अगर फिलहाल चल रहे जलवायु परिवर्तन को रोकने के प्रयासों में सफलता मिल भी जाती है तो करीब एक तिहाई हिमालयी ग्लेशियर को बचाना मुश्किल होगा. यह बात एक स्टडी में सामने आई है.
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हिंदू कुश हिमालय एसेसमेंट नाम की स्डडी में बताया गया है कि इस सदी के अंत तक हम हिमालय पर्वत के ग्लेशियरों का बड़ा हिस्सा गंवा चुके होंगे जो करीब 1.9 अरब लोगों के पीने के पानी का स्रोत है. काठमांडू में स्थित एक संस्था की स्टडी में यह भी बताया गया है कि अगर विश्व भर में जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय सफल नहीं होते हैं, तब तो इन ग्लेशियरों पर और भी ज्यादा बुरा असर होगा. अनुमान के मुताबिक, सन 2100 आते आते हम इसका करीब दो-तिहाई हिस्सा खो देंगे.
इस स्टडी का नेतृत्व करने वाले इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवेलपमेंट के फिलिपस वेस्टर का कहना है, "ग्लोबल वॉर्मिंग लगातार इन जमे हुए ग्लेशियर से ढके हिंदू कुश पहाड़ों की चोटी को गलाने में लगी है. एक सदी से भी कम में यह नंगे पहाड़ बन जाएंगे जो कि आठ देशों से होकर गुजरते हैं."
पांच सालों तक चली इस स्टडी में हिंदू कुश क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के असर को समझने की कोशिश की गई. यह इलाका एशिया के आठ देशों, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, चीन, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार से होकर गुजरता है. इसी इलाके में दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियां भी हैं और वे सारे ग्लेशियर भी जिनसे सिंधू, गंगा, यांग्सी, इरावडी और मेकॉन्ग नदियों में पानी आता है.
भारत से अलग नहीं हैं पाकिस्तान के पहाड़ी
हिमालय के पहाड़ी इलाकों में सैकड़ों संस्कृतियां बसी हैं. उनके अपने गीत और अपने पारंपरिक नृत्य हैं. देखिये पाकिस्तान के पहाड़ी इलाके हुज्मा की संस्कृति को जरा करीब से.
तस्वीर: Bulbulik Heritage Centre Gulmit
बांसुरी की धुन
कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड की तरह ही पाकिस्तान के पहाड़ी इलाके में भी बांसुरी पारंपरिक वाद्य यंत्र हैं. हुज्मा के गुलमीत कस्बे का यह बच्चा पारंपरिक पोशाक में बांसुरी सिख रहा है.
तस्वीर: Bulbulik Heritage Centre Gulmit
बुलबीन संगीत
बांसुरी और इकतारे की मदद से बुलबुल जैसी आवाज निकाली जाते हैं. इसी के चलते इस संगीत को बुलबीन कहा जाता है.
तस्वीर: Bulbulik Heritage Centre Gulmit
रूफ ऑफ द वर्ल्ड
गुलमीत कस्बे में हर साल रूफ ऑफ द वर्ल्ड फेस्टिवल का आयोजन होता है. इस दौरान बुजुर्ग भी शरीक होते हैं.
तस्वीर: Bulbulik Heritage Centre Gulmit
गीत गाना
बुजुर्ग पारंपरिक गीतों का मुखड़ा गाते हैं और सामने वाले उन्हें दोहराते हैं और उन पर डांस करते हैं.
तस्वीर: Bulbulik Heritage Centre Gulmit
खड़ी होली सा
उत्तराखंड में होने वाली खड़ी होली की तरह गुलमीत में भी युवा एक लाइन में कदम से कदम मिलाते हुए डांस करते हैं.
तस्वीर: Bulbulik Heritage Centre Gulmit
महफिल
जो गा बजा नहीं सकते वो आराम से कालीन पर बैठकर यहां के सुरीले संगीत और नृत्य का आनंद लेते हैं.
तस्वीर: Bulbulik Heritage Centre Gulmit
संगीत से गुलजार वादियां
इलाके के युवाओं ने एक ग्रुप भी बनाया है. आम तौर वे सब मिलकर अपने संगीत का जादू बिखरेते हैं. इलाके की खूबसूरती इसमें चार चांद लगाती है.
तस्वीर: Bulbulik Heritage Centre Gulmit
धार्मिक कट्टरपंथ से दूर
कट्टरपंथी जहां इस्लाम में संगीत और अविवाहित व गैर रिश्तेदार युवक युवती के साथ बैठने को हराम करार देते हैं, वहीं पहाड़ों में बसे गुलमीत में हालात बहुत अलग दिखते हैं.
तस्वीर: Bulbulik Heritage Centre Gulmit
बच्चियों को भी मौका
रूफ ऑफ द वर्ल्ड फेस्टिवल के दौरान प्रतिभाली बच्चियों को भी मंच पर अपना हुनर दिखाने का मौका मिलता है.
तस्वीर: Bulbulik Heritage Centre Gulmit
स्कूल से बड़ी मदद
गुलमीत का बुलबीक स्कूल इलाके के बच्चों को अपने पारंपरिक संगीत की तालीम देता है. ऐसी कई कोशिशों के चलते ही यह परंपरा आज भी गर्व के साथ जिंदा है. (रिपोर्ट: सायमा हैदर)
तस्वीर: Bulbulik Heritage Centre Gulmit
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अनुमान लगाया गया है कि ग्लेशियरों के पिघलने से इलाके में बाढ़ आने से लेकर, वायु प्रदूषण बढ़ने और ग्लेशियरों में काले कार्बन और धूल के जमने जैसे बदलाव दिखेंगे. बांग्लादेश की राजधानी ढाका की एक पर्यावरण संस्था, इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड डेवलपमेंट के निदेशक सलीमुल हक ने इस रिपोर्ट के नतीजों को "बहुत खतरनाक" बताया है, खासकर बांग्लादेश जैसे देशों के लिए. इस स्टडी को रिव्यू करने वाले विशेषज्ञों में से एक रहे हक ने बताया, "सभी प्रभावित देशों को इस आने वाली परेशानी से निपटने के उपायों को वरीयता देनी चाहिए, इससे पहले कि ये बड़ा संकट बन जाए."
