पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ-साथ उनकी बेटी मरियम नवाज भी चुनाव से पहले खूब सुर्खियां बटोर रही हैं. विश्लेषक मरियम को देश की "नई बेनजीर भुट्टो" कह रहे हैं, लेकिन क्या मरियम इस छवि को बरकरार रख पाएगी.
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भारत की तरह ही पाकिस्तान की राजनीति में भी महिलाएं कम हैं और ऐसे में जब कोई नाम उभरता है तो उसकी तुलना भी शुरू हो जाती है. पाकिस्तान में इस साल होने वाले आम चुनावों में जिस महिला का नाम सबसे ज्यादा खबरों में आ रहा है वह है मरियम नवाज. मरियम, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी है. पाकिस्तान की राजनीति में आए हाल के उठापटक ने मरियम नवाज को मुख्यधारा में ला दिया है.
क्या अगली "बेनजीर"
पाकिस्तान में महिला नेता के नाम पर देश की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो का ही चेहरा याद आता है. बेनजीर की 27 दिसंबर 2007 को रावलपिंडी में एक चुनावी रैली में हत्या कर दी गई थी. हाल में जब मीडिया ने मरियम से पूछा कि क्या वह पाकिस्तान की नई बेनजीर भुट्टो हैं, तो मरियम ने कहा, "वह बेनजीर की बहुत इज्जत करती है. लेकिन वह अपनी अलग जगह बनाना चाहती हैं."
पश्चिमी दुनिया में बेनजीर की छवि एक ऐसे नेता की है जो पाकिस्तान में सेना की तानाशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करती रहीं. खैर, मरियम को अभी अंतरराष्ट्रीय सेलिब्रिटी नहीं कहा जा सकता, लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि उसके सामने सेना से निपटने की चुनौती बेनजीर की तुलना में ज्यादा बड़ी होगी.
राजनीतिक साजिश
इस्लामाबाद की एक अदालत ने भ्रष्टाचार के मामले में मरियम को सात साल कैद की सजा सुनाई थी. उनके पिता नवाज शरीफ को भी अदालत ने भ्रष्टाचार मामले में 10 साल कैद की सजा सुनाई थी. मरियम लंदन में अपने पिता के साथ रहती है. लेकिन अब चुनाव से पहले बाप-बेटी की यह जोड़ी पाकिस्तान वापस जाने की घोषणा कर चुकी है.
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शरीफ समर्थक पनामा पेपर्स से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में दी गई इस सजा को राजनीतिक साजिश मानते हैं. समर्थक कहते हैं कि यह सजा न्यायपालिका और सेना का रचा षड़यंत्र है ताकि शरीफ को सत्ता से दूर रखा जा सके. साथ ही देश के पंजाब सूबे में मजबूत पकड़ रखने वाले इस नेता के वोट-बैंक को उलझाया जा सके.
प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए नवाज शरीफ के सेना के साथ संबंध ठीक थे. लेकिन साल 1999 में सेना की ओर से किए गए तख्तापलट ने जनरल परवेज मुशर्रफ को देश का राष्ट्रपति बना दिया. जिसके बाद शरीफ और सेना के बीच टकराव बढ़ गया. जिसमें मरियम भी अपने पिता का खुलकर साथ दे रही हैं.
6 जुलाई 2018 को शरीफ और मरियम के खिलाफ सुनाए गए अदालती फैसले के बाद, कई विश्लेषकों ने कहा कि बाप-बेटी की इस जोड़ी को अभी पाकिस्तान नहीं आना चाहिए. लेकिन मरियम ने लंदन में मीडिया से कहा कि वह चुनाव से पहले अपने पिता के साथ पाकिस्तान को रवाना होंगी. यह घोषणा हैरानी भरी है, लेकिन इन दोनों नेताओं का यह फैसला निश्चित ही शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के चुनाव जीतने की संभावनाओं को बढ़ाएगा.
नवाज शरीफ ने झेले हैं ये सियासी तूफान
नवाज शरीफ पाकिस्तानी सियासत के एक मंझे हुए खिलाड़ी हैं. लेकिन अपने सियासी करियर में उन्होंने कई बड़े तूफान झेले हैं. एक नजर उनके राजनीतिक सफर पर.
