व्यस्त दिन के बाद इंसान अगले दिन के काम की चिंता में डूब जाता है. रात में ठीक से नींद न आए तो अगले दिन के काम पर भी असर होता है. वैज्ञानिक जानना चाहते हैं कि सो नहीं पाने पर शरीर को आराम कैसे मिले.
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सैरा मेस्त्रोविच जर्मनी की प्रसिद्ध बैले डांसर है. जब वह परफॉर्म कर रही होती है तो पंख जैसे हल्केपन के साथ फर्श पर फिसलती, थिरकती नजर आती है. लेकिन जो इतना आसान दिखता है, वह असल में खासा मुश्किल काम है. बैले डांसर दरअसल टॉप के एथलीट होते हैं. बर्लिन की स्टेट बैले कंपनी की टीम में 90 युवा महिलाएं और पुरुष हैं. रोज की ट्रेनिंग, कड़ा अनुशासन और कामयाबी का दबाव, इन डांसरों की दिनचर्या का हिस्सा है. उनका हर दिन अक्सर देर रात से खत्म होता है. सैरा मेस्त्रोविच अपने काम की चुनौतियों के बारे में बताती हैं, "एक नामी शख्सियत ने कहा था कि हम तितलियों की तरह हैं, लेकिन इस्पात के बने. हमें सख्त और मजबूत होना पड़ता है, लेकिन हमें ऐसा दिखना होता है कि सब कुछ बहुत ही आसान और ताजा है." आराम और प्रदर्शन बैले डांसर हफ्ते में छह दिन ट्रेनिंग करते हैं. और हर शाम शो की शाम होती है. इसका मतलब है कि काम का अनियमित समय और उस पर से हर रोज कड़ी मेहनत. बैले डांसर का एक सामान्य दिन मानव शरीर पर रिसर्च का दिलचस्प विषय है. स्वाभाविक है कि उनके सोने की आदत पर बर्लिन के शैरिटे मेडिकल कॉलेज में रिसर्च हो रही है. शैरिटे के नींद विशेषज्ञ प्रो. इंगो फीत्से बताते हैं, "बैले डांसलर हमारे लिए दिलचस्प इसलिए थे कि उनका काम का ढर्रा सामान्य नहीं है. वे हफ्ते में पांच दिन काम नहीं करते. वीकएंड में भी उनका शो होता है और ट्रेनिंग भी होती है. यह शिफ्ट में काम करने जैसा है और हमें अब तक के रिसर्च से पता है कि दिन और रात का अनियमित ढर्रा बीमारी का कारण बन सकता है. हम जानना चाहते थे कि वे कितने घंटे सोते हैं, और क्या सोने का उनके चेटिल होने से कुछ लेना देना है." शैरिटे मेडिकल कॉलेज के स्लीपिंग लैब में सोने से संबंधित राज खुलते हैं. आधुनिक तकनीक की मदद से इंसानी दिमाग में झांकना मुमकिन हो गया है, सर पर लगे इलेक्ट्रोड ब्रेनवेव को रजिस्टर करते हैं. उसी समय आंखों का मूवमेंट, कोशिकाओं की टोन और सांस लेने की गति भी रिकॉर्ड की जाती है. सो चुकने के बाद इंसान हर सौ मिनट पर अर्ध निद्रा, गहरी निद्रा और स्वप्न की अवस्था में जाता है. यह चक्र रात में बार बार दोहराता है. झपकी से मदद निद्रा वैज्ञानिक एलीन लिप्स रिसर्च के तरीके के बारे में बताते हैं, "अच्छी और खराब नींद में अंतर कर सकने के लिए हिप्नोग्राम का आकलन किया जाता है. इसमें देखा जा सकता है कि नींद का प्रोफाइल कैसा है, रात में नींद के कितने चरण तय हुए. इसमें यह भी देखा जा सकता है कि क्या रात में पर्याप्त गहरी निंद मिली या मरीज को विभिन्न कारणों से गहरी नींद नहीं मिली. नींद बहुत ही हल्की रही और इसलिए पर्याप्त आराम नहीं मिल पाया." खराब नींद अगले दिन हमारे काम पर असर डालती है. रात में नींद अच्छी न आई हो तो अगले दिन इंसान थका होता है और वह कोई भी काम ठीक से नहीं कर पाता. सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने की क्षमता घट जाती है. वैज्ञानिकों ने पता किया है कि अगर दिन में थोड़ी देर झपकी ले ली जाए तो काफी फायदा हो सकता है. एमजे/एसएफ
क्यों जरूरी है नींद
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कम सोने के 7 खतरे
आमतौर पर वयस्कों की लाइफस्टाइल में पर्याप्त नींद मिलना भी एक लक्जरी बन गया है. वयस्कों को रोजाना 7 से 9 घंटे की नींद चाहिए. अगर आप लगातार कम नींद ले रहे हैं, तो आगे चलकर यह कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है.
