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क्या सेना से लड़ पाएंगी मरियम नवाज?

एस खान, इस्लामाबाद
११ जुलाई २०१८

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ-साथ उनकी बेटी मरियम नवाज भी चुनाव से पहले खूब सुर्खियां बटोर रही हैं. विश्लेषक मरियम को देश की "नई बेनजीर भुट्टो" कह रहे हैं, लेकिन क्या मरियम इस छवि को बरकरार रख पाएगी.

Pakistan Maryam Nawaz Sharif, Tochter des Premierministers
तस्वीर: Reuters/F. Mahmood

भारत की तरह ही पाकिस्तान की राजनीति में भी महिलाएं कम हैं और ऐसे में जब कोई नाम उभरता है तो उसकी तुलना भी शुरू हो जाती है. पाकिस्तान में इस साल होने वाले आम चुनावों में जिस महिला का नाम सबसे ज्यादा खबरों में आ रहा है वह है मरियम नवाज. मरियम, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी है. पाकिस्तान की राजनीति में आए हाल के उठापटक ने मरियम नवाज को मुख्यधारा में ला दिया है.

क्या अगली "बेनजीर"

पाकिस्तान में महिला नेता के नाम पर देश की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो का ही चेहरा याद आता है. बेनजीर की 27 दिसंबर 2007 को रावलपिंडी में एक चुनावी रैली में हत्या कर दी गई थी. हाल में जब मीडिया ने मरियम से पूछा कि क्या वह पाकिस्तान की नई बेनजीर भुट्टो हैं, तो मरियम ने कहा, "वह बेनजीर की बहुत इज्जत करती है. लेकिन वह अपनी अलग जगह बनाना चाहती हैं."

पश्चिमी दुनिया में बेनजीर की छवि एक ऐसे नेता की है जो पाकिस्तान में सेना की तानाशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करती रहीं. खैर, मरियम को अभी अंतरराष्ट्रीय सेलिब्रिटी नहीं कहा जा सकता, लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि उसके सामने सेना से निपटने की चुनौती बेनजीर की तुलना में ज्यादा बड़ी होगी.

राजनीतिक साजिश

इस्लामाबाद की एक अदालत ने भ्रष्टाचार के मामले में मरियम को सात साल कैद की सजा सुनाई थी. उनके पिता नवाज शरीफ को भी अदालत ने भ्रष्टाचार मामले में 10 साल कैद की सजा सुनाई थी. मरियम लंदन में अपने पिता के साथ रहती है. लेकिन अब चुनाव से पहले बाप-बेटी की यह जोड़ी पाकिस्तान वापस जाने की घोषणा कर चुकी है.

तस्वीर: Imago/UPI Photo

शरीफ समर्थक पनामा पेपर्स से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में दी गई इस सजा को राजनीतिक साजिश मानते हैं. समर्थक कहते हैं कि यह सजा न्यायपालिका और सेना का रचा षड़यंत्र है ताकि शरीफ को सत्ता से दूर रखा जा सके. साथ ही देश के पंजाब सूबे में मजबूत पकड़ रखने वाले इस नेता के वोट-बैंक को उलझाया जा सके.

प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए नवाज शरीफ के सेना के साथ संबंध ठीक थे. लेकिन साल 1999 में सेना की ओर से किए गए तख्तापलट ने जनरल परवेज मुशर्रफ को देश का राष्ट्रपति बना दिया. जिसके बाद शरीफ और सेना के बीच टकराव बढ़ गया. जिसमें मरियम भी अपने पिता का खुलकर साथ दे रही हैं. 

6 जुलाई 2018 को शरीफ और मरियम के खिलाफ सुनाए गए अदालती फैसले के बाद, कई विश्लेषकों ने कहा कि बाप-बेटी की इस जोड़ी को अभी पाकिस्तान नहीं आना चाहिए. लेकिन मरियम ने लंदन में मीडिया से कहा कि वह चुनाव से पहले अपने पिता के साथ पाकिस्तान को रवाना होंगी. यह घोषणा हैरानी भरी है, लेकिन इन दोनों नेताओं का यह फैसला निश्चित ही शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के चुनाव जीतने की संभावनाओं को बढ़ाएगा. 