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तीन बार प्रधानमंत्री
नवाज शरीफ पाकिस्तान के अकेले ऐसे नेता है जिन्होंने रिकॉर्ड तीन बार प्रधानमंत्री का पद संभाला. पहली बार वह नवंबर 1990 से जुलाई 1993 तक पीएम रहे. दूसरी बार उन्होंने फरवरी 1997 में सत्ता संभाली और 1999 में तख्तापलट तक प्रधानमंत्री रहे. इसके बाद 2013 में आम चुनाव जीतने के बाद फिर उन्हें प्रधानमंत्री की गद्दी मिली.
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कब आये सुर्खियों में
नवाज शरीफ को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर राजनेता के तौर पर पहचान सैन्य शासक जनरल जिया उल हक के शुरुआती दौर में मिली. वह 1985 से 1990 तक पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रहे. इससे पहले प्रांतीय सरकार में उन्होंने वित्त मंत्री की जिम्मेदारी संभाली.
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सियासी मोड़
1988 में जिया उल हक की मौत के बाद उनकी पार्टी पाकिस्तानी मस्लिम लीग (पगारा गुट) दो धड़ों में बंट गयी. एक धड़े का नेतृत्व उस वक्त के प्रधानमंत्री मोहम्मद खान जुनेजो को हाथ में था तो जिया समर्थक नवाज शरीफ के पीछे लामबंद थे.
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पहली बार प्रधानमंत्री
पाकिस्तान में 1990 के आम चुनाव में नवाज शरीफ ने शानदार जीत दर्ज की और वह देश के 12वें प्रधानमंत्री बने. लेकिन तीन साल बाद ही उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और इसके बाद बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में सरकार बनी.
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दूसरा मौका
1997 के चुनाव में नवाज शरीफ को स्पष्ट बहुमत मिला और देश की बागडो़र फिर एक बार उनके हाथ में आयी. यह वह दौर था जब विपक्ष चारों खाने चित्त होने के बाद हताशा का शिकार था, तो नवाज शरीफ पाकिस्तान के सियासी परिदृश्य पर छाये हुये थे.
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परमाणु परीक्षण
नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री रहते ही पाकिस्तान ने 1998 में पहली बार परमाणु परीक्षण किये थे. भारत के पोखरण-2 परमाणु परीक्षणों के चंद दिनों के बाद पाकिस्तान के इस परीक्षण ने दुनिया को हैरान किया और वह परमाणु शक्ति संपन्न पहला मुस्लिम देश बना.
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भारत से दोस्ती
पाकिस्तान में जब नवाज शरीफ की सरकार थी तो भारत में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. दोनों देशों के बीच तब शांति उम्मीद बंधी जब वाजपेयी बस के जरिए लाहौर पहुंचे. लेकिन इसके कुछ ही दिनों बाद कारगिल की लड़ाई ने ऐसी सभी उम्मीदों को गलत साबित किया.
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तख्तापलट
1999 में नवाज शरीफ ने अपनी सियासी जिंदगी का सबसे बड़े तूफान झेला, जब सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने उनका तख्तापलट कर उन्हें जेल में डाल दिया था. उन्हें उम्रैकद की सजा सुनायी गयी और उनके राजनीति में हिस्सा लेने पर भी आजीवन रोक लगा दी गयी.
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निर्वासन
सऊदी अरब के जरिए हुई एक डील के बाद नवाज शरीफ जेल की कालकोठरी से निकले. उन्हें परिवार के 40 सदस्यों के साथ सऊदी अरब निर्वासित कर दिया गया. वहां वह कई साल तक रहे. लेकिन 2007 में सेना के साथ उनकी फिर डील हुई और उनके पाकिस्तान लौटने का रास्ता साफ हुआ.
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तीसरा कार्यकाल
2008 के संसदीय चुनाव से पहले बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद पाकिस्तान पीपल्स पार्टी को सहानुभूति लहर का फायदा मिला और वह सत्ता में आयी. लेकिन बाद 2013 के चुनाव में नवाज शरीफ सब पर भारी साबित हुए. युवाओं के बीच इमरान खान की बढ़ती लोकप्रियता भी उसके रास्ता की बाधा नहीं बनी.
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भ्रष्टाचार के आरोप
इमरान खान को चुनाव मैदान में भले ही शिकस्त मिली, लेकिन उन्होंने नवाज शरीफ के खिलाफ अपना अभियान रोका नहीं. पनामा पेपर्स में शरीफ खानदान का नाम आने के बाद तो उनके आरोपों को नई धार मिल गयी. महीनों तक चली छानबीन के बाद आखिरकार नवाज शरीफ को इस जंग में हार का मुंह देखना पड़ा.