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डिप्रेशन या अवसाद
दुनिया भर के 15 करोड़ लोग नींद से जुड़ी बीमारियों के शिकार हैं, जबकि विकसित देशों में 10 फीसदी लोग पूरी नींद नहीं ले पाते. साल 2007 में 10,000 लोगों पर हुई रिसर्च बताती है कि जो लोग कम सोते हैं उनके अवसाद में जाने की संभावना आम लोगों से पांच गुना ज्यादा है.
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मस्तिष्क को नुकसान
स्वीडन की उपसाला यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया है कि नींद से मस्तिष्क की कोशिकाओं को स्वस्थ रखने में काफी मदद मिलती है. अगर ऐसा ना हो तो दिमाग को नुकसान पहुंचाने वाले अणु काम में लग जाते हैं. टेस्ट में प्रयोग में शामिल लोगों के खून में इन अणुओं की संख्या में सिर्फ एक रात ना सोने की वजह से ही करीब 20 प्रतिशत बढ़ी हुई पाई गई.
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गर्भवती होने में भी परेशानी
2013 में कोरियाई अनुसंधान टीम ने गर्भाधान के कृत्रिम तरीके आईवीएफ के दौर से गुजर रहे 650 से अधिक लोगों की सोने की आदतों का विश्लेषण किया. उन्होंने पाया कि जो महिलाएं 7-9 घंटे की नींद ले रही थीं, उनमें गर्भ ठहरने की दर सबसे ज्यादा थी. वहीं जो महिलाएं 9-11 घंटे सोती थीं उनमें सबसे कम.
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मधुमेह का खतरा
अमेरिका की एक सेहत पत्रिका में तीन साल पहले छपी रिपोर्ट के मुताबिक कम सोने से वजन बढ़ने का भी खतरा रहता है और पाचन तंत्र भी बुरी तरह प्रभावित होता है. वजन बढ़ने से लोगों में ब्लड प्रेशर, हार्मोन और शुगर का स्तर भी बिगड़ता है, जिससे डायबिटीज का खतरा होता है.
मोटापा
रिसर्च बताती है कि एक रात जागने के बाद ही मेटाबोलिज्म में लगने वाली ऊर्जा की खपत में 5 से 20 फीसदी तक की कमी आती है. नींद ना मिले तो अगली सुबह ही ब्लड शुगर, भूख नियंत्रित करने वाले हार्मोन घ्रेलीन और तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन कोर्टीसोल की मात्रा बढ़ी हुई पाई जाती है. कई दूसरे शोध दिखाते हैं कि पांच घंटे या उससे कम सोने वालों में वजन बढ़ना आम है.
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हृदय की समस्याएं
अमेरिका में 2012 में कार्डियोलोजी सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए शोध के नतीजों से पता चला कि दिल की समस्याओं का खतरा भी नींद से जुड़ा है. इसमें शोधकर्ताओं ने 3,000 से अधिक लोगों के डाटा का विश्लेषण किया. पाया गया कि पर्याप्त नींद ना लेने वालों में एनजाइना का खतरा दोगुना और कोरोनरी धमनी की बीमारी का जोखिम 1.1 गुना बढ़ जाता है.
