क्या शिकायतें दूर कर पाएगा राष्ट्रपति ट्रंप का पुलिस सुधार
१७ जून २०२०
राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर पुलिस विभाग में कुछ सुधार किए हैं. पुलिस के नस्लवादी रवैये को लेकर हफ्तों से चल रहे विरोध प्रदर्शनों के बावजूद उन्होंने इसमें नस्लवाद का जिक्र तक नहीं किया.
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पुलिस सुधारों के आदेश पर दस्तखत करते समय राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि इससे देश में पुलिस व्यवस्था और बेहतर होगी. इस आदेश की नौबत असल में पिछले कई हफ्तों से चल रहे उन विरोध प्रदर्शनों के कारण आई है जो पुलिस कार्रवाई में एक अश्वेत अमेरिकी जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद शुरु हुए थे. लेकिन पुलिस सुधारों के इस मौके पर उन्होंने एक बार भी नस्लवाद का जिक्र नहीं किया, जिसे लेकर ना केवल राष्ट्रीय बहस छिड़ी हुई है बल्कि हजारों अश्वेत और श्वेत अमेरिकी सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
हस्ताक्षर समारोह में आने से पहले ट्रंप ने ऐसे अश्वेत अमेरिकियों के परिवारों से मुलाकात की जिनके परिजन पुलिस के हाथों मारे गए थे. अपने सार्वजनिक भाषणों में ऐसी मौतों पर शोक जताने के बाद ट्रंप ने ज्यादातर यही संदेश दिया कि कैसे सबको "हमें और हमारी सड़कों को सुरक्षित रखने वाले नीली वर्दी वाले बहादुर महिलाओं और पुरुषों” का सम्मान और समर्थन करने की जरूरत है. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे ज्यादातर "भरोसेमंद” पुलिसकर्मियों में ऐसे अधिकारियों की संख्या "बेहद छोटी” है जो अत्यधिक शक्ति का प्रयोग करते हैं.
क्या हैं नए पुलिस सुधार
अमेरिकी सरकार एक ऐसा डाटाबेस बनाएगी जिसमें उन पुलिसकर्मियों की जानकारी दर्ज होगी जिसके खिलाफ अत्यधिक बलप्रयोग करने की शिकायत हो. फ्लॉयड की मौत के मामले में जो पुलिसकर्मी शामिल था उसके खिलाफ पहले भी ऐसी कई छोटी-बड़ी शिकायतें थीं. चूंकि आम तौर पर इस जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया जाता है इसलिए लोगों को पता नहीं चल पाता कि किसी पुलिस अधिकारी का ऐसा अतीत रहा है.
नए आदेश के बाद पुलिसकर्मियों में अच्छे आचरण को बढ़ावा देने के लिए विभाग को वित्तीय प्रोत्साहन भी मिलेगा. इसके अलावा को-रेस्पॉन्डेंट प्रोग्राम को भी बढ़ावा दिया जाएगा, जिसके अंतर्गत मानसिक स्वास्थ्य, लत और बेघरों के मुद्दों से निपटने के लिए पुलिस में सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल किया जाता है.
जिस ‘चोकहोल्ड' यानि गला घोंटने वाली तकनीक की बीते दिनों खूब चर्चा हुई और फ्लॉयड की मौत के बाद से जो पुलिस बर्बरता की निशानी बन कर उभरा है उस पर भी ट्रंप के इस आदेश में प्रतिबंध लगा दिया गया है. केवल उसी स्थिति में इसका इस्तेमाल वैध होगा जब खुद "पुलिस अधिकारी की जान खतरे में हो." अमेरिका के ज्यादातर राज्यों में पहले से ही इन ‘चोकहोल्ड' पर प्रतिबंध है.
सुधारों को अपर्याप्त बताया
राष्ट्रपति ट्रंप ने बेशक इस कदम को "ऐतिहासिक" बताया है लेकिन विपक्षी डेमोक्रैट्स और आलोचक इसे नाकाफी बता रहे हैं. प्रतिनिधि सभा की डेमोक्रैटिक स्पीकर नैन्सी पेलोसी ने कहा कि यह आदेश, "किसी महामारी की तरह फैले नस्लवादी अन्याय और सैकड़ों अश्वेत अमेरिकियों की जान ले चुके पुलिस अत्याचार का सामना करने के लायक नहीं है."
वहीं एमनेस्टी इंटरनेशनल यूएसए की क्रिस्टीना रॉथ ने इसे "गोली के जख्म पर बैंड एड लगाने जितना" ही प्रभावी बताया. अमेरिकी कांग्रेस में डेमोक्रैटिक और रिपब्लिकन दोनों खेमों के सीनेटर पुलिस सुधारों के लिए अपने नीतिगत प्रस्तावों पर काम कर रहे हैं. आने वाले हफ्तों में ये सदन में पेश किए जाएंगे.
अमेरिका के मिनियापोलिस में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत से पूरी दुनिया आंदोलित है. वीकएंड में सभी महादेशों में लाखों लोगों ने नस्लवाद के खिलाफ प्रदर्शन किया है. भारत में भी सेलेब्रिटी "ब्लैक लाइव्स मैटर" का समर्थन कर रहे हैं.
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पेरिस: भेदभाव का विरोध
कुछ दिन पहले फ्रांस की राजधानी में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को आंसू गैस का इस्तेमाल कर तितर बितर कर दिया था. शनिवार को भी आइफेल टॉवर और अमेरिकी दूतावास के सामने प्रदर्शनों की इजाजत नहीं दी गई थी. फिर भी दसियों हजार लोगों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया. पेरिस के बाहरी इलाकों में रहने वाले काले नागरिकों के खिलाफ पुलिस हिंसा आम है.
