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क्या हड़ताल से सुलझेगी समस्याएं

२० फ़रवरी २०१३

भारत में विभिन्न ट्रेड यूनियनों की अपील पर बुधवार से दो दिन की देशव्यापी हड़ताल चल रही है. उन्होंने केंद्र की यूपीए सरकार की आर्थिक व कथित जनविरोधी नीतियों के खिलाफ यह हड़ताल बुलाई है.

तस्वीर: DW/P. Tewari

क्या हड़ताल ही किसी समस्या को सुलझाने का आखिरी हथियार है? इस हड़ताल से देश को कितना नुकसान होता है? और कैसे गुजरता है उस मजदूर तबके का दिन जिसके घर चूल्हा तभी जलता है जब वह दिन भर की कमाई लेकर शाम को घर लौटता है? यह हडताल किसी के लिए मुफ्त की छुट्टी साबित होगी तो किसी के लिए भुखमरी का दिन. आखिर आम लोग क्या सोचते हैं इस हड़ताल के बारे में? सुप्रीम कोर्ट समेत विभिन्न अदालतें पहले ही हड़ताल के गैर-कानूनी करार दे चुकी हैं. डायचे वेले ने इस हड़ताल के दौरान विभिन्न तबके के लोगों से बातचीत के जरिए इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की.

ठप्प आम जनजीवनतस्वीर: DW/P. Tewari

सीपीएम के मजदूर संगठन सीटू के प्रदेश अध्यक्ष श्यामल चक्रवर्ती कहते हैं, "हड़ताल हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है. यूपीए सरकार की जनविरोधी नीतियां देश को लगातार पतन की ओर ले जा रही है." वह कहते हैं कि हड़ताल से आम लोगों को परेशानी तो होती ही है लेकिन इसके सिवा कोई विकल्प नहीं था. वहीं प्रोफेसर सुरजीत चक्रवर्ती कहते हैं, "एक दिन की हड़ताल देश को कई साल पीछे धकेल देती है. ऐसे में दो दिन की हड़ताल से होने वाले नुकसान का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है." क्या आप हड़ताल का समर्थन करते हैं? इस सवाल पर एक निजी कंपनी में काम करने वाले विपुल बसु कहते हैं, "मैं बंद या हड़ताल के खिलाफ हूं. हड़ताल को कामयाब बनाने के लिए सड़कों पर समर्थक जोर जबरदस्ती करते हैं. इसलिए मैं बच्चों को स्कूल भेजने का खतरा नहीं उठा सकता."

पश्चिम बंगाल में हड़ताल के सवाल पर ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार और हड़ताली ट्रेड यूनियनों के बीच तनातनी चरम पर है. ममता ने हड़ताल के दौरान बंगाल को खुला रखने का दावा किया है. उन्होंने व्यापारियों को बाजार खुला रखने का निर्देश देते हुए कहा है कि उनकी दुकान में तोड़फोड़ होने की स्थिति में सरकार मुआवजा देगी. उन्होंने दुकानें नहीं खोलने वालों के खिलाफ प्रशासनिक कदम उठाने की भी चेतावनी दी है. इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों को भी काम पर आने को कहा गया है. लेकिन ममता के भरोसे के बावजूद व्यापारी दुकानों के शटर उठाने को तैयार नहीं हैं. एक कपड़ा ब्रिकेता रंजीत मल्लिक कहते हैं, "सरकार ने मुआवजा देने की बात जरूर कही है. लेकिन सरकारी पैसा पाने में कितने पापड़े बेलने पड़ते हैं यह हम सब जानते हैं. इसलिए मैंने दुकान बंद रखने का फैसला किया है."

गरीबों पर मार

मध्यवर्ग के लोग तो हड़ताल के दौरान काम बंद रख सकते हैं. लेकिन उनका क्या जो रोज कमाते और रोज खाते हैं. कोलकाता के बड़ाबाजार इलाकों में काम करने वाले हजारों मजदूरों के लिए तो यह दो दिन बहुत भारी पड़ेंगे. छपरा जिले के शिवानंद राय यहां मजदूरी कर घर खर्च चलाते हैं. राय कहते हैं, "हड़ताल में हम फूटी कौड़ी तक नहीं कमा सकेंगे." उनका सवाल है कि हड़ताल बुलाने से पहले कोई उनके बारे में क्यों नहीं सोचता? वैसे, सूचना तकनीक के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों ने हाल को देखते हुए अपने कर्मचारियों को मंगलवार से ही दफ्तर या नजदीक के गेस्टहाउसों में रोक लिया है. ऐसी ही एक कंपनी के प्रमुख गौतम साहा कहते हैं, "यहां काम बंद नहीं रखा जा सकता. इसलिए हमने सरकार और पुलिस पर भरोसा करने की बजाय कमर्चारियों को दफ्तर में ही रोक लिया है ताकि काम चलता रहे."

टौक्सी वालों की छुट्टीतस्वीर: DW/P. Tewari

बंद से नुकसान

इस हड़ताल से व्यापारिक संगठनों में भारी नाराजगी है. फेडरेशन आफ इंडियन चैंम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज यानी फिक्की के डायरेक्टर जनरल चंद्रजीत बनर्जी कहते हैं, "हड़ताल से कम से कम 20 हजार करोड़ का नुकसान होगा." एक अन्य संगठन एसोचैम ने भी हड़ताल से 15 से 20 हजार करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया है. एसोचैम के अध्यक्ष राज कुमार धूत कहते हैं, "देश की अर्थव्यवस्था व मंदी के मौजूदा दौर को ध्यान में रखते हुए यह हड़ताल के लिए सबसे खराब समय है. इसका असर महंगाई और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर भी होगा."

इन संगठनों का कहना है कि पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों को इस हड़ताल से सबसे ज्यादा नुकसान होगा. हड़ताल के दौरान खाद्यान्नों की आवाजाही तो ठप हो ही जाएगी, बैंकिंग गतिविधियां भी ठप रहेंगी.

कई मुख्यमंत्री भी समर्थन में

हड़ताली ट्रेड यूनियनों का दावा है कि पहली बार कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी नैतिक तौर पर हड़ताल का समर्थन कर रहे हैं. ट्रेड यूनियन नेता और सीपीआई सांसद गुरुदास दासगुप्ता कहते हैं, "ओडीशा और कर्नाटक समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने हड़ताल को नैतिक समर्थन देने का एलान किया है."

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बंद के दौरान सड़कों पर समर्थकों व विरोधियों के बीच होने वाली हिंसक झड़पों की आशंका से ही आम लोग घरों से नहीं निकलते. वैसे भी दशकों से बंद या हड़ताल बंगाल की संस्कृति में शामिल हो गई है. अब सरकार बदलने के बाद यह सिलसिला कुछ कम जरूर हुआ है. लेकिन बंद का आंतक अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः आभा मोंढे

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