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क्या वक्त के साथ बदल जाएगा इंसान

४ जनवरी २०१३

कुदरत और खतरों से लड़ते लड़ते बंदर की एक प्रजाति इंसान बन गई. पूंछ गायब हो गई. वह दो पैरों पर खड़ी हो गई. तो क्या क्रमिक विकास आगे भी इंसानों बदलेगा. नए अंदाज में आ रहे मंथन में इस बार ऐसी ही खास रिपोर्टें हैं.

तस्वीर: picture-alliance /dpa

नए साल 2013 में मंथन भी आपको नए अंदाज में मिल रहा है. कार्यक्रम अब बॉन में ही तैयार नए टीवी स्टूडियो में बनाया जा रहा है. इस बार कार्यक्रम में मानव विकास पर रोशनी डाली गई है. कहते हैं कि मानव का विकास 26 लाख साल पहले शुरू हुआ. वैज्ञानिकों को उस समय इस्तेमाल किए गए औजार भी मिले हैं. वैसे तो बंदर भी शिकार के लिए औजारों का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन जब इंसानों और बंदरों के पुरखे एक ही हैं, तो दोनों के व्यवहार अलग क्यों हैं. इसे समझने के लिए अफ्रीका में चल रहे एक शोध पर रिपोर्ट पेश की गयी है. शोध से पता चलता है कि कैसे सामाजिक परिवेश में खुद को ढालना मानव और बंदरों के विकास को अलग करता है.


मानव विकास पर और चर्चा के लिए एक इंटरव्यू भी शामिल किया गया है. इंटरव्यू में इंसानों और बंदरों के बर्ताव पर हुई रिसर्च पर विस्तार से चर्चा की गई है. यह जानना दिलचस्प है कि जीवों में हो रहे बदलाव कैसे चार्ल्स डार्विन के क्रमिक विकास के सिद्धांत की पुष्टि करते हैं.

इसके अलावा मंथन में भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश की भी एक रिपोर्ट है. बांग्लादेश दुनिया के उन देशों में है जहां लगातार बाढ़ का खतरा बना रहता है. पिछली एक सदी में बाढ़ के कारण कम से कम 50,000 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. खेती बाड़ी पर निर्भर करने वाले किसानों के लिए हर साल मुश्किलें बढ़ जाती हैं. बाढ़ की वजह से नदी का पानी खेतों में भर जाता है और उन्हें रेत से भर देता है. ऐसे में कद्दू की खेती से बांग्लादेश के किसानों को फायदा मिल रहा है. रिपोर्ट में दिखाया गया है कि किस तरह से गरीब किसान कद्दू की खेती कर रेत में भी खेती कर रहे हैं.

बाढ़ की बेबसी से लड़ता बांग्लादेशतस्वीर: DIPTENDU DUTTA/AFP/Getty Images

एक तरफ बाढ़ का कहर है तो दूसरी तरफ सूखे की मार है. बीते डेढ़ दशक से अफ्रीकी देश नामीबिया भयानक सूखे का सामना कर रहा है. देश के कई हिस्सों में लोग बूंद बूंद को तरस रहे हैं. ऐसा नहीं कि देश में पानी बिलकुल नहीं है. पानी है, लेकिन उसे खोजने की तकनीक नहीं है. अब जर्मन वैज्ञानिक यह तकनीक लेकर वहां पहुंचे हैं. रिपोर्ट बताती है कि कैसे वॉटर रिसेप्टर की मदद से जमीन के नीचे

इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नल भेजे जाते हैं जो पानी से संपर्क में आने के बाद इसके संकेत वापस भेजता है.
3डी फिल्मों में पर्दे पर भी हर चीज हकीकत के काफी करीब दिखाई पड़ती है. दशकों से फिल्मों में इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. अगर पढ़ाई भी इन फिल्मों जितनी ही रोमांचक हो, तो शायद बच्चे ज्यादा उत्साह के साथ पढेंगे. जर्मनी में ऐसा ही किया जा रहा है. रिपोर्ट में दिखाया गया है कि कैसे इतिहास और भूगोल से विज्ञान तक की कक्षा 3डी तकनीक से चलाई जा रही हैं.

कार्यक्रम के अंत में सेहत से जुड़ी एक रिपोर्ट है. कसरत करना शरीर के लिए अच्छा ही नहीं, जरूरी भी होता है. लेकिन व्यायाम करने में सावधानी भी जरूरी है. ज्यादा कसरत करने से दिल का रोग भी हो सकता है.यही वजह है कि सेहतमंद और हट्टे कट्टे दिखने वाले एथलीटों को दिल की बीमारियों का ज्यादा खतरा रहता है.


आईबी/ओएसजे

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