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क्या सच में झूठ पकड़ती है मशीन

२६ सितम्बर २०१३

पुलिस निश्चित ही ऐसी मशीन के लिए कोटी धन्यवाद देगी जो पकड़ सकती हो कि आरोपी सच बोल रहा है या झूठ. लाय डिटेक्टर और ब्रेन स्कैन की मशीनें ऐसा करने में समर्थ तो हैं लेकिन क्या उनकी रिपोर्टें एकदम सही हैं?

तस्वीर: Fotolia/igor

अगर पुलिस आपसे पूछे कि क्या आपने अपने पड़ोसी की हत्या कर उसे अपने गार्डन में गुलाब की क्यारी में दफना दिया है, तो आप कैसे रिएक्ट करेंगे. क्या आप फूट फूट कर रो पडेंगे या आपके हाथ पैर पसीने से ठंडे हो जाएंगे. आपके दिमाग में किस तरह की प्रतिक्रिया हो रही होगी. हो सकता है कि इन सवालों के जवाब देते समय आप कोई ऐसी हरकत कर रहे हों कि पुलिस आपके झूठ को पकड़ ले. और अगर पुलिसवाला ऐसा कोई संकेत नहीं देख पाता तो निश्चित ही लाय डिटेक्टर मशीन या फिर पॉलीग्राफ इस झूठ को पकड़ लेगा. कम से कम आइडिया तो यही है.

विवादों में घिरा टेस्ट

झूठ पकड़ने वाली मशीन लाय डिटेक्टर या पॉलीग्राफ शारीरिक प्रतिक्रिया देखती है, त्वचा कितनी चालक है, दिल किस गति से दौड़ रहा है और ब्लड प्रेशर कितना है. मशीन ऐसे ही नहीं बता सकती कि कोई झूठ बोल रहा है या सच. इसे पकड़ने के लिए ही तरह तरह के सवाल पूछे जाते हैं ताकि रिएक्शन को पकड़ा जा सके. कुछ सवाल सिर्फ टेस्ट करने के लिए पूछे जाते हैं, उनका जवाब जांचकर्ता को पहले से पता होता है. फिर कुछ सवाल संदिग्ध अपराध से जुड़े होते हैं. सवाल बनाए ही इस तरह जाते हैं कि व्यक्ति झूठ बोले.

अमेरिका में अक्सर पॉलिग्राफ मशीनों का इस्तेमाल कंट्रोल क्वेश्चन के साथ किया जाता है. कुछ सरकारी कार्यालय तो इसे आवेदकों को चुनने के लिए भी उपयोग में लाते हैं. यह तरीका काफी विवादास्पद है और कुछ वैज्ञानिकों के मुताबिक भरोसे के लायक भी नहीं. बर्लिन सेंटर फॉर एडवांस्ड न्यूइमेजिंग के निदेशक जॉन डिलैन हैनेस कहते हैं, "क्लासिक डिटेक्टर बताते हैं कि इंसान कितना उत्तेजित है और वे पकड़ते भी हैं. लेकिन पॉलिग्राफ की पकड़ से छूटना सीखा जा सकता है."

सच और झूठ को अलग करना इतना आसान नहीं.तस्वीर: picture-alliance/dpa

कैसे काम करती है मशीन

डर, गुस्से या आश्चर्य की भावना से कोई भी उद्विग्न हो सकता है. माएंज में फॉरेंसिक मनोविज्ञान विशेषज्ञ हंस गेऑर्ग रिल कहते हैं, "कोई मासूम भी हत्या के सवाल पर दोषी जैसे रिएक्ट कर सकता है." यह एक कारण है कि जर्मनी में यह तरीका अवैध है. कुल मिला कर सवाल किस तरह पूछे जाते हैं उसी से तय होता है.
जांच करने वाले लोग पॉलिग्राफ को 'गिल्टी नॉलेज' टेस्ट के साथ इस्तेमाल कर सकते हैं. इस टेस्ट में जांचकर्ता एक सवाल पूछता है और उसके कई संभावित जवाबों का विकल्प भी देता है. जैसे पूछा जा सकता है, कि अग्रवाल की हत्या कैसे हुई, क्या उसे गोली मारी गई, गला दबा दिया, चाकू मारा गया या फिर जहर दिया गया.

जांचकर्ता मानते हैं कि अगर संदिग्ध व्यक्ति सही जवाब पर बहुत ज्यादा प्रतिक्रिया देता है तो हत्या के बारे में जितना वह बता रहा है, उसे उससे ज्यादा पता है. इससे यह भी संकेत मिल सकता है कि अपराध में जवाब देने वाला व्यक्ति शामिल है. रिल बताते हैं, "जापान में पुलिस पॉलिग्राफ और गिल्टी नॉलेज टेस्ट का काफी इस्तेमाल करती है और बहुत सफलता के साथ करती है."

झूठ पकड़ने का झूठ

तकनीक झूठ नहीं पकड़ सकती, हां बस यह जरूर बता सकती है कि व्यक्ति जितना मान रहा है, उससे ज्यादा उसे पता है या नहीं. हैम्बर्ग के यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के मथियास गामेर बताते हैं कि झूठ पकड़ना कोई आसान काम नहीं, "हमारे दिमाग में ऐसा कोई एक विशेष हिस्सा नहीं है जो झूठ से जुड़ा हो."

लेकिन इसके बावजूद 'नो लाय एमआरआई' जैसी कंपनियां ब्रेन स्कैन से पैसा कमा रही हैं. कंपनी ने अपने वेबसाइट पर लिखा है कि उसके पास "ऐसी तकनीक है जो इतिहास में पहली बार सच और झूठ को अलग कर के दिखा सकती है".

लेकिन बर्लिन के जॉन डिलैन हैनेस को इस दावे पर भरोसा नहीं, "फिलहाल ब्रेन स्कैनिंग के जो तरीके हैं वे झूठ को पकड़ने में सक्षम नहीं हैं. इसलिए अगर कोई भी कंपनी ऐसा दावा करेगी तो मैं उस पर सवाल उठाऊंगा."

बाजार में ऐसे कंप्यूटर सॉफ्टवेयर भी उपलब्ध हैं जो आपकी आवाज सुन कर बताते हैं कि आप सच कह रहे हैं या झूठ. आप कितनी तेज बोल रहे हैं, कितनी जोर से बोल रहे हैं, इस सब को नाप कर यह नतीजे पर आती है. लेकिन जानकारों को ऐसी मशीनों पर भी कोई भरोसा नहीं है.

गामेर बताते हैं कि वह ऐसे सॉफ्टवेयर पर टेस्ट कर रहे हैं, "सच और झूठ को अलग करना इतना आसान नहीं होता. ऐसी कोई तकनीक नहीं जो इस पेचीदा काम को कर सके". उनकी सलाह है कि मशीनों पर कम और अपने अनुभव पर ज्यादा भरोसा करें. अदालत में भले ही आपके मन की आवाज न सुनी जाए, लेकिन आप अपने मन पर भरोसा कर सकते हैं. और इसमें कोई पैसे भी खर्च नहीं होंगे!

रिपोर्ट: ब्रिगीटे ओस्टेराथ/ एएम

संपादन: ईशा भाटिया

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