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लिएज: प्रतिबंधों के बावजूद प्रदर्शन
कई दूसरे यूरोपीय देशों की तरह बेल्जियम का भी औपनिवेशिक शोषण और लोगों को गुलाम बनाने का इतिहास रहा है. आज का डेमोक्रैटिक रिपब्लिक कॉन्गो कभी किंग लियोपोल्ड द्वितीय की निजी संपत्ति हुआ करता था. उनके नाम पर वहां नस्लवादी शासन चलता था. ब्रसेल्स, अंटवैर्पेन और लिएज शहरों में कोरोना के प्रतिबंधों के बावजूद प्रदर्शन हुए.
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म्यूनिख: रंग बिरंगा बवेरिया
जर्मनी के बड़े प्रदर्शनों में से एक दक्षिणी प्रांत बवेरिया की राजधानी म्यूनिख में हुआ. यहां करीब 30,000 लोग नस्लवाद का विरोध करने सड़कों पर उतरे. इसके अलावा कोलोन, फ्रैंकफर्ट और हैम्बर्ग में भी प्रदर्शन हुए. राजधानी बर्लिन में प्रदर्शन के लिए जाते लोगों को रोकने के लिए पुलिस ने कुछ समय के लिए सिटी सेंटर में स्थित अलेक्जांडरप्लात्स का रास्ता रोक दिया था.
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वियना: 50,000 लोगों का विरोध प्रदर्शन
ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में शुक्रवार को ही 50,000 लोगों ने प्रदर्शन किया. ये देश में पिछले सालों में हुए बड़े प्रदर्शनों में एक रहा. स्थानीय पुलिसकर्मी भी प्रदर्शन के समर्थन में दिखे. रिपोर्टरों के अनुसार पुलिस की एक गाड़ी पर भी "ब्लैक लाइव्स मैटर" का नारा लिखा दिखा.
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सोफिया: सैकड़ों नस्लवाद विरोधी
कई दूसरे यूरोपीय देशों की तरह बुल्गारिया में भी दस लोगों से ज्यादा के साथ प्रदर्शन की अनुमति नहीं है. फिर भी नस्लवाद का विरोध करने राजधानी सोफिया में सैकड़ों लोग पहुंचे. वे जॉर्ज फ्लयॉड के कहे कथित तौर पर अंतिम शब्द "आई कांट ब्रीद" के नारे लगा रहे थे. प्रदर्शनकारियों ने साथ बुल्गारियाई समाज में व्याप्त नस्लवाद की ओर भी ध्यान दिलाया.
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तूरीन: कोरोना काल में विरोध
इस महिला ने अपना नारा कोरोना काल में जरूरी किए गए मास्क के ऊपर लिख रखा है, "काली जिंदगियां इटली में भी कीमती हैं." रोम और मिलान में हुए प्रदर्शनों में कोरोना महामारी की वजह से हुई तालाबंदी के बाद पहली बार लोग इतनी बड़ी तादाद में एक साथ इकट्ठा हुए. यूरोपीय संघ में सबसे ज्यादा अफ्रीकी आप्रवासी इटली में रहते हैं.
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लिस्बन: बिना अनुमति के रैली
पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में निकाले गए मार्च में इस प्रदर्शनकारी ने अपनी तख्ती पर लिख रखा है, "अब कार्रवाई करो." हालांकि विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी गई थी, लेकिन पुलिस ने रैली को नहीं रोका. पुर्तगाल में भी काले नागरिकों के खिलाफ पुलिस बर्बरता की घटना अक्सर होती रहती है. जनवरी 2019 में पुलिस ने नस्लवाद विरोधी प्रदर्शनकारियों पर रबर की गोलियां चलाई थी.
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मेक्सिको सिटी: फ्लॉयड और लोपेस
मेक्सिको में सिर्फ जॉर्ज फ्लॉयड की मौत का गुस्सा नहीं है बल्कि जोवानी लोपेस के साथ हुए बर्ताव पर भी है. राजमिस्त्री का काम करने वाले लोपेस को मई में पश्चिमी प्रांत खालिस्को में मास्क नहीं पहनने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया था. कथित तौर पर पुलिस हिंसा के कारण उनकी मौत हो गई थी. कुछ समय एक वीडियो सामने आने के बाद मेक्सिको के लोगों में आक्रोश है.
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सिडनी: मूल निवासियों के खिलाफ नस्लवाद
सिडनी में प्रदर्शन की शुरुआत धुआं करने के परंपरागत महोत्सव के साथ हुई. यहां प्रदर्शन में शामिल होने वालों की एकजुटता सिर्फ जॉर्ज फ्लॉयड के साथ नहीं बल्कि देश के अबोरिजिन मूल निवासियों के साथ भी थी. वे भी पुलिस हिंसा के शिकार रहे हैं. प्रदर्शनकारियों की मांग है कि उनमें से किसी की मौत पुलिस हिरासत में नहीं होनी चाहिए.
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प्रिटोरिया: मुक्का तान कर प्रदर्शन
हवा में तना हुआ मुक्का ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन का प्रतीक चिह्न है. लेकिन यह प्रतीक हाल के आंदोलन से कहीं पुराना है. जब दक्षिण अफ्रीका की नस्लवादी सरकार ने फरवरी 1990 में नस्लवाद विरोधी नेता नेल्सन मंडेला को 27 साल बाद जेल से रिहा किया था, तो वे हवा में मुक्का लहराते जेल से बाहर निकले थे. अभी भी दक्षिण अफ्रीका में गोरी आबादी बेहतर स्थिति में है. रिपोर्ट: डाविड एल