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अयोग्य करार
28 जुलाई 2017 को पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए नवाज शरीफ को अयोग्य करार दिया, जिसके बाद उनके लिए प्रधानमंत्री पद पर बने रहना संभव नहीं रहा. हालांकि नवाज शरीफ और उनका परिवार अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इनकार करते रहे हैं.
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10 साल की सजा
भ्रष्टाचार के एक मामले में नवाज शरीफ को 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई. लंदन में आलीशान फ्लैंटों की खरीद से जुड़े मामले में उन्हें यह सजा हुई. अदालत का कहा है कि शरीफ परिवार यह बताने में नाकाम रहा कि लंदन में संपत्ति खरीदने के लिए पैसा कहां से आया. आम चुनाव से ठीक पहले नवाज शरीफ को हुई सजा.
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पांच साल का फेर
पाकिस्तान में अब तक कोई भी पूरे पांच साल तक प्रधानमंत्री नहीं रहा है. पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान सबसे ज्यादा 1,524 दिन इस पद पर रहे. उनके बाद यूसुफ रजा गिलानी का नाम आता है जो 1,494 दिन तक प्रधानमंत्री रहे.
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पार्टी का रुख
नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ सेना के साथ अच्छे संबंधों पर जोर देते हैं, लेकिन मरियम का रुख इससे अलग है. शहबाज पंजाब प्रांत के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और पार्टी में दूसरे बड़े नेता. मरियम आम लोगों की जिंदगी में सेना के दखल का विरोध करती हैं. पाकिस्तान की सत्ता में 30 से अधिक सालों तक सैन्य शासन रहा है. विश्लेषक मानते हैं कि यह आगे भी जारी रह सकता है. जब नवाज शरीफ सत्ता में थे तो उनकी कोशिश थी कि वह आंतरिक नीतियों समेत विदेश मुद्दों पर अपनी पकड़ मजबूत रखें, लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं रहे. नवाज शरीफ भारत के साथ बेहतर संबंधों की भी पुरजोर वकालत करते रहे हैं.
पीएमएल-एन के कई नेताओं को अब शरीफ का यह रुख नहीं भा रहा है. वह सेना के साथ पैदा हो रहे शरीफ के सीधे टकराव के लिए मरियम को जिम्मेदार मानते हैं. कुछ राजनीतिक विश्लेषक यह भी कह चुके हैं कि नवाज शरीफ का मौजूदा राजनीतिक रुख पीएमएल-एन के भविष्य के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है. हालांकि कुछ नेता यह भी मानते हैं कि लोग इस हिम्मती महिला की दाद देंगे जो मुश्किल वक्त में भी अपने पिता के साथ खड़ी रही.
पार्टी का भविष्य
मरियम को पाकिस्तान लौटने पर जेल जाना पड़ सकता है. जिसका असर पार्टी के भविष्य पर पड़ेगा. पीएमएल-एन टूट भी सकती है या पार्टी के चुनावी कैंपेन में तेजी आ सकती है. साथ ही वह वोटरों की सहानुभूति बटोरने में कामयाब हो सकती है. पाकिस्तानी पत्रकारी अहसान रजा मानते हैं, "मरियम अगर जेल जाती है तो यह पूरा मामला पार्टी में मरियम की जगह मजबूत करेगा और वह एक करिश्माई नेता बन कर उभर सकेगी, जिसे अपने पिता का राजनीतिक विरासत का वारिस समझा जाएगा." लेकिन रजा यह भी कयास जताते हैं कि अगर परिवार के दूसरे सदस्य सेना के खिलाफ मरियम के रुख को जनता के सामने नहीं रख पाते तो पार्टी को बड़ा नुकसान भी हो सकता है.
पाकिस्तान की साहसी महिलाएं
रुढ़िवादी होने के बावजूद पाकिस्तान की राजनीति में जब तब महिला नेता उभरती रही हैं. आजादी के बाद पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की पत्नी, राना लियाकत अली खान और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना ने देश की राजनीति में अहम भूमिका निभाई.
पाकिस्तानी सेना को ललकारता युवा पश्तून
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साल 1960 के दशक में फातिमा जिन्ना ने जनरल अयूब खान की तानाशाही के खिलाफ खुली जंग छेड़ दी. उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव लड़ा, लेकिन हार गई. अयूब खान ने फातिमा जिन्ना को "भारत का एजेंट" बताया और उनके खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया.
