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क्या सचमुच सूख रही है गंगा

प्रभाकर मणि तिवारी
२२ अगस्त २०१८

गंगा नदी की सफाई के अभियानों के बीच पश्चिम बंगाल में खड़गपुर स्थित भारतीय तकनीकी संस्थान (आईआईटी) के शोधकर्ताओं ने अपने ताजा अध्ययन में कहा है कि यह नदी भूजल में लगातार कमी की वजह से सूख रही है.

Indien Hitzewelle ausgetrockneter Fluß Ganges in Allahabad
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/R. Shukla

रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्याप्त पानी रहने की स्थिति में ही गंगा नदी को बचाया जा सकता है. केंद्र की मौजूदा एनडीए सरकार ने 2014 में सत्ता में आने के बाद से इस साल जून तक नदी की सफाई पर 3,867 करोड़ रुपए खर्च किया है. लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि नदी की सफाई के साथ ही इसमें पानी का पर्याप्त बहाव सुनिश्चित करना भी जरूरी है.

गंगा सफाई परियोजना

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के तहत विभिन्न राज्यों में 21 हजार करोड़ की लागत से 195 परियोजनाएं चलाई जा रही हैं. लेकिन बीते महीने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने गंगा नदी की साफ-सफाई के लिए चलने वाली तमाम परियोजनाओं और उनपर होने वाले भारी-भरकम खर्च पर असंतोष जताया था. एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ का कहना था, "नदी की हालात बहुत ज्यादा खराब है. इसकी सफाई के लिए शायद ही कोई प्रभावी कदम उठाया गया है.” एनजीटी ने कहा था कि अधिकारियों के दावों के बावजूद गंगा के पुनर्जीवन के लिए जमीनी स्तर पर किए गए काम पर्याप्त नहीं हैं और स्थिति में सुधार के लिए नियमित निगरानी जरूरी है.

उसके कुछ दिनों बाद केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया था कि वर्ष 2014 से जून 2018 तक गंगा नदी की सफाई के लिए 3,867 करोड़ रुपये से अधिक की रकम खर्च की जा चुकी है. जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्य मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह के अनुसार, "सीवरेज बनाने संबंधी परियोजनाओं में से 26 पूरी हो चुकी हैं. बाकी परियोजनाओं पर काम चल रहा है.” उनका कहना था कि वर्ष 2014 से इस साल जून तक गंगा नदी की सफाई के लिए 3,867 करोड़ रुपये से अधिक की रकम खर्च की जा चुकी है. केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी दावा करते हैं, "गंगा को साफ करने का काम तेजी के साथ चल रहा है. अगले साल मार्च तक नदी का 80 प्रतिशत हिस्सा साफ हो जाने की उम्मीद है.”

ताजा अध्ययन

देश के विभिन्न इलाकों से होकर से गुजरने वाली 2600 किलोमीटर लंबी गंगा नदी के कई निचले इलाकों में गर्मियों के पिछले कई सीजन में पानी के स्तर में अभूतपूर्व कमी आई है. आईआईटी खड़गपुर के एक प्रोफेसर की अगुवाई में किए गए एक अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है. यह अध्ययन हाल में नेचर पब्लिशिंग ग्रुप की साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया था. आईआईटी की ओर से इस अध्ययन के नतीजे जारी किए गए हैं.

आईआईटी खड़गपुर में भूविज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर अभिजीत मुखर्जी ने कनाडा के शोधकर्ता सौमेंद्र नाथ भांजा और ऑस्ट्रिया के योशिहीदी वाडा के साथ मिलकर 2015 से 2017 के बीच उक्त अध्ययन किया था. इसमें कहा गया है कि भूजल की कमी से नदी की स्थिति प्रभावित हो रही है. शोधकर्ताओं ने कहा है कि गंगा में लगातार घटता हुआ जलस्तर बेहद चिंता का विषय है. साथ ही इस नदी में हरिद्वार से लेकर बंगाल की खाड़ी तक पीने योग्य पानी का नहीं होना भी बड़ा मुद्दा है. अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्याप्त पानी रहने की स्थिति में ही गंगा बची रह सकती है.

अध्ययन में कहा गया है कि लगभग दो दशकों से गर्मियों के सीजन में गंगा के पानी के स्तर में कमी देखी गई है. पिछले कुछ वर्षों से सूख रही गंगा एक बड़े संकट की ओर है. यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि इस साल मई में इलाहाबाद के पास फाफामऊ में गंगा के पानी का स्तर इतना कम हो गया था कि लोग इसे आसानी से पैदल ही पार कर सकते थे और नदी में नावों की आवाजाही ठप हो गई थी. शोधकर्ताओं का कहना है कि गंगा के पानी में लगातार आने वाली कमी गंगा घाटी में पानी के भावी संकट का संकेत है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1999 से 2013 के बीच गर्मी के सीजन में गंगा के पानी में हर साल 0.5 से 38.1 सेमी तक की कमी दर्ज की गई है.

अध्ययन का लाभ

उक्त अध्ययन आईआईटी-खड़गपुर की विज्ञान व विरासत पहल संधि के तहत आयोजित किया गया था जो नदी प्रणाली व बसावट प्रणाली से इसके संबंध पर ध्यान देता है. संधि के संयोजक जय सेन कहते हैं, "यह अध्ययन हाइड्रोलॉजी और नीति निर्माताओं के लिए तो उपयोगी है ही, इससे आम लोगों को भी भूजल के लगातार घटते स्तर से पैदा होने वाले खतरों को समझने में सहायता मिलेगी.” संस्थान में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर ध्रुवज्योति सेन कहते हैं, "इस अध्ययन से निचले इलाकों में गंगा के घटते बहाव की वैज्ञानिक वजहों का पता चलता है. इससे बेसिन में भावी जल संसाधन परियोजनाओं की योजना बनाने में सहायक आंकड़े मिलेंगे.”

शोधकर्ताओं ने कहा है कि भूजल की कमी से नदी की स्थिति प्रभावित हो रही है. बयान में कहा गया है कि अगले तीस वर्षों तक गंगा में भूजल का हिस्सा लगातार घटता रहेगा. उक्त टीम के एक शोधकर्ता सौमेंद्र नाथ भांजा कहते हैं, "यह सिलसिला जारी रहने की स्थिति में नदी के पर्यावरण पर तो बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा ही, गंगा की घाटी में रहने वाले 11.5 करोड़ लोगों के सामने भोजन का गंभीर संकट भी पैदा हो सकता है.” शोधकर्ताओं का कहना है कि साफ-सफाई पर करोड़ों रुपए खर्च करने के साथ ही नदी को बचाना जरूरी है और भूजल की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित कर ही इसे बचाया जा सकता है. लेकिन इसके लिए तत्काल एक बहुआयामी योजना बनानी होगी.

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