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जल्दी मौत
अमेरिका के नेशनल स्लीप फाउंडेशन की सलाह है कि वयस्क लोगों को हर रात सात से नौ घंटे तक सोना चाहिए. एक ताजा शोध के अनुसार हर रोज बीस मिनट तक कसरत करने से असामयिक मौत का खतरा 16 से 30 प्रतिशत तक घट जाता है. इसलिए लंबा जीवन जीना है तो हर रात अच्छी नींद लेना भी उसी ओर एक कदम है. Sumber: huffingtonpost.com
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क्यों होती है सोने में दिक्कत
सोने की हर मुमकिन कोशिश करने के बावजूद भी हम अक्सर सो क्यों नहीं पाते हैं? ऐसे में ये उपाय कारगर साबित हो सकते हैं...
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घुटनों का टकराना
कई लोग करवट लेकर सोना पसंद करते हैं. इसमें आराम मिल सकता है लेकिन अक्सर ऐसे लेटने में दोनों पैरों के घुटने आपस में टकराते हैं. अगर इससे सोने में दिक्कत होती है तो पैरों के बीच कोई मुलायम तकिया रख लें.
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सही गद्दा
अच्छी नींद के लिए गद्दे का सही होना बेहद जरूरी है. अगर आप अपनी पीठ और गद्दे के बीच तीन उंगलियों का अंतर महसूस करते हैं तो इसका मतलब है कि गद्दा पीठ के लिए ठीक नहीं. अगर आप अकड़ी हुई या दुखती हुई पीठ के साथ उठते हैं तो अपना गद्दा फौरन बदल डालें.
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आवाजें
अक्सर हम रात को कुछ आवाजें सुनने के आदी होते हैं जैसे कि अगर रोज रात घर के पास से ट्रेन के गुजरने की आवाज आती हो, तो उससे हमें दिक्कत नहीं होती. लेकिन अगर कोई नई आवाज हमें सुनाई देती है, जैसे बिल्ली के रोने या लड़ने की आवाज तो हमारी नींद टूट जाती है. नींद में पड़ने वाली बाधाओं से निपटने के लिए आप हल्का संगीत बजाकर सो सकते हैं.
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दवाओं का असर
अक्सर हम कुछ ऐसी दवाएं ले रहे होते हैं जिनका नींद पर असर पड़ता है. जैसे कि अवसाद, उच्च रक्तचाप या फिर दिल की बीमारियों की दवाएं. कई बार पेशाब करने के लिए भी नींद खुलती रहती है.
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प्रकाश का असर
सोने के लिए हमें मेलाटोनिन हार्मोन की जरूरत होती है. लेकिन अक्सर प्रकाश की मौजूदगी में मेलाटोनिन का स्तर कम हो जाता है. अच्छी नींद के लिए विशेषज्ञों की सलाह है कि सोने से 30 मिनट पहले से बत्तियां बुझाना या हल्की करना शुरू कर दें. सोने से पहले कंप्यूटर, मोबाइल, टीवी इत्यादि भी बंद कर देना चाहिए.
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ज्यादा खाना
कई शोध दिखाते हैं कि बहुत खाने के बाद अक्सर लोगों को सोने में दिक्कत आती है. खाने के बाद फौरन सोने जाना ठीक नहीं. बेहतर होगा कि रात में हल्का ही खाना खाया जाए.
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कंप्यूटर का इस्तेमाल
सोने से पहले कंप्यूटर का इस्तेमाल नींद पर खराब असर डालता है. कंप्यूटर से निकलने वाली नीली रोशनी भी मेलाटोनिन के स्तर को कम करती है. मोलाटोनिन के घटते स्तर से मोटापे का खतरा भी बढ़ता है.
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तनाव से दूरी
अगर कोई ऐसी बात है जिससे तनाव होने की संभावना है तो कोशिश करें कि उसे अगले दिन के लिए टाल दें. सोने से पहले ऐसी बातें करने से नींद पर खराब असर पड़ता है.