साल 1980 में बेनजीर भुट्टों ने पाकिस्तान वापस लौटकर सैन्य तानाशाह जनरल जिया-उल-हक के खिलाफ मुहिम छेड़ दी. जिया-उल-कह ने बेनजीर के पिता और देश के प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को फांसी पर चढ़ा दिया था. 1980 के दशक में बेनजीर की मां नुसरत भुट्टो भी लोकतंत्र के पक्ष में लड़ाई लड़ती रहीं. इन सब के बाद अब नया चेहरा मरियम शरीफ का है, जो पाकिस्तान के पुरुषों के दबदबे वाले राजनीतिक मैदान में मुकाबले के लिए खड़ी हुई हैं.
इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के समर्थक मरियम शरीफ को भी अपने पिता की तरह भ्रष्टाचार मामलों में दोषी मानते हैं. कई आलोचक भी मरियम की राजनीतिक कुशलता पर संदेह जाहिर करते हुए उन्हें "अभिजात और रईस" कहते हैं. पाकिस्तान की सांसद महिला नेता समन जाफरी कहती हैं, "देश की संसद में निचले और मध्यम तबके की महिलाओं को आना चाहिए. क्योंकि वही आम लोगों के साथ मिलकर काम कर सकती हैं. पहले बेनजीर हो या अब मरियम रौबदार राजनीतिक परिवारों की हैं जो किसी भी बदलाव का संकेत नहीं है."
पाकिस्तान में कौन कौन सी राजनीतिक पार्टियां हैं
पाकिस्तान में अभी तहरीक ए इंसाफ की सरकार है. इमरान खान प्रधानमंत्री हैं. पाकिस्तान में भी बहुपार्टी लोकतांत्रिक व्यवस्था है. भारत की तरह वहां पर भी कई सारी राजनीतिक पार्टियां हैं.
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पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन)
पार्टी के चेयरमैन नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ हैं. 1988 में स्थापित इस पार्टी का चुनाव निशान शेर है.
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पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ
इमरान खान की पार्टी का चुनाव चिन्ह क्रिकेट का बैट है. युवाओं में इमरान बहुत लोकप्रिय हैं.
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पाकिस्तान पीपल्स पार्टी
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बेहद मजबूत समझी जाने वाली पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की स्थापना 1967 में जुल्फिकार अली भुट्टो ने की थी. अब उनके नवासे बिलावुल भुट्टो जरदारी पार्टी के प्रमुख हैं. पार्टी का चुनाव चिन्ह तीर है.
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मुत्तेहिदा कौमी मूवमेंट
एमक्यूएम की स्थापना 1984 में अल्ताफ हुसैन ने की थी. पार्टी का चुनाव चिन्ह पतंग है और पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में उसका बहुत दबदबा माना जाता है. एमक्यूएम को विभाजन के बाद पाकिस्तान में जाकर बसे मुहाजिरों की पार्टी माना जाता है.
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आवामी नेशनल पार्टी
आवामी नेशनल पार्टी पाकिस्तान के खैबर पख्तून ख्वाह में बड़ी ताकत रही थी. पार्टी का चुनाव निशान लाल टोपी है.
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जमीयत उलेमा ए इस्लाम (एफ)
मौलाना फजलुर रहमान के नेतृत्व वाली जमीयत उलेमा ए इस्लाम (एफ) पाकिस्तान की एक सुन्नी देवबंदी राजनीतिक पार्टी है. पार्टी की चुनाव चिन्ह किताब है. यह पार्टी 1988 में जमीयत उलेमा ए इस्लाम में विभाजन के बाद अस्तित्व में आई.
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पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एफ)
यह पार्टी एक सिंधी धार्मिक नेता पीर पगाड़ा से जुड़ी हुई है. पार्टी का चुनाव चिन्ह गुलाब का फूल है. (तस्वीर पाकिस्तानी संसद की है.)
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जमीयत उलेमा ए इस्लाम
इस पार्टी का मकसद पाकिस्तान को एक ऐसे देश में तब्दील करना है जो शरिया के मुताबिक चले. हालांकि जनता के बीच उसका ज्यादा आधार नहीं है. नेशनल असेंबली में उसके अभी सिर्फ चार सदस्य हैं. पार्टी तराजू के निशान पर चुनाव लड़ती है और सिराज उल हक इसके प्रमुख हैं.
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पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क्यू)
यह पार्टी नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) से टूट कर बनी है. पार्टी के मुखिया शुजात हुसैन सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ के दौर में कुछ समय के लिए देश के प्रधानमंत्री रहे. पार्टी का चुनाव चिन्ह साइकिल है.