पार्टी का रुख

नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ सेना के साथ अच्छे संबंधों पर जोर देते हैं, लेकिन मरियम का रुख इससे अलग है. शहबाज पंजाब प्रांत के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और पार्टी में दूसरे बड़े नेता. मरियम आम लोगों की जिंदगी में सेना के दखल का विरोध करती हैं. पाकिस्तान की सत्ता में 30 से अधिक सालों तक सैन्य शासन रहा है. विश्लेषक मानते हैं कि यह आगे भी जारी रह सकता है. जब नवाज शरीफ सत्ता में थे तो उनकी कोशिश थी कि वह आंतरिक नीतियों समेत विदेश मुद्दों पर अपनी पकड़ मजबूत रखें, लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं रहे. नवाज शरीफ भारत के साथ बेहतर संबंधों की भी पुरजोर वकालत करते रहे हैं.

पीएमएल-एन के कई नेताओं को अब शरीफ का यह रुख नहीं भा रहा है. वह सेना के साथ पैदा हो रहे शरीफ के सीधे टकराव के लिए मरियम को जिम्मेदार मानते हैं. कुछ राजनीतिक विश्लेषक यह भी कह चुके हैं कि नवाज शरीफ का मौजूदा राजनीतिक रुख पीएमएल-एन के भविष्य के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है. हालांकि कुछ नेता यह भी मानते हैं कि लोग इस हिम्मती महिला की दाद देंगे जो मुश्किल वक्त में भी अपने पिता के साथ खड़ी रही.

पार्टी का भविष्य

मरियम को पाकिस्तान लौटने पर जेल जाना पड़ सकता है. जिसका असर पार्टी के भविष्य पर पड़ेगा. पीएमएल-एन टूट भी सकती है या पार्टी के चुनावी कैंपेन में तेजी आ सकती है. साथ ही वह वोटरों की सहानुभूति बटोरने में कामयाब हो सकती है. पाकिस्तानी पत्रकारी अहसान रजा मानते हैं, "मरियम अगर जेल जाती है तो यह पूरा मामला पार्टी में मरियम की जगह मजबूत करेगा और वह एक करिश्माई नेता बन कर उभर सकेगी, जिसे अपने पिता का राजनीतिक विरासत का वारिस समझा जाएगा." लेकिन रजा यह भी कयास जताते हैं कि अगर परिवार के दूसरे सदस्य सेना के खिलाफ मरियम के रुख को जनता के सामने नहीं रख पाते तो पार्टी को बड़ा नुकसान भी हो सकता है.

पाकिस्तान की साहसी महिलाएं

रुढ़िवादी होने के बावजूद पाकिस्तान की राजनीति में जब तब महिला नेता उभरती रही हैं. आजादी के बाद पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की पत्नी, राना लियाकत अली खान और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना ने देश की राजनीति में अहम भूमिका निभाई.

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साल 1960 के दशक में फातिमा जिन्ना ने जनरल अयूब खान की तानाशाही के खिलाफ खुली जंग छेड़ दी. उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव लड़ा, लेकिन हार गई. अयूब खान ने फातिमा जिन्ना को "भारत का एजेंट" बताया और उनके खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया.

साल 1980 में बेनजीर भुट्टों ने पाकिस्तान वापस लौटकर सैन्य तानाशाह जनरल जिया-उल-हक के खिलाफ मुहिम छेड़ दी. जिया-उल-कह ने बेनजीर के पिता और देश के प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को फांसी पर चढ़ा दिया था. 1980 के दशक में बेनजीर की मां नुसरत भुट्टो भी लोकतंत्र के पक्ष में लड़ाई लड़ती रहीं. इन सब के बाद अब नया चेहरा मरियम शरीफ का है, जो पाकिस्तान के पुरुषों के दबदबे वाले राजनीतिक मैदान में मुकाबले के लिए खड़ी हुई हैं.

इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के समर्थक मरियम शरीफ को भी अपने पिता की तरह भ्रष्टाचार मामलों में दोषी मानते हैं. कई आलोचक भी मरियम की राजनीतिक कुशलता पर संदेह जाहिर करते हुए उन्हें "अभिजात और रईस" कहते हैं. पाकिस्तान की सांसद महिला नेता समन जाफरी कहती हैं, "देश की संसद में निचले और मध्यम तबके की महिलाओं को आना चाहिए. क्योंकि वही आम लोगों के साथ मिलकर काम कर सकती हैं. पहले बेनजीर हो या अब मरियम रौबदार राजनीतिक परिवारों की हैं जो किसी भी बदलाव का संकेत नहीं है."

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