं हैं. इसलिए वहां पर खास तौर से ध्यान देगा.