स्टडी में लिखा है कि अगर 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के हिसाब से इस सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ही बढ़ने देने का लक्ष्य पूरा भी कर लिया जाता है, तो भी इलाके के एक तिहाई ग्लेशियर नहीं बचेंगे. और अगर बढ़ोत्तरी 2 डिग्री सेल्सियस तक होती है, तो भी दो तिहाई ग्लेशियर नहीं रहेंगे. इसलिए अब तक सोचे गए उपायों से भी आगे बढ़कर जलवायु परिवर्तन होने से रोकने के नए और कारगर उपाय खोजने होंगे.
आरपी/एमजे (एपी)
पर्वतारोहियों को डराने वाली चोटियां
पहाड़ की चोटी पर पहुंचकर झंडा फहराना, ऐसा ख्वाब कई लोग देखते हैं. लेकिन दर्जनों लोग उन पहाड़ों से कभी लौटकर नहीं आ पाते.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J-P Clatot
10. डेनाली
6,194 मीटर की इस चोटी को माउंट मैकिंले के नाम से भी जाता है. यह उत्तरी अमेरिका की सबसे ऊंची चोटी है. इस पर चढ़ने में 50 फीसदी पर्वतारोही ही कामयाब हो पाते हैं. यह पहाड़ अब तक 100 से ज्यादा पर्वतारोहियों की जान ले चुका है.
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09. माउंट एवरेस्ट
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर अब तक 1,500 से ज्यादा लोग चढ़ चुके हैं. ऑक्सीजन की कमी, बदलते मौसम और दर्रों से घिरी इस चोटी को छूने के चक्कर में अब तक 290 से ज्यादा पर्वतारोही मारे जा चुके हैं.
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08. बाइंथा ब्राक
गिलगित बल्तिस्तान की इस चोटी को भी दुनिया के सबसे दुश्वार पर्वत शिखरों में गिना जाता है. 1977 में इंसान ने पहली बार इस पर चढ़ाई की. उसके बाद 2001 में जाकर कोई पर्वतारोही इस पर चढ़ने में सफल रहा. इस चोटी से उतरना बहुत ही मुश्किल है.
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07. माउंट विनसन
यह अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी है. इसकी उंचाई भले ही 4,892 मीटर हो. लेकिन यह धरती के सबसे दुश्वार इलाके में है. इसकी तरफ बढ़ने में अगर जरा भी चूक हुई तो राहत और बचाव की उम्मीद भी बेईमानी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R.Naar
06. मैटरहॉर्न
आप्ल्स की सबसे ऊंची चोटी न होने के बावजूद मैटरहॉर्न यूरोप की सबसे खतरनाक चोटी है. तकनीकी चढ़ाई, हिमस्खलन का खतरा और पत्थरों के टूटने का खतरा इसे यूरोप की सबसे जानलेवा चोटी बनाता है.
तस्वीर: DW
05. आइगर
आल्प्स की आइगर चोटी की चढ़ाई तीन तरफ से बहुत मुश्किल नहीं हैं. लेकिन उत्तरी दिशा से इस चोटी पर चढ़ना बहुत ही मुश्किल है. तकनीकी रूप से चोटी का नॉर्थफेस जटिल है और पत्थरों के टूटने का खतरा भी रहता है. इसे मौत की दीवार यूं ही नहीं कहा जाता.
तस्वीर: FABRICE COFFRINI/AFP/Getty Images
04. कंचनजंघा
दुनिया भी ज्यादातर चोटियों में समय के साथ मरने वालों की संख्या में कमी आई है. लेकिन कचनजंघा में इसका उल्टा हुआ है. हाल के सालों में कंचनजंघा में मरने वालों संख्या 22 फीसदी बढ़ी है. खतरनाक मौसम और हिमस्खलन अच्छे खासे पर्वतारोहियों की हालत खस्ता कर देता है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/S. Majumder
03. नंगा पर्वत
दुनिया की नवीं ऊंची चोटी तक पहुंचने का रास्ता बहुत ही संकरा है. पर्वत के दक्षिणी हिस्से में हजारों मीटर गहरी खाई है. नंगा पर्वत को पर्वतारोही "आदमखोर" भी कहते हैं.
तस्वीर: Reuters/Forum/M. Obrycki
02. के2
दुनिया की दूसरी ऊंची चोटी के2 बेहद दुश्वार है. हर साल बहुत कम पर्वतारोही ही इसकी तरफ नजर उठाते हैं. खड़ी चढ़ाई, नुकीले कोने और बर्फ के स्तंभों से गुजरते हुए इसकी चोटी पर पहुंचा जा सकता है. तकनीकी मुश्किल इसकी चढ़ाई को दुस्साहसी बना देती है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Riedel
01. अन्नपूर्णा
1950 में पहली बार इंसान इस चोटी पर चढ़ा. लेकिन तब से अब तक 130 से ज्यादा लोग ही इस पर चढ़ पाए हैं. 53 इसके रास्ते में ही मारे गए. 8,000 मीटर ऊंची इस चोटी को दुनिया का सबसे खतरनाक पर्वत शिखर कहा जाता है.