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समाज

क्या सरकार ने किसानों का साथ छोड़ दिया है?

२१ फ़रवरी २०२०

फसल बीमा योजनाओं में केंद्र सरकार के योगदान में कटौती करने के निर्णय की कृषि विशेषज्ञ आलोचना कर रहे हैं.

Indien Landwirt in Amritsar
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

किसानों के लिए बीमा योजनाओं में केंद्र सरकार ने जो बदलाव किये हैं उन पर विवाद खड़ा हो गया है और किसानों का साथ छोड़ देने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना हो रही है. 20 फरवरी को जब सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईएस) में इन बदलावों की घोषणा की थी तो शुरू में इनका स्वागत किया गया था. लेकिन बारीकी से देखने के बाद कृषि अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञों ने इन बदलावों पर निराशा जाहिर की है. 

सरकार ने अपनी तरफ से सबसे ज्यादा जोर इस बात पर देना चाहा कि बीमा लेना अब अनिवार्य नहीं होगा. यानी किसानों को अनिवार्य रूप से बीमे के प्रीमियम के भुगतान का बोझ नहीं उठाना पड़ेगा. हालांकि नए नियमों के अनुसार इन योजनाओं  के तहत केंद्रीय सब्सिडी की सीमा बिना सिंचाई वाली फसलों के लिए 30 प्रतिशत और सिंचाई वाली फसलों के लिए 25 प्रतिशत पर तय कर दी है. 

इसका सीधा मतलब है कि बीमा योजना में केंद्र सरकार के सहयोग को भारी मात्रा में कम कर दिया गया है. दरअसल मौजूदा व्यवस्था यह है कि इन दोनों योजनाओं के तहत किसानों को खरीफ की फसलों के लिए दो प्रतिशत प्रीमियम, रबी की फसलों के लिए डेढ़ प्रतिशत प्रीमियम और बागवानी की फसलों के लिए पांच प्रतिशत प्रीमियम खुद भरना पड़ता है. इसके बाद जो अंतर बचता है उसका भुगतान राज्य सरकारें और केंद्र सरकार आधा आधा करते हैं. राज्य सरकारों को छूट है कि वो चाहें तो अपनी तरफ से अतिरिक्त सब्सिडी भी दे सकती हैं. 

अभी तक केंद्रीय सब्सिडी की कोई सीमा नहीं थी लेकिन नए निर्देशों के बाद इसकी सीमा 25 प्रतिशत और 30 प्रतिशत तय कर दी गई है.

इस से राज्यों पर सब्सिडी का भार बढ़ जाएगा. विपक्ष और विशेषज्ञों ने इन बदलावों की कड़ी आलोचना की है. कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं कि क्या इस नए निर्णय का मतलब यह है कि केंद्र सरकार बीमा योजना से अपना हाथ खींच रही है?

सामाजिक कार्यकर्ता रमनदीप सिंह मान का कहना है कि अगर बीमा कंपनियों ने प्रीमियम रेट केंद्र की सीमा से ऊपर तय कर दिए, तो केंद्र वास्तव में अपना हाथ खींच लेगा.

पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इन बदलावों पर सरकार को आड़े हाथों लिया और कहा कि इस से ज्यादा बड़ा किसान-विरोधी कदम नहीं हो सकता. चिदंबरम ने ट्वीट किया कि नए नियमों की वजह से फसलों का बीमा कवरेज ही गिर जाएगा और किसानों के लिए जोखिम बढ़ जाएगा.


देखना होगा कि किसान इन बदलावों को स्वीकार करते हैं या नहीं. किसान पहले से ही बुरे हाल में है. टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार ने महाराष्ट्र सरकार के राजस्व विभाग के आंकड़ों का विश्लेषण कर कहा था कि अकेले महाराष्ट्र में नवंबर 2019 में एक महीने में 300 किसानों ने आत्महत्या कर ली थी. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को पहले भी बहुत कारगर नहीं माना जा रहा था. पर उसमें किये गए ये बदलाव कहीं उसे बिल्कुल बेकार ना कर